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*यहाँ तक की अभागा व्यक्ति भी सुख, सम्पत्ति एवं भोजन से युक्त एवं पापमुक्त हो जाता है। | *यहाँ तक की अभागा व्यक्ति भी सुख, सम्पत्ति एवं भोजन से युक्त एवं पापमुक्त हो जाता है। | ||
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12:50, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को यह व्रत आरम्भ होता है।
- उस दिन नक्त (एक बार रात्रि में भोजन) और रात्रि में विष्णुमूर्ति (अग्नि के अनुरूप) की पूजा की जाती है।
- इसके सामने बने कुण्ड में होम किया जाता है।
- घृत के साथ यावक एवं भोजन का ग्रहण किया जाता है।
- यही कृत्य कृष्ण पक्ष में भी किया जाता है।
- चैत्र से लेकर आठ मासों तक यह व्रत किया जाता है।
- व्रत के अन्त में अग्नि की स्वर्णिम प्रतिमा का दान दिया जाता है।
- यहाँ तक की अभागा व्यक्ति भी सुख, सम्पत्ति एवं भोजन से युक्त एवं पापमुक्त हो जाता है।
- कृत्यकल्पतरु[1] ने इसे धन्यप्रतिपदा कहा है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 38-40
अन्य संबंधित लिंक
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