"सकट चौथ": अवतरणों में अंतर

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'''सकट चौथ''' का व्रत [[माघ|माघ माह]] में [[कृष्ण पक्ष]] की [[चतुर्थी|चतुर्थी तिथि]] के दिन किया जाता है। इसे 'तिल चौथ' या 'माही चौथ' के नाम से भी जाना जाता है। 'सकट' शब्द संकट का [[अपभ्रंश]] है। [[गणेश|गणेश जी]] ने इस दिन [[देवता|देवताओं]] की मदद करके उनका संकट दूर किया था। तब [[शिव]] ने प्रसन्न होकर गणेश को आशीर्वाद देकर कहा कि आज के दिन को लोग संकट मोचन के रूप में मनाएंगे। जो भी इस दिन व्रत करेगा, उसके सब संकट इस व्रत के प्रभाव से दूर हो जाएंगे। 'वक्रतुण्डी चतुर्थी', 'माही चौथ' अथवा 'तिलकुटा चौथ' सकट चौथ के ही अन्य नाम हैं। इस दिन विद्या-बुद्धि-वारिधि, संकट हरण गणेश तथा [[चंद्रमा देवता|चंद्रमा]] का पूजन किया जाता है। यह व्रत संकटों तथा दुखों को दूर करने वाला तथा प्राणीमात्र की सभी इच्छाएं व मनोकामनाएं पूरी करने वाला है।
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==व्रत विधि==
इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत करती हैं। एक पटरे पर [[मिट्टी]] की डली को गणेश जी के रूप में रखकर उनकी [[पूजा]] की जाती है और [[कथा]] सुनने के बाद लोटे में भरा [[जल]] चंद्रमा को अर्ध्य देकर ही व्रत खोला जाता है। रात्रि को चंद्रमा को अर्ध्य देने के बाद ही महिलाएं भोजन करती है। सकट चौथ के दिन [[तिल]] को भूनकर गुड़ के साथ कूटकर तिलकुटा अर्थात तिलकुट का पहाड़ बनाया जाता है। कहीं-कहीं तिलकुट का बकरा भी बनाया जाता है। उसकी पूजा करके घर का कोई बच्चा उसकी गर्दन काटता है, फिर सबको प्रसाद दिया जाता है।


==सकट चौथ / Sakat Chauth==
तिलकुटे से ही गणेश जी का पूजन किया जाता है तथा इसका ही बायना निकालते हैं और तिलकुट को भोजन के साथ खाते भी हैं। जिस घर में लड़के की शादी या लड़का हुआ हो, उस वर्ष सकट चौथ को सवा किलो तिलों को सवा किलो शक्कर या गुड़ के साथ कूटकर इसके तेरह लड्डू बनाए जाते हैं। इन लड्डूओं को बहू बायने के रूप में सास को देती है। कहीं-कहीं इस दिन व्रत रहने के बाद सायंकाल चंद्रमा को दूध का अर्ध्य देकर पूजा की जाती है। गौरी-गणेश की स्थापना कर उनका पूजन तथा वर्षभर उन्हें घर में रखा जाता है। तिल, ईख, गंजी, भांटा, अमरूद, गुड़, घी से चंद्रमा गणेश का भोग लगाया जाता है। यह नैवेद्य रात भर डलिया से ढककर रख दिया जाता है, जिसे 'पहार' कहते हैं। पुत्रवती माताएं पुत्र तथा पति की सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत करती हैं। उस ढके हुए 'पहार' को पुत्र ही खोलता है तथा उसे भाई-बंधुओं में बांटा जाता है।
प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष चतुर्थी यूं तो [[गणेश]] कहलाती है तथा धार्मिक प्रवृत्ति की स्त्रियां उस दिन व्रत व गणेश पूजन करती हैं। परंतु जहां तक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का प्रश्न है, सभी महिलाएं इस व्रत को करती हैं। लोक प्रचलित भाषा में इसे सकट चौथ कहा जाता है। वैसे वक्रतुण्डी चतुर्थी , माही चौथ अथवा तिलकुटा चौथ इसी के अन्य नाम हैं। इस दिन विद्या-बुद्धि-वारिधि, संकट हरण गणेशजी तथा [[चंद्रमा]] का पूजन किया जाता है। यह व्रत संकटों तथा दुखों को दूर करने वाला तथा प्राणीमात्र की सभी इच्छाएं व मनोकामनाएं पूरी करने वाला है।
==महत्त्व==
 
सकट चौथ का उपवास जो भी भक्त संपूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ करता है, उसकी बुद्धि और ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होने के साथ-साथ जीवन में आने वाली विघ्न बाधाओं का भी नाश होता है। सभी तिथियों में चतुर्थी तिथि श्री गणेश को सबसे अधिक प्रिय है।
इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत करती हैं। एक पटरे पर मिट्टी की डली को गणेशजी के रूप में रखकर उनकी पूजा की जाती है और कथा सुनने के बाद लोटे में भरा जल चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है। रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही महिलाएं भोजन करती है। सकट चौथ के दिन तिल को भूनकर गुड़ के साथ कूटकर तिलकुटा अर्थात तिलकुट का पहाड़ बनाया जाता है। कहीं-कहीं तिलकुट का बकरा भी बनाया जाता है। उसकी पूजा करके घर का कोई बच्चा उसकी गर्दन काटता है, फिर सबको प्रसाद दिया जाता है।
 
तिलकुटे से ही गणेशजी का पूजन किया जाता है तथा इसका ही बायना निकालते हैं और तिलकुट को भोजन के साथ खाते भी हैं। जिस घर में लड़के की शादी या लड़का हुआ हो, उस वर्ष सकट चौथ को सवा किलो तिलों को सवा किलो शक्कर या गुड़ के साथ कूटकर इसके तेरह लड्डू बनाए जाते हैं। इन लड्डूओं को बहू बायने के रूप में सास को देती है। कहीं-कहीं इस दिन व्रत रहने के बाद सायंकाल चंद्रमा को दूध का अर्घ्य देकर पूजा की जाती है। गौरी-गणेश की स्थापना कर उनका पूजन तथा वर्षभर उन्हें घर में रखा जाता है। तिल, ईख, गंजी, भांटा, अमरूद, गुड़, घी से चंद्रमा गणेश का भोग लगाया जाता है। यह नैवेद्य रात भर डलिया से ढककर रख दिया जाता है, जिसे 'पहार' कहते हैं। पुत्रवती माताएं पुत्र तथा पति की सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत करती हैं। उस ढके हुए 'पहार' को पुत्र ही खोलता है तथा उसे भाई-बंधुओं में बांटा जाता है।  
 
==कथा==
==कथा==
एक बार विपदाग्रस्त देवता भगवान शंकर के पास गए। उस समय भगवान [[शिव]] के पास स्वामी [[कार्तिकेय]] तथा गणेश भी विराजमान थे। शिवजी ने दोनों बालकों से पूछा- 'तुम में से कौन ऐसा वीर है जो [[देवता|देवताओं]] का कष्ट निवारण करे?'
एक बार विपदाग्रस्त देवता [[शंकर|भगवान शंकर]] के पास गए। उस समय भगवान [[शिव]] के पास [[कार्तिकेय|स्वामी कार्तिकेय]] तथा गणेश भी विराजमान थे। शिव जी ने दोनों बालकों से पूछा- 'तुम में से कौन ऐसा वीर है जो [[देवता|देवताओं]] का कष्ट निवारण करे?' तब कार्तिकेय ने स्वयं को देवताओं का सेनापति प्रमाणित करते हुए देव रक्षा योग्य तथा सर्वोच्च देव पद मिलने का अधिकारी सिद्ध किया। यह बात सुनकर शिव ने गणेश की इच्छा जाननी चाही। तब गणेश ने विनम्र भाव से कहा- 'पिताजी! आपकी आज्ञा हो तो मैं बिना सेनापति बने ही सब संकट दूर कर सकता हूं।'
 
तब कार्तिकेय ने स्वयं को देवताओं का सेनापति प्रमाणित करते हुए देव रक्षा योग्य तथा सर्वोच्च देव पद मिलने का अधिकारी सिद्ध किया। यह बात सुनकर शिवजी ने गणेश की इच्छा जाननी चाही। तब गणेशजी ने विनम्र भाव से कहा- 'पिताजी! आपकी आज्ञा हो तो मैं बिना सेनापति बने ही सब संकट दूर कर सकता हूं।'


यह सुनकर हंसते हुए शिव ने दोनों लड़कों को [[पृथ्वी]] की परिक्रमा करने को कहा तथा यह शर्त रखी- 'जो सबसे पहले पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करके आ जाएगा वही वीर तथा सर्वश्रेष्ठ देवता घोषित किया जाएगा।'
यह सुनकर हंसते हुए शिव ने दोनों लड़कों को [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] की परिक्रमा करने को कहा तथा यह शर्त रखी- 'जो सबसे पहले पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करके आ जाएगा वही वीर तथा सर्वश्रेष्ठ देवता घोषित किया जाएगा।' यह सुनते ही कार्तिकेय बड़े गर्व से अपने वाहन [[मोर]] पर चढ़कर [[पृथ्वी]] की परिक्रमा करने चल दिए। गणेश ने सोचा कि चूहे के बल पर तो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाना अत्यंत कठिन है, इसलिए उन्होंने एक युक्ति सोची। वे 7 बार अपने माता-पिता की परिक्रमा करके बैठ गए। रास्ते में कार्तिकेय को पूरे पृथ्वी मण्डल में उनके आगे चूहे के पद चिह्न दिखाई दिए। परिक्रमा करके लौटने पर निर्णय की बारी आई। कार्तिकेय जी गणेश पर कीचड़ उछालने लगे तथा स्वयं को पूरे भूमण्डल का एकमात्र पर्यटक बताया। इस पर गणेश ने शिव से कहा- 'माता-पिता में ही समस्त तीर्थ निहित हैं, इसलिए मैंने आपकी 7 बार परिक्रमाएं की हैं।'


यह सुनते ही कार्तिकेय बड़े गर्व से अपने वाहन मोर पर चढ़कर पृथ्वी की परिक्रमा करने चल दिए। गणेशजी ने सोचा कि चूहे के बल पर तो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाना अत्यंत कठिन है इसलिए उन्होंने एक युक्ति सोची। वे 7 बार अपने माता-पिता की परिक्रमा करके बैठ गए। रास्ते में कार्तिकेय को पूरे पृथ्वी मण्डल में उनके आगे चूहे के पद चिह्न दिखाई दिए। परिक्रमा करके लौटने पर निर्णय की बारी आई। कार्तिकेय जी गणेश पर कीचड़ उछालने लगे तथा स्वयं को पूरे भूमण्डल का एकमात्र पर्यटक बताया। इस पर गणेश ने शिव से कहा-'माता-पिता में ही समस्त तीर्थ निहित हैं इसलिए मैंने आपकी 7 बार परिक्रमाएं की हैं।'
[[गणेश]] की बात सुनकर समस्त देवताओं तथा कार्तिकेय ने सिर झुका लिया। तब शंकर जी ने उन्मुक्त कण्ठ से गणेश की प्रशंसा की तथा आशीर्वाद दिया- 'त्रिलोक में सर्वप्रथम तुम्हारी पूजा होगी।' तब गणेश ने पिता की आज्ञानुसार जाकर देवताओं का संकट दूर किया।


गणेश की बात सुनकर समस्त देवताओं तथा कार्तिकेय ने सिर झुका लिया। तब शंकरजी ने उन्मुक्त कण्ठ से गणेश की प्रशंसा की तथा आशीर्वाद दिया- 'त्रिलोक में सर्वप्रथम तुम्हारी पूजा होगी।' तब गणेशजी ने पिता की आज्ञानुसार जाकर देवताओं का संकट दूर किया।
यह शुभ समाचार जानकर भगवान शंकर ने अपने चंद्रमा को यह बताया कि चौथ के दिन चंद्रमा तुम्हारे मस्तक का सेहरा (ताज) बनकर पूरे विश्व को शीतलता प्रदान करेगा। जो स्त्री-पुरुष इस तिथि पर तुम्हारा पूजन तथा चंद्र अर्ध्यदान देगा। उसका त्रिविधि ताप (दैहिक, दैविक, भौतिक) दूर होगा और एश्वर्य, पुत्र, सौभाग्य को प्राप्त करेगा। यह सुनकर देवगण हर्षातिरेक में प्रणाम कर अंतर्धान हो गए।


यह शुभ समाचार जानकर भगवान शंकर ने अपने चंद्रमा को यह बताया कि चौथ के दिन चंद्रमा तुम्हारे मस्तक का सेहरा (ताज) बनकर पूरे विश्व को शीतलता प्रदान करेगा। जो स्त्री-पुरुष इस तिथि पर तुम्हारा पूजन तथा चंद्र अर्घ्यदान देगा। उसका त्रिविधि ताप (दैहिक, दैविक, भौतिक) दूर होगा और एश्वर्य, पुत्र, सौभाग्य को प्राप्त करेगा। यह सुनकर देवगण हर्षातिरेक में प्रणाम कर अंतर्धान हो गए।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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11:40, 3 अगस्त 2017 के समय का अवतरण

सकट चौथ
सकट चौथ
सकट चौथ
विवरण 'सकट चौथ' हिन्दुओं द्वारा मनाया जाने वाला व्रत है। इस व्रत में भगवान गणेश तथा चंद्रमा की पूजा का विशेष महत्त्व है और उन्हीं के निमित्त व्रत रखा जाता है।
अन्य नाम तिल चौथ, माही चौथ, वक्रतुण्डी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ।
तिथि माघ माह, कृष्ण पक्ष, चतुर्थी
अनुयायी हिन्दू
देवता गणेश तथा चंद्रमा
संबंधित लेख शिव, गणेश, कार्तिकेय, संकष्टी चतुर्थी
अन्य जानकारी सकट चौथ का उपवास जो भी भक्त संपूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ करता है, उसकी बुद्धि और ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होने के साथ-साथ जीवन में आने वाली विघ्न बाधाओं का भी नाश होता है।

सकट चौथ का व्रत माघ माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन किया जाता है। इसे 'तिल चौथ' या 'माही चौथ' के नाम से भी जाना जाता है। 'सकट' शब्द संकट का अपभ्रंश है। गणेश जी ने इस दिन देवताओं की मदद करके उनका संकट दूर किया था। तब शिव ने प्रसन्न होकर गणेश को आशीर्वाद देकर कहा कि आज के दिन को लोग संकट मोचन के रूप में मनाएंगे। जो भी इस दिन व्रत करेगा, उसके सब संकट इस व्रत के प्रभाव से दूर हो जाएंगे। 'वक्रतुण्डी चतुर्थी', 'माही चौथ' अथवा 'तिलकुटा चौथ' सकट चौथ के ही अन्य नाम हैं। इस दिन विद्या-बुद्धि-वारिधि, संकट हरण गणेश तथा चंद्रमा का पूजन किया जाता है। यह व्रत संकटों तथा दुखों को दूर करने वाला तथा प्राणीमात्र की सभी इच्छाएं व मनोकामनाएं पूरी करने वाला है। इन्हें भी देखें: संकष्टी चतुर्थी

व्रत विधि

इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत करती हैं। एक पटरे पर मिट्टी की डली को गणेश जी के रूप में रखकर उनकी पूजा की जाती है और कथा सुनने के बाद लोटे में भरा जल चंद्रमा को अर्ध्य देकर ही व्रत खोला जाता है। रात्रि को चंद्रमा को अर्ध्य देने के बाद ही महिलाएं भोजन करती है। सकट चौथ के दिन तिल को भूनकर गुड़ के साथ कूटकर तिलकुटा अर्थात तिलकुट का पहाड़ बनाया जाता है। कहीं-कहीं तिलकुट का बकरा भी बनाया जाता है। उसकी पूजा करके घर का कोई बच्चा उसकी गर्दन काटता है, फिर सबको प्रसाद दिया जाता है।

तिलकुटे से ही गणेश जी का पूजन किया जाता है तथा इसका ही बायना निकालते हैं और तिलकुट को भोजन के साथ खाते भी हैं। जिस घर में लड़के की शादी या लड़का हुआ हो, उस वर्ष सकट चौथ को सवा किलो तिलों को सवा किलो शक्कर या गुड़ के साथ कूटकर इसके तेरह लड्डू बनाए जाते हैं। इन लड्डूओं को बहू बायने के रूप में सास को देती है। कहीं-कहीं इस दिन व्रत रहने के बाद सायंकाल चंद्रमा को दूध का अर्ध्य देकर पूजा की जाती है। गौरी-गणेश की स्थापना कर उनका पूजन तथा वर्षभर उन्हें घर में रखा जाता है। तिल, ईख, गंजी, भांटा, अमरूद, गुड़, घी से चंद्रमा गणेश का भोग लगाया जाता है। यह नैवेद्य रात भर डलिया से ढककर रख दिया जाता है, जिसे 'पहार' कहते हैं। पुत्रवती माताएं पुत्र तथा पति की सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत करती हैं। उस ढके हुए 'पहार' को पुत्र ही खोलता है तथा उसे भाई-बंधुओं में बांटा जाता है।

महत्त्व

सकट चौथ का उपवास जो भी भक्त संपूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ करता है, उसकी बुद्धि और ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होने के साथ-साथ जीवन में आने वाली विघ्न बाधाओं का भी नाश होता है। सभी तिथियों में चतुर्थी तिथि श्री गणेश को सबसे अधिक प्रिय है।

कथा

एक बार विपदाग्रस्त देवता भगवान शंकर के पास गए। उस समय भगवान शिव के पास स्वामी कार्तिकेय तथा गणेश भी विराजमान थे। शिव जी ने दोनों बालकों से पूछा- 'तुम में से कौन ऐसा वीर है जो देवताओं का कष्ट निवारण करे?' तब कार्तिकेय ने स्वयं को देवताओं का सेनापति प्रमाणित करते हुए देव रक्षा योग्य तथा सर्वोच्च देव पद मिलने का अधिकारी सिद्ध किया। यह बात सुनकर शिव ने गणेश की इच्छा जाननी चाही। तब गणेश ने विनम्र भाव से कहा- 'पिताजी! आपकी आज्ञा हो तो मैं बिना सेनापति बने ही सब संकट दूर कर सकता हूं।'

यह सुनकर हंसते हुए शिव ने दोनों लड़कों को पृथ्वी की परिक्रमा करने को कहा तथा यह शर्त रखी- 'जो सबसे पहले पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करके आ जाएगा वही वीर तथा सर्वश्रेष्ठ देवता घोषित किया जाएगा।' यह सुनते ही कार्तिकेय बड़े गर्व से अपने वाहन मोर पर चढ़कर पृथ्वी की परिक्रमा करने चल दिए। गणेश ने सोचा कि चूहे के बल पर तो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाना अत्यंत कठिन है, इसलिए उन्होंने एक युक्ति सोची। वे 7 बार अपने माता-पिता की परिक्रमा करके बैठ गए। रास्ते में कार्तिकेय को पूरे पृथ्वी मण्डल में उनके आगे चूहे के पद चिह्न दिखाई दिए। परिक्रमा करके लौटने पर निर्णय की बारी आई। कार्तिकेय जी गणेश पर कीचड़ उछालने लगे तथा स्वयं को पूरे भूमण्डल का एकमात्र पर्यटक बताया। इस पर गणेश ने शिव से कहा- 'माता-पिता में ही समस्त तीर्थ निहित हैं, इसलिए मैंने आपकी 7 बार परिक्रमाएं की हैं।'

गणेश की बात सुनकर समस्त देवताओं तथा कार्तिकेय ने सिर झुका लिया। तब शंकर जी ने उन्मुक्त कण्ठ से गणेश की प्रशंसा की तथा आशीर्वाद दिया- 'त्रिलोक में सर्वप्रथम तुम्हारी पूजा होगी।' तब गणेश ने पिता की आज्ञानुसार जाकर देवताओं का संकट दूर किया।

यह शुभ समाचार जानकर भगवान शंकर ने अपने चंद्रमा को यह बताया कि चौथ के दिन चंद्रमा तुम्हारे मस्तक का सेहरा (ताज) बनकर पूरे विश्व को शीतलता प्रदान करेगा। जो स्त्री-पुरुष इस तिथि पर तुम्हारा पूजन तथा चंद्र अर्ध्यदान देगा। उसका त्रिविधि ताप (दैहिक, दैविक, भौतिक) दूर होगा और एश्वर्य, पुत्र, सौभाग्य को प्राप्त करेगा। यह सुनकर देवगण हर्षातिरेक में प्रणाम कर अंतर्धान हो गए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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