"सर्पविषापह पंचमी": अवतरणों में अंतर
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*ऐसी मान्यता है कि सर्पविषापह पंचमी से सर्प प्रसन्न हो जाते हैं व सात पीढ़ियों तक सर्पों का भय नहीं रहता।<ref>हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 564-565, [[स्कन्द पुराण]] के प्रभास खण्ड से उद्धरण); कृत्यकल्पतरु (94, [[भविष्य पुराण]] 1|32|32-64 से उद्धरण); हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 564 | *ऐसी मान्यता है कि सर्पविषापह पंचमी से सर्प प्रसन्न हो जाते हैं व सात पीढ़ियों तक सर्पों का भय नहीं रहता।<ref>हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 564-565, [[स्कन्द पुराण]] के प्रभास खण्ड से उद्धरण); कृत्यकल्पतरु (94, [[भविष्य पुराण]] 1|32|32-64 से उद्धरण); हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 564 | ||
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12:56, 14 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- श्रावण कृष्ण पक्ष की पंचमी पर सर्पविषापह पंचमी व्रत किया जाता है।
- द्वार के दोनों ओर गोबर से सर्पों की आकृति बनाना चाहिए।
- गेहूँ, दूध, भुने अन्नों, दही, दूर्वा शाखाओं, पुष्पों आदि से उनकी पूजा करनी चाहिए।
- ऐसी मान्यता है कि सर्पविषापह पंचमी से सर्प प्रसन्न हो जाते हैं व सात पीढ़ियों तक सर्पों का भय नहीं रहता।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 564-565, स्कन्द पुराण के प्रभास खण्ड से उद्धरण); कृत्यकल्पतरु (94, भविष्य पुराण 1|32|32-64 से उद्धरण); हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1, 564
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