"मत्स्य द्वादशी": अवतरणों में अंतर
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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में | *[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक [[व्रत]] संस्कार है। | ||
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*[[एकादशी]] पर [[उपवास]]; [[द्वादशी]] को मन्त्र के साथ मिट्टी लाना और उसे [[आदित्य]] को अर्पित करना, शरीर पर लगाना एवं स्नान करना। | *[[एकादशी]] पर [[उपवास]]; [[द्वादशी]] को मन्त्र के साथ मिट्टी लाना और उसे [[आदित्य]] को अर्पित करना, शरीर पर लगाना एवं स्नान करना। | ||
*तिथिव्रत; नारायण पूजा; चार घटों को पुष्पों के साथ जल से भरना, उन्हें तिल की खली से ढँकना तथा उन्हें चार समुद्र के रूप में जानना। | *तिथिव्रत; नारायण पूजा; चार घटों को पुष्पों के साथ जल से भरना, उन्हें तिल की खली से ढँकना तथा उन्हें चार समुद्र के रूप में जानना। | ||
*[[विष्णु]] की मछली के रूप में स्वर्ण प्रतिमा का निर्माण तथा पूजा; जागर; चारों घटों का दानकरना चाहिए। | *[[विष्णु]] की मछली के रूप में स्वर्ण प्रतिमा का निर्माण तथा पूजा; जागर; चारों घटों का दानकरना चाहिए। | ||
*इस व्रत को करने से महापातक भी नष्ट हो जाते | *इस व्रत को करने से महापातक भी नष्ट हो जाते हैं।<ref>कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 311-317</ref>; <ref>हेमाद्रि (व्रत0 1, 1022-26, [[वराह पुराण]] 39|26-77</ref>; <ref>कृत्यरत्नाकर (462-466, [[ब्रह्म पुराण]] से वे ही श्लोक उद्धृत हैं</ref> | ||
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12:54, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी पर नियमों का पालन करके यह व्रत किया जाता है।
- एकादशी पर उपवास; द्वादशी को मन्त्र के साथ मिट्टी लाना और उसे आदित्य को अर्पित करना, शरीर पर लगाना एवं स्नान करना।
- तिथिव्रत; नारायण पूजा; चार घटों को पुष्पों के साथ जल से भरना, उन्हें तिल की खली से ढँकना तथा उन्हें चार समुद्र के रूप में जानना।
- विष्णु की मछली के रूप में स्वर्ण प्रतिमा का निर्माण तथा पूजा; जागर; चारों घटों का दानकरना चाहिए।
- इस व्रत को करने से महापातक भी नष्ट हो जाते हैं।[1]; [2]; [3]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 311-317
- ↑ हेमाद्रि (व्रत0 1, 1022-26, वराह पुराण 39|26-77
- ↑ कृत्यरत्नाकर (462-466, ब्रह्म पुराण से वे ही श्लोक उद्धृत हैं
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