"मदन द्वादशी": अवतरणों में अंतर

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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित [[हिन्दू धर्म]] का एक [[व्रत]] संस्कार है।  
*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक [[व्रत]] संस्कार है।  
*[[चैत्र]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] द्वादशी पर यह व्रत किया जाता है।  
*[[चैत्र]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[द्वादशी]] पर यह व्रत किया जाता है।  
*तिथिव्रत; ताम्र पात्र मं काम एवं रति का चित्र खींचना; पात्र में गुड़ एवं अन्य खाद्य पदार्थों तथा एक घट पर सोना; घट में चावल एवं फलों के साथ जल रखना; चित्र के समक्ष भोजन रखना; गीत एवं प्रेम संगीत; हरि की प्रतिमा को काम मानकर उसकी पूजा करना।  
*तिथिव्रत; ताम्र पात्र मं काम एवं रति का चित्र खींचना।
*पात्र में गुड़ एवं अन्य खाद्य पदार्थों तथा एक घट पर सोना; घट में चावल एवं फलों के साथ जल रखना; चित्र के समक्ष भोजन रखना; गीत एवं प्रेम संगीत; हरि की प्रतिमा को काम मानकर उसकी पूजा करना।  
*दूसरे दिन घट का दान एवं ब्रह्म भोज कराना।  
*दूसरे दिन घट का दान एवं ब्रह्म भोज कराना।  
*कर्ता काम के रूप में भगवान [[जनार्दन]] जो सब के ह्रदय के आनन्द हैं, प्रसनन होवें' नामक मन्त्र के साथ दक्षिणा देकर स्वयं लवण हीन भोजन करता है।  
*कर्ता काम के रूप में भगवान [[जनार्दन]] जो सब के हृदय के आनन्द हैं, प्रसनन होवें' नामक मन्त्र के साथ दक्षिणा देकर स्वयं लवण हीन भोजन करता है।  
*[[त्रयोदशी]] को उपवास; [[विष्णु]] पूजा; [[द्वादशी]] को केवल एक फल खाकर भूमि पर शयन करना चाहिए।  
*[[त्रयोदशी]] को उपवास रखा जाता है।
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*यह व्रत एक वर्ष तक करना चाहिए।  
*यह व्रत एक वर्ष तक करना चाहिए।  
*अन्त में गोदान एवं वस्त्र का दान; तिल होम करना चाहिए।  
*अन्त में [[गोदान]] एवं वस्त्र का दान दिया जाता है।
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12:56, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • चैत्र शुक्ल द्वादशी पर यह व्रत किया जाता है।
  • तिथिव्रत; ताम्र पात्र मं काम एवं रति का चित्र खींचना।
  • पात्र में गुड़ एवं अन्य खाद्य पदार्थों तथा एक घट पर सोना; घट में चावल एवं फलों के साथ जल रखना; चित्र के समक्ष भोजन रखना; गीत एवं प्रेम संगीत; हरि की प्रतिमा को काम मानकर उसकी पूजा करना।
  • दूसरे दिन घट का दान एवं ब्रह्म भोज कराना।
  • कर्ता काम के रूप में भगवान जनार्दन जो सब के हृदय के आनन्द हैं, प्रसनन होवें' नामक मन्त्र के साथ दक्षिणा देकर स्वयं लवण हीन भोजन करता है।
  • त्रयोदशी को उपवास रखा जाता है।
  • विष्णु पूजा की जाती है।
  • द्वादशी को केवल एक फल खाकर भूमि पर शयन करना चाहिए।
  • यह व्रत एक वर्ष तक करना चाहिए।
  • अन्त में गोदान एवं वस्त्र का दान दिया जाता है।
  • तिल से होम करना चाहिए।
  • कर्ता सभी पापों से मुक्त हो जाता है, पुत्र एवं धन पाता है और हरि से तादात्म्य स्थापित कर लेता है।[1]; [2]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 367-368
  2. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 1194-1198, मत्स्य पुराण से उद्धरण

संबंधित लेख

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