"आश्चर्य, अचंभा, विस्मय एवं कुतुहल": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) (''''आश्चर्य''', '''अचंभा''', '''विस्मय''' एवं '''कुतुहल''' के अर्थ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
'अचंभा' कुछ आगे की बात है, बल्कि आश्चर्य चरम पर जा पहुँचे तो अचंभा बनने लगता है। जैसे-वर्षो से खोया हुआ आदमी, जिसके मिलने की उम्मीद कतई न हो, वही एक दिन अचानक दिखाई पड़ जाए तो अचंभा ही होगा। | 'अचंभा' कुछ आगे की बात है, बल्कि आश्चर्य चरम पर जा पहुँचे तो अचंभा बनने लगता है। जैसे-वर्षो से खोया हुआ आदमी, जिसके मिलने की उम्मीद कतई न हो, वही एक दिन अचानक दिखाई पड़ जाए तो अचंभा ही होगा। | ||
; विस्मय | ; विस्मय | ||
'विस्मय' में आश्चर्य तो है, पर विशिष्टता यह है कि इसमें प्रसन्नता का तत्व भी समाया हुआ है। मान लीजिए, आप रहते [[इलाहाबाद]] में हैं और घुमने गए हैं [[असम]] की | 'विस्मय' में आश्चर्य तो है, पर विशिष्टता यह है कि इसमें प्रसन्नता का तत्व भी समाया हुआ है। मान लीजिए, आप रहते [[इलाहाबाद]] में हैं और घुमने गए हैं [[असम]] की पहाड़ियों में। यदि वहाँ सहसा आपका कोई पुराना मित्र सामने से आता हुआ दिख जाए तो क्या होगा? स्पष्टत: आपके मन में जो भाव होगा वह विस्मय का होगा। | ||
; कुतूहल | ; कुतूहल | ||
विस्मय की तरह कुतूहल में भी आश्चर्य तो है, पर इसमें जिज्ञासा का भाव विशेष है। आश्चर्य पैदा करने वाली किसी बात में कोई रहस्य लगे तो जिज्ञासा होती है। जैसे- सर्कस या जादूगरी का खेल देखकर आश्चर्य तो होता है, पर उसके पीछे का रहस्य भी जानने की एक इच्छा मन में पैदा होती है और इस पूरे भाव को ही हम कुतूहल कह सकते हैं। | विस्मय की तरह कुतूहल में भी आश्चर्य तो है, पर इसमें जिज्ञासा का भाव विशेष है। आश्चर्य पैदा करने वाली किसी बात में कोई रहस्य लगे तो जिज्ञासा होती है। जैसे- सर्कस या जादूगरी का खेल देखकर आश्चर्य तो होता है, पर उसके पीछे का रहस्य भी जानने की एक इच्छा मन में पैदा होती है और इस पूरे भाव को ही हम कुतूहल कह सकते हैं। | ||
स्पष्ट है कि इन चारों शब्दों अर्थ- | स्पष्ट है कि इन चारों शब्दों अर्थ-समान होने के साथ-साथ किंचित् अतंर भी है। | ||
13:02, 17 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
आश्चर्य, अचंभा, विस्मय एवं कुतुहल के अर्थ समान समझ लिये जाते हैं, पर ऐसा है नहीं। चारों शब्दों में हैरानी का भाव छिपा है, परंतु अवसरानुकूल चारों अलग-अलग भावभूमि पर प्रयुक्त हो सकते हैं। जहाँ इनके अर्थो में किंचित अंतर पहचाना जा सकता है।
- आश्चर्य
आप उम्मीद न करते हों, अप्रत्याशित रूप से कुछ घटित हो तो जो प्रतिक्रिया होती है वह है-आश्चर्य। जैसे- घर में कई दिनों से ठहरे मित्र के बगैर कुछ बताए चले जाने पर मुझे आश्चर्य हुआ।
- अचंभा
'अचंभा' कुछ आगे की बात है, बल्कि आश्चर्य चरम पर जा पहुँचे तो अचंभा बनने लगता है। जैसे-वर्षो से खोया हुआ आदमी, जिसके मिलने की उम्मीद कतई न हो, वही एक दिन अचानक दिखाई पड़ जाए तो अचंभा ही होगा।
- विस्मय
'विस्मय' में आश्चर्य तो है, पर विशिष्टता यह है कि इसमें प्रसन्नता का तत्व भी समाया हुआ है। मान लीजिए, आप रहते इलाहाबाद में हैं और घुमने गए हैं असम की पहाड़ियों में। यदि वहाँ सहसा आपका कोई पुराना मित्र सामने से आता हुआ दिख जाए तो क्या होगा? स्पष्टत: आपके मन में जो भाव होगा वह विस्मय का होगा।
- कुतूहल
विस्मय की तरह कुतूहल में भी आश्चर्य तो है, पर इसमें जिज्ञासा का भाव विशेष है। आश्चर्य पैदा करने वाली किसी बात में कोई रहस्य लगे तो जिज्ञासा होती है। जैसे- सर्कस या जादूगरी का खेल देखकर आश्चर्य तो होता है, पर उसके पीछे का रहस्य भी जानने की एक इच्छा मन में पैदा होती है और इस पूरे भाव को ही हम कुतूहल कह सकते हैं।
स्पष्ट है कि इन चारों शब्दों अर्थ-समान होने के साथ-साथ किंचित् अतंर भी है।
इन्हें भी देखें: समरूपी भिन्नार्थक शब्द एवं अंतर्राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख