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||[[चित्र:S-K-Sinha.jpg|right|100px|border|श्रीनिवास कुमार सिन्हा]]'श्रीनिवास कुमार सिन्हा' भारतीय सैन्य अधिकारी थे। वे 'परम विशिष्ट सेवा मेडल' से सम्मानित लेफ़्टिनेंट जनरल थे। अपनी सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने [[असम]], [[जम्मू और कश्मीर]] तथा [[अरुणाचल प्रदेश]] के [[राज्यपाल]] के रूप में कार्य किया था। सन [[1983]] में जब [[इंदिरा गाँधी]] की सरकार ने उनकी वरिष्ठता को | ||[[चित्र:S-K-Sinha.jpg|right|100px|border|श्रीनिवास कुमार सिन्हा]]'श्रीनिवास कुमार सिन्हा' भारतीय सैन्य अधिकारी थे। वे 'परम विशिष्ट सेवा मेडल' से सम्मानित लेफ़्टिनेंट जनरल थे। अपनी सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने [[असम]], [[जम्मू और कश्मीर]] तथा [[अरुणाचल प्रदेश]] के [[राज्यपाल]] के रूप में कार्य किया था। सन [[1983]] में जब [[इंदिरा गाँधी]] की सरकार ने उनकी वरिष्ठता को नजरअंदाज़कर, उनकी जगह जनरल अरुण श्रीधर वैद्य को भारतीय सेना का प्रमुख नियुक्त किया तो उन्होंने सेना से इस्तीफा दे दिया। [[श्रीनिवास कुमार सिन्हा]] वर्ष [[1990]] में [[नेपाल]] में [[भारत]] के राजदूत नियुक्त हुए थे। इन्होंने पांच पुस्तकों का लेखन भी किया, जिसमें से '''ए सोल्जर रिकाल्स''' नामक [[आत्मकथा]] इनकी प्रमुख पुस्तक है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[श्रीनिवास कुमार सिन्हा]] | ||
{[[बंगला भाषा]] की प्रथम गद्य रचना 'बेताल पंचविंशति' का प्रकाशन किसने किया था? | {[[बंगला भाषा]] की प्रथम गद्य रचना 'बेताल पंचविंशति' का प्रकाशन किसने किया था? | ||
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-[[सूर्य सेन]] | -[[सूर्य सेन]] | ||
-[[मानवेन्द्र नाथ राय]] | -[[मानवेन्द्र नाथ राय]] | ||
||[[चित्र:Ishwar-Chandra-Vidyasagar.jpg|right|100px|border|ईश्वर चन्द्र विद्यासागर]]'ईश्वर चन्द्र विद्यासागर' [[भारत]] के प्रसिद्ध समाज सुधारक, शिक्षाशास्त्री व स्वाधीनता सेनानी थे। वे | ||[[चित्र:Ishwar-Chandra-Vidyasagar.jpg|right|100px|border|ईश्वर चन्द्र विद्यासागर]]'ईश्वर चन्द्र विद्यासागर' [[भारत]] के प्रसिद्ध समाज सुधारक, शिक्षाशास्त्री व स्वाधीनता सेनानी थे। वे ग़रीबों व दलितों के संरक्षक माने जाते थे। उन्होंने स्त्री-शिक्षा और [[विधवा विवाह]] पर काफ़ी ज़ोर दिया। [[ईश्वर चन्द्र विद्यासागर]] ने 'मेट्रोपोलिटन विद्यालय' सहित अनेक महिला विद्यालयों की स्थापना करवायी तथा वर्ष 1848 में '''वैताल पंचविंशति''' नामक [[बंगला भाषा]] की प्रथम गद्य रचना का भी प्रकाशन किया। नैतिक मूल्यों के संरक्षक और शिक्षाविद विद्यासागर जी का मानना था कि [[अंग्रेज़ी]] और [[संस्कृत भाषा]] के ज्ञान का समन्वय करके ही भारतीय और पाश्चात्य परंपराओं के श्रेष्ठ को हासिल किया जा सकता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ईश्वर चन्द्र विद्यासागर]] | ||
{'[[प्रार्थना समाज]]' की स्थापना कहाँ की गई थी? | {'[[प्रार्थना समाज]]' की स्थापना कहाँ की गई थी? | ||
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||[[चित्र:Kathak-Dance-1.jpg|right|100px|border|कथक]]'कथक' [[शास्त्रीय नृत्य|भारतीय शास्त्रीय नृत्यों]] की प्रसिद्ध शैलियों में से एक है। शास्त्रीय नृत्य में [[कथक]] का नृत्य रूप 100 से अधिक घुंघरुओं को पैरों में बांधकर तालबद्ध पदचाप, विहंगम चक्कर द्वारा पहचाना जाता है और [[हिन्दू]] धार्मिक कथाओं के अलावा पर्शियन और [[उर्दू]] कविता से ली गई विषय वस्तुओं का नाटकीय प्रस्तुतीकरण किया जाता है। कथक की [[शैली]] का जन्म [[ब्राह्मण]] पुजारियों द्वारा हिन्दुओं की पारम्परिक पुन: गणना में निहित है, जिन्हें 'कथिक' कहते थे, जो नाटकीय | ||[[चित्र:Kathak-Dance-1.jpg|right|100px|border|कथक]]'कथक' [[शास्त्रीय नृत्य|भारतीय शास्त्रीय नृत्यों]] की प्रसिद्ध शैलियों में से एक है। शास्त्रीय नृत्य में [[कथक]] का नृत्य रूप 100 से अधिक घुंघरुओं को पैरों में बांधकर तालबद्ध पदचाप, विहंगम चक्कर द्वारा पहचाना जाता है और [[हिन्दू]] धार्मिक कथाओं के अलावा पर्शियन और [[उर्दू]] कविता से ली गई विषय वस्तुओं का नाटकीय प्रस्तुतीकरण किया जाता है। कथक की [[शैली]] का जन्म [[ब्राह्मण]] पुजारियों द्वारा हिन्दुओं की पारम्परिक पुन: गणना में निहित है, जिन्हें 'कथिक' कहते थे, जो नाटकीय अंदाज़में हाव-भावों का उपयोग करते थे। क्रमश: इसमें [[कथा]] कहने की शैली और अधिक विकसित हुई तथा एक [[नृत्य कला|नृत्य]] रूप बन गया। इस नृत्य को '''नटवरी नृत्य''' के नाम से भी जाना जाता है। [[उत्तर भारत]] में [[मुग़ल|मुग़लों]] के आने पर इस नृत्य को शाही दरबार में ले जाया गया और इसका विकास एक परिष्कृत कलारूप में हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कथक]] | ||
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