"शंकरदयाल शर्मा": अवतरणों में अंतर
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}}'''शंकरदयाल शर्मा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shankar Dayal Sharma'', जन्म- [[19 अगस्त]], [[1918]] ई.; मृत्यु- [[26 दिसम्बर]], [[1999]] ई.) [[भारत]] के नवें [[राष्ट्रपति]] थे। इनका जन्म [[भोपाल]] में हुआ था। इनके [[पिता]] 'श्री खुशीलाल शर्मा' एक वैद्य थे। शंकरदयाल शर्मा [[मध्य प्रदेश]] के पहले ऐसे व्यक्ति रहे, जो अपनी विद्वता, सुदीर्घ राजनीतिक समझबूझ, समर्पण और देश-प्रेम के बल पर [[भारत]] के [[राष्ट्रपति]] बने। इन्होंने 'भारत के स्वतंत्रता संग्राम' में मुख्य रूप से भाग लिया था। शंकरदयाल शर्मा ने [[1992]] ई. में भारत के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति का कार्यभार ग्रहण किया था। | |||
==जीवन परिचय== | |||
शंकर दयाल शर्मा का जन्म 19 अगस्त 1918 को [[भोपाल]] में 'दाई का मौहल्ला' में हुआ था। उस समय भोपाल को नवाबों का शहर कहा जाता था। अब यह [[मध्य प्रदेश]] में है। इनके पिता का नाम 'पण्डित खुशीलाल शर्मा' था और वह एक प्रसिद्ध वैद्य थे। इनकी [[माता]] का नाम 'श्रीमती सुभद्रा देवी' था। | |||
====शिक्षा==== | |||
डॉ शंकरदयाल शर्मा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय 'दिगम्बर जैन स्कूल' में हासिल की थी। उन्होंने 'सेंट जोंस कॉलेज', [[आगरा]] और बाद में [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] और [[लखनऊ विश्वविद्यालय]] से एल एल.बी. की उपाधि प्राप्त की थी। आपने [[अंग्रेज़ी साहित्य]] और [[संस्कृत]] सहित [[हिन्दी]] में स्नातकोत्तर उपाधियाँ अर्जित की थीं। उसके बाद उच्च शिक्षा के लिए [[इंग्लैण्ड]] गए। वहाँ क़ानून की शिक्षा ग्रहण की और पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। विश्वविद्यालय ने शंकरदयाल शर्मा को 'डॉक्टर आफ लॉ' की मानद विभूति से अलंकृत किया था। कुछ समय तक 'कैम्ब्रिज विश्व विद्यालय' में क़ानून के अध्यापक रहने के बाद आप भारत वापस लौट आए और लखनऊ विश्वविद्यालय में क़ानून का अध्यापन कार्य करते रहे। | |||
====विवाह==== | |||
[[7 मई]] [[1950]] में श्री शंकरदयाल शर्मा का विवाह 'विमला शर्मा' के साथ सम्पन्न हुआ। इनका विवाह [[जयपुर]] में सम्पन्न हुआ था। शर्मा दम्पति को दो पुत्र एवं दो पुत्रियों की प्राप्ति हुई। विवाह के बाद विमला शर्मा समाज सेवा के कार्यों में व्यस्त रहती थीं। [[1985]] में वह उदयपुरा क्षेत्र से मध्य प्रदेश [[विधानसभा]] की विधायिका चुनी गईं। इस सीट से यह प्रथम महिला विधायिका निर्वाचित हुई थीं। | |||
==राजनीतिक जीवन== | |||
अध्यापन के दौरान डॉ. शर्मा पर देश की तत्कालीन परिस्थियों का काफ़ी प्रभाव पड़ा। जब सम्पूर्ण राष्ट्र स्वाधीनता प्राप्ति की दिशा में प्रयासरत था तो भला वह कैसे पीछे रह सकते थे। [[1942]] में [[महात्मा गांधी]] के आह्वान पर जब ''[[भारत छोड़ो आंदोलन]]'' के तहत समस्त भारतवर्ष उठ खड़ा हुआ तो वह भी इसके सिपाही बने। तब इन्हें भोपाल की अदालत द्वारा कैद की सज़ा सुनाई गई। इन्हें दूसरी बार कारावास तब हुआ, जब [[1948]] में 'भोपाल स्टेट' का भारतीय गणतंत्र में विलय हेतु आंदोलन किया गया। | |||
==मंत्री पद== | |||
स्वतंत्रता संग्राम में और भोपाल रियासत के विलय के आन्दोलन में आपने सक्रिय भाग लिया और जेल की यातनाएँ सहीं। देश के स्वतंत्र होने पर शंकरदयाल शर्मा [[1952]] से [[1956]] तक भोपाल राज्यसभा के सदस्य चुने गए और प्रथम [[मुख्यमंत्री]] बने। राज्यों के पुनर्गठन के बाद कुछ समय तक वहाँ मंत्रिमंडल के सदस्य के रूप में उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण विभागों का कार्यभार सम्भाला। 1956 आप [[लोकसभा]] के सदस्य चुने गए और केन्द्र सरकार में संचार मंत्री बने। [[1971]] में वे पाँचवीं लोकसभा के लिए भी निर्वाचित हुए। | |||
====कांग्रेस से लगाव==== | |||
[[कांग्रेस]] संगठन से आपका निकट का सम्पर्क रहा है। [[1950]]-[[1952]] में 'भोपाल कांग्रेस कमेटी' की और फिर [[1967]]-[[1968]] में 'मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी' की आपने अध्यक्षता की। 1967 से आप 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' और 'कांग्रेस कार्य समिति' के सदस्य रहे हैं। 1968 से [[1972]] तक आप कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी थे और 1972-[[1974]] में [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। | |||
==राष्ट्रपति पद== | |||
शंकरदयाल शर्मा [[21 अगस्त]], [[1987]] को [[उपराष्ट्रपति]] पद पर निर्विरोध निर्वाचित हुए और [[3 सितंबर]], [[1987]] को पद की शपथ ग्रहण की। इसके बाद डॉ शर्मा [[16 जुलाई]], [[1992]] को राष्ट्रपति पद के लिये निर्वाचित हुए और [[25 जुलाई]], [[1992]] को उन्होंने देश के सर्वोच्च पद की शपथ ग्रहण की थी। [[भोपाल]] की 'गुलिया दाई की गली' से [[राष्ट्रपति भवन]] तक का डॉक्टर शर्मा का सफर बहुतों को रोमांचित करता है, परंतु यह निर्विवाद सत्य है, कि वे बाल्यकाल से ही मेधावी थे। उनके समकक्ष असाधारण शैक्षणिक योग्यता के धनी आज की राजनीतिक प़ीढी में तो बिरले ही मिलते है। | |||
====बहुमुखी प्रतिभा==== | |||
शंकरदयाल शर्मा बहुज्ञ थे। [[साहित्य]], [[कला]] और [[विज्ञान]] में उनकी समान रुचि थी। अपने विद्यार्थी जीवन में उन्होंने विभिन्न खेलों में भी बढ़कर भाग लिया था। शंकरदयाल शर्मा ने कई [[ग्रन्थ|ग्रन्थों]] की रचना की, और कुछ [[पत्रिका|पत्रिकाओं]] के सम्पादक भी रहे हैं। अपने राजनीतिक जीवन में वे [[आंध्र प्रदेश]], [[पंजाब]] तथा [[महाराष्ट्र]] के [[राज्यपाल]] के पद पर रहे थे। | |||
==निधन== | |||
अपने जीवन के अंतिम पांच वर्षों में डॉक्टर शंकरदयाल शर्मा लगातार गिरते स्वास्थ्य से काफ़ी परेशान रहने लगे थे। [[26 दिसंबर]], [[1999]] को दिल का दौरा पड़ने के कारण उनका देहांत हो गया। शंकरदयाल शर्मा बहुत गंभीर व्यक्तित्व वाले इंसान थे। वह अपने काम के प्रति बेहद संजीदा और प्रतिबद्ध रहा करते थे। इसके अलावा वह [[संसद]] के नियम-क़ानून का सख्ती से पालन करते और उनका सम्मान करते थे। उनके बारे में कहा जाता है कि एक बार [[राज्यसभा]] में एक मौके पर वे इसलिए रो पड़े थे, क्योंकि राज्यसभा के सदस्यों ने किसी राजनीतिक मुद्दे पर सदन को जाम कर दिया था। | |||
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08:51, 21 जून 2021 के समय का अवतरण
शंकरदयाल शर्मा
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पूरा नाम | डॉक्टर शंकरदयाल शर्मा |
जन्म | 19 अगस्त, 1918 |
जन्म भूमि | भोपाल |
मृत्यु | 26 दिसम्बर, 1999 |
मृत्यु स्थान | नई दिल्ली |
मृत्यु कारण | दिल का दौरा |
अभिभावक | श्री खुशीलाल शर्मा, श्रीमती सुभद्रा देवी |
पति/पत्नी | विमला शर्मा |
संतान | दो पुत्र और दो पुत्री |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | भारत के 9वें राष्ट्रपति |
पार्टी | कांग्रेस |
पद | राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री तथा राज्यपाल |
कार्य काल | 25 जुलाई, 1992 से 25 जुलाई, 1997 |
शिक्षा | एल.एल.बी., पी.एच.डी. |
विद्यालय | दिगम्बर जैन स्कूल; सेंट जोंस कॉलेज, आगरा; इलाहाबाद विश्वविद्यालय और लखनऊ विश्वविद्यालय; कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैण्ड |
भाषा | हिन्दी, अंग्रेज़ी और संस्कृत |
जेल यात्रा | स्वतंत्रता संग्राम के दौरान |
पुरस्कार-उपाधि | 'डॉक्टर ऑफ लॉ', अंग्रेज़ी साहित्य, हिन्दी तथा संस्कृत में स्नातकोत्तर उपाधियाँ |
अद्यतन | 12:51, 6 अप्रॅल 2012 (IST)
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शंकरदयाल शर्मा (अंग्रेज़ी: Shankar Dayal Sharma, जन्म- 19 अगस्त, 1918 ई.; मृत्यु- 26 दिसम्बर, 1999 ई.) भारत के नवें राष्ट्रपति थे। इनका जन्म भोपाल में हुआ था। इनके पिता 'श्री खुशीलाल शर्मा' एक वैद्य थे। शंकरदयाल शर्मा मध्य प्रदेश के पहले ऐसे व्यक्ति रहे, जो अपनी विद्वता, सुदीर्घ राजनीतिक समझबूझ, समर्पण और देश-प्रेम के बल पर भारत के राष्ट्रपति बने। इन्होंने 'भारत के स्वतंत्रता संग्राम' में मुख्य रूप से भाग लिया था। शंकरदयाल शर्मा ने 1992 ई. में भारत के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति का कार्यभार ग्रहण किया था।
जीवन परिचय
शंकर दयाल शर्मा का जन्म 19 अगस्त 1918 को भोपाल में 'दाई का मौहल्ला' में हुआ था। उस समय भोपाल को नवाबों का शहर कहा जाता था। अब यह मध्य प्रदेश में है। इनके पिता का नाम 'पण्डित खुशीलाल शर्मा' था और वह एक प्रसिद्ध वैद्य थे। इनकी माता का नाम 'श्रीमती सुभद्रा देवी' था।
शिक्षा
डॉ शंकरदयाल शर्मा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय 'दिगम्बर जैन स्कूल' में हासिल की थी। उन्होंने 'सेंट जोंस कॉलेज', आगरा और बाद में इलाहाबाद विश्वविद्यालय और लखनऊ विश्वविद्यालय से एल एल.बी. की उपाधि प्राप्त की थी। आपने अंग्रेज़ी साहित्य और संस्कृत सहित हिन्दी में स्नातकोत्तर उपाधियाँ अर्जित की थीं। उसके बाद उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड गए। वहाँ क़ानून की शिक्षा ग्रहण की और पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। विश्वविद्यालय ने शंकरदयाल शर्मा को 'डॉक्टर आफ लॉ' की मानद विभूति से अलंकृत किया था। कुछ समय तक 'कैम्ब्रिज विश्व विद्यालय' में क़ानून के अध्यापक रहने के बाद आप भारत वापस लौट आए और लखनऊ विश्वविद्यालय में क़ानून का अध्यापन कार्य करते रहे।
विवाह
7 मई 1950 में श्री शंकरदयाल शर्मा का विवाह 'विमला शर्मा' के साथ सम्पन्न हुआ। इनका विवाह जयपुर में सम्पन्न हुआ था। शर्मा दम्पति को दो पुत्र एवं दो पुत्रियों की प्राप्ति हुई। विवाह के बाद विमला शर्मा समाज सेवा के कार्यों में व्यस्त रहती थीं। 1985 में वह उदयपुरा क्षेत्र से मध्य प्रदेश विधानसभा की विधायिका चुनी गईं। इस सीट से यह प्रथम महिला विधायिका निर्वाचित हुई थीं।
राजनीतिक जीवन
अध्यापन के दौरान डॉ. शर्मा पर देश की तत्कालीन परिस्थियों का काफ़ी प्रभाव पड़ा। जब सम्पूर्ण राष्ट्र स्वाधीनता प्राप्ति की दिशा में प्रयासरत था तो भला वह कैसे पीछे रह सकते थे। 1942 में महात्मा गांधी के आह्वान पर जब भारत छोड़ो आंदोलन के तहत समस्त भारतवर्ष उठ खड़ा हुआ तो वह भी इसके सिपाही बने। तब इन्हें भोपाल की अदालत द्वारा कैद की सज़ा सुनाई गई। इन्हें दूसरी बार कारावास तब हुआ, जब 1948 में 'भोपाल स्टेट' का भारतीय गणतंत्र में विलय हेतु आंदोलन किया गया।
मंत्री पद
स्वतंत्रता संग्राम में और भोपाल रियासत के विलय के आन्दोलन में आपने सक्रिय भाग लिया और जेल की यातनाएँ सहीं। देश के स्वतंत्र होने पर शंकरदयाल शर्मा 1952 से 1956 तक भोपाल राज्यसभा के सदस्य चुने गए और प्रथम मुख्यमंत्री बने। राज्यों के पुनर्गठन के बाद कुछ समय तक वहाँ मंत्रिमंडल के सदस्य के रूप में उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण विभागों का कार्यभार सम्भाला। 1956 आप लोकसभा के सदस्य चुने गए और केन्द्र सरकार में संचार मंत्री बने। 1971 में वे पाँचवीं लोकसभा के लिए भी निर्वाचित हुए।
कांग्रेस से लगाव
कांग्रेस संगठन से आपका निकट का सम्पर्क रहा है। 1950-1952 में 'भोपाल कांग्रेस कमेटी' की और फिर 1967-1968 में 'मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी' की आपने अध्यक्षता की। 1967 से आप 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' और 'कांग्रेस कार्य समिति' के सदस्य रहे हैं। 1968 से 1972 तक आप कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी थे और 1972-1974 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए।
राष्ट्रपति पद
शंकरदयाल शर्मा 21 अगस्त, 1987 को उपराष्ट्रपति पद पर निर्विरोध निर्वाचित हुए और 3 सितंबर, 1987 को पद की शपथ ग्रहण की। इसके बाद डॉ शर्मा 16 जुलाई, 1992 को राष्ट्रपति पद के लिये निर्वाचित हुए और 25 जुलाई, 1992 को उन्होंने देश के सर्वोच्च पद की शपथ ग्रहण की थी। भोपाल की 'गुलिया दाई की गली' से राष्ट्रपति भवन तक का डॉक्टर शर्मा का सफर बहुतों को रोमांचित करता है, परंतु यह निर्विवाद सत्य है, कि वे बाल्यकाल से ही मेधावी थे। उनके समकक्ष असाधारण शैक्षणिक योग्यता के धनी आज की राजनीतिक प़ीढी में तो बिरले ही मिलते है।
बहुमुखी प्रतिभा
शंकरदयाल शर्मा बहुज्ञ थे। साहित्य, कला और विज्ञान में उनकी समान रुचि थी। अपने विद्यार्थी जीवन में उन्होंने विभिन्न खेलों में भी बढ़कर भाग लिया था। शंकरदयाल शर्मा ने कई ग्रन्थों की रचना की, और कुछ पत्रिकाओं के सम्पादक भी रहे हैं। अपने राजनीतिक जीवन में वे आंध्र प्रदेश, पंजाब तथा महाराष्ट्र के राज्यपाल के पद पर रहे थे।
निधन
अपने जीवन के अंतिम पांच वर्षों में डॉक्टर शंकरदयाल शर्मा लगातार गिरते स्वास्थ्य से काफ़ी परेशान रहने लगे थे। 26 दिसंबर, 1999 को दिल का दौरा पड़ने के कारण उनका देहांत हो गया। शंकरदयाल शर्मा बहुत गंभीर व्यक्तित्व वाले इंसान थे। वह अपने काम के प्रति बेहद संजीदा और प्रतिबद्ध रहा करते थे। इसके अलावा वह संसद के नियम-क़ानून का सख्ती से पालन करते और उनका सम्मान करते थे। उनके बारे में कहा जाता है कि एक बार राज्यसभा में एक मौके पर वे इसलिए रो पड़े थे, क्योंकि राज्यसभा के सदस्यों ने किसी राजनीतिक मुद्दे पर सदन को जाम कर दिया था।
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