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'''रबी की फ़सल''' सामान्यतः [[अक्तूबर]]-[[नवम्बर]] के महिनों में बोई जाती हैं। इन फसलों की बुआई के समय कम तापमान तथा पकते समय खुश्क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है। उदाहरण के तौर पर [[गेहूँ]], [[जौ]], [[चना]], मसूर, सरसों आदि की फ़सलें रबी की फ़सल मानी जाती हैं। | '''रबी की फ़सल''' सामान्यतः [[अक्तूबर]]-[[नवम्बर]] के महिनों में बोई जाती हैं। इन [[फ़सल|फसलों]] की बुआई के समय कम तापमान तथा पकते समय खुश्क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है। उदाहरण के तौर पर [[गेहूँ]], [[जौ]], [[चना]], मसूर, सरसों आदि की फ़सलें रबी की फ़सल मानी जाती हैं। | ||
==परिचय== | ==परिचय== | ||
कठिया गेहूं, देशी चना, अलसी व सरसों चारों क्रमशः अनाज | कठिया गेहूं, देशी चना, अलसी व सरसों चारों क्रमशः अनाज, दलहन व तिलहन की फसलें हैं, जो कम पानी में हो जाती हैं। यदि ये फसले देशी प्रजाती की हों, तो सूखा को सहन करने की क्षमता इनके अंदर अधिक होती है। इसके साथ ही ये सभी फसलें किसान की खाद्यान्न आपूर्ति के लिए भी सहायक होती हैं। फसलों की विविधता होने से किसान को जोखिम भी कम उठाना पड़ता है अर्थात् जोखिम की संभावना कम हो जाती है। [[चित्रकूट]] सूखे बुंदेलखंड का अति पिछड़ा जनपद है। अन्य क्षेत्रों की तरह कम व अनियमित वर्षा, सिंचाई के अभाव में सूखती खेती और बदहाल होता किसान चित्रकूट की भी नियति है। यहीं का एक ग्राम पंचायत है- रैपुरा, जिसके अंतर्गत तीन राजस्व गांव गहोरा खास, गहोरापाही व कैरी कटनाशा हैं। इन गांवों की कुल आबादी 5794 है, जिसमें लगभग सभी जातियों के लोग निवास करते हैं। मुख्यतः ब्राह्मण, कुर्मी, यादव, कुम्हार, गुप्ता, लोहार. बढ़ई, साहू, मुस्लिम, हरिजन, नाई जातियां यहां पर निवास करती हैं। यहां के लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत खेती हैं, परंतु उबड़-खाबड़ ज़मीन एवं सिंचाई के साधनों के अभाव के चलते [[वर्षा]] आधारित खेती होने के कारण पिछले 10 वर्षों से सूखा पड़ने की स्थिति में लोगों की आजीविका भी प्रभावित हो रही है। ऐसी स्थिति में ग्राम रैपुरा के कुछ किसानों ने रबी के मौसम में मिश्रित खेती करके सूखे का मुकाबला करने का विचार किया, उसे अपनाया और अपने नुकसान को कम किया। | ||
==तैयारी== | ====तैयारी==== | ||
सर्वप्रथम माह [[जून]] के अंतिम सप्ताह में बारिश होने के बाद दो बार खेत की जुताई करते हैं तथा [[सितम्बर]] में एक बार व [[अक्टूबर]] में दो बार जुताई करते हैं। सूखा क्षेत्र होने के कारण वर्ष में एक ही बार फसल की बुवाई करते हैं। फसल का चयन करते समय अलग-अलग लम्बाई की जड़ों (मूसला व जकड़ा जड़) वाली फसल जैसे- गेहूं, चना, अलसी, सरसों आदि की बुवाई एक साथ करते हैं। क्योंकि कठिया गेहूं की जड़ दो से तीन इंच लम्बी होती है, चना की जड़ 6 से आठ इंच तक लंबी होती है, जबकि अलसी एवं सरसों की मूसला जड़े चार से पांच इंच तक लंबी होने के कारण पौधों को निरंतर नमी मिलती रहती है और उत्पादन अधिक होता है। घर पर संरक्षित व सुरक्षित देशी बीजों का प्रयोग करते हैं। एक एकड़ खेत में मिश्रित बुवाई करने के लिए कठिया गेहूं 20 किग्रा., देशी चना 20 किग्रा. अलसी 6 किग्रा. व सरसों 2 किग्रा. को मिलाकर बुवाई करते हैं। | सर्वप्रथम माह [[जून]] के अंतिम सप्ताह में बारिश होने के बाद दो बार खेत की जुताई करते हैं तथा [[सितम्बर]] में एक बार व [[अक्टूबर]] में दो बार जुताई करते हैं। सूखा क्षेत्र होने के कारण वर्ष में एक ही बार फसल की बुवाई करते हैं। फसल का चयन करते समय अलग-अलग लम्बाई की जड़ों (मूसला व जकड़ा जड़) वाली फसल जैसे- गेहूं, चना, अलसी, सरसों आदि की बुवाई एक साथ करते हैं। क्योंकि कठिया गेहूं की जड़ दो से तीन इंच लम्बी होती है, चना की जड़ 6 से आठ इंच तक लंबी होती है, जबकि अलसी एवं सरसों की मूसला जड़े चार से पांच इंच तक लंबी होने के कारण पौधों को निरंतर नमी मिलती रहती है और उत्पादन अधिक होता है। घर पर संरक्षित व सुरक्षित देशी बीजों का प्रयोग करते हैं। एक एकड़ खेत में मिश्रित बुवाई करने के लिए कठिया गेहूं 20 किग्रा., देशी चना 20 किग्रा. अलसी 6 किग्रा. व सरसों 2 किग्रा. को मिलाकर बुवाई करते हैं। | ||
==बुवाई का समय व विधि== | ====बुवाई का समय व विधि==== | ||
[[अक्टूबर]] माह के अंतिम सप्ताह या [[दीपावली]] के पहले बुवाई करते हैं। इसके लिए सभी बीजों कठिया गेंहूं, देशी चना व अलसी तथा डी.ए.पी. खाद को एक साथ मिलाकर हल बांसा बांधकर बुवाई करते हैं। बुवाई के लिए एक मज़दूर भी लगाते है। अर्थात् एक मज़दूर हल को पकड़ता है तथा दूसरा बीज को बांसा में डालता जाता है तब बुवाई होती है। बीज की बुवाई 3 से 4 इंच की गहराई पर करते हैं। इसके बाद सरसों की बुवाई कूंड अर्थात् लाइन में करते हैं। लाइन से लाइन की दूरी 5 से 6 फीट की होती है। | [[अक्टूबर]] माह के अंतिम सप्ताह या [[दीपावली]] के पहले बुवाई करते हैं। इसके लिए सभी बीजों कठिया गेंहूं, देशी चना व अलसी तथा डी.ए.पी. खाद को एक साथ मिलाकर हल बांसा बांधकर बुवाई करते हैं। बुवाई के लिए एक मज़दूर भी लगाते है। अर्थात् एक मज़दूर हल को पकड़ता है तथा दूसरा बीज को बांसा में डालता जाता है तब बुवाई होती है। बीज की बुवाई 3 से 4 इंच की गहराई पर करते हैं। इसके बाद सरसों की बुवाई कूंड अर्थात् लाइन में करते हैं। लाइन से लाइन की दूरी 5 से 6 फीट की होती है। | ||
==रोग व कीट नियंत्रण== | ====रोग व कीट नियंत्रण==== | ||
शीत काल में हुई वर्षा को महावट कहते हैं। जाड़े में जब महावट अधिक होती है, तब कठिया गेहूं में खैरा रोग लग जाता है। इससे बचाव के लिए | शीत काल में हुई वर्षा को महावट कहते हैं। जाड़े में जब महावट अधिक होती है, तब कठिया गेहूं में खैरा रोग लग जाता है। इससे बचाव के लिए बाज़ार से म्लड्यू पाउडर लेकर राख के साथ मिलाकर छिड़काव कर देते हैं। अगर महावट एक भी नहीं होती है, तब कठिया गेंहू, देशी चना के साथ सरसों, अलसी की भी पैदावार अच्छी हो जाती है। | ||
==निराई व देख-रेख== | ====निराई व देख-रेख==== | ||
फसल की बढ़वार होती रहे, इसके लिए समय-समय पर खेत की निराई-गुड़ाई की जाती है। इससे एक तरफ तो हमारा खेत साफ रहता है और दूसरी तरफ जानवरों के लिए चारा भी उपलब्ध हो जाता है। साथ ही इसी बहाने खेत की देख-रेख एवं छुट्टा पशुओं से बचाव भी होता रहता है तथा निराई-गुड़ाई करने से उपज भी अच्छी प्राप्त होती है। | फसल की बढ़वार होती रहे, इसके लिए समय-समय पर खेत की निराई-गुड़ाई की जाती है। इससे एक तरफ तो हमारा खेत साफ रहता है और दूसरी तरफ जानवरों के लिए चारा भी उपलब्ध हो जाता है। साथ ही इसी बहाने खेत की देख-रेख एवं छुट्टा पशुओं से बचाव भी होता रहता है तथा निराई-गुड़ाई करने से उपज भी अच्छी प्राप्त होती है। | ||
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फसल की कटाई फरवरी के अंतिम सप्ताह से लेकर [[मार्च]] के अंतिम सप्ताह तक हो जाती है। कटने के बाद फसल को खुब अच्छी तरस सुखाते हैं, तब मड़ाई करते हैं। एक एकड़ फसल की मड़ाई पांच से | फसल की कटाई फरवरी के अंतिम सप्ताह से लेकर [[मार्च]] के अंतिम सप्ताह तक हो जाती है। कटने के बाद फसल को खुब अच्छी तरस सुखाते हैं, तब मड़ाई करते हैं। एक एकड़ फसल की मड़ाई पांच से छह दिनों में होती है। थ्रेसर से इसकी मड़ाई नहीं करते हैं, क्योंकि एक तो चना फूट जाता है और अलसी भूसा के साथ उड़ जाने से किसान का नुकसान होता है, दूसरे मड़ाई से निकला भूसा मुलायम होता है, जिसे पशु बड़े चाव से खाते हैं। मड़ाई करने के बाद हाथ से ओसाई करके भूसा व अनाज अलग करते हैं।<ref>{{cite web |url=http://hindi.indiawaterportal.org/node/44961|title=रबी ऋतु में मिश्रित फसलें |accessmonthday=18 जनवरी |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी) |language=हिन्दी }}</ref> | ||
11:21, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
रबी की फ़सल सामान्यतः अक्तूबर-नवम्बर के महिनों में बोई जाती हैं। इन फसलों की बुआई के समय कम तापमान तथा पकते समय खुश्क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है। उदाहरण के तौर पर गेहूँ, जौ, चना, मसूर, सरसों आदि की फ़सलें रबी की फ़सल मानी जाती हैं।
परिचय
कठिया गेहूं, देशी चना, अलसी व सरसों चारों क्रमशः अनाज, दलहन व तिलहन की फसलें हैं, जो कम पानी में हो जाती हैं। यदि ये फसले देशी प्रजाती की हों, तो सूखा को सहन करने की क्षमता इनके अंदर अधिक होती है। इसके साथ ही ये सभी फसलें किसान की खाद्यान्न आपूर्ति के लिए भी सहायक होती हैं। फसलों की विविधता होने से किसान को जोखिम भी कम उठाना पड़ता है अर्थात् जोखिम की संभावना कम हो जाती है। चित्रकूट सूखे बुंदेलखंड का अति पिछड़ा जनपद है। अन्य क्षेत्रों की तरह कम व अनियमित वर्षा, सिंचाई के अभाव में सूखती खेती और बदहाल होता किसान चित्रकूट की भी नियति है। यहीं का एक ग्राम पंचायत है- रैपुरा, जिसके अंतर्गत तीन राजस्व गांव गहोरा खास, गहोरापाही व कैरी कटनाशा हैं। इन गांवों की कुल आबादी 5794 है, जिसमें लगभग सभी जातियों के लोग निवास करते हैं। मुख्यतः ब्राह्मण, कुर्मी, यादव, कुम्हार, गुप्ता, लोहार. बढ़ई, साहू, मुस्लिम, हरिजन, नाई जातियां यहां पर निवास करती हैं। यहां के लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत खेती हैं, परंतु उबड़-खाबड़ ज़मीन एवं सिंचाई के साधनों के अभाव के चलते वर्षा आधारित खेती होने के कारण पिछले 10 वर्षों से सूखा पड़ने की स्थिति में लोगों की आजीविका भी प्रभावित हो रही है। ऐसी स्थिति में ग्राम रैपुरा के कुछ किसानों ने रबी के मौसम में मिश्रित खेती करके सूखे का मुकाबला करने का विचार किया, उसे अपनाया और अपने नुकसान को कम किया।
तैयारी
सर्वप्रथम माह जून के अंतिम सप्ताह में बारिश होने के बाद दो बार खेत की जुताई करते हैं तथा सितम्बर में एक बार व अक्टूबर में दो बार जुताई करते हैं। सूखा क्षेत्र होने के कारण वर्ष में एक ही बार फसल की बुवाई करते हैं। फसल का चयन करते समय अलग-अलग लम्बाई की जड़ों (मूसला व जकड़ा जड़) वाली फसल जैसे- गेहूं, चना, अलसी, सरसों आदि की बुवाई एक साथ करते हैं। क्योंकि कठिया गेहूं की जड़ दो से तीन इंच लम्बी होती है, चना की जड़ 6 से आठ इंच तक लंबी होती है, जबकि अलसी एवं सरसों की मूसला जड़े चार से पांच इंच तक लंबी होने के कारण पौधों को निरंतर नमी मिलती रहती है और उत्पादन अधिक होता है। घर पर संरक्षित व सुरक्षित देशी बीजों का प्रयोग करते हैं। एक एकड़ खेत में मिश्रित बुवाई करने के लिए कठिया गेहूं 20 किग्रा., देशी चना 20 किग्रा. अलसी 6 किग्रा. व सरसों 2 किग्रा. को मिलाकर बुवाई करते हैं।
बुवाई का समय व विधि
अक्टूबर माह के अंतिम सप्ताह या दीपावली के पहले बुवाई करते हैं। इसके लिए सभी बीजों कठिया गेंहूं, देशी चना व अलसी तथा डी.ए.पी. खाद को एक साथ मिलाकर हल बांसा बांधकर बुवाई करते हैं। बुवाई के लिए एक मज़दूर भी लगाते है। अर्थात् एक मज़दूर हल को पकड़ता है तथा दूसरा बीज को बांसा में डालता जाता है तब बुवाई होती है। बीज की बुवाई 3 से 4 इंच की गहराई पर करते हैं। इसके बाद सरसों की बुवाई कूंड अर्थात् लाइन में करते हैं। लाइन से लाइन की दूरी 5 से 6 फीट की होती है।
रोग व कीट नियंत्रण
शीत काल में हुई वर्षा को महावट कहते हैं। जाड़े में जब महावट अधिक होती है, तब कठिया गेहूं में खैरा रोग लग जाता है। इससे बचाव के लिए बाज़ार से म्लड्यू पाउडर लेकर राख के साथ मिलाकर छिड़काव कर देते हैं। अगर महावट एक भी नहीं होती है, तब कठिया गेंहू, देशी चना के साथ सरसों, अलसी की भी पैदावार अच्छी हो जाती है।
निराई व देख-रेख
फसल की बढ़वार होती रहे, इसके लिए समय-समय पर खेत की निराई-गुड़ाई की जाती है। इससे एक तरफ तो हमारा खेत साफ रहता है और दूसरी तरफ जानवरों के लिए चारा भी उपलब्ध हो जाता है। साथ ही इसी बहाने खेत की देख-रेख एवं छुट्टा पशुओं से बचाव भी होता रहता है तथा निराई-गुड़ाई करने से उपज भी अच्छी प्राप्त होती है।
कटाई का समय
फसल की कटाई फरवरी के अंतिम सप्ताह से लेकर मार्च के अंतिम सप्ताह तक हो जाती है। कटने के बाद फसल को खुब अच्छी तरस सुखाते हैं, तब मड़ाई करते हैं। एक एकड़ फसल की मड़ाई पांच से छह दिनों में होती है। थ्रेसर से इसकी मड़ाई नहीं करते हैं, क्योंकि एक तो चना फूट जाता है और अलसी भूसा के साथ उड़ जाने से किसान का नुकसान होता है, दूसरे मड़ाई से निकला भूसा मुलायम होता है, जिसे पशु बड़े चाव से खाते हैं। मड़ाई करने के बाद हाथ से ओसाई करके भूसा व अनाज अलग करते हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रबी ऋतु में मिश्रित फसलें (हिन्दी) इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी)। अभिगमन तिथि: 18 जनवरी, 2017।
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