"घोड़े की शारीरिक विशेषताएँ": अवतरणों में अंतर
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10,00,000 [[वर्ष]] पूर्व से अब तक मनुष्य ने अपनी बुद्धि के अनुसार घोड़े को पालतू बनाया और अन्यान्य अच्छी अच्छी नस्लों को पैदा किया। बोझा खींचने, घुड़दौड़ में दौड़ाने, सवारी करने और रथ आदि में चलने वाले अलग अलग प्रकार के घोड़ों की उत्पत्ति हुई है। | 10,00,000 [[वर्ष]] पूर्व से अब तक मनुष्य ने अपनी बुद्धि के अनुसार घोड़े को पालतू बनाया और अन्यान्य अच्छी अच्छी नस्लों को पैदा किया। बोझा खींचने, घुड़दौड़ में दौड़ाने, सवारी करने और रथ आदि में चलने वाले अलग अलग प्रकार के घोड़ों की उत्पत्ति हुई है। | ||
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ढाई साल में घोड़े के बच्चों के [[दूध]] के दाँत गिर जाते हैं। चार से छ: वर्ष की उम्र तक पूरे दाँत निकल आते हैं। पालतू घोड़े प्राय: बीस वर्ष की उम्र में बूढ़े हो जाते हैं। अधिक से अधिक 45 वर्ष की उम्र तक के घोड़े देखे गए हैं। [[संस्कृत]] की भारतीय पुस्तकों में घोड़े के अनेक सुंदर चित्र, उसकी आकृति, सुंदरता, शुभ-अशुभ-लक्षण और वंश का वर्णन करते हुए दिए गए हैं। इन पुस्तकों के अंग्रेजी अनुवाद भी शनै: शनै: प्रकाशित हो रहे हैं।<ref>{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%98%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE|title=घोड़ा |accessmonthday=24 अक्टूबर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज |language= हिंदी}}</ref> | ढाई साल में घोड़े के बच्चों के [[दूध]] के दाँत गिर जाते हैं। चार से छ: वर्ष की उम्र तक पूरे दाँत निकल आते हैं। पालतू घोड़े प्राय: बीस वर्ष की उम्र में बूढ़े हो जाते हैं। अधिक से अधिक 45 वर्ष की उम्र तक के घोड़े देखे गए हैं। [[संस्कृत]] की भारतीय पुस्तकों में घोड़े के अनेक सुंदर चित्र, उसकी आकृति, सुंदरता, शुभ-अशुभ-लक्षण और वंश का वर्णन करते हुए दिए गए हैं। इन पुस्तकों के अंग्रेजी अनुवाद भी शनै: शनै: प्रकाशित हो रहे हैं।<ref>{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%98%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE|title=घोड़ा |accessmonthday=24 अक्टूबर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज |language= हिंदी}}</ref> | ||
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08:20, 12 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
घोड़े की शारीरिक विशेषताएँ
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जगत | जीव-जंतु |
संघ | कॉर्डेटा (Chordata) |
वर्ग | मेमेलिया (Mammalia) |
गण | अर्टिओडाक्टायला (Artiodactyla) |
कुल | ईक्यूडी (Equidae) |
जाति | ईक्वस (Equus) |
प्रजाति | ई. फेरस (E. ferus) |
द्विपद नाम | ईक्वस फेरस (Equus ferus) |
विशेष | विवाहोत्सव और धार्मिक जलूसों में सजे-धजे घोड़ों को देखकर उत्साह का संचार हो जाता है। गुरु गोविन्द सिंह जयंती, महाराणा प्रताप जयंती और रामनवमी के शुभ अवसर पर सुसज्जित अश्व भारतीय जनमानस में प्राचीन गौरव को जागृत कर वीरत्व को उत्पन्न करते हैं। |
अन्य जानकारी | हाथी और ऊँट की भांति घोड़ा भी उपयोगी पशु है। संस्कृत में इसे 'अश्व' और अंग्रेज़ी में 'हॉर्स' (Horse) कहा जाता है। घोड़ा मनुष्य से संबंधित संसार का सबसे प्राचीन पालतू स्तनपोषी प्राणी है, जिसने अज्ञात काल से मनुष्य की किसी न किसी रूप में सेवा की है। |
10,00,000 वर्ष पूर्व से अब तक मनुष्य ने अपनी बुद्धि के अनुसार घोड़े को पालतू बनाया और अन्यान्य अच्छी अच्छी नस्लों को पैदा किया। बोझा खींचने, घुड़दौड़ में दौड़ाने, सवारी करने और रथ आदि में चलने वाले अलग अलग प्रकार के घोड़ों की उत्पत्ति हुई है।
विदेशों में घोड़ों के नाम उनके जीवनक्रम के अनुसार दिए गए हैं। भारत में घोड़ों को उनके रंग तथा वंश के अनुसार मुश्की, अरबी आदि नाम दिए जाते हैं।
कुछ लोगों का यह भ्रम है कि घोड़ा मनुष्य के बराबर बुद्धिमान होता है। वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार, इसकी बुद्धि सबसे मूर्ख मनुष्य से भी कम होती है। घोड़े में दृष्टि की तीव्रता होती है, क्योंकि संसार के स्थलीय जीवों में किसी प्राणी की आँख शरीर के अनुुपात में घोड़े के समान बड़ी नहीं होती। दृष्टि की तीव्रता होते हुए भी इसकी आँख में गर्तिका[1]नहीं होती। अत: इसके लिये हमारे समान दृष्टि को केंद्रित करना संभव नहीं है। बिना सिर घुमाए काफ़ी क्षेत्र में देखना इसकी आँखों से संभव है। इसकी आँखें और नाक दोनों मनुष्य से अधिक सक्रिय होती हैं।
कुछ घोड़ों में ईयोहिप्पस के समान 44 दाँत होते हैं, परंतु साधारणत: नरों में 40 और मादाओं में 36 दांत होते हैं। नर में प्रत्येक हनु में कृंतक दाँतों के तनिक पीछे एक श्वदंत होता है, घोड़ियों में नहीं।
चेस्टनट
घोड़े के अंगों की एक विशेष रचना चेस्टनट[2] नाम का मस्सा होता है यह अगली टाँगों में घुटने के पिछले ऊपरी भाग पर एक लंबी चमकीली[3] के रूप में होता है, परंतु पिछली टांगों में यह एक छोटा धब्बा सा गुल्फ[4] के नीचे होता है पद की पिछली सतह पर, बालों के बीच छिपा हुआ एक अर्गट[5] होता है। गधे में यह अर्गट घोड़े से बड़ा होता है। यह एक लुप्तावशेष है, जो घोड़े के पूर्वजों में पैर को पृथ्वी पर टिकाने में सहायक होता था।
आयु
ढाई साल में घोड़े के बच्चों के दूध के दाँत गिर जाते हैं। चार से छ: वर्ष की उम्र तक पूरे दाँत निकल आते हैं। पालतू घोड़े प्राय: बीस वर्ष की उम्र में बूढ़े हो जाते हैं। अधिक से अधिक 45 वर्ष की उम्र तक के घोड़े देखे गए हैं। संस्कृत की भारतीय पुस्तकों में घोड़े के अनेक सुंदर चित्र, उसकी आकृति, सुंदरता, शुभ-अशुभ-लक्षण और वंश का वर्णन करते हुए दिए गए हैं। इन पुस्तकों के अंग्रेजी अनुवाद भी शनै: शनै: प्रकाशित हो रहे हैं।[6]
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