"महावीर": अवतरणों में अंतर
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{{सूचना बक्सा ऐतिहासिक पात्र | |||
|चित्र=Mahaveer.jpg | |||
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|पूरा नाम=महावीर स्वामी | |||
|अन्य नाम=वर्धमान, आदिनाथ, 'अर्हत', 'जिन', 'निर्ग्रथ', 'अतिवीर' आदि। | |||
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}}'''महावीर''' या '''वर्धमान महावीर''' [[जैन धर्म]] के [[प्रवर्तक]] [[ऋषभनाथ तीर्थंकर|भगवान ऋषभनाथ]]<ref>श्री आदिनाथ</ref> की परम्परा में 24वें जैन [[तीर्थंकर]] थे। वे अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था। उन्हें एक लँगोटी तक का परिग्रह नहीं था। हिंसा, पशुबलि, जाति-पाँति के भेदभाव जिस युग में बढ़ गए थे, उसी युग में महावीर और [[बुद्ध]] पैदा हुए। भगवान महावीर तथा बुद्ध, दोनों ने ही इन कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाई। दोनों ने अहिंसा का भरपूर विकास किया। | |||
==जीवन परिचय== | |||
महावीर स्वामी का जीवन काल 599 ई. ईसा पूर्व से 527 ई. ईसा पूर्व तक माना जाता है। उनका जन्म [[वैशाली]] गणतंत्र के कुण्डलपुर में [[इक्ष्वाकु वंश]] के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था। बचपन में महावीर का नाम 'वर्धमान' था, लेकिन बाल्यकाल से ही यह साहसी, तेजस्वी, ज्ञान पिपासु और अत्यंत बलशाली होने के कारण 'महावीर' कहलाए। भगवान महावीर ने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया था, जिस कारण इन्हें 'जीतेंद्र' भी कहा जाता है। | |||
====विवाह==== | |||
[[कलिंग]] नरेश की कन्या 'यशोदा' से महावीर का [[विवाह]] हुआ। किंतु 30 [[वर्ष]] की उम्र में अपने ज्येष्ठबंधु की आज्ञा लेकर इन्होंने घर-बार छोड़ दिया और तपस्या करके '[[कैवल्य ज्ञान]]' प्राप्त किया। महावीर ने [[पार्श्वनाथ तीर्थंकर|पार्श्वनाथ]] के आरंभ किए तत्वज्ञान को परिमार्जित करके उसे [[जैन दर्शन]] का स्थायी आधार प्रदान किया। महावीर ऐसे धार्मिक नेता थे, जिन्होंने राज्य का या किसी बाहरी शक्ति का सहारा लिए बिना, केवल अपनी श्रद्धा के बल पर जैन धर्म की पुन: प्रतिष्ठा की। [[आधुनिक काल]] में जैन धर्म की व्यापकता और उसके [[जैन दर्शन|दर्शन]] का पूरा श्रेय महावीर को दिया जाता है। | |||
==दीक्षा प्राप्ति== | |||
महावीर स्वामी के शरीर का वर्ण सुवर्ण और चिह्न सिंह था। इनके [[यक्ष]] का नाम 'ब्रह्मशांति' और यक्षिणी का नाम 'सिद्धायिका देवी' था। जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार भगवान महावीर के गणधरों की कुल संख्या 11 थी, जिनमें गौतम स्वामी इनके प्रथम गणधर थे। महावीर ने [[मार्गशीर्ष मास|मार्गशीर्ष]] [[दशमी]] को कुंडलपुर में दीक्षा की प्राप्ति की और दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 2 दिन बाद [[खीर]] से इन्होंने प्रथम पारणा किया। दीक्षा प्राप्ति के बाद 12 [[वर्ष]] और 6.5 [[महीने]] तक कठोर तप करने के बाद [[वैशाख मास|वैशाख]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[दशमी]] को ऋजुबालुका नदी के किनारे '[[साल वृक्ष]]' के नीचे भगवान महावीर को '[[कैवल्य ज्ञान]]' की प्राप्ति हुई थी।<ref>{{cite web |url=http://dharm.raftaar.in/Religion/Jainism/Tirthankar/Parshvnath|title=श्री पार्श्वनाथ जी|accessmonthday=04 मार्च|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | |||
====कुण्डलपुर महोत्सव==== | |||
[[दिगम्बर सम्प्रदाय|दिगम्बर जैन]] [[आगम]] ग्रंथों के अनुसार भगवान महावीर [[बिहार|बिहार प्रांत]] के कुंडलपुर नगर में आज (सन 2013) से 2612 वर्ष पूर्व महाराजा सिद्धार्थ की महारानी त्रिशला के गर्भ से [[चैत्र]] [[कृष्ण]] तेरस को जन्मे थे। वह कुंडलपुर वर्तमान में [[नालंदा ज़िला|नालंदा ज़िले]] में अवस्थित है। वहाँ सन [[2002]] में जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी अपने संघ के साथ पदविहार करके गईं और उनकी पावन प्रेरणा से कुंडलपुर में 2600 वर्ष प्राचीन नंद्यावर्त महल की प्रतिकृति का (7 मंज़िल ऊँचा) निर्माण हुआ, जिसे बिहार सरकार का पर्यटन विभाग पर्यटकों के लिए ख़ूब प्रचारित कर रहा है। अतः वहाँ प्रतिदिन पर्यटकों एवं तीर्थयात्रियों का ताँता लगा रहता है। कुंडलपुर में प्रतिवर्ष चैत्र [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[त्रयोदशी]] के दिन बिहार सरकार एवं कुंडलपुर दिगंबर जैन समिति के द्वारा कुण्डलपुर महोत्सव आयोजित किया जाता है। | |||
{{seealso|कैवल्य ज्ञान}} | |||
==अन्य नाम== | |||
[[चित्र:Mahavir-Bhagwan-Delhi-1.jpg|thumb|महावीर, [[दिल्ली]]]] | |||
महावीर स्वामी के अनेक नाम हैं- 'अर्हत', 'जिन', 'निर्ग्रथ', 'महावीर', 'अतिवीर' आदि। इनके 'जिन' नाम से ही आगे चलकर इस [[धर्म]] का नाम '[[जैन धर्म]]' पड़ा। जैन धर्म में [[अहिंसा व्रत|अहिंसा]] तथा कर्मों की पवित्रता पर विशेष बल दिया जाता है। उनका तीसरा मुख्य सिद्धांत '[[अनेकांतवाद]]' है, जिसके अनुसार दूसरों के दृष्टिकोण को भी ठीक-ठाक समझ कर ही पूर्ण सत्य के निकट पहुँचा जा सकता है। भगवान महावीर अहिंसा और अपरिग्रह की साक्षात मूर्ति थे। वे सभी के साथ सामान भाव रखते थे और किसी को कोई भी दुःख देना नहीं चाहते थे। अपनी श्रद्धा से जैन धर्म को पुनः प्रतिष्ठापित करने के बाद [[कार्तिक मास]] की [[अमावस्या]] को [[दीपावली]] के दिन [[पावापुरी]] में भगवान महावीर ने [[निर्वाण]] को प्राप्त किया। | |||
==वर्धमान== | |||
{{मुख्य|वर्धमान}} | |||
<poem>वीरःसर्व सुरासुरेंद्र महितो , वीरं बुधाः संश्रिताः । | |||
वीरेणैव हतः स्वकर्मनिचयो , वीराय भक्त्या नम ।। | |||
वीरात्तीर्थमिदं प्रवृत्तमतुलं , वीरस्य वीरं तपो । | |||
वीरे श्री द्युतिकांतिकीर्तिधृतयो , हे वीर ! भद्रं त्वयि ।।1।।</poem> | |||
[[भारत]] के वृज्जि गणराज्य की वैशाली नगरी के निकट [[कुण्डग्राम]] में राजा सिद्धार्थ अपनी पत्नी प्रियकारिणी के साथ निवास करते थे। [[इन्द्र]] ने यह जानकर कि प्रियकारिणी के गर्भ से तीर्थंकर पुत्र का जन्म होने वाला है, उन्होंने प्रियकारिणी की सेवा के लिए षटकुमारिका देवियों को भेजा। प्रियकारिणी ने [[ऐरावत|ऐरावत हाथी]] के स्वप्न देखे, जिससे राजा सिद्धार्थ ने भी यही अनुमान लगाया कि तीर्थंकर का जन्म होगा। [[आषाढ़]], [[शुक्ल पक्ष]] की [[षष्ठी]] के अवसर पर पुरुषोत्तर विमान से आकर प्राणतेन्द्र ने प्रियकारिणी के गर्भ में प्रवेश किया। [[चैत्र]], [[शुक्ल पक्ष]] की [[त्रयोदशी]] को [[सोमवार]] के दिन वर्धमान का जन्म हुआ। देवताओं को इसका पूर्वाभास था। अत: सबने विभिन्न प्रकार के उत्सव मनाये तथा बालक को विभिन्न नामों से विभूषित किया। इस बालक का नाम सौधर्मेन्द्र ने 'वर्धमान' रखा तो ऋद्धिधारी मुनियों ने 'सन्मति' रखा। संगमदेव ने उसके अपरिमित साहस की परीक्षा लेकर उसे 'महावीर' नाम से अभिहित किया। | |||
====कैवल्य==== | |||
{{main|कैवल्य ज्ञान}} | |||
विवेक उत्पन्न होने पर औपाधिक दु:ख सुखादि-अहंकार, प्रारब्ध, कर्म और [[संस्कार]] के लोप हो जाने से [[आत्मा]] के चितस्वरूप होकर आवागमन से मुक्त हो जाने की स्थिति को '[[कैवल्य ज्ञान|कैवल्य]]' कहते हैं। पातंजलसूत्र के अनुसार चित् द्वारा आत्मा के साक्षात्कार से जब उसके कर्त्तृत्त्व आदि अभिमान छूटकर कर्म की निवृत्ति हो जाती है, तब विवेकज्ञान के उदय होने पर मुक्ति की ओर अग्रसारित आत्मा के चित्स्वरूप में जो स्थिति उत्पन्न होती हैं, उसकी संज्ञा कैवल्य है। [[वेदांत]] के अनुसार परामात्मा में आत्मा की लीनता और न्याय के अनुसार अदृष्ट के नाश होने के फलस्वरूप आत्मा की जन्ममरण से मुक्तावस्था को कैवल्य कहा गया है। योगसूत्रों के भाष्यकार व्यास के अनुसार, जिन्होंने कर्मबंधन से मुक्त होकर कैवल्य प्राप्त किया है, उन्हें 'केवली' कहा जाता है। ऐसे केवली अनेक हुए है। बुद्धि आदि गुणों से रहित निर्मल ज्योतिवाले केवली आत्मरूप में स्थिर रहते हैं। [[हिन्दू]] धर्मग्रंथों में शुक, जनक आदि ऋषियों को जीवन्मुक्त बताया है, जो [[जल]] में [[कमल]] की भाँति, संसार में रहते हुए भी मुक्त जीवों के समान निर्लेप जीवनयापन करते है। जैन ग्रंथों में केवलियों के दो भेद- 'संयोगकेवली' और 'अयोगकेवली' बताए गए है। | |||
==आचार-संहिता== | |||
महावीर ने जो आचार-संहिता बनाई वह निम्न प्रकार है- | |||
#किसी भी जीवित प्राणी अथवा कीट की हिंसा न करना | |||
#किसी भी वस्तु को किसी के दिए बिना स्वीकार न करना | |||
#मिथ्या भाषण न करना | |||
#आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना | |||
#वस्त्रों के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु का संचय न करना। | |||
जैन ग्रंथ एवं [[जैन दर्शन]] में प्रतिपादित है कि भगवान महावीर [[जैन धर्म]] के प्रवर्तक नहीं हैं। वे प्रवर्तमान काल के चौबीसवें [[तीर्थंकर]] हैं। आपने आत्मजय की साधना को अपने ही पुरुषार्थ एवं चारित्र्य से सिद्ध करने की विचारणा को लोकोन्मुख बनाकर भारतीय साधना परम्परा में कीर्तिमान स्थापित किया। आपने [[धर्म]] के क्षेत्र में मंगल क्रांति सम्पन्न की। उद्घोष किया कि [[आँख]] मूँदकर किसी का अनुकरण या अनुसरण मत करो। धर्म दिखावा नहीं है, रूढ़ि नहीं है, प्रदर्शन नहीं है, किसी के भी प्रति घृणा एवं द्वेषभाव नहीं है। आपने धर्मों के आपसी भेदों के विरुद्ध आवाज उठाई। धर्म को कर्म-कांडों, अंधविश्वासों, पुरोहितों के शोषण तथा भाग्यवाद की अकर्मण्यता की जंजीरों के जाल से बाहर निकाला। घोषणा की कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है। धर्म एक ऐसा पवित्र अनुष्ठान है, जिससे आत्मा का शुद्धिकरण होता है। धर्म न कहीं गाँव में होता है और न कहीं जंगल में, बल्कि वह तो अन्तरात्मा में होता है। साधना की सिद्धि परमशक्ति का [[अवतार]] बनकर जन्म लेने में अथवा साधना के बाद परमात्मा में विलीन हो जाने में नहीं है, बहिरात्मा के अन्तरात्मा की प्रक्रिया से गुजरकर स्वयं परमात्मा हो जाने में है। | |||
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प्रोफेसर जैन ने स्पष्ट किया है कि वर्तमान में जैन भजनों में भगवान महावीर को 'अवतारी' वर्णित किया जा रहा है। यह मिथ्या ज्ञान का प्रतिफल है। वास्तव में भगवान महावीर का जन्म किसी अवतार का [[पृथ्वी]] पर शरीर धारण करना नहीं है। उनका जन्म नारायण का नर शरीर धारण करना नहीं है, नर का ही नारायण हो जाना है। परमात्म शक्ति का आकाश से पृथ्वी पर अवतरण नहीं है। कारण-परमात्मास्वरूप का उत्तारण द्वारा कार्य-परमात्मस्वरूप होकर सिद्धालय में जाकर अवस्थित होना है। भगवान महावीर की क्रांतिकारी अवधारणा थी कि जीवात्मा ही ब्रह्म है।<ref>{{cite web |url=http://www.rachanakar.org/2010/03/blog-post_3876.html |title=महावीर सरन जैन का आलेख : भगवान महावीर |accessmonthday=6 अगस्त |accessyear=2013 |last=जैन |first=प्रोफेसर महावीर सरन |authorlink= |format= |publisher=रचनाकार (ब्लॉग)|language=हिंदी}}</ref> | |||
{{seealso|वर्धमान|महावीर जयन्ती}} | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | |||
==बाहरी कड़ियाँ== | |||
* [http://books.google.co.in/books?id=UT0Ia9LivVkC&printsec=frontcover#v=onepage&q=&f=false भगवान महावीर एवं जैन दर्शन (गूगल पुस्तक)] | |||
* [http://hindi.webdunia.com/religion/occasion/mahaveer/0904/06/1090406054_1.htm भगवान महावीर -प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन] | |||
* [http://hindi.webdunia.com/religion/occasion/mahaveer/0904/06/1090406055_1.htm प्राणी मात्र के कल्याण -महावीर का संदेश] | |||
* [http://hindi.webdunia.com/religion/occasion/mahaveer/0904/06/1090406061_1.htm भगवान महावीर एवं जैन दर्शन] | |||
* [http://www.jainworld.com/JWHindi/Books/ddharma/index.asp प्राणी मात्र के कल्याण तथा सामाजिक सद्भाव एवं सामरस्य की दृष्टि से दश लक्षण धर्म] | |||
==संबंधित लेख== | |||
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05:07, 18 मार्च 2020 के समय का अवतरण
महावीर
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पूरा नाम | महावीर स्वामी |
अन्य नाम | वर्धमान, आदिनाथ, 'अर्हत', 'जिन', 'निर्ग्रथ', 'अतिवीर' आदि। |
जन्म | 13 ई.पू. 599 |
जन्म भूमि | क्षत्रिय कुण्डग्राम (कुंडलपुर, वैशाली) बिहार |
मृत्यु स्थान | पावापुरी |
पिता/माता | पिता- सिद्धार्थ, माता- त्रिशला देवी |
पति/पत्नी | यशोदा |
वंश | ज्ञातृ वंशीय क्षत्रिय (गोत्र 'काश्यप') |
चिह्न | सिंह |
वर्ण | सुवर्ण |
अन्य जानकारी | अपनी श्रद्धा से जैन धर्म को पुनः प्रतिष्ठापित करने के बाद कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली के दिन पावापुरी में भगवान महावीर ने निर्वाण को प्राप्त किया। |
महावीर या वर्धमान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान ऋषभनाथ[1] की परम्परा में 24वें जैन तीर्थंकर थे। वे अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था। उन्हें एक लँगोटी तक का परिग्रह नहीं था। हिंसा, पशुबलि, जाति-पाँति के भेदभाव जिस युग में बढ़ गए थे, उसी युग में महावीर और बुद्ध पैदा हुए। भगवान महावीर तथा बुद्ध, दोनों ने ही इन कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाई। दोनों ने अहिंसा का भरपूर विकास किया।
जीवन परिचय
महावीर स्वामी का जीवन काल 599 ई. ईसा पूर्व से 527 ई. ईसा पूर्व तक माना जाता है। उनका जन्म वैशाली गणतंत्र के कुण्डलपुर में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था। बचपन में महावीर का नाम 'वर्धमान' था, लेकिन बाल्यकाल से ही यह साहसी, तेजस्वी, ज्ञान पिपासु और अत्यंत बलशाली होने के कारण 'महावीर' कहलाए। भगवान महावीर ने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया था, जिस कारण इन्हें 'जीतेंद्र' भी कहा जाता है।
विवाह
कलिंग नरेश की कन्या 'यशोदा' से महावीर का विवाह हुआ। किंतु 30 वर्ष की उम्र में अपने ज्येष्ठबंधु की आज्ञा लेकर इन्होंने घर-बार छोड़ दिया और तपस्या करके 'कैवल्य ज्ञान' प्राप्त किया। महावीर ने पार्श्वनाथ के आरंभ किए तत्वज्ञान को परिमार्जित करके उसे जैन दर्शन का स्थायी आधार प्रदान किया। महावीर ऐसे धार्मिक नेता थे, जिन्होंने राज्य का या किसी बाहरी शक्ति का सहारा लिए बिना, केवल अपनी श्रद्धा के बल पर जैन धर्म की पुन: प्रतिष्ठा की। आधुनिक काल में जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का पूरा श्रेय महावीर को दिया जाता है।
दीक्षा प्राप्ति
महावीर स्वामी के शरीर का वर्ण सुवर्ण और चिह्न सिंह था। इनके यक्ष का नाम 'ब्रह्मशांति' और यक्षिणी का नाम 'सिद्धायिका देवी' था। जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार भगवान महावीर के गणधरों की कुल संख्या 11 थी, जिनमें गौतम स्वामी इनके प्रथम गणधर थे। महावीर ने मार्गशीर्ष दशमी को कुंडलपुर में दीक्षा की प्राप्ति की और दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 2 दिन बाद खीर से इन्होंने प्रथम पारणा किया। दीक्षा प्राप्ति के बाद 12 वर्ष और 6.5 महीने तक कठोर तप करने के बाद वैशाख शुक्ल दशमी को ऋजुबालुका नदी के किनारे 'साल वृक्ष' के नीचे भगवान महावीर को 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई थी।[2]
कुण्डलपुर महोत्सव
दिगम्बर जैन आगम ग्रंथों के अनुसार भगवान महावीर बिहार प्रांत के कुंडलपुर नगर में आज (सन 2013) से 2612 वर्ष पूर्व महाराजा सिद्धार्थ की महारानी त्रिशला के गर्भ से चैत्र कृष्ण तेरस को जन्मे थे। वह कुंडलपुर वर्तमान में नालंदा ज़िले में अवस्थित है। वहाँ सन 2002 में जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी अपने संघ के साथ पदविहार करके गईं और उनकी पावन प्रेरणा से कुंडलपुर में 2600 वर्ष प्राचीन नंद्यावर्त महल की प्रतिकृति का (7 मंज़िल ऊँचा) निर्माण हुआ, जिसे बिहार सरकार का पर्यटन विभाग पर्यटकों के लिए ख़ूब प्रचारित कर रहा है। अतः वहाँ प्रतिदिन पर्यटकों एवं तीर्थयात्रियों का ताँता लगा रहता है। कुंडलपुर में प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन बिहार सरकार एवं कुंडलपुर दिगंबर जैन समिति के द्वारा कुण्डलपुर महोत्सव आयोजित किया जाता है। इन्हें भी देखें: कैवल्य ज्ञान
अन्य नाम
महावीर स्वामी के अनेक नाम हैं- 'अर्हत', 'जिन', 'निर्ग्रथ', 'महावीर', 'अतिवीर' आदि। इनके 'जिन' नाम से ही आगे चलकर इस धर्म का नाम 'जैन धर्म' पड़ा। जैन धर्म में अहिंसा तथा कर्मों की पवित्रता पर विशेष बल दिया जाता है। उनका तीसरा मुख्य सिद्धांत 'अनेकांतवाद' है, जिसके अनुसार दूसरों के दृष्टिकोण को भी ठीक-ठाक समझ कर ही पूर्ण सत्य के निकट पहुँचा जा सकता है। भगवान महावीर अहिंसा और अपरिग्रह की साक्षात मूर्ति थे। वे सभी के साथ सामान भाव रखते थे और किसी को कोई भी दुःख देना नहीं चाहते थे। अपनी श्रद्धा से जैन धर्म को पुनः प्रतिष्ठापित करने के बाद कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली के दिन पावापुरी में भगवान महावीर ने निर्वाण को प्राप्त किया।
वर्धमान
वीरःसर्व सुरासुरेंद्र महितो , वीरं बुधाः संश्रिताः ।
वीरेणैव हतः स्वकर्मनिचयो , वीराय भक्त्या नम ।।
वीरात्तीर्थमिदं प्रवृत्तमतुलं , वीरस्य वीरं तपो ।
वीरे श्री द्युतिकांतिकीर्तिधृतयो , हे वीर ! भद्रं त्वयि ।।1।।
भारत के वृज्जि गणराज्य की वैशाली नगरी के निकट कुण्डग्राम में राजा सिद्धार्थ अपनी पत्नी प्रियकारिणी के साथ निवास करते थे। इन्द्र ने यह जानकर कि प्रियकारिणी के गर्भ से तीर्थंकर पुत्र का जन्म होने वाला है, उन्होंने प्रियकारिणी की सेवा के लिए षटकुमारिका देवियों को भेजा। प्रियकारिणी ने ऐरावत हाथी के स्वप्न देखे, जिससे राजा सिद्धार्थ ने भी यही अनुमान लगाया कि तीर्थंकर का जन्म होगा। आषाढ़, शुक्ल पक्ष की षष्ठी के अवसर पर पुरुषोत्तर विमान से आकर प्राणतेन्द्र ने प्रियकारिणी के गर्भ में प्रवेश किया। चैत्र, शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को सोमवार के दिन वर्धमान का जन्म हुआ। देवताओं को इसका पूर्वाभास था। अत: सबने विभिन्न प्रकार के उत्सव मनाये तथा बालक को विभिन्न नामों से विभूषित किया। इस बालक का नाम सौधर्मेन्द्र ने 'वर्धमान' रखा तो ऋद्धिधारी मुनियों ने 'सन्मति' रखा। संगमदेव ने उसके अपरिमित साहस की परीक्षा लेकर उसे 'महावीर' नाम से अभिहित किया।
कैवल्य
विवेक उत्पन्न होने पर औपाधिक दु:ख सुखादि-अहंकार, प्रारब्ध, कर्म और संस्कार के लोप हो जाने से आत्मा के चितस्वरूप होकर आवागमन से मुक्त हो जाने की स्थिति को 'कैवल्य' कहते हैं। पातंजलसूत्र के अनुसार चित् द्वारा आत्मा के साक्षात्कार से जब उसके कर्त्तृत्त्व आदि अभिमान छूटकर कर्म की निवृत्ति हो जाती है, तब विवेकज्ञान के उदय होने पर मुक्ति की ओर अग्रसारित आत्मा के चित्स्वरूप में जो स्थिति उत्पन्न होती हैं, उसकी संज्ञा कैवल्य है। वेदांत के अनुसार परामात्मा में आत्मा की लीनता और न्याय के अनुसार अदृष्ट के नाश होने के फलस्वरूप आत्मा की जन्ममरण से मुक्तावस्था को कैवल्य कहा गया है। योगसूत्रों के भाष्यकार व्यास के अनुसार, जिन्होंने कर्मबंधन से मुक्त होकर कैवल्य प्राप्त किया है, उन्हें 'केवली' कहा जाता है। ऐसे केवली अनेक हुए है। बुद्धि आदि गुणों से रहित निर्मल ज्योतिवाले केवली आत्मरूप में स्थिर रहते हैं। हिन्दू धर्मग्रंथों में शुक, जनक आदि ऋषियों को जीवन्मुक्त बताया है, जो जल में कमल की भाँति, संसार में रहते हुए भी मुक्त जीवों के समान निर्लेप जीवनयापन करते है। जैन ग्रंथों में केवलियों के दो भेद- 'संयोगकेवली' और 'अयोगकेवली' बताए गए है।
आचार-संहिता
महावीर ने जो आचार-संहिता बनाई वह निम्न प्रकार है-
- किसी भी जीवित प्राणी अथवा कीट की हिंसा न करना
- किसी भी वस्तु को किसी के दिए बिना स्वीकार न करना
- मिथ्या भाषण न करना
- आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना
- वस्त्रों के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु का संचय न करना।
जैन ग्रंथ एवं जैन दर्शन में प्रतिपादित है कि भगवान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक नहीं हैं। वे प्रवर्तमान काल के चौबीसवें तीर्थंकर हैं। आपने आत्मजय की साधना को अपने ही पुरुषार्थ एवं चारित्र्य से सिद्ध करने की विचारणा को लोकोन्मुख बनाकर भारतीय साधना परम्परा में कीर्तिमान स्थापित किया। आपने धर्म के क्षेत्र में मंगल क्रांति सम्पन्न की। उद्घोष किया कि आँख मूँदकर किसी का अनुकरण या अनुसरण मत करो। धर्म दिखावा नहीं है, रूढ़ि नहीं है, प्रदर्शन नहीं है, किसी के भी प्रति घृणा एवं द्वेषभाव नहीं है। आपने धर्मों के आपसी भेदों के विरुद्ध आवाज उठाई। धर्म को कर्म-कांडों, अंधविश्वासों, पुरोहितों के शोषण तथा भाग्यवाद की अकर्मण्यता की जंजीरों के जाल से बाहर निकाला। घोषणा की कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है। धर्म एक ऐसा पवित्र अनुष्ठान है, जिससे आत्मा का शुद्धिकरण होता है। धर्म न कहीं गाँव में होता है और न कहीं जंगल में, बल्कि वह तो अन्तरात्मा में होता है। साधना की सिद्धि परमशक्ति का अवतार बनकर जन्म लेने में अथवा साधना के बाद परमात्मा में विलीन हो जाने में नहीं है, बहिरात्मा के अन्तरात्मा की प्रक्रिया से गुजरकर स्वयं परमात्मा हो जाने में है।
प्रोफेसर जैन ने स्पष्ट किया है कि वर्तमान में जैन भजनों में भगवान महावीर को 'अवतारी' वर्णित किया जा रहा है। यह मिथ्या ज्ञान का प्रतिफल है। वास्तव में भगवान महावीर का जन्म किसी अवतार का पृथ्वी पर शरीर धारण करना नहीं है। उनका जन्म नारायण का नर शरीर धारण करना नहीं है, नर का ही नारायण हो जाना है। परमात्म शक्ति का आकाश से पृथ्वी पर अवतरण नहीं है। कारण-परमात्मास्वरूप का उत्तारण द्वारा कार्य-परमात्मस्वरूप होकर सिद्धालय में जाकर अवस्थित होना है। भगवान महावीर की क्रांतिकारी अवधारणा थी कि जीवात्मा ही ब्रह्म है।[3]
इन्हें भी देखें: वर्धमान एवं महावीर जयन्ती
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री आदिनाथ
- ↑ श्री पार्श्वनाथ जी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 04 मार्च, 2012।
- ↑ जैन, प्रोफेसर महावीर सरन। महावीर सरन जैन का आलेख : भगवान महावीर (हिंदी) रचनाकार (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 6 अगस्त, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
- भगवान महावीर एवं जैन दर्शन (गूगल पुस्तक)
- भगवान महावीर -प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन
- प्राणी मात्र के कल्याण -महावीर का संदेश
- भगवान महावीर एवं जैन दर्शन
- प्राणी मात्र के कल्याण तथा सामाजिक सद्भाव एवं सामरस्य की दृष्टि से दश लक्षण धर्म
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