"शिवचतुर्दशी व्रत": अवतरणों में अंतर

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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।
*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।
*[[मार्गशीर्ष]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[त्रियोदशी]] (अमान्त गणना के अनुसार) पर एकभक्त शिवचतुर्दशीव्रत किया जाता है।
*[[मार्गशीर्ष]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[त्रियोदशी]] (अमान्त गणना के अनुसार) पर एकभक्त शिवचतुर्दशीव्रत किया जाता है।
*[[शिव]] प्रार्थना; चतुर्दशी को उपवास; श्वेत [[कमल|कमलों]], [[गंध]] आदि से पाद से लेकर सिर तक [[शंकर]] एवं [[उमा]] की पूजा करनी चाहिए।
*[[शिव]] प्रार्थना; चतुर्दशी को उपवास; श्वेत [[कमल|कमलों]], [[गंध]] आदि से पाद से लेकर सिर तक [[शंकर]] एवं [[उमा]] की पूजा करनी चाहिए।
*यही [[कार्तिक]] की [[चर्तुदशी]] तथा अन्य चतुर्दशियों पर किया जाना चाहिए।
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*[[मार्गशीर्ष]] से लेकर आगे के सभी 12 मासों में विभिन्न नामों से शंकर को प्रणाम करना चाहिए।
*[[मार्गशीर्ष]] से लेकर आगे के सभी 12 मासों में विभिन्न नामों से शंकर को प्रणाम करना चाहिए।
*प्रत्येक मास में 12 [[पदार्थ|पदार्थों]] में से (जैसे–[[गोमूत्र]], [[गोबर]], [[दूध]], [[दही]] आदि) किसी एक का पान करना चाहिए।
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*विभिन्न [[पुष्प|पुष्पों]] का प्रयोग, यथा–मन्दार, मालती आदि का प्रयोग करना चाहिए।
*एक या 12 वर्षों तक कार्तिक में; वर्ष के अन्त में एक नील वृष का उत्सर्ग करना चाहिए।
*एक या 12 वर्षों तक कार्तिक में; वर्ष के अन्त में एक नील वृष का उत्सर्ग करना चाहिए।
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14:41, 23 जुलाई 2014 के समय का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की त्रियोदशी (अमान्त गणना के अनुसार) पर एकभक्त शिवचतुर्दशीव्रत किया जाता है।
  • शिव प्रार्थना; चतुर्दशी को उपवास; श्वेत कमलों, गंध आदि से पाद से लेकर सिर तक शंकर एवं उमा की पूजा करनी चाहिए।
  • यही कार्तिक की चतुर्दशी तथा अन्य चतुर्दशियों पर किया जाना चाहिए।
  • मार्गशीर्ष से लेकर आगे के सभी 12 मासों में विभिन्न नामों से शंकर को प्रणाम करना चाहिए।
  • प्रत्येक मास में 12 पदार्थों में से (जैसे– गोमूत्र, गोबर, दूध, दही आदि) किसी एक का पान करना चाहिए।
  • विभिन्न पुष्पों का प्रयोग, यथा–मन्दार, मालती आदि का प्रयोग करना चाहिए।
  • एक या 12 वर्षों तक कार्तिक में; वर्ष के अन्त में एक नील वृष का उत्सर्ग करना चाहिए।
  • किसी विद्वान एवं सुचरित्रवान ब्राह्मण को घट के साथ में पलंग का दान करना चाहिए।
  • एक सहस्र अश्वमेधों का फल, महापातक भी कट जाते हैं।[1]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मत्स्य पुराण (95|5-38); कृत्यकल्पतरु (व्रत0 370-387); हेमाद्रि (व्रत खण्ड 2, 58-61); कृत्यरत्नाकर (466-471); निर्णयसिन्धु (226

संबंधित लेख

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