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'''दुर्गाबाई व्याम''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Durgabai Vyom'', जन्म- [[1974]]) भारतीय आदिवासी महिला कलाकारों में से एक हैं जो [[भोपाल]] में जनजातीय कला की गोंड शैली में काम करती हैं। उनका अधिकांश काम उनके जन्मस्थान, [[मध्य प्रदेश]] के मंडला जिले के एक गांव बरबसपुर में निहित है। दुर्गाबाई व्याम को उनके कला कौशल के लिए [[भारत सरकार]] द्वारा [[पद्म श्री]], [[2022]] से सम्मानित किया गया है। दुर्गाबाई का यह सफर बहुत कठिन रहा है। अपना जीवन यापन करने के लिए उन्हें कई काम करने पड़े और कला की बारीकियां सीखने के लिए लोगों के घरों में झाड़ू-पोंछा तक किया।<ref name="pp">{{cite web |url= https://hindi.asianetnews.com/madhya-pradesh/madhya-pradesh-dindori-durgabai-gets-padma-shree-award-for-her-art-work-stb-r6aqdx|title=गरीबी में बीता बचपन लेकिन नहीं लड़खड़ाए पांव, कभी स्कूल भी न जाने वाली दुर्गाबाई को मिला Padma Shri पुरस्कार|accessmonthday=12 फरवरी|accessyear=2022 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=hindi.asianetnews.com |language=हिंदी}}</ref>
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==परिचय==
==परिचय==
दुर्गाबाई व्याम का जन्म साल 1974 में डिंडोरी जिले के ग्राम बुरबासपुर के एक गरीब [[परिवार]] में हुआ। उनके [[पिता]] का नाम चमरू सिंह परस्ते था। दुर्गाबाई दो भाइयों और तीन बहनों में एक थीं। घर की माली हालात ठीक नहीं थी तो स्कूल जाने का मौका भी नहीं मिला। लेकिन इसे दुर्गाबाई ने कभी अपनी मजबूरी नहीं बनने दी। आगे बढ़ने के लिए उन्होंने चित्रकारी को अपना पैशन बनाया। आदिवासी भोंडी भित्ति चित्र के जरिए उन्होंने अपनी अलग ही पहचान बनाई। इसी कला ने उन्हें [[पद्म श्री]] तक पहुंचा दिया।
दुर्गाबाई व्याम का जन्म साल 1974 में डिंडोरी जिले के ग्राम बुरबासपुर के एक गरीब [[परिवार]] में हुआ। उनके [[पिता]] का नाम चमरू सिंह परस्ते था। दुर्गाबाई दो भाइयों और तीन बहनों में एक थीं। घर की माली हालात ठीक नहीं थी तो स्कूल जाने का मौका भी नहीं मिला। लेकिन इसे दुर्गाबाई ने कभी अपनी मजबूरी नहीं बनने दी। आगे बढ़ने के लिए उन्होंने चित्रकारी को अपना पैशन बनाया। आदिवासी भोंडी भित्ति चित्र के जरिए उन्होंने अपनी अलग ही पहचान बनाई। इसी कला ने उन्हें [[पद्म श्री]] तक पहुंचा दिया।

12:02, 12 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण

दुर्गाबाई व्याम
दुर्गाबाई व्याम
दुर्गाबाई व्याम
पूरा नाम दुर्गाबाई व्याम
जन्म 1974
जन्म भूमि ग्राम बुरबासपुर, ज़िला डिंडोरी, मध्य प्रदेश
पति/पत्नी सुभाष सिंह व्याम
संतान पुत्र- 1, पुत्री- 2
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र जनजातीय चित्रकला
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री, 2022

रानी दुर्गावती राष्ट्रीय सम्मान
विक्रम अवॉर्ड

प्रसिद्धि गोंड शैली की जनजातीय चित्रकला
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी दुर्गाबाई व्याम की चित्रकारी की सर्वाधिक आकर्षक विशेषता कथा कहने की उनकी क्षमता है। उनके चित्र अधिकांशत: गोंड प्रधान समुदाय के देवकुल से लिए गए हैं।
अद्यतन‎

दुर्गाबाई व्याम (अंग्रेज़ी: Durgabai Vyam, जन्म- 1974) भारतीय आदिवासी महिला कलाकारों में से एक हैं जो भोपाल में जनजातीय कला की गोंड शैली में काम करती हैं। उनका अधिकांश काम उनके जन्मस्थान, मध्य प्रदेश के मंडला जिले के एक गांव बरबसपुर में निहित है। दुर्गाबाई व्याम को उनके कला कौशल के लिए भारत सरकार द्वारा पद्म श्री, 2022 से सम्मानित किया गया है। दुर्गाबाई का यह सफर बहुत कठिन रहा है। अपना जीवन यापन करने के लिए उन्हें कई काम करने पड़े और कला की बारीकियां सीखने के लिए लोगों के घरों में झाड़ू-पोंछा तक किया।[1]

परिचय

दुर्गाबाई व्याम का जन्म साल 1974 में डिंडोरी जिले के ग्राम बुरबासपुर के एक गरीब परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम चमरू सिंह परस्ते था। दुर्गाबाई दो भाइयों और तीन बहनों में एक थीं। घर की माली हालात ठीक नहीं थी तो स्कूल जाने का मौका भी नहीं मिला। लेकिन इसे दुर्गाबाई ने कभी अपनी मजबूरी नहीं बनने दी। आगे बढ़ने के लिए उन्होंने चित्रकारी को अपना पैशन बनाया। आदिवासी भोंडी भित्ति चित्र के जरिए उन्होंने अपनी अलग ही पहचान बनाई। इसी कला ने उन्हें पद्म श्री तक पहुंचा दिया।

बचपन से चित्रकारी

दुर्गाबाई व्याम द्वारा 6 साल की उम्र में ही चित्रकारी शुरू कर दी गई थी। साल 1996 में वे भोपाल आ गईं। यहीं से उनके सपनो को पंख लगा। वह भीमराव अंबेडकर के जीवन पर किताब भी लिख चुकी हैं, जो 11 भाषाओं में पब्लिश भी हुई है। उनका ससुराल डिंडोरी जिले के ग्राम संतूरी में है। उनके पति सुभाष सिंह भी उनके साथ जनजाति संग्रहालय भोपाल की तरफ से नर्मदा नदी को लेकर चलाए जा रहे कार्यक्रम उनकी मदद करते हैं। उन्हें संग्रहालय की तरफ से काफी मदद भी मिलती है। दुर्गाबाई नर्मदा को लेकर चित्रकारी के जरिए काम को बढ़ाने में लगी हैं।[1]

चित्रकारी से कहानी

दुर्गाबाई व्याम की चित्रकारी की सर्वाधिक आकर्षक विशेषता कथा कहने की उनकी क्षमता है। उनके चित्र अधिकांशत: गोंड प्रधान समुदाय के देवकुल से लिए गए हैं। दुर्गाबाई की लोक कथाओं में काफी रुचि है और इसके लिए वह अपनी दादी का आभार जताती हैं। दुर्गाबाई जब छह साल की थीं तभी से उन्‍होंने अपनी माता के बगल में बैठकर डिगना की कला सीखी जो शादी-विवाहों और उत्‍सवों के मौकों पर घरों की दीवारों और फर्शों पर चित्रित किए जाने वाली परंपरागत डिजाइन है।

पुरस्कार व सम्मान

दुर्गाबाई व्याम की कला के चर्चे हर तरफ होते हैं। उन्हें 'रानी दुर्गावती राष्ट्रीय सम्मान' से भी नवाजा गया है। उन्हें यह पुरस्कार जबलपुर में मिल चुका है। मुंबई में विक्रम अवॉर्ड, दिल्ली में बेबी अवॉर्ड और महिला अवॉर्ड भी दुर्गाबाई को मिल चुके हैं। इसके अलावा कई राज्य स्तरीय पुरस्कार भी उनकी कला की शोभा को बढ़ा चुके हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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