"श्रावस्ती": अवतरणों में अंतर
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{{सूचना बक्सा पर्यटन | |||
|चित्र=Jain-Temple-Sravasti.jpg | |||
|चित्र का नाम=प्राचीन जैन मंदिर के अवशेष, श्रावस्ती | |||
|विवरण=[[भारत]] के [[उत्तर प्रदेश]] राज्य के [[गोंडा ज़िला|गोंडा]]-[[बहराइच ज़िला|बहराइच]] ज़िलों की सीमा पर [[श्रावस्ती ज़िला|श्रावस्ती ज़िले]] में यह [[बौद्ध]] एवं [[जैन]] [[तीर्थ स्थान]] स्थित है। | |||
|राज्य=[[उत्तर प्रदेश]] | |||
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|ज़िला=[[श्रावस्ती ज़िला|श्रावस्ती]] | |||
|निर्माता= | |||
|स्वामित्व= | |||
|प्रबंधक= | |||
|निर्माण काल=प्राचीन काल से ही रामायण, महाभारत, जैन, बौद्ध आदि अनेक उल्लेख | |||
|स्थापना= | |||
|भौगोलिक स्थिति=[http://maps.google.co.in/maps?q=27.517073%C2%B082.050619%C2%B0&hl=en&ie=UTF8&sll=27.504226,82.040203&sspn=0.006538,0.011362&vpsrc=0&t=m&z=17 उत्तर- 27.517073°; पूर्व- 82.050619°] | |||
|मार्ग स्थिति=श्रावस्ती [[बलरामपुर]] से 17 कि.मी., [[लखनऊ]] से 176 कि.मी., [[कानपुर]] से 249 कि.मी., [[इलाहाबाद]] से 262 कि.मी., [[दिल्ली]] से 562 कि.मी. की दूरी पर है। | |||
|प्रसिद्धि=पुरावशेष। ऐतिहासिक एवं पौराणिक स्थल। | |||
|कब जाएँ=[[अक्टूबर]] से [[मार्च]] | |||
|कैसे पहुँचें=हवाई जहाज़, रेल, बस आदि से पहुँचा जा सकता है। | |||
|हवाई अड्डा=लखनऊ हवाई अड्डा | |||
|रेलवे स्टेशन=बलरामपुर रेलवे स्टेशन | |||
|बस अड्डा=मेगा टर्मिनस गोंडा, श्रावस्ती शहर से 50 किलोमीटर की दूरी पर है | |||
|यातायात=टैक्सी और बस | |||
|क्या देखें=[[पुरावशेष]] | |||
|कहाँ ठहरें= | |||
|क्या खायें= | |||
|क्या ख़रीदें= | |||
|एस.टी.डी. कोड= | |||
|ए.टी.एम= | |||
|सावधानी= | |||
|मानचित्र लिंक=[http://maps.google.co.in/maps?q=Shravasti&hl=en&ll=27.599586,82.09259&spn=0.536701,1.352692&client=firefox-a&hq=Shravasti&t=m&z=10&vpsrc=6&iwloc=A गूगल मानचित्र] | |||
|संबंधित लेख=[[जेतवन श्रावस्ती|जेतवन]], [[शोभनाथ मन्दिर श्रावस्ती|शोभनाथ मन्दिर]], [[कौशल महाजनपद]] आदि | |||
|शीर्षक 1=[[भाषा]] | |||
|पाठ 1=[[हिन्दी]], [[अंग्रेज़ी]] और [[उर्दू भाषा|उर्दू]] | |||
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|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी='श्रावस्ती' न केवल [[बौद्ध]] और [[जैन]] धर्मों का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था अपितु यह ब्राह्मण धर्म एवं [[वेद|वेद विद्या]] का भी एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था। | |||
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}} | |||
'''श्रावस्ती''' [[भारत]] के [[उत्तर प्रदेश]] राज्य के [[गोंडा ज़िला|गोंडा]]-[[बहराइच ज़िला|बहराइच]] ज़िलों की सीमा पर स्थित यह [[जैन]] और [[बौद्ध]] का [[तीर्थ|तीर्थ स्थान]] है। गोंडा - [[बलरामपुर]] से 12 मील पश्चिम में आधुनिक 'सहेत-महेत' गाँव ही श्रावस्ती है। पहले यह [[कौशल]] देश की दूसरी राजधानी थी। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि भगवान [[राम]] के पुत्र [[लव कुश]] ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। श्रावस्ती [[बौद्ध]] [[जैन]] दोनों का [[तीर्थ]] स्थान है, [[तथागत]] (बुद्ध) श्रावस्ती में रहे थे, यहाँ के श्रेष्ठी '[[अनाथपिंडक]]' ने भगवान [[गौतम बुद्ध|बुद्ध]] के लिये 'जेतवन विहार' बनवाया था, आजकल यहाँ बौद्ध धर्मशाला, मठ और मन्दिर है। | |||
==परिचय== | |||
{{main|श्रावस्ती का परिचय}} | |||
माना गया है कि श्रावस्ति के स्थान पर आज आधुनिक 'सहेत-महेत' ग्राम है, जो एक-दूसरे से लगभग डेढ़ फर्लांग के अंतर पर स्थित हैं। यह बुद्धकालीन नगर था, जिसके भग्नावशेष उत्तर प्रदेश राज्य के, बहराइच एवं गोंडा ज़िले की सीमा पर, [[राप्ती नदी]] के दक्षिणी किनारे पर फैले हुए हैं। अनुश्रुतियों के अनुसार सूर्यवंशी राजा श्रावस्त के नाम पर इस नगरी का नामकरण कर [[श्रावस्ती]] नाम की संज्ञा दी गयी, तब से ये इलाका श्रावस्ती के नाम से जाना जाता है। जंगलों के बीच गुफ़ा में रहकर राहगीरों को लूटने के बाद उनकी ऊंगली काटकर माला पहनने वाले एक दुर्दांत डाकू [[अंगुलिमाल]] को [[राप्ती नदी]] के किनारे बसे इसी स्थान पर [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] ने अपनी इश्वरीय शक्तियों के बल पर नास्तिक से आस्तिक बनाकर अपना अनुयायी बनाया था। ये वही इलाका है, जहाँ पर गौतम बुद्ध ने अपने जीवन काल के सबसे ज्यादा [[बसंत ऋतु|बसंत]] बिताये थे। | |||
==स्थिति== | |||
{{main|श्रावस्ती का परिचय}} | |||
प्राचीन श्रावस्ती के अवशेष आधुनिक ‘सहेत’-‘महेत’ नामक स्थानों पर प्राप्त हुए हैं।<ref>आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया रिपोर्टस, भाग 1, पृष्ठ 330; एवं भाग 11, पृष्ठ 78 </ref> यह नगर 27°51’ उत्तरी अक्षांश और 82°05’ पूर्वी देशांतर पर स्थिर था।<ref>एम. वेंक्टरम्मैया, श्रावस्ती, आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, दिल्ली 1981, पृष्ठ 1</ref> ‘सहेत’ का समीकरण ‘जेतवन’ से तथा ‘महेत’ का प्राचीन 'श्रावस्ती नगर' से किया गया है। प्राचीन टीला एवं [[भग्नावशेष]] गोंडा एवं बहराइच ज़िलों की सीमा पर बिखरे पड़े हैं, जहाँ बलरामपुर स्टेशन से पहुँचा जा सकता है। बहराइच एवं बलरामपुर से इसकी दूरी क्रमश: 26 एवं 10 मील है।<ref>विमलचरण लाहा, प्राचीन भारत का ऐतिहासिक भूगोल, उत्तर प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी, लखनऊ, 1972, पृष्ठ 210</ref> आजकल ‘सहेत’<ref>जेतवन</ref> का भाग बहराइच ज़िले में और ‘महेत’ गोंडा ज़िले में पड़ता है। बलरामपुर - बहराइच मार्ग पर सड़क से 800 फुट की दूरी पर ‘सहेत’ स्थित है जबकि ‘महेत’ 1/3 मील की दूरी पर स्थित है।<ref>दि मेमायर्स ऑफ द आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, भाग 50, [[दिल्ली]] 1935 में उद्धृत विमलचरण लाहा का लेख ‘श्रावस्ती इन इंडियन लिटरेचर’, पृष्ठ 1</ref> विंसेंट स्मिथ ने सर्वप्रथम श्रावस्ती का समीकरण '''चरदा''' से किया था जो ‘सहेत-महेत’ से 40 मील उत्तर-पश्चिम में स्थित है।<ref>जर्नल ऑफ़ द रॉयल एशियाटिक सोसाइटी, 1900, पृष्ठ 9</ref> लेकिन जेतवन के [[उत्खनन]] से गोविंद चंद गहड़वाल के 1128 ई. के एक [[अभिलेख]] की प्राप्ति से इसका समीकरण ‘सहेत-महेत’ से निश्चित हो गया है।<ref>आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया एनुअल रिपोर्टस 1907-08, पृष्ठ 131-132; विशुद्धनन्द पाठक, हिस्ट्री ऑफ़ कोशल, मोतीलाल बनारसीदास, [[वाराणसी]], 1963 ई., पृष्ठ 63</ref> | |||
==नामकरण== | |||
{{main|श्रावस्ती का नामकरण}} | |||
*सावत्थी, [[संस्कृत]] श्रावस्ती का [[पालि]] और अर्द्धमागधी रूप है।<ref name= "उत्तर प्रदेश">{{cite book | last = सिंह| first =डॉ. अशोक कुमार | title =उत्तर प्रदेश के प्राचीनतम नगर | edition = | publisher = वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली | location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language =[[हिन्दी]] | pages =98-124 | chapter =}}</ref> बौद्ध ग्रन्थों में इस नगर के नाम की उत्पत्ति के विषय में एक अन्य उल्लेख भी मिलता है। इनके अनुसार सवत्थ (श्रावस्त) नामक एक [[ऋषि]] यहाँ पर रहते थे, जिनकी बड़ी ऊँची प्रतिष्ठा थी। इन्हीं के नाम के आधार पर इस नगर का नाम श्रावस्ती पड़ गया था। | |||
[[चित्र:Jetavana-Sravasti.jpg|thumb|250px|left|[[खत्ती]], श्रावस्ती]] | |||
*[[पाणिनि]] (लगभग 500 ई.पूर्व) ने अपने प्रसिद्ध व्याकरण-ग्रन्थ '[[अष्टाध्यायी]]' में साफ़ लिखा है कि- "स्थानों के नाम वहाँ रहने वाले किसी विशेष व्यक्ति के नाम के आधार पर पड़ जाते थे।" | |||
*[[महाभारत]] के अनुसार श्रावस्ती के नाम की उत्पत्ति का कारण कुछ दूसरा ही था। श्रावस्त नामक एक राजा हुये जो कि पृथु की छठीं पीढ़ी में उत्पन्न हुये थे। वही इस नगर के जन्मदाता थे और उन्हीं के नाम के आधार पर इसका नाम श्रावस्ती पड़ गया था। पुराणों में श्रावस्तक नाम के स्थान पर श्रावस्त नाम मिलता है। महाभारत में उल्लिखित यह परम्परा उपर्युक्त अन्य परम्पराओं से कहीं अधिक प्राचीन है। अतएव उसी को प्रामाणिक मानना उचित बात होगी। बाद में चल कर [[कोसल]] की राजधानी, [[अयोध्या]] से हटाकर श्रावस्ती ला दी गई थी और यही नगर कोसल का सबसे प्रमुख नगर बन गया। | |||
*[[ब्राह्मण साहित्य]], [[महाकाव्य|महाकाव्यों]] एवं [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार श्रावस्ती का नामकरण श्रावस्त या श्रावस्तक के नाम के आधार पर हुआ था। श्रावस्तक युवनाश्व का पुत्र था और पृथु की छठी पीढ़ी में उत्पन्न हुआ था। | |||
==विकास== | |||
{{main|श्रावस्ती का विकास}} | |||
हमारे कुछ प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार कोसल का यह प्रधान नगर सर्वदा रमणीक, दर्शनीय, मनोरम और धनधान्य से संपन्न था। इसमें सभी तरह के उपकरण मौजूद थे। इसको देखने से लगता था, मानो देवपुरी अलकनन्दा ही साक्षात धरातल पर उतर आई हो। नगर की सड़कें चौड़ी थीं और इन पर बड़ी सवारियाँ भली भाँति आ सकती थीं। नागरिक श्रृंगार-प्रेमी थे। वे [[हाथी]], घोड़े और पालकी पर सवार होकर राजमार्गों पर निकला करते थे। इसमें राजकीय कोष्ठागार<ref>कोठार</ref> बने हुये थे, जिनमें [[घी]], तेल और खाने-पीने की चीज़ें प्रभूत मात्रा में एकत्र कर ली गई थीं।<ref name="sravasti">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हमारे पुराने नगर |लेखक=डॉ. उदय नारायण राय |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=हिन्दुस्तान एकेडेमी, इलाहाबाद |पृष्ठ संख्या=43-46 |url=}}</ref> वहाँ के नागरिक [[गौतम बुद्ध]] के बहुत बड़े [[भक्त]] थे। '[[मिलिन्दपन्ह|मिलिन्दप्रश्न]]' नामक ग्रन्थ में चढ़ाव-बढ़ाव के साथ कहा गया है कि इसमें [[भिक्कु|भिक्षुओं]] की संख्या 5 करोड़ थी। इसके अलावा वहाँ के तीन लाख सत्तावन हज़ार गृहस्थ [[बौद्ध धर्म]] को मानते थे। इस नगर में '[[जेतवन श्रावस्ती|जेतवन]]' नाम का एक उद्यान था, जिसे वहाँ के 'जेत' नामक राजकुमार ने आरोपित किया था। इस नगर का [[अनाथपिंडक]] नामक सेठ जो [[बुद्ध]] का प्रिय शिष्य था, इस उद्यान के शान्तिमय वातावरण से बड़ा प्रभावित था। उसने इसे ख़रीद कर बौद्ध संघ को दान कर दिया था।<ref name="sravasti"/> [[बौद्ध साहित्य|बौद्ध ग्रन्थों]] में कथा आती है कि इस पूँजीपति ने जेतवन को उतनी मुद्राओं में ख़रीदा था | |||
= | <div align="center">'''[[श्रावस्ती का परिचय|आगे जाएँ »]]'''</div> | ||
==वीथिका== | |||
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चित्र:Anandabodhi-Tree.jpg|आनन्दबोधी, श्रावस्ती | |||
चित्र:Jetavan-Monastery-1.jpg|जेतवन मठ, श्रावस्ती | |||
चित्र:Jetavan-Monastery-4.jpg|जेतवन मठ, श्रावस्ती | |||
चित्र:Jetavan-Monastery-5.jpg|जेतवन मठ, श्रावस्ती | |||
चित्र:Jetavan-Monastery.jpg|जेतवन मठ, श्रावस्ती | |||
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{{लेख प्रगति |आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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[[Category:पर्यटन कोश]] [[Category: | <references/> | ||
*ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार | |||
==बाहरी कड़ियाँ== | |||
*[http://www.bharatonline.com/uttar-pradesh/travel/shravasti/index.html श्रावस्ती] | |||
*[http://www.indianholiday.com/uttar-pradesh/cities-in-uttar-pradesh/tours-to-shravasti/ श्रावस्ती भ्रमण] | |||
*[http://www.jainteerth.com/teerth/Shravasti.asp श्री श्रावस्ती, यू.पी.] | |||
*[http://www.shunya.net/Pictures/NorthIndia/Shravasti/Shravasti.htm Sravasti, Uttar Pradesh, India] | |||
*[http://books.google.com/books?id=dQbgqRKok98C&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false The ancient geography of India, Volume 1 (By Sir Alexander Cunningham)], [http://www.archive.org/stream/cu31924023029485#page/n9/mode/2up ऑन लाइन पढ़िये और सुनिये ] | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान}}{{उत्तर प्रदेश के नगर}}{{उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल}} | |||
[[Category:उत्तर प्रदेश]][[Category:उत्तर प्रदेश के नगर]][[Category:भारत के नगर]][[Category:उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक नगर]][[Category:ऐतिहासिक स्थल]][[Category:बौद्ध धार्मिक स्थल]][[Category:जैन धार्मिक स्थल]][[Category:धार्मिक स्थल कोश]][[Category:जैन धर्म कोश]] | |||
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07:57, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
श्रावस्ती
| |||
विवरण | भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के गोंडा-बहराइच ज़िलों की सीमा पर श्रावस्ती ज़िले में यह बौद्ध एवं जैन तीर्थ स्थान स्थित है। | ||
राज्य | उत्तर प्रदेश | ||
ज़िला | श्रावस्ती | ||
निर्माण काल | प्राचीन काल से ही रामायण, महाभारत, जैन, बौद्ध आदि अनेक उल्लेख | ||
भौगोलिक स्थिति | उत्तर- 27.517073°; पूर्व- 82.050619° | ||
मार्ग स्थिति | श्रावस्ती बलरामपुर से 17 कि.मी., लखनऊ से 176 कि.मी., कानपुर से 249 कि.मी., इलाहाबाद से 262 कि.मी., दिल्ली से 562 कि.मी. की दूरी पर है। | ||
प्रसिद्धि | पुरावशेष। ऐतिहासिक एवं पौराणिक स्थल। | ||
कब जाएँ | अक्टूबर से मार्च | ||
कैसे पहुँचें | हवाई जहाज़, रेल, बस आदि से पहुँचा जा सकता है। | ||
लखनऊ हवाई अड्डा | |||
बलरामपुर रेलवे स्टेशन | |||
मेगा टर्मिनस गोंडा, श्रावस्ती शहर से 50 किलोमीटर की दूरी पर है | |||
टैक्सी और बस | |||
क्या देखें | पुरावशेष | ||
गूगल मानचित्र | |||
संबंधित लेख | जेतवन, शोभनाथ मन्दिर, कौशल महाजनपद आदि | भाषा | हिन्दी, अंग्रेज़ी और उर्दू |
अन्य जानकारी | 'श्रावस्ती' न केवल बौद्ध और जैन धर्मों का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था अपितु यह ब्राह्मण धर्म एवं वेद विद्या का भी एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था। | ||
बाहरी कड़ियाँ | आधिकारिक वेबसाइट |
श्रावस्ती भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के गोंडा-बहराइच ज़िलों की सीमा पर स्थित यह जैन और बौद्ध का तीर्थ स्थान है। गोंडा - बलरामपुर से 12 मील पश्चिम में आधुनिक 'सहेत-महेत' गाँव ही श्रावस्ती है। पहले यह कौशल देश की दूसरी राजधानी थी। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि भगवान राम के पुत्र लव कुश ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। श्रावस्ती बौद्ध जैन दोनों का तीर्थ स्थान है, तथागत (बुद्ध) श्रावस्ती में रहे थे, यहाँ के श्रेष्ठी 'अनाथपिंडक' ने भगवान बुद्ध के लिये 'जेतवन विहार' बनवाया था, आजकल यहाँ बौद्ध धर्मशाला, मठ और मन्दिर है।
परिचय
माना गया है कि श्रावस्ति के स्थान पर आज आधुनिक 'सहेत-महेत' ग्राम है, जो एक-दूसरे से लगभग डेढ़ फर्लांग के अंतर पर स्थित हैं। यह बुद्धकालीन नगर था, जिसके भग्नावशेष उत्तर प्रदेश राज्य के, बहराइच एवं गोंडा ज़िले की सीमा पर, राप्ती नदी के दक्षिणी किनारे पर फैले हुए हैं। अनुश्रुतियों के अनुसार सूर्यवंशी राजा श्रावस्त के नाम पर इस नगरी का नामकरण कर श्रावस्ती नाम की संज्ञा दी गयी, तब से ये इलाका श्रावस्ती के नाम से जाना जाता है। जंगलों के बीच गुफ़ा में रहकर राहगीरों को लूटने के बाद उनकी ऊंगली काटकर माला पहनने वाले एक दुर्दांत डाकू अंगुलिमाल को राप्ती नदी के किनारे बसे इसी स्थान पर भगवान बुद्ध ने अपनी इश्वरीय शक्तियों के बल पर नास्तिक से आस्तिक बनाकर अपना अनुयायी बनाया था। ये वही इलाका है, जहाँ पर गौतम बुद्ध ने अपने जीवन काल के सबसे ज्यादा बसंत बिताये थे।
स्थिति
प्राचीन श्रावस्ती के अवशेष आधुनिक ‘सहेत’-‘महेत’ नामक स्थानों पर प्राप्त हुए हैं।[1] यह नगर 27°51’ उत्तरी अक्षांश और 82°05’ पूर्वी देशांतर पर स्थिर था।[2] ‘सहेत’ का समीकरण ‘जेतवन’ से तथा ‘महेत’ का प्राचीन 'श्रावस्ती नगर' से किया गया है। प्राचीन टीला एवं भग्नावशेष गोंडा एवं बहराइच ज़िलों की सीमा पर बिखरे पड़े हैं, जहाँ बलरामपुर स्टेशन से पहुँचा जा सकता है। बहराइच एवं बलरामपुर से इसकी दूरी क्रमश: 26 एवं 10 मील है।[3] आजकल ‘सहेत’[4] का भाग बहराइच ज़िले में और ‘महेत’ गोंडा ज़िले में पड़ता है। बलरामपुर - बहराइच मार्ग पर सड़क से 800 फुट की दूरी पर ‘सहेत’ स्थित है जबकि ‘महेत’ 1/3 मील की दूरी पर स्थित है।[5] विंसेंट स्मिथ ने सर्वप्रथम श्रावस्ती का समीकरण चरदा से किया था जो ‘सहेत-महेत’ से 40 मील उत्तर-पश्चिम में स्थित है।[6] लेकिन जेतवन के उत्खनन से गोविंद चंद गहड़वाल के 1128 ई. के एक अभिलेख की प्राप्ति से इसका समीकरण ‘सहेत-महेत’ से निश्चित हो गया है।[7]
नामकरण
- सावत्थी, संस्कृत श्रावस्ती का पालि और अर्द्धमागधी रूप है।[8] बौद्ध ग्रन्थों में इस नगर के नाम की उत्पत्ति के विषय में एक अन्य उल्लेख भी मिलता है। इनके अनुसार सवत्थ (श्रावस्त) नामक एक ऋषि यहाँ पर रहते थे, जिनकी बड़ी ऊँची प्रतिष्ठा थी। इन्हीं के नाम के आधार पर इस नगर का नाम श्रावस्ती पड़ गया था।
- पाणिनि (लगभग 500 ई.पूर्व) ने अपने प्रसिद्ध व्याकरण-ग्रन्थ 'अष्टाध्यायी' में साफ़ लिखा है कि- "स्थानों के नाम वहाँ रहने वाले किसी विशेष व्यक्ति के नाम के आधार पर पड़ जाते थे।"
- महाभारत के अनुसार श्रावस्ती के नाम की उत्पत्ति का कारण कुछ दूसरा ही था। श्रावस्त नामक एक राजा हुये जो कि पृथु की छठीं पीढ़ी में उत्पन्न हुये थे। वही इस नगर के जन्मदाता थे और उन्हीं के नाम के आधार पर इसका नाम श्रावस्ती पड़ गया था। पुराणों में श्रावस्तक नाम के स्थान पर श्रावस्त नाम मिलता है। महाभारत में उल्लिखित यह परम्परा उपर्युक्त अन्य परम्पराओं से कहीं अधिक प्राचीन है। अतएव उसी को प्रामाणिक मानना उचित बात होगी। बाद में चल कर कोसल की राजधानी, अयोध्या से हटाकर श्रावस्ती ला दी गई थी और यही नगर कोसल का सबसे प्रमुख नगर बन गया।
- ब्राह्मण साहित्य, महाकाव्यों एवं पुराणों के अनुसार श्रावस्ती का नामकरण श्रावस्त या श्रावस्तक के नाम के आधार पर हुआ था। श्रावस्तक युवनाश्व का पुत्र था और पृथु की छठी पीढ़ी में उत्पन्न हुआ था।
विकास
हमारे कुछ प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार कोसल का यह प्रधान नगर सर्वदा रमणीक, दर्शनीय, मनोरम और धनधान्य से संपन्न था। इसमें सभी तरह के उपकरण मौजूद थे। इसको देखने से लगता था, मानो देवपुरी अलकनन्दा ही साक्षात धरातल पर उतर आई हो। नगर की सड़कें चौड़ी थीं और इन पर बड़ी सवारियाँ भली भाँति आ सकती थीं। नागरिक श्रृंगार-प्रेमी थे। वे हाथी, घोड़े और पालकी पर सवार होकर राजमार्गों पर निकला करते थे। इसमें राजकीय कोष्ठागार[9] बने हुये थे, जिनमें घी, तेल और खाने-पीने की चीज़ें प्रभूत मात्रा में एकत्र कर ली गई थीं।[10] वहाँ के नागरिक गौतम बुद्ध के बहुत बड़े भक्त थे। 'मिलिन्दप्रश्न' नामक ग्रन्थ में चढ़ाव-बढ़ाव के साथ कहा गया है कि इसमें भिक्षुओं की संख्या 5 करोड़ थी। इसके अलावा वहाँ के तीन लाख सत्तावन हज़ार गृहस्थ बौद्ध धर्म को मानते थे। इस नगर में 'जेतवन' नाम का एक उद्यान था, जिसे वहाँ के 'जेत' नामक राजकुमार ने आरोपित किया था। इस नगर का अनाथपिंडक नामक सेठ जो बुद्ध का प्रिय शिष्य था, इस उद्यान के शान्तिमय वातावरण से बड़ा प्रभावित था। उसने इसे ख़रीद कर बौद्ध संघ को दान कर दिया था।[10] बौद्ध ग्रन्थों में कथा आती है कि इस पूँजीपति ने जेतवन को उतनी मुद्राओं में ख़रीदा था
वीथिका
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आनन्दबोधी, श्रावस्ती
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जेतवन मठ, श्रावस्ती
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जेतवन मठ, श्रावस्ती
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जेतवन मठ, श्रावस्ती
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जेतवन मठ, श्रावस्ती
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया रिपोर्टस, भाग 1, पृष्ठ 330; एवं भाग 11, पृष्ठ 78
- ↑ एम. वेंक्टरम्मैया, श्रावस्ती, आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, दिल्ली 1981, पृष्ठ 1
- ↑ विमलचरण लाहा, प्राचीन भारत का ऐतिहासिक भूगोल, उत्तर प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी, लखनऊ, 1972, पृष्ठ 210
- ↑ जेतवन
- ↑ दि मेमायर्स ऑफ द आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, भाग 50, दिल्ली 1935 में उद्धृत विमलचरण लाहा का लेख ‘श्रावस्ती इन इंडियन लिटरेचर’, पृष्ठ 1
- ↑ जर्नल ऑफ़ द रॉयल एशियाटिक सोसाइटी, 1900, पृष्ठ 9
- ↑ आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया एनुअल रिपोर्टस 1907-08, पृष्ठ 131-132; विशुद्धनन्द पाठक, हिस्ट्री ऑफ़ कोशल, मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी, 1963 ई., पृष्ठ 63
- ↑ सिंह, डॉ. अशोक कुमार उत्तर प्रदेश के प्राचीनतम नगर (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, 98-124।
- ↑ कोठार
- ↑ 10.0 10.1 हमारे पुराने नगर |लेखक: डॉ. उदय नारायण राय |प्रकाशक: हिन्दुस्तान एकेडेमी, इलाहाबाद |पृष्ठ संख्या: 43-46 |
- ऐतिहासिक स्थानावली | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
बाहरी कड़ियाँ
- श्रावस्ती
- श्रावस्ती भ्रमण
- श्री श्रावस्ती, यू.पी.
- Sravasti, Uttar Pradesh, India
- The ancient geography of India, Volume 1 (By Sir Alexander Cunningham), ऑन लाइन पढ़िये और सुनिये
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