"बिलिगिरी रंगास्वामी मंदिर": अवतरणों में अंतर
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*पहाड़ की चोटी पर बने इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 150 सीढ़ियों की चढ़ाई करनी पड़ती है। | *पहाड़ की चोटी पर बने इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 150 सीढ़ियों की चढ़ाई करनी पड़ती है। | ||
*प्रतिवर्ष [[अप्रॅल]] के महीने में होने वाली रथयात्रा में यहां के स्थानीय निवासियों की खासी भीड़ होती है। साल के बाकी दिन यहां अधिक चहल-पहल देखने को नहीं मिलती। | *प्रतिवर्ष [[अप्रॅल]] के महीने में होने वाली रथयात्रा में यहां के स्थानीय निवासियों की खासी भीड़ होती है। साल के बाकी दिन यहां अधिक चहल-पहल देखने को नहीं मिलती। | ||
*दो वर्ष में एक बार यहां रहने वाली जनजातियों के लोग भगवान को चमड़े से बनी विशाल | *दो वर्ष में एक बार यहां रहने वाली जनजातियों के लोग भगवान को चमड़े से बनी विशाल [[खड़ाऊँ]] भी भेंट करते हैं। | ||
*यह [[दक्षिण भारत]] के भगवान रँगनाथा, जिन्हें भगवान वेंकटेश भी कहते हैं, का प्रसिद्ध मंदिर स्थल है। | *यह [[दक्षिण भारत]] के भगवान रँगनाथा, जिन्हें भगवान वेंकटेश भी कहते हैं, का प्रसिद्ध मंदिर स्थल है। | ||
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12:05, 2 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण
बिलिगिरी रंगास्वामी मंदिर भगवान वेंकटेश को समर्पित है। पूरे भारत में भगवान रंगनाथ को समर्पित मंदिरों में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां आराध्य की मूर्ति खड़ी अवस्था में है। मुख्य देवता की मूर्ति के अलावा, मंदिर में देवता की अर्धांगिनी, रंगनायकी की भी मूर्ति है। प्रत्येक शुक्रवार को यहां एक खास पूजा का आयोजन किया जाता है।
- कई शताब्दी पूर्व बना यह मंदिर भगवान रंगास्वामी (वेंकटेश) को समर्पित है।
- पहाड़ की चोटी पर बने इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 150 सीढ़ियों की चढ़ाई करनी पड़ती है।
- प्रतिवर्ष अप्रॅल के महीने में होने वाली रथयात्रा में यहां के स्थानीय निवासियों की खासी भीड़ होती है। साल के बाकी दिन यहां अधिक चहल-पहल देखने को नहीं मिलती।
- दो वर्ष में एक बार यहां रहने वाली जनजातियों के लोग भगवान को चमड़े से बनी विशाल खड़ाऊँ भी भेंट करते हैं।
- यह दक्षिण भारत के भगवान रँगनाथा, जिन्हें भगवान वेंकटेश भी कहते हैं, का प्रसिद्ध मंदिर स्थल है।
- वैशाख के समय इस तीर्थ स्थल पर होने वाला रथ उत्सव भारत के सभी भागों से हजारों की संख्या में भक्तों को यहां आने के लिए मजबूर करता है।
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