"विष्णुदेवकी व्रत": अवतरणों में अंतर
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*पंचगव्य से स्नान एवं उसका पान, बाण पुष्पों, चन्दन लेप एवं मधुर एवं पर्याप्त नैवेद्य से वासुदेव की पूजा करनी चाहिए। | *पंचगव्य से स्नान एवं उसका पान, बाण पुष्पों, चन्दन लेप एवं मधुर एवं पर्याप्त नैवेद्य से वासुदेव की पूजा करनी चाहिए। | ||
*एक [[मास]] तक हिंसा, असत्य, चौर्य, मांस एवं मधु का त्याग करना चाहिए। | *एक [[मास]] तक हिंसा, असत्य, चौर्य, मांस एवं मधु का त्याग करना चाहिए। | ||
*[[विष्णु]] का अटल ध्यान, शास्त्र, यज्ञ या देवताओं की भर्त्सना न करना, मौन रूप से प्रतिदिन नैवेद्य ग्रहण करना चाहिए। | *[[विष्णु]] का अटल ध्यान, शास्त्र, यज्ञ या देवताओं की भर्त्सना न करना, मौन रूप से प्रतिदिन नैवेद्य ग्रहण करना चाहिए। | ||
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*यह द्रष्टव्य है कि यह व्रत [[कृष्ण]] की माता [[देवकी]] को बताया गया था, जिसने उत्तम पुत्र की कामना की थी। | |||
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09:58, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- यह व्रत कार्तिक की प्रतिपदा से प्रारम्भ करके एक वर्ष तक करना चाहिए।
- पंचगव्य से स्नान एवं उसका पान, बाण पुष्पों, चन्दन लेप एवं मधुर एवं पर्याप्त नैवेद्य से वासुदेव की पूजा करनी चाहिए।
- एक मास तक हिंसा, असत्य, चौर्य, मांस एवं मधु का त्याग करना चाहिए।
- विष्णु का अटल ध्यान, शास्त्र, यज्ञ या देवताओं की भर्त्सना न करना, मौन रूप से प्रतिदिन नैवेद्य ग्रहण करना चाहिए।
- मार्गशीर्ष, पौष एवं माघ में भी यही विधि, केवल पुष्पों, धूप एवं नैवेद्य में अन्तर है।[1]
- यह द्रष्टव्य है कि यह व्रत कृष्ण की माता देवकी को बताया गया था, जिसने उत्तम पुत्र की कामना की थी।
- उसे वासुदेव के पूजन के लिए कहा गया। जो स्वयं उसके पुत्र थे।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 636-638, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)।
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