"वसु व्रत": अवतरणों में अंतर
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*इससे धन, अनाज एवं वसुलोक की प्राप्ति होती है। | *इससे धन, अनाज एवं वसुलोक की प्राप्ति होती है। | ||
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*इसमें पर्याप्त सोने के साथ गौ दान करना चाहिए। | *इसमें पर्याप्त सोने के साथ गौ दान करना चाहिए। | ||
*उस दिन केवल दुग्ध सेवन करना चाहिए। | *उस दिन केवल दुग्ध सेवन करना चाहिए। | ||
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*इसमें गौ दान की परमोच्च महत्ता है (इसे उभयतोमुखी कहा गया है)। | *इसमें गौ दान की परमोच्च महत्ता है (इसे उभयतोमुखी कहा गया है)। | ||
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12:53, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- इस व्रत में आठ वसुओं की, जो वास्तव में, वासुदेव के ही रूप हैं, की पूजा करनी चाहिए।
- यह चैत्र शुक्ल पक्ष की अष्टमी पर उपवास रखके करना चाहिए।
- एक वृत्त में खिंचे चित्र या प्रतिमाएँ की पूजा, अन्त में गौ दान करना चाहिए।
- इससे धन, अनाज एवं वसुलोक की प्राप्ति होती है।
- आठ वसु ये हैं- घर, ध्रुव, सोम, आप, अनिल, अनल, प्रत्युष एवं प्रभास।[1]
- इसमें पर्याप्त सोने के साथ गौ दान करना चाहिए।
- उस दिन केवल दुग्ध सेवन करना चाहिए।
- कर्ता सर्वोत्तम लक्ष्य की उपलब्धि करता है और पुन: जन्म नहीं लेता है।[2]
- इसमें गौ दान की परमोच्च महत्ता है (इसे उभयतोमुखी कहा गया है)।
- महाग्रन्थ का मूल।[3]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अनुशासनपर्व (150|16-14), मत्स्य पुराण (5|21), ब्रह्माण्ड पुराण (3|3|21)। हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 848-849, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 885, पद्मपुराण से उद्धरण)।
- ↑ जिल्द 2, पृष्ठ 879)।
संबंधित लेख
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