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*अतः निकुम्भ को सम्मानित करना चाहिए और गोशालाओं, नदियों, मार्गों, शिखरों आदि पर पिशाचों को बलि देनी चाहिए।<ref>निर्णयामृत (55-56, श्लोक 674-681)।</ref> | *अतः निकुम्भ को सम्मानित करना चाहिए और गोशालाओं, नदियों, मार्गों, शिखरों आदि पर पिशाचों को बलि देनी चाहिए।<ref>निर्णयामृत (55-56, श्लोक 674-681)।</ref> | ||
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09:54, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- चैत्र कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर यह व्रत आरम्भ होता है।
- शंकर जी की पूजा और रात्रि में उत्सव किया जाता है।
- उस दिन निकुम्भ शंकर की पूजा करता है।
- अतः निकुम्भ को सम्मानित करना चाहिए और गोशालाओं, नदियों, मार्गों, शिखरों आदि पर पिशाचों को बलि देनी चाहिए।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ निर्णयामृत (55-56, श्लोक 674-681)।
अन्य संबंधित लिंक
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