"भारतीय रुपया": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replacement - "शृंखला" to "श्रृंखला")
 
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 7 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 45: पंक्ति 45:
| [[चित्र:Indian-Rupee-2.jpg|भारतीय दो रुपये का नोट|thumb]]
| [[चित्र:Indian-Rupee-2.jpg|भारतीय दो रुपये का नोट|thumb]]
|}
|}
[[भारत]] विश्व की उन प्रथम सभ्यताओं में से है जहाँ सिक्कों का प्रचलन शुरू हुआ। लगभग 6वीं [[सदी]] ईसा पूर्व में रुपए शब्द का अर्थ, शब्द 'रूपा' से जोडा जा सकता है जिसका अर्थ होता है [[चाँदी]]। [[संस्कृत]] में 'रूप्यकम्' का अर्थ है 'चाँदी का सिक्का'। रुपया शब्द सन् 1540 - 1545 के बीच [[शेरशाह सूरी]] के द्वारा जारी किए गए चाँदी के सिक्कों के लिए उपयोग में लाया गया। मूल रुपया चाँदी का सिक्का होता था, जिसका वजन 11.34 ग्राम था। यह सिक्का ब्रिटिश भारत के शासन काल में भी उपयोग में लाया जाता रहा। बीसवीं सदी में [[फ़ारस की खाड़ी]] के देशों<ref>खाड़ी देश</ref> तथा अरब मुल्कों में भारतीय रुपया मुद्रा के तौर पर प्रचलित थी। [[सोना|सोने]] की तस्करी को रोकने तथा भारतीय मुद्रा के बाहर में प्रयोग को रोकने के लिए मई [[1959]] में [[भारतीय रिज़र्व बैंक]] ने ''गल्फ़ रुपी''<ref>खाड़ी रुपया</ref> का विपणन किया। साठ के दशक में कुवैत तथा [[बहरीन]] ने अपनी स्वतंत्रता के बाद अपनी ख़ुद की मुद्रा प्रयोग में लानी शुरू की तथा [[1966]] में भारतीय रुपये में हुए अवमूल्यन से बचने के लिए क़तर ने भी अपनी मुद्रा शुरू कर दी ।<ref>{{cite web |url=http://www.chiefacoins.com/Database/Countries/Qatar.htm |title=Qatar |accessmonthday=9 सितम्बर |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] }}</ref>
[[भारत]] विश्व की उन प्रथम सभ्यताओं में से है जहाँ सिक्कों का प्रचलन शुरू हुआ। लगभग 6वीं [[सदी]] ईसा पूर्व में रुपए शब्द का अर्थ, शब्द 'रूपा' से जोडा जा सकता है जिसका अर्थ होता है [[चाँदी]]। [[संस्कृत]] में 'रूप्यकम्' का अर्थ है 'चाँदी का सिक्का'। रुपया शब्द सन् 1540 - 1545 के बीच [[शेरशाह सूरी]] के द्वारा जारी किए गए चाँदी के सिक्कों के लिए उपयोग में लाया गया। मूल रुपया चाँदी का सिक्का होता था, जिसका वजन 11.34 ग्राम था। यह सिक्का ब्रिटिश भारत के शासन काल में भी उपयोग में लाया जाता रहा। बीसवीं सदी में [[फ़ारस की खाड़ी]] के देशों<ref>खाड़ी देश</ref> तथा अरब मुल्कों में भारतीय रुपया मुद्रा के तौर पर प्रचलित थी। [[सोना|सोने]] की तस्करी को रोकने तथा भारतीय मुद्रा के बाहर में प्रयोग को रोकने के लिए मई [[1959]] में [[भारतीय रिज़र्व बैंक]] ने ''गल्फ़ रूपी''<ref>खाड़ी रुपया</ref> का विपणन किया। साठ के दशक में कुवैत तथा [[बहरीन]] ने अपनी स्वतंत्रता के बाद अपनी ख़ुद की मुद्रा प्रयोग में लानी शुरू की तथा [[1966]] में भारतीय रुपये में हुए अवमूल्यन से बचने के लिए क़तर ने भी अपनी मुद्रा शुरू कर दी ।<ref>{{cite web |url=http://www.chiefacoins.com/Database/Countries/Qatar.htm |title=Qatar |accessmonthday=9 सितम्बर |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] }}</ref>
====काग़ज़ के नोटों की शुरुआत====
====काग़ज़ के नोटों की शुरुआत====
रुपयों के [[काग़ज़]] के नोटों को सबसे पहले जारी करने वालों में से थे 'बैंक ऑफ हिन्दुस्तान' (1770-1832), 'द जनरल बैंक ऑफ बंगाल एंड बिहार' (1773-75, वारेन हॉस्टिग्स द्वारा स्थापित) और 'द बंगाल बैंक' (1784-91)। शुरुआत में बैंक ऑफ बंगाल द्वारा जारी किए गए काग़ज़ के नोटों पे केवल एक तरफ ही छपा होता था। इसमें सोने की एक मोहर बनी थी और यह 100, 250, 500 आदि वर्गों में थे। बाद के नोट में एक बेलबूटा बना था जो एक महिला आकृति, व्यापार का मानवीकरण दर्शाता था। यह नोट दोनों ओर छपे होते थे, तीन लिपिओं [[उर्दू]], [[बंगाली भाषा|बंगाली]] और [[देवनागरी लिपि|देवनागरी]] में यह छपे होते थे, जिसमें पीछे की तरफ बैंक की छाप होती थी। 1800 सदी के अंत तक नोटों के मूलभाव ब्रितानी हो गए और जाली बनने से रोकने के लिए उनमे अन्य कई लक्षण जोडे गए।
रुपयों के [[काग़ज़]] के नोटों को सबसे पहले जारी करने वालों में से थे 'बैंक ऑफ हिन्दुस्तान' (1770-1832), 'द जनरल बैंक ऑफ बंगाल एंड बिहार' (1773-75, वारेन हॉस्टिग्स द्वारा स्थापित) और 'द बंगाल बैंक' (1784-91)। शुरुआत में बैंक ऑफ बंगाल द्वारा जारी किए गए काग़ज़ के नोटों पे केवल एक तरफ ही छपा होता था। इसमें सोने की एक मोहर बनी थी और यह 100, 250, 500 आदि वर्गों में थे। बाद के नोट में एक बेलबूटा बना था जो एक महिला आकृति, व्यापार का मानवीकरण दर्शाता था। यह नोट दोनों ओर छपे होते थे, तीन लिपिओं [[उर्दू]], [[बंगाली भाषा|बंगाली]] और [[देवनागरी लिपि|देवनागरी]] में यह छपे होते थे, जिसमें पीछे की तरफ बैंक की छाप होती थी। 1800 सदी के अंत तक नोटों के मूलभाव ब्रितानी हो गए और जाली बनने से रोकने के लिए उनमे अन्य कई लक्षण जोडे गए।
पंक्ति 54: पंक्ति 54:
अरबों ने 712 ईसवीं में भारत के सिंध प्रांत को जीत कर उस पर अपना प्रमुख स्थापित किया। बारहवीं शताब्दी तक दिल्ली के तुर्क सुल्तानों ने लंबे समय से चली आ रही अरबी डिजाइन को हटाकर उनके स्थान पर इस्लामी लिखावटों को मुद्रित कराया। इस मुद्रा को टंका कहा जाता था। दिल्ली के सुल्तानों ने इस मौद्रिक प्रणाली का मानकीकरण करने का प्रयास किया और फिर बाद में सोने, चांदी और तांबे की मुद्राओं का प्रचलन शुरू हो गया। सन् 1526 में मुग़लों का शासनकाल शुरू होने के बाद समूचे साम्राज्य में एकीकृत और सुगठित मौद्रिक प्रणाली की शुरूआत हुई। अफ़ग़ान सुल्तान शेरशाह सूरी (1540 से 1545) ने चांदी के ‘रुपैये’ अथवा रुपये के सिक्के की शुरूआत की। पूर्व-उपनिवेशकाल के भारत के राजे-रजवाड़ों ने अपनी अलग मुद्राओं की ढलाई करवाई, जो मुख्यत: चांदी के रुपये जैसे ही दिखती थीं, केवल उन पर उनके मूल स्थान (रियासतों) की क्षेत्रीय विशेषताएं भर अंकित होती थीं।<ref name="अर्थकाम"/>   
अरबों ने 712 ईसवीं में भारत के सिंध प्रांत को जीत कर उस पर अपना प्रमुख स्थापित किया। बारहवीं शताब्दी तक दिल्ली के तुर्क सुल्तानों ने लंबे समय से चली आ रही अरबी डिजाइन को हटाकर उनके स्थान पर इस्लामी लिखावटों को मुद्रित कराया। इस मुद्रा को टंका कहा जाता था। दिल्ली के सुल्तानों ने इस मौद्रिक प्रणाली का मानकीकरण करने का प्रयास किया और फिर बाद में सोने, चांदी और तांबे की मुद्राओं का प्रचलन शुरू हो गया। सन् 1526 में मुग़लों का शासनकाल शुरू होने के बाद समूचे साम्राज्य में एकीकृत और सुगठित मौद्रिक प्रणाली की शुरूआत हुई। अफ़ग़ान सुल्तान शेरशाह सूरी (1540 से 1545) ने चांदी के ‘रुपैये’ अथवा रुपये के सिक्के की शुरूआत की। पूर्व-उपनिवेशकाल के भारत के राजे-रजवाड़ों ने अपनी अलग मुद्राओं की ढलाई करवाई, जो मुख्यत: चांदी के रुपये जैसे ही दिखती थीं, केवल उन पर उनके मूल स्थान (रियासतों) की क्षेत्रीय विशेषताएं भर अंकित होती थीं।<ref name="अर्थकाम"/>   
====बैंक नोटों का प्रचलन====
====बैंक नोटों का प्रचलन====
अट्ठाहरवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में, एजेंसी घरानों ने बैंकों का विकास किया। बैंक ऑफ बंगाल, द बैंक ऑफ हिन्दुस्तान, ओरियंटल बैंक कॉरपोरेशन और द बैंक ऑफ वेस्टर्न इंडिया इनमें प्रमुख थे। इन बैंकों ने अपनी अलग-अलग कागजी मुद्राएं [[उर्दू]], [[बंगला भाषा|बंगला]] और [[देवनागरी लिपि|देवनागरी]] लिपियों में मुद्रित करवाई। लगभग सौ वर्षों तक निजी और प्रेसिडेंसी बैंकों द्वारा जारी बैंक नोटों का प्रचलन बना रहा। परन्तु 1861 में पेपर करेंसी क़ानून बनने के बाद इस पर केवल सरकार का एकाधिकार रह गया। ब्रिटिश सरकार ने बैंक नोटों के वितरण में मदद के लिए पहले तो प्रेसीडेंसी बैंकों को ही अपने एजेंट के रूप में नियुक्त किया, क्योंकि एक बड़े भू-भाग में सामान्य नोटों के इस्तेमाल को बढ़ाया देना एक दुष्कर कार्य था। [[महारानी विक्टोरिया]] के सम्मान में [[1867]] में पहली बार उनके चित्र की शृंखला वाले बैंक नोट जारी किए गए। ये नोट एक ही ओर छापे गए (यूनीफेस्ड) थे और पांच मूल्यों में जारी किए गए थे।<ref name="अर्थकाम"/>  
अट्ठाहरवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, एजेंसी घरानों ने बैंकों का विकास किया। बैंक ऑफ बंगाल, द बैंक ऑफ हिन्दुस्तान, ओरियंटल बैंक कॉरपोरेशन और द बैंक ऑफ वेस्टर्न इंडिया इनमें प्रमुख थे। इन बैंकों ने अपनी अलग-अलग कागजी मुद्राएं [[उर्दू]], [[बंगला भाषा|बंगला]] और [[देवनागरी लिपि|देवनागरी]] लिपियों में मुद्रित करवाई। लगभग सौ वर्षों तक निजी और प्रेसिडेंसी बैंकों द्वारा जारी बैंक नोटों का प्रचलन बना रहा। परन्तु 1861 में पेपर करेंसी क़ानून बनने के बाद इस पर केवल सरकार का एकाधिकार रह गया। ब्रिटिश सरकार ने बैंक नोटों के वितरण में मदद के लिए पहले तो प्रेसीडेंसी बैंकों को ही अपने एजेंट के रूप में नियुक्त किया, क्योंकि एक बड़े भू-भाग में सामान्य नोटों के इस्तेमाल को बढ़ाया देना एक दुष्कर कार्य था। [[महारानी विक्टोरिया]] के सम्मान में [[1867]] में पहली बार उनके चित्र की श्रृंखला वाले बैंक नोट जारी किए गए। ये नोट एक ही ओर छापे गए (यूनीफेस्ड) थे और पांच मूल्यों में जारी किए गए थे।<ref name="अर्थकाम"/>  
====भारतीय रिज़र्व बैंक====
====भारतीय रिज़र्व बैंक====
बैंक नोटों के मुद्रण और वितरण का दायित्व [[1935]] में [[भारतीय रिज़र्व बैंक]] के हाथ में आ गया। जॉर्ज पंचम के चित्र वाले नोटों के स्थान पर [[1938]] में जॉर्ज षष्ठम के चित्र वाले नोट जारी किए गए, जो [[1947]] तक प्रचलन में रहे। भारत की स्वतंत्रता के बाद उनकी छपाई बंद हो गई और [[सारनाथ]] के सिंहों के स्तम्भ वाले नोटों ने इनका स्थान ले लिया।<ref name="अर्थकाम">{{cite web |url=http://www.arthkaam.com/silver-has-strong-connection-with-rupee/4481/ |title=चांदी से टांका रहा है हमारे रुपये का |accessmonthday=10 मई |accessyear=2013 |last=सिंह  |first=शुभ्रा |authorlink= |format= |publisher=अर्थकाम |language=हिंदी }} </ref>
बैंक नोटों के मुद्रण और वितरण का दायित्व [[1935]] में [[भारतीय रिज़र्व बैंक]] के हाथ में आ गया। जॉर्ज पंचम के चित्र वाले नोटों के स्थान पर [[1938]] में जॉर्ज षष्ठम के चित्र वाले नोट जारी किए गए, जो [[1947]] तक प्रचलन में रहे। भारत की स्वतंत्रता के बाद उनकी छपाई बंद हो गई और [[सारनाथ]] के सिंहों के स्तम्भ वाले नोटों ने इनका स्थान ले लिया।<ref name="अर्थकाम">{{cite web |url=http://www.arthkaam.com/silver-has-strong-connection-with-rupee/4481/ |title=चांदी से टांका रहा है हमारे रुपये का |accessmonthday=10 मई |accessyear=2013 |last=सिंह  |first=शुभ्रा |authorlink= |format= |publisher=अर्थकाम |language=हिंदी }} </ref>
==भारतीय मुद्रा का निर्माण==
==भारतीय मुद्रा का निर्माण==
प्रारंभ में छोटे राज्य थे जहां वस्तु विनिमय अर्थात एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु का आदान-प्रदान संभव था। परंतु कालांतर में जब बड़े-बड़े राज्यों का निर्माण हुआ तो यह प्रणाली समाप्त होती गई और इस कमी को पूरा करने के लिए मुद्रा को जन्म दिया गया। इतिहासकार के. वी. आर. आयंगर का मानना है कि [[प्राचीन भारत]] में मुद्राएं राजसत्ता के प्रतीक के रूप में ग्रहण की जाती थीं। परंतु प्रारंभ में किस व्यक्ति अथवा संस्था ने इन्हें जन्म दिया, यह ज्ञात नहीं है। अनुमान यह किया जाता है कि व्यापारी वर्ग ने आदान-प्रदान की सुविधा हेतु सर्वप्रथम सिक्के तैयार करवाए। संभवत: प्रारंभ में राज्य इसके प्रति उदासीन थे। परंतु परवर्ती युगों में इस पर राज्य का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया था। [[कौटिल्य |कौटिल्य]] के अर्थशास्त्र से ज्ञात होता है कि मुद्रा निर्माण पर पूर्णत: राज्य का अधिकार था। कुछ विद्वानों का मानना है कि भारत में मुद्राओं का प्रचलन विदेशी प्रभाव का परिणाम है। वहीं कुछ इसे इसी धरती की उपज मानते हैं। विल्सन और प्रिंसेप जैसे विद्वानों का मानना है कि भारत भूमि पर सिक्कों का आविर्भाव यूनानी आक्रमण के पश्चात हुआ। वहीं जान एलन उनकी इस अवधारणा को गलत बताते हुए कहते हैं कि ‘प्रारम्भिक भारतीय सिक्के जैसे ‘कार्षापण’ अथवा ‘आहत’ और यूनानी सिक्कों के मध्य कोई सम्पर्क नहीं था।<ref name="भारतीय पक्ष">{{cite web |url=http://www.bhartiyapaksha.com/?p=5723 |title=भारतीय मुद्रा के निर्माण की कहानी |accessmonthday=10 मई |accessyear=2013 |last=सिंह  |first=शुभ्रा |authorlink= |format= |publisher=भारतीय पक्ष |language=हिंदी }} </ref>
प्रारंभ में छोटे राज्य थे जहां वस्तु विनिमय अर्थात् एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु का आदान-प्रदान संभव था। परंतु कालांतर में जब बड़े-बड़े राज्यों का निर्माण हुआ तो यह प्रणाली समाप्त होती गई और इस कमी को पूरा करने के लिए मुद्रा को जन्म दिया गया। इतिहासकार के. वी. आर. आयंगर का मानना है कि [[प्राचीन भारत]] में मुद्राएं राजसत्ता के प्रतीक के रूप में ग्रहण की जाती थीं। परंतु प्रारंभ में किस व्यक्ति अथवा संस्था ने इन्हें जन्म दिया, यह ज्ञात नहीं है। अनुमान यह किया जाता है कि व्यापारी वर्ग ने आदान-प्रदान की सुविधा हेतु सर्वप्रथम सिक्के तैयार करवाए। संभवत: प्रारंभ में राज्य इसके प्रति उदासीन थे। परंतु परवर्ती युगों में इस पर राज्य का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया था। [[कौटिल्य |कौटिल्य]] के अर्थशास्त्र से ज्ञात होता है कि मुद्रा निर्माण पर पूर्णत: राज्य का अधिकार था। कुछ विद्वानों का मानना है कि भारत में मुद्राओं का प्रचलन विदेशी प्रभाव का परिणाम है। वहीं कुछ इसे इसी धरती की उपज मानते हैं। विल्सन और प्रिंसेप जैसे विद्वानों का मानना है कि भारत भूमि पर सिक्कों का आविर्भाव यूनानी आक्रमण के पश्चात् हुआ। वहीं जान एलन उनकी इस अवधारणा को गलत बताते हुए कहते हैं कि ‘प्रारम्भिक भारतीय सिक्के जैसे ‘कार्षापण’ अथवा ‘आहत’ और यूनानी सिक्कों के मध्य कोई सम्पर्क नहीं था।<ref name="भारतीय पक्ष">{{cite web |url=http://www.bhartiyapaksha.com/?p=5723 |title=भारतीय मुद्रा के निर्माण की कहानी |accessmonthday=10 मई |accessyear=2013 |last=सिंह  |first=शुभ्रा |authorlink= |format= |publisher=भारतीय पक्ष |language=हिंदी }} </ref>
====उत्पत्ति समय एवं स्थान====
====उत्पत्ति समय एवं स्थान====
उत्पत्ति स्थान के अलावा मुद्रा के जन्म काल में भी विद्वानों में मतभेद हैं। ज्यादातर विद्वान मानते हैं कि भारत में सिक्के 800 ई. पू. प्रकाश में आये। वहीं डा. डी. आर. भण्डारकर तथा विटरनित्ज जैसे विद्वान भारत में सिक्कों की प्राचीनता 3000 ई. पू. के आस-पास बताते हैं। जन्म स्थान और काल में बेशक विवाद हो लेकिन सिक्कों के निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली धातु के संबंध में कोई विवाद नहीं है।  
उत्पत्ति स्थान के अलावा मुद्रा के जन्म काल में भी विद्वानों में मतभेद हैं। ज्यादातर विद्वान् मानते हैं कि भारत में सिक्के 800 ई. पू. प्रकाश में आये। वहीं डॉ. डी. आर. भण्डारकर तथा विटरनित्ज जैसे विद्वान् भारत में सिक्कों की प्राचीनता 3000 ई. पू. के आस-पास बताते हैं। जन्म स्थान और काल में बेशक विवाद हो लेकिन सिक्कों के निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली धातु के संबंध में कोई विवाद नहीं है।  
====सिक्कों का निर्माण====
====सिक्कों का निर्माण====
सिक्कों के निर्माण के लिए अनेक धातुएं प्रयोग में लाई जाती थीं। इनमें [[सोना]], [[चांदी]] तथा [[तांबा]] प्रमुख धातुएं थीं। सोना तो भारत में विपुल मात्रा में था। तांबा भी अयस्क के रूप में प्राप्त होता था। परंतु चांदी बहुत कम मात्रा में उपलब्ध थी इसलिए इसका आयात किया जाता था। [[सातवाहन वंश]] ने मुद्रा निर्माण में एक नया प्रयोग किया। उन्होंने मुद्रा निर्माण के लिए [[सीसा|सीसे]] का प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया। विद्वान पेरीप्लस का विवरण है कि भारतीय लोग सीसे का बाहर से आयात करते थे। इतिहासकार [[प्लिनी]] ने इसका समर्थन करते हुए कहा है कि हिन्द [[यवन]] शासकों ने एक और धातु मुद्रा निर्माण हेतु प्रयुक्त किया जिसे [[निकिल]] के नाम से जाना जाता है।
सिक्कों के निर्माण के लिए अनेक धातुएं प्रयोग में लाई जाती थीं। इनमें [[सोना]], [[चांदी]] तथा [[तांबा]] प्रमुख धातुएं थीं। सोना तो भारत में विपुल मात्रा में था। तांबा भी अयस्क के रूप में प्राप्त होता था। परंतु चांदी बहुत कम मात्रा में उपलब्ध थी इसलिए इसका आयात किया जाता था। [[सातवाहन वंश]] ने मुद्रा निर्माण में एक नया प्रयोग किया। उन्होंने मुद्रा निर्माण के लिए [[सीसा|सीसे]] का प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया। विद्वान् पेरीप्लस का विवरण है कि भारतीय लोग सीसे का बाहर से आयात करते थे। इतिहासकार [[प्लिनी]] ने इसका समर्थन करते हुए कहा है कि हिन्द [[यवन]] शासकों ने एक और धातु मुद्रा निर्माण हेतु प्रयुक्त किया जिसे [[निकिल]] के नाम से जाना जाता है।
कभी-कभी सिक्कों के निर्माण हेतु पोटीन, कांस्य तथा पीतल का भी प्रयोग किया जाता था। कई बार मुद्रा निर्माण में मिश्रित धातुओं का भी प्रयोग किया जाता था। धातुओं को कठोर बनाने में और गिरती हुई अर्थव्यवस्था के संदर्भ में इनका उपयोग सिक्कों में किया जाने लगा। पोटीन कई धातुओं के मिश्रण से बनता था इसलिए इसे भ्रष्ट धातु कहा जाता था। कहीं-कहीं लोहे के सिक्के भी प्रचलन में थे। इसके अलावा मुद्रा के रूप में कौड़ियों का प्रचलन भी व्यापक क्षेत्र में था।<ref name="भारतीय पक्ष"/>
कभी-कभी सिक्कों के निर्माण हेतु पोटीन, कांस्य तथा पीतल का भी प्रयोग किया जाता था। कई बार मुद्रा निर्माण में मिश्रित धातुओं का भी प्रयोग किया जाता था। धातुओं को कठोर बनाने में और गिरती हुई अर्थव्यवस्था के संदर्भ में इनका उपयोग सिक्कों में किया जाने लगा। पोटीन कई धातुओं के मिश्रण से बनता था इसलिए इसे भ्रष्ट धातु कहा जाता था। कहीं-कहीं लोहे के सिक्के भी प्रचलन में थे। इसके अलावा मुद्रा के रूप में कौड़ियों का प्रचलन भी व्यापक क्षेत्र में था।<ref name="भारतीय पक्ष"/>
==मुद्रा निर्माण विधि==
==मुद्रा निर्माण विधि==
पंक्ति 80: पंक्ति 80:
[[चित्र:History-of-indian-currency 4.jpg|thumb|10 रुपये के नोट पर अंकित 15 अलग-अलग भाषाएँ]]   
[[चित्र:History-of-indian-currency 4.jpg|thumb|10 रुपये के नोट पर अंकित 15 अलग-अलग भाषाएँ]]   
* भारतीय रुपया [[1957]] तक तो 16 आनों में विभाजित रहा, परन्तु उसके बाद (1957 में ही) उसने मुद्रा की दशमलव प्रणाली अपना ली और एक रुपये की गणना 100 समान पैसों में की गई।
* भारतीय रुपया [[1957]] तक तो 16 आनों में विभाजित रहा, परन्तु उसके बाद (1957 में ही) उसने मुद्रा की दशमलव प्रणाली अपना ली और एक रुपये की गणना 100 समान पैसों में की गई।
* [[महात्मा गांधी]] वाले कागजी नोटों की शृंखला की शुरूआत [[1996]] में हुई, जो आज तक चलन में है।  
* [[महात्मा गांधी]] वाले कागजी नोटों की श्रृंखला की शुरूआत [[1996]] में हुई, जो आज तक चलन में है।  
* नोटों के एक ओर सफेद वाले भाग में महात्मा गांधी का वाटर मार्क बना हुआ है।  
* नोटों के एक ओर सफेद वाले भाग में महात्मा गांधी का वाटर मार्क बना हुआ है।  
* सभी नोटों में चांदी का सुरक्षा धागा लगा हुआ है जिस पर [[अंग्रेज़ी]] में आरबीआई और [[हिंदी]] में भारत अंकित है। प्रकाश के सामने लाने पर इनको देखा जा सकता है।  
* सभी नोटों में चांदी का सुरक्षा धागा लगा हुआ है जिस पर [[अंग्रेज़ी]] में आरबीआई और [[हिंदी]] में भारत अंकित है। प्रकाश के सामने लाने पर इनको देखा जा सकता है।  
पंक्ति 94: पंक्ति 94:
* आज़ादी के बाद सिक्के [[तांबा|तांबे]] के बनते थे। उसके बाद 1964 में [[एल्युमिनियम]] के और1988 में स्टेनलेस स्टील के बनने शुरू हुए।
* आज़ादी के बाद सिक्के [[तांबा|तांबे]] के बनते थे। उसके बाद 1964 में [[एल्युमिनियम]] के और1988 में स्टेनलेस स्टील के बनने शुरू हुए।
* भारतीय नोट पर [[महात्मा गांधी]] की जो फोटो छपती हैं वह तब खींची गई थी जब गांधीजी, तत्कालीन बर्मा और भारत में ब्रिटिश सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत फ्रेडरिक पेथिक लॉरेंस के साथ कोलकाता स्थित वायसराय हाउस में मुलाकात करने गए थे। यह फोटो 1996 में नोटों पर छपनी शुरू हुई थी। इससे पहले महात्मा गांधी की जगह [[अशोक स्तंभ]] छापा जाता था।
* भारतीय नोट पर [[महात्मा गांधी]] की जो फोटो छपती हैं वह तब खींची गई थी जब गांधीजी, तत्कालीन बर्मा और भारत में ब्रिटिश सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत फ्रेडरिक पेथिक लॉरेंस के साथ कोलकाता स्थित वायसराय हाउस में मुलाकात करने गए थे। यह फोटो 1996 में नोटों पर छपनी शुरू हुई थी। इससे पहले महात्मा गांधी की जगह [[अशोक स्तंभ]] छापा जाता था।
* भारत के 500 और 1,000 रूपये के नोट [[नेपाल]] में नहीं चलते।   
* भारत के 500 और 1,000 रुपये के नोट [[नेपाल]] में नहीं चलते।   
* 500 ₹ का पहला नोट 1987 में और 1,000 ₹ पहला नोट सन् 2000 में बनाया गया था। फिलहाल 1,000 ₹ का नोट बंद हो चुका है। और 500₹ का नया नोट बाज़ार में आ रहा है।
* 500 ₹ का पहला नोट 1987 में और 1,000 ₹ पहला नोट सन् 2000 में बनाया गया था। फिलहाल 1,000 ₹ का नोट बंद हो चुका है। और 500₹ का नया नोट बाज़ार में आ रहा है।
* भारत में 75, 100 और 1,000 ₹ के भी सिक्के छप चुके हैं।
* भारत में 75, 100 और 1,000 ₹ के भी सिक्के छप चुके हैं।
पंक्ति 104: पंक्ति 104:
* [[भारतीय रिज़र्व बैंक]] के अनुसार भारत हर साल 2,000 करोड़ करंसी नोट छापता हैं।
* [[भारतीय रिज़र्व बैंक]] के अनुसार भारत हर साल 2,000 करोड़ करंसी नोट छापता हैं।
* कम्प्यूटर पर ₹ टाइप करने के लिए ‘Ctrl+Shift+$’ के बटन को एक साथ दबाएँ।
* कम्प्यूटर पर ₹ टाइप करने के लिए ‘Ctrl+Shift+$’ के बटन को एक साथ दबाएँ।
* ₹ के इस चिन्ह को 2010 में उदय कुमार ने बनाया था। इसके लिए इनको 2.5 लाख रूपयें का इनाम भी मिला था।
* ₹ के इस चिन्ह को 2010 में उदय कुमार ने बनाया था। इसके लिए इनको 2.5 लाख रुपयें का इनाम भी मिला था।
* आरबीआई सिर्फ 10,000 ₹ तक के नोट छाप सकती हैं। अगर इससे ज्यादा कीमत के नोट छापने हैं तो उसको रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934 में बदलाव करना होगा।
* आरबीआई सिर्फ 10,000 ₹ तक के नोट छाप सकती हैं। अगर इससे ज्यादा कीमत के नोट छापने हैं तो उसको रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934 में बदलाव करना होगा।
* आरबीआई कितने नोट छाप सकती है इसका निर्धारण मुद्रा स्फीति, जीडीपी ग्रोथ, बैंक नोट्स के रिप्लेसमेंट और रिजर्व बैंक के स्टॉक के आधार पर किया जाता है।
* आरबीआई कितने नोट छाप सकती है इसका निर्धारण मुद्रा स्फीति, जीडीपी ग्रोथ, बैंक नोट्स के रिप्लेसमेंट और रिजर्व बैंक के स्टॉक के आधार पर किया जाता है।

11:14, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

भारतीय रुपया
भारतीय रुपए का प्रतीक चिह्न
भारतीय रुपए का प्रतीक चिह्न
ISO कोड 4217 INR
उपनाम टका, रुपय्या, रुबाई
केंद्रीय बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक
अधिकृत सदस्य भारत
अनाधिकृत सदस्य भूटान और नेपाल
मुद्रास्फीति 5.96%, मार्च 2013
स्रोत Economic Adviser
उप इकाई पैसा
सिक्के 50 पैसे, 1 रुपये, 2 रुपये, 5 रुपये और 10 रुपये
बैंकनोट 2 रुपये, 5 रुपये, 10 रुपये, 20 रुपये, 50 रुपये, 100 रुपये, 500 रुपये, 1000 रुपये
अन्य जानकारी रुपया शब्द सन् 1540 - 1545 के बीच शेरशाह सूरी के द्वारा जारी किए गए चाँदी के सिक्कों के लिए उपयोग में लाया गया। मूल रुपया चाँदी का सिक्का होता था, जिसका वजन 11.34 ग्राम था।
बाहरी कड़ियाँ रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया

भारतीय रुपया (अंग्रेज़ी: Indian Rupee, कोड: INR) भारत की राष्ट्रीय मुद्रा है। इसका बाज़ार नियामक और जारीकर्ता भारतीय रिज़र्व बैंक है। नये प्रतीक चिह्न के आने से पहले रुपये को हिन्दी में दर्शाने के लिए 'रु' और अंग्रेज़ी में Re. (1 रुपया), Rs., और Rp. का प्रयोग किया जाता था। आधुनिक भारतीय रुपये को 100 पैसे में विभाजित किया गया है। सिक्कों का मूल्य 5, 10, 20, 25 और 50 पैसे है और 1, 2, 5 और 10 रुपये भी है। बैंकनोट 1, 2, 5, 10, 20, 50, 100, 500 और 1000 के मूल्य पर हैं।

मूल्य

शेरशाह सूरी के शासनकाल के दौरान शुरू किया गया ‘रुपया’ आज तक प्रचलन में है। भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान भी यह प्रचलन में रहा, इस दौरान इसका वज़न 11.66 ग्राम था और इसके भार का 91.7% तक शुद्ध चांदी थी। 19वीं शताब्दी के अंत में रुपया प्रथागत ब्रिटिश मुद्रा विनिमय दर के अनुसार एक शिलिंग और चार पेंस के बराबर था, वहीं यह एक पाउंड स्टर्लिंग का 1 / 15 हिस्सा था। उन्नीसवीं सदी में जब दुनिया में सबसे सशक्त अर्थव्यवस्थायें स्वर्ण मानक पर आधारित थीं तब चांदी से बने रुपये के मूल्य में भीषण गिरावट आयी। संयुक्त राज्य अमेरिका और विभिन्न यूरोपीय उपनिवेशों में विशाल मात्रा में चांदी के स्रोत मिलने के परिणामस्वरूप चांदी का मूल्य सोने के अपेक्षा काफ़ी गिर गया। अचानक भारत की मानक मुद्रा से अब बाहर की दुनिया से ज्यादा ख़रीद नहीं की जा सकती थी। इस घटना को ‘रुपए की गिरावट" के रूप में जाना जाता है। पहले रुपए (11.66 ग्राम) को 16 आने या 64 पैसे या 192 पाई में बांटा जाता था। रुपये का दशमलवीकरण 1869 में सीलोन (श्रीलंका) में, 1957 में भारत में और 1961 में पाकिस्तान में हुआ। इस प्रकार अब एक भारतीय रुपया 100 पैसे में विभाजित हो गया। भारत में कभी कभी पैसे के लिए नया पैसा शब्द भी इस्तेमाल किया जाता था।

प्रतीक चिह्न

'भारतीय रुपए' का प्रतीक चिह्न अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आदान-प्रदान तथा आर्थिक संबलता को परिलक्षित कर रहा है। रुपए का चिह्न भारत के लोकाचार का भी एक रूपक है। रुपए का यह नया प्रतीक देवनागरी लिपि के 'र' और रोमन लिपि के अक्षर 'आर' को मिला कर बना है, जिसमें एक क्षैतिज रेखा भी बनी हुई है। यह रेखा हमारे राष्ट्रध्वज तथा बराबर के चिह्न को प्रतिबिंबित करती है। भारत सरकार ने 15 जुलाई, 2010 को इस चिह्न को स्वीकार कर लिया है। यह चिह्न भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मुम्बई के पोस्ट ग्रेजुएट डिजाइन श्री डी. उदय कुमार ने बनाया है। इस चिह्न को वित्त मंत्रालय द्वारा आयोजित एक खुली प्रतियोगिता में प्राप्त हज़ारों डिज़ायनों में से चुना गया है। इस प्रतियोगिता में भारतीय नागरिकों से रुपए के नए चिह्न के लिए डिज़ाइन आमंत्रित किए गए थे। इस चिह्न को डिजीटल तकनीक तथा कम्प्यूटर प्रोग्राम में स्थापित करने की प्रक्रिया चल रही है।

रुपये का इतिहास

भारतीय एक रुपये का सिक्का (1862)
भारतीय आधा आना का सिक्का (1945)
ऐतिहासिक भारतीय सिक्के
भारतीय एक रुपये का नोट (1917)
भारतीय पाँच रुपये का नोट (1922)
भारतीय पाँच रुपये का नोट (1937)
भारतीय दस रुपये का नोट (1943)
भारतीय दो रुपये का नोट

भारत विश्व की उन प्रथम सभ्यताओं में से है जहाँ सिक्कों का प्रचलन शुरू हुआ। लगभग 6वीं सदी ईसा पूर्व में रुपए शब्द का अर्थ, शब्द 'रूपा' से जोडा जा सकता है जिसका अर्थ होता है चाँदीसंस्कृत में 'रूप्यकम्' का अर्थ है 'चाँदी का सिक्का'। रुपया शब्द सन् 1540 - 1545 के बीच शेरशाह सूरी के द्वारा जारी किए गए चाँदी के सिक्कों के लिए उपयोग में लाया गया। मूल रुपया चाँदी का सिक्का होता था, जिसका वजन 11.34 ग्राम था। यह सिक्का ब्रिटिश भारत के शासन काल में भी उपयोग में लाया जाता रहा। बीसवीं सदी में फ़ारस की खाड़ी के देशों[1] तथा अरब मुल्कों में भारतीय रुपया मुद्रा के तौर पर प्रचलित थी। सोने की तस्करी को रोकने तथा भारतीय मुद्रा के बाहर में प्रयोग को रोकने के लिए मई 1959 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने गल्फ़ रूपी[2] का विपणन किया। साठ के दशक में कुवैत तथा बहरीन ने अपनी स्वतंत्रता के बाद अपनी ख़ुद की मुद्रा प्रयोग में लानी शुरू की तथा 1966 में भारतीय रुपये में हुए अवमूल्यन से बचने के लिए क़तर ने भी अपनी मुद्रा शुरू कर दी ।[3]

काग़ज़ के नोटों की शुरुआत

रुपयों के काग़ज़ के नोटों को सबसे पहले जारी करने वालों में से थे 'बैंक ऑफ हिन्दुस्तान' (1770-1832), 'द जनरल बैंक ऑफ बंगाल एंड बिहार' (1773-75, वारेन हॉस्टिग्स द्वारा स्थापित) और 'द बंगाल बैंक' (1784-91)। शुरुआत में बैंक ऑफ बंगाल द्वारा जारी किए गए काग़ज़ के नोटों पे केवल एक तरफ ही छपा होता था। इसमें सोने की एक मोहर बनी थी और यह 100, 250, 500 आदि वर्गों में थे। बाद के नोट में एक बेलबूटा बना था जो एक महिला आकृति, व्यापार का मानवीकरण दर्शाता था। यह नोट दोनों ओर छपे होते थे, तीन लिपिओं उर्दू, बंगाली और देवनागरी में यह छपे होते थे, जिसमें पीछे की तरफ बैंक की छाप होती थी। 1800 सदी के अंत तक नोटों के मूलभाव ब्रितानी हो गए और जाली बनने से रोकने के लिए उनमे अन्य कई लक्षण जोडे गए।

चाँदी का रुपया

रुपया शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द ‘रौप्य’ से हुई है, जिसका अर्थ होता है, चाँदीभारत की उन गिने-चुने देशों में शुमार है जिसने सबसे पहले सिक्के जारी किए। परिणामत: इसके इतिहास में अनेक मौद्रिक इकाइयों (मुद्राओं) का उल्लेख मिलता है। इस बात के कुछ ऐतिहासिक प्रमाण मिले हैं कि पहले सिक्के 2500 और 1750 ईसा-पूर्व के बीच कभी जारी किए गए थे। लेकिन दस्तावेजी प्रमाण सातवीं/छठी शताब्दी ईसा-पूर्व के बीच सिक्कों की ढलाई के ही मिले हैं। इन सिक्कों के निर्माण की विशिष्ट तकनीक के कारण इन्हें पंच मार्क्ड सिक्के कहा जाता है। अगली कुछ सदियों के दौरान जैसे-जैसे साम्राज्यों का उदय और पतन हुआ, देश की मुद्राओं में इसका प्रगति-क्रम दिखाई देने लगा। इन मुद्राओं से प्रायः तत्कालीन राजवंश, सामाजिक-राजनीतिक घटनाओं, आराध्य देवों और प्रकृति का परिचय मिलता था। इनमें इंडो-ग्रीक काल के यूनानी देवताओं और उसके बाद के पश्चिमी क्षत्रप वाली तांबे की मुद्राएं शामिल हैं जो पहली और चौथी शताब्दी (ईसवीं) के दौरान जारी की गई थीं।[4]

मौद्रिक प्रणाली

अरबों ने 712 ईसवीं में भारत के सिंध प्रांत को जीत कर उस पर अपना प्रमुख स्थापित किया। बारहवीं शताब्दी तक दिल्ली के तुर्क सुल्तानों ने लंबे समय से चली आ रही अरबी डिजाइन को हटाकर उनके स्थान पर इस्लामी लिखावटों को मुद्रित कराया। इस मुद्रा को टंका कहा जाता था। दिल्ली के सुल्तानों ने इस मौद्रिक प्रणाली का मानकीकरण करने का प्रयास किया और फिर बाद में सोने, चांदी और तांबे की मुद्राओं का प्रचलन शुरू हो गया। सन् 1526 में मुग़लों का शासनकाल शुरू होने के बाद समूचे साम्राज्य में एकीकृत और सुगठित मौद्रिक प्रणाली की शुरूआत हुई। अफ़ग़ान सुल्तान शेरशाह सूरी (1540 से 1545) ने चांदी के ‘रुपैये’ अथवा रुपये के सिक्के की शुरूआत की। पूर्व-उपनिवेशकाल के भारत के राजे-रजवाड़ों ने अपनी अलग मुद्राओं की ढलाई करवाई, जो मुख्यत: चांदी के रुपये जैसे ही दिखती थीं, केवल उन पर उनके मूल स्थान (रियासतों) की क्षेत्रीय विशेषताएं भर अंकित होती थीं।[4]

बैंक नोटों का प्रचलन

अट्ठाहरवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, एजेंसी घरानों ने बैंकों का विकास किया। बैंक ऑफ बंगाल, द बैंक ऑफ हिन्दुस्तान, ओरियंटल बैंक कॉरपोरेशन और द बैंक ऑफ वेस्टर्न इंडिया इनमें प्रमुख थे। इन बैंकों ने अपनी अलग-अलग कागजी मुद्राएं उर्दू, बंगला और देवनागरी लिपियों में मुद्रित करवाई। लगभग सौ वर्षों तक निजी और प्रेसिडेंसी बैंकों द्वारा जारी बैंक नोटों का प्रचलन बना रहा। परन्तु 1861 में पेपर करेंसी क़ानून बनने के बाद इस पर केवल सरकार का एकाधिकार रह गया। ब्रिटिश सरकार ने बैंक नोटों के वितरण में मदद के लिए पहले तो प्रेसीडेंसी बैंकों को ही अपने एजेंट के रूप में नियुक्त किया, क्योंकि एक बड़े भू-भाग में सामान्य नोटों के इस्तेमाल को बढ़ाया देना एक दुष्कर कार्य था। महारानी विक्टोरिया के सम्मान में 1867 में पहली बार उनके चित्र की श्रृंखला वाले बैंक नोट जारी किए गए। ये नोट एक ही ओर छापे गए (यूनीफेस्ड) थे और पांच मूल्यों में जारी किए गए थे।[4]

भारतीय रिज़र्व बैंक

बैंक नोटों के मुद्रण और वितरण का दायित्व 1935 में भारतीय रिज़र्व बैंक के हाथ में आ गया। जॉर्ज पंचम के चित्र वाले नोटों के स्थान पर 1938 में जॉर्ज षष्ठम के चित्र वाले नोट जारी किए गए, जो 1947 तक प्रचलन में रहे। भारत की स्वतंत्रता के बाद उनकी छपाई बंद हो गई और सारनाथ के सिंहों के स्तम्भ वाले नोटों ने इनका स्थान ले लिया।[4]

भारतीय मुद्रा का निर्माण

प्रारंभ में छोटे राज्य थे जहां वस्तु विनिमय अर्थात् एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु का आदान-प्रदान संभव था। परंतु कालांतर में जब बड़े-बड़े राज्यों का निर्माण हुआ तो यह प्रणाली समाप्त होती गई और इस कमी को पूरा करने के लिए मुद्रा को जन्म दिया गया। इतिहासकार के. वी. आर. आयंगर का मानना है कि प्राचीन भारत में मुद्राएं राजसत्ता के प्रतीक के रूप में ग्रहण की जाती थीं। परंतु प्रारंभ में किस व्यक्ति अथवा संस्था ने इन्हें जन्म दिया, यह ज्ञात नहीं है। अनुमान यह किया जाता है कि व्यापारी वर्ग ने आदान-प्रदान की सुविधा हेतु सर्वप्रथम सिक्के तैयार करवाए। संभवत: प्रारंभ में राज्य इसके प्रति उदासीन थे। परंतु परवर्ती युगों में इस पर राज्य का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र से ज्ञात होता है कि मुद्रा निर्माण पर पूर्णत: राज्य का अधिकार था। कुछ विद्वानों का मानना है कि भारत में मुद्राओं का प्रचलन विदेशी प्रभाव का परिणाम है। वहीं कुछ इसे इसी धरती की उपज मानते हैं। विल्सन और प्रिंसेप जैसे विद्वानों का मानना है कि भारत भूमि पर सिक्कों का आविर्भाव यूनानी आक्रमण के पश्चात् हुआ। वहीं जान एलन उनकी इस अवधारणा को गलत बताते हुए कहते हैं कि ‘प्रारम्भिक भारतीय सिक्के जैसे ‘कार्षापण’ अथवा ‘आहत’ और यूनानी सिक्कों के मध्य कोई सम्पर्क नहीं था।[5]

उत्पत्ति समय एवं स्थान

उत्पत्ति स्थान के अलावा मुद्रा के जन्म काल में भी विद्वानों में मतभेद हैं। ज्यादातर विद्वान् मानते हैं कि भारत में सिक्के 800 ई. पू. प्रकाश में आये। वहीं डॉ. डी. आर. भण्डारकर तथा विटरनित्ज जैसे विद्वान् भारत में सिक्कों की प्राचीनता 3000 ई. पू. के आस-पास बताते हैं। जन्म स्थान और काल में बेशक विवाद हो लेकिन सिक्कों के निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली धातु के संबंध में कोई विवाद नहीं है।

सिक्कों का निर्माण

सिक्कों के निर्माण के लिए अनेक धातुएं प्रयोग में लाई जाती थीं। इनमें सोना, चांदी तथा तांबा प्रमुख धातुएं थीं। सोना तो भारत में विपुल मात्रा में था। तांबा भी अयस्क के रूप में प्राप्त होता था। परंतु चांदी बहुत कम मात्रा में उपलब्ध थी इसलिए इसका आयात किया जाता था। सातवाहन वंश ने मुद्रा निर्माण में एक नया प्रयोग किया। उन्होंने मुद्रा निर्माण के लिए सीसे का प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया। विद्वान् पेरीप्लस का विवरण है कि भारतीय लोग सीसे का बाहर से आयात करते थे। इतिहासकार प्लिनी ने इसका समर्थन करते हुए कहा है कि हिन्द यवन शासकों ने एक और धातु मुद्रा निर्माण हेतु प्रयुक्त किया जिसे निकिल के नाम से जाना जाता है। कभी-कभी सिक्कों के निर्माण हेतु पोटीन, कांस्य तथा पीतल का भी प्रयोग किया जाता था। कई बार मुद्रा निर्माण में मिश्रित धातुओं का भी प्रयोग किया जाता था। धातुओं को कठोर बनाने में और गिरती हुई अर्थव्यवस्था के संदर्भ में इनका उपयोग सिक्कों में किया जाने लगा। पोटीन कई धातुओं के मिश्रण से बनता था इसलिए इसे भ्रष्ट धातु कहा जाता था। कहीं-कहीं लोहे के सिक्के भी प्रचलन में थे। इसके अलावा मुद्रा के रूप में कौड़ियों का प्रचलन भी व्यापक क्षेत्र में था।[5]

मुद्रा निर्माण विधि

भारतीय मुद्रा के नोट

प्राचीन भारत में तीन प्रकार से मुद्राओं का निर्माण किया जाता था:-

1. आहत अथवा छापा विधि

इस विधि से मुद्रा तैयार करने के लिए पहले विभिन्न प्रकार की धातुओं की पतली चादर तैयार की जाती थी। फिर उनके मानक तौल के अनुसार कई चौकोर टुकड़े किये जाते थे। उन टुकड़ों पर कुछ चिह्नों, नामों या शब्दों को अंकित किया जाता था। इसके लिए उन पर या तो आहत किया जाता था या फिर किसी मुहर से ठप्पा लगाया जाता था। आहत मुद्राओं की सबसे बड़ी विशेषता थी कि ये विभिन्न आकार के मिलते थे। इनका कोई एक समरूप आकार नहीं था। इसका सबसे बड़ा कारण था भारानुसार इनकी कटाई-छंटाई। विभिन्न भारों के अनुसार इनका भारक भी भिन्न बन जाता था।

2. ढलाई विधि

यह दूसरी विधि ज्यादा परिष्कृत थी। इसमें एक बार में कई सिक्कों का निर्माण किया जाता था। जिससे समय व श्रम दोनों की ही बचत होती थी। रोहतक, तक्षशिला, मथुरा, सुनेत, अतरंजीखेड़ा, नालंदा इत्यादि स्थानों की खुदाई में मिले सिक्के इसकी प्रमाणिकता को सिद्ध करते हैं। ढलाई विधि में सिक्के सांचे की मदद से बनाये जाते थे। सर्वप्रथम सांचे तैयार करके भट्ठी में रख दिए जाते थे। पकने के उपरान्त इनके मध्य छिद्र से धातु को ढाला जाता था। धातु नलिका से उचित स्थल पर पहुंचकर प्रस्तावित आकार में फैल जाती थी। भट्ठी के शीतल होने पर सांचे को विनष्ट कर दिया जाता था। उसी सांचे में चिह्न तथा लेख भी लिखे होते थे जो धातु पर अंकित हो जाते थे। यही पद्धति सिक्के के दोनों सतहों पर अंकन हेतु प्रयोग में लाई जाती थी।

3. ठप्पा प्रहार विधि

ईस्वी संवत् आते-आते मुद्रा निर्माण में ठप्पा प्रहार विधि काफ़ी लोकप्रिय हो गई। इस विधि में गर्म धातु के टुकड़े पर ठप्पे के दबाव से लेख तथा प्रतीक चिह्न अंकित किए जाते थे। इस विधि के प्रमाण हमें केवल साहित्यिक संदर्भों में ही मिलते हैं। क्योंकि अभी तक एक भी डाई प्राप्त नहीं हुई है।[5]

मुद्रा निर्माण केंद्र

प्राचीन भारत के राज्यों को जब मुद्रा का महत्व ज्ञात हुआ और विनिमय एवं व्यापार के लिए मुद्रा की आवश्यकता महसूस हुई तो उन्होंने व्यापक पैमाने पर मुद्रा निर्माण हेतु टकसाल का निर्माण करवाया। ये टकसाल अधिकतर राजधानी में होते थे। परन्तु कुछ राज्यों में इनका निर्माण प्रमुख व्यापारिक शहरों में भी होता था। यकीन के साथ तो नहीं लेकिन रोहतक, तक्षशिला, मथुरा, सुनेत, अतरंजीखेड़ा, नालंदा, काशी, कौशवी, कोण्डपुर, शिशुपालगढ़ इत्यादि जगहों पर टकसाल होने की संभावना व्यक्त की जाती है।[5]

मुद्राओं पर अंकित लिपि

प्राचीन भारत के सिक्कों पर मुख्यतया ब्राह्मी, खरोष्ठी एवं ग्रीक लिपि का प्रयोग किया जाता था। वहीं भाषाओं में यूनानी, प्राकृत, संस्कृत, द्रविण भाषाओं का प्रयोग किया जाता था। सिक्कों पर इनके अलावा अनेक चिह्नों का भी प्रयोग किया जाता था जिससे इनके स्थान, समय और विशेषता का विभाजन किया जाता था। कई सिक्कों पर राजकीय चिह्न होते थे तो कुछ पर शासकाकृति का अंकन मिलता था। कुछ सिक्कों पर किसी विशिष्ट देवता या पशु के चिह्न भी अंकित होते थे।[5]

भारतीय रुपये के नोट की विशेषताएँ

10 रुपये के नोट पर अंकित 15 अलग-अलग भाषाएँ
  • भारतीय रुपया 1957 तक तो 16 आनों में विभाजित रहा, परन्तु उसके बाद (1957 में ही) उसने मुद्रा की दशमलव प्रणाली अपना ली और एक रुपये की गणना 100 समान पैसों में की गई।
  • महात्मा गांधी वाले कागजी नोटों की श्रृंखला की शुरूआत 1996 में हुई, जो आज तक चलन में है।
  • नोटों के एक ओर सफेद वाले भाग में महात्मा गांधी का वाटर मार्क बना हुआ है।
  • सभी नोटों में चांदी का सुरक्षा धागा लगा हुआ है जिस पर अंग्रेज़ी में आरबीआई और हिंदी में भारत अंकित है। प्रकाश के सामने लाने पर इनको देखा जा सकता है।
  • पांच सौ और एक हज़ार रुपये के नोटों में उनका मूल्य प्रकाश में परिवर्तनीय स्याही से लिखा हुआ है। धरती के समानान्तर रखने पर ये संख्या हरी दिखाई देती हैं परन्तु तिरछे या कोण से देखने पर नीले रंग में लिखी हुई दिखाई देती हैं।[4]
  • बात सन् 1917 की हैं, जब 1₹ रुपया 13$ डॉलर के बराबर हुआ करता था। फिर 1947 में भारत आजाद हुआ, 1₹ = 1$ कर दिया गया। फिर धीरे-धीरे भारत पर कर्ज बढ़ने लगा तो इंदिरा गांधी ने कर्ज चुकाने के लिए रुपये की कीमत कम करने का फैसला लिया उसके बाद आज तक रुपये की कीमत घटती आ रही है। सुरक्षा कारणों की वजह से आपको नोट के सीरियल नंबर में I, J, O, X, Y, Z अक्षर नही मिलेंगे।
  • हर भारतीय नोट पर किसी न किसी चीज की फोटो छपी होती हैं जैसे- 20 रुपए के नोट पर अंडमान आइलैंड की तस्वीर है। वहीं, 10 रुपए के नोट पर हाथी, गैंडा और शेर छपा हुआ है, जबकि 100 रुपए के नोट पर पहाड़ और बादल की तस्वीर है। इसके अलावा 500 रुपए के नोट पर आजादी के आंदोलन से जुड़ी 11 मूर्ति की तस्वीर छपी हैं।
  • भारतीय नोट पर उसकी कीमत 15 भाषाओं में लिखी जाती हैं।
  • 1₹ में 100 पैसे होंगे, ये बात सन् 1957 में लागू की गई थी। पहले इसे 16 आने में बाँटा जाता था। (सन् 1936 में बना 8 आनें का सिक्का मेरे पास भी है)
  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने जनवरी 1938 में पहली बार 5 ₹ की पेपर करंसी छापी थी। जिस पर किंग जार्ज-6 का चित्र था। इसी साल 10,000 ₹ का नोट भी छापा गया था लेकिन 1978 में इसे पूरी तरह बंद कर दिया गया।
  • आज़ादी के बाद पाकिस्तान ने तब तक भारतीय मुद्रा का प्रयोग किया जब तक उन्होंने काम चलाने लायक नोट न छाप लिए।
  • भारतीय नोट किसी आम काग़ज़ के नहीं, बल्कि कॉटन के बने होते हैं। ये इतने मजबूत होते हैं कि आप नए नोट के दोनों सिरों को पकड़कर उसे फाड़ नहीं सकते।
  • एक समय ऐसा था, जब बांग्लादेश ब्लेड बनाने के लिए भारत से 5 रूपए के सिक्के मंगाया करता था। 5 रूपए के एक सिक्के से 6 ब्लेड बनते थे। 1 ब्लेड की कीमत 2 रुपए होती थी तो ब्लेड बनाने वाले को अच्छा फायदा होता था। इसे देखते हुए भारत सरकार ने सिक्का बनाने वाला मेटल ही बदल दिया।
  • आज़ादी के बाद सिक्के तांबे के बनते थे। उसके बाद 1964 में एल्युमिनियम के और1988 में स्टेनलेस स्टील के बनने शुरू हुए।
  • भारतीय नोट पर महात्मा गांधी की जो फोटो छपती हैं वह तब खींची गई थी जब गांधीजी, तत्कालीन बर्मा और भारत में ब्रिटिश सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत फ्रेडरिक पेथिक लॉरेंस के साथ कोलकाता स्थित वायसराय हाउस में मुलाकात करने गए थे। यह फोटो 1996 में नोटों पर छपनी शुरू हुई थी। इससे पहले महात्मा गांधी की जगह अशोक स्तंभ छापा जाता था।
  • भारत के 500 और 1,000 रुपये के नोट नेपाल में नहीं चलते।
  • 500 ₹ का पहला नोट 1987 में और 1,000 ₹ पहला नोट सन् 2000 में बनाया गया था। फिलहाल 1,000 ₹ का नोट बंद हो चुका है। और 500₹ का नया नोट बाज़ार में आ रहा है।
  • भारत में 75, 100 और 1,000 ₹ के भी सिक्के छप चुके हैं।
  • 1 ₹ का नोट भारत सरकार द्वारा और 2 से 1,000 ₹ तक के नोट RBI द्वारा जारी किये जाते थे।
  • एक समय पर भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए 0 ₹ का नोट 5th pillar नाम की गैर सरकारी संस्था द्वारा जारी किए गए थे।
  • 10 ₹ के सिक्के को बनाने में 6.10₹ की लागत आती हैं।
  • नोटों पर सीरियल नंबर इसलिए डाला जाता हैं ताकि आरबीआई (RBI) को पता चलता रहे कि इस समय मार्केट में कितनी करंसी हैं।
  • रुपया भारत के अलावा इंडोनेशिया, मॉरीशस, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका की भी करंसी हैं।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार भारत हर साल 2,000 करोड़ करंसी नोट छापता हैं।
  • कम्प्यूटर पर ₹ टाइप करने के लिए ‘Ctrl+Shift+$’ के बटन को एक साथ दबाएँ।
  • ₹ के इस चिन्ह को 2010 में उदय कुमार ने बनाया था। इसके लिए इनको 2.5 लाख रुपयें का इनाम भी मिला था।
  • आरबीआई सिर्फ 10,000 ₹ तक के नोट छाप सकती हैं। अगर इससे ज्यादा कीमत के नोट छापने हैं तो उसको रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934 में बदलाव करना होगा।
  • आरबीआई कितने नोट छाप सकती है इसका निर्धारण मुद्रा स्फीति, जीडीपी ग्रोथ, बैंक नोट्स के रिप्लेसमेंट और रिजर्व बैंक के स्टॉक के आधार पर किया जाता है।
  • हर सिक्के पर सन् के नीचे एक खास निशान बना होता है आप उस निशान को देखकर पता लगा सकते हैं कि ये सिक्का कहाँ बना हैं-
    • मुंबई – हीरा [◆]
    • नोएडा – डॉट [.]
    • हैदराबाद – सितारा [★]
    • कोलकाता – कोई निशान नहीं
  • एक नोट को छापने में लगने वाली लागत
    • 1₹ = 1.14₹
    • 10₹ = 0.66₹
    • 20₹ = 0.94₹
    • 50₹ = 1.63₹
    • 100₹ = 1.20₹
    • 500₹ = 2.45₹
    • 1,000₹ = 2.67₹
    • 2,000₹ = फिलहाल कुछ पता नहीं[6]

नोट पर भाषाएँ

भारतीय रुपये के नोट के भाषा पटल पर भारत की 22 सरकारी भाषाओं में से 15 में उनका मूल्य मुद्रित है। ऊपर से नीचे इनका क्रम इस प्रकार है – असमिया, बंगला, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलुगु और उर्दू[4]

प्रचलन

भारतीय उपमहाद्वीप में सरकारी मुद्रा को रुपया कहा जाता है। यह भारत के साथ ही भूटान, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, मॉरीशस, मालदीव और इंडोनेशिया जैसे कई देशों में प्रचलित हैं। इन सभी देशों में भारतीय रुपया मूल्य, स्वीकार्यता और लोकप्रियता के हिसाब से सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है।[4]

रुपये के अन्य भाषाओं में नाम

अन्य भाषाओं में नाम
भाषा असमिया उड़िया उर्दू कन्नड़ कश्मीरी संस्कृत गुजराती
शब्द टॉका (টকা) टंका (ଟଙ୍କା) रुपया रुपाई (ರೂಪಾಯಿ) रॅपुयि रूप्यकम् रुपियो (રૂપિયો)
भाषा डोगरी तमिल तेलुगु नेपाली पंजाबी बांग्ला बोडो
शब्द रुबाई (ரூபாய்) रुपायि (రూపాయి) रुपैआ टका (টাকা)
भाषा मणिपुरी मराठी मलयालम मैथिली संथाली सिंधी अंग्रेज़ी
शब्द रुपया रुपा (രൂപ) रुपयो Rupee


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. खाड़ी देश
  2. खाड़ी रुपया
  3. Qatar (अंग्रेज़ी)। । अभिगमन तिथि: 9 सितम्बर, 2010।
  4. 4.0 4.1 4.2 4.3 4.4 4.5 4.6 सिंह, शुभ्रा। चांदी से टांका रहा है हमारे रुपये का (हिंदी) अर्थकाम। अभिगमन तिथि: 10 मई, 2013।
  5. 5.0 5.1 5.2 5.3 5.4 सिंह, शुभ्रा। भारतीय मुद्रा के निर्माण की कहानी (हिंदी) भारतीय पक्ष। अभिगमन तिथि: 10 मई, 2013।
  6. भारतीय मुद्रा (रुपया ₹) से जुड़े 31 ग़ज़ब रोचक तथ्य (हिन्दी) गज़ब हिन्दी। अभिगमन तिथि: 19 नवंबर, 2016।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख