"दशावतार दिन": अवतरणों में अंतर
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*वर्ष के उसी मास एवं तिथि पर दस वर्षों तक यह व्रत किया जाता है। | *वर्ष के उसी मास एवं तिथि पर दस वर्षों तक यह व्रत किया जाता है। | ||
*प्रति वर्ष विभिन्न भोजन का अर्पण (यथा–प्रथम वर्ष में पूप अर्थात् पूआ, दूसरे में घृतपूरक.....आदि) किया जाता है। | *प्रति वर्ष विभिन्न भोजन का अर्पण (यथा–प्रथम वर्ष में पूप अर्थात् पूआ, दूसरे में घृतपूरक.....आदि) किया जाता है। | ||
*भोजन के दस भाग देवों के लिए अलग से रखे जाते | *भोजन के दस भाग देवों के लिए अलग से रखे जाते हैं। | ||
*दस भाग ब्राह्मणों तथा दस भाग अपने लिए रखा जाता है। | *दस भाग ब्राह्मणों तथा दस भाग अपने लिए रखा जाता है। | ||
*भार्गव, [[राम]], [[कृष्ण]], [[बौद्ध]] एवं कल्कि के सहित अवतारों की बहुमूल्य दस मूर्तियाँ होती है।<ref>व्रतराज (358-359, [[भविष्य पुराण]] से उद्धरण); स्मृतिकौस्तुभ (239)। | *भार्गव, [[राम]], [[कृष्ण]], [[बौद्ध]] एवं कल्कि के सहित अवतारों की बहुमूल्य दस मूर्तियाँ होती है।<ref>व्रतराज (358-359, [[भविष्य पुराण]] से उद्धरण); स्मृतिकौस्तुभ (239)। | ||
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10:59, 15 जून 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की द्वादशी को यह व्रत आरम्भ होता है।
- उस दिन विष्णु मत्स्य के रूप में प्रकट हुए थे।
- प्रत्येक शुक्ल द्वादशी से भाद्रपद तक प्रत्येक मास में क्रम से दशावतारों के रूप में विष्णु की पूजा की पूजा की जाती है।[1]
- दूसरे मत के अनुसार भाद्रपद शुक्ल की दशमी को यह व्रत आरम्भ होता है।
- वर्ष के उसी मास एवं तिथि पर दस वर्षों तक यह व्रत किया जाता है।
- प्रति वर्ष विभिन्न भोजन का अर्पण (यथा–प्रथम वर्ष में पूप अर्थात् पूआ, दूसरे में घृतपूरक.....आदि) किया जाता है।
- भोजन के दस भाग देवों के लिए अलग से रखे जाते हैं।
- दस भाग ब्राह्मणों तथा दस भाग अपने लिए रखा जाता है।
- भार्गव, राम, कृष्ण, बौद्ध एवं कल्कि के सहित अवतारों की बहुमूल्य दस मूर्तियाँ होती है।[2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हेमाद्रि व्रतखण्ड 1, 1158-1161, विष्णु पुराण से उद्धरण
- ↑ व्रतराज (358-359, भविष्य पुराण से उद्धरण); स्मृतिकौस्तुभ (239)।
अन्य संबंधित लिंक
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