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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में | *[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है। | ||
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*इस व्रत को रोगों, दुर्भाग्यों, क्लेशों एवं शिशु मृत्युओं को रोकने के लिए किया जाता है। | *इस व्रत को रोगों, दुर्भाग्यों, क्लेशों एवं शिशु मृत्युओं को रोकने के लिए किया जाता है। | ||
*नष्टसन्तान वाली नारी से उत्पन्न शिशु के सातवें [[मास]] में या [[शुक्ल पक्ष]] की [[सप्तमी]] पर किया जाता है, किन्तु जन्मतिथि पर नहीं किया जाता है। | *नष्टसन्तान वाली नारी से उत्पन्न शिशु के सातवें [[मास]] में या [[शुक्ल पक्ष]] की [[सप्तमी]] पर किया जाता है, किन्तु जन्मतिथि पर नहीं किया जाता है। | ||
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*अर्क एवं पलाश की समिधाएँ, जौ, काले तिल एवं घृत की 108 आहुतियाँ, चार दिशाओं में चार कलश, मध्य में पाँचवाँ कलश, सभी कलशों में रत्न, सर्वौषधियाँ, कई स्थानों की मिट्टी डाली जाती है, सात विवाहित स्त्रियाँ नष्ट सन्तान नारी के ऊपर जल का मार्जन करती हैं तथा सूर्य, [[चंद्र देवता|चन्द्र]] एवं देवों का आहावान बच्चे की सुरक्षा के लिए करती हैं। | *अर्क एवं पलाश की समिधाएँ, जौ, काले तिल एवं घृत की 108 आहुतियाँ, चार दिशाओं में चार कलश, मध्य में पाँचवाँ कलश, सभी कलशों में रत्न, सर्वौषधियाँ, कई स्थानों की मिट्टी डाली जाती है, सात विवाहित स्त्रियाँ नष्ट सन्तान नारी के ऊपर जल का मार्जन करती हैं तथा सूर्य, [[चंद्र देवता|चन्द्र]] एवं देवों का आहावान बच्चे की सुरक्षा के लिए करती हैं। | ||
*आचार्य को यम की स्वर्णिम प्रतिमा दान में दी जाती है। सूर्य एवं कपिला गाय की पूजा की जाती है। | *आचार्य को यम की स्वर्णिम प्रतिमा दान में दी जाती है। सूर्य एवं कपिला गाय की पूजा की जाती है। | ||
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12:45, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- मत्स्यपुराण[1] में विशद वर्णन किया है। [2]
- इस व्रत को रोगों, दुर्भाग्यों, क्लेशों एवं शिशु मृत्युओं को रोकने के लिए किया जाता है।
- नष्टसन्तान वाली नारी से उत्पन्न शिशु के सातवें मास में या शुक्ल पक्ष की सप्तमी पर किया जाता है, किन्तु जन्मतिथि पर नहीं किया जाता है।
- चावल एवं दूध की आहुतियाँ सूर्य, रुद्र एवं माताओं को दी जाती है, सूर्य के लिए[3] की ऋचाएँ तथा रुद्र के लिए[4] की ऋचाएँ सुनी जाती हैं।
- अर्क एवं पलाश की समिधाएँ, जौ, काले तिल एवं घृत की 108 आहुतियाँ, चार दिशाओं में चार कलश, मध्य में पाँचवाँ कलश, सभी कलशों में रत्न, सर्वौषधियाँ, कई स्थानों की मिट्टी डाली जाती है, सात विवाहित स्त्रियाँ नष्ट सन्तान नारी के ऊपर जल का मार्जन करती हैं तथा सूर्य, चन्द्र एवं देवों का आहावान बच्चे की सुरक्षा के लिए करती हैं।
- आचार्य को यम की स्वर्णिम प्रतिमा दान में दी जाती है। सूर्य एवं कपिला गाय की पूजा की जाती है।
- कर्ता देवों को अर्पित किये गये भोजन को प्रसाद रूप में ग्रहण करता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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