"हाथी": अवतरणों में अंतर
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{{हाथी विषय सूची}} | |||
{{सूचना बक्सा जीव जन्तु | |||
|चित्र=Indian-Elephant-3.jpg | |||
|चित्र का नाम=भारतीय हाथी | |||
|जगत=जीव - जन्तु | |||
|संघ=कॉर्डेटा (Chordata) | |||
|वर्ग=स्तनपायी (Mammalia) | |||
|उप-वर्ग= | |||
|गण= प्रोबोसिडिया (Proboscidea) | |||
|उपगण= | |||
|अधिकुल= | |||
|कुल=एलिफ़ैंटिडी (Elephantidae) | |||
|जाति=एलिफ़स (Elephas) | |||
|प्रजाति=मैक्सीमस (maximus) | |||
|द्विपद नाम=एलिफ़स मैक्सिमस (Elephas maximus) | |||
|संबंधित लेख= | |||
|शीर्षक 1=उपप्रजाति | |||
|पाठ 1=इंडिकस (indicus) | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी=भारतीय हाथी एशियाई हाथियों की ही उपजाति हैं। भारतीय हाथियों के अफ़्रीकी हाथियों के मुक़ाबले कान छोटे होते हैं, और माथा चौड़ा होता है। मादा के हाथीदाँत नहीं होते हैं। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन={{अद्यतन|14:39, 25 सितम्बर 2011 (IST)}} | |||
}} | |||
'''हाथी''' आधुनिक मानव के समय का [[पृथ्वी ग्रह|पृथ्वी]] पर विचरण करने वाला, सबसे विशालकाय स्तनपायी जीव है। इसकी दो प्रजातियों, एशियाई हाथी (एलिफ़स मैक्सीमस) और अफ़्रीकी हाथी (लॉक्सोडोंटा अफ़्रीकाना) में से एक, दोनों ही एलिफ़ैंटिडी परिवार गण, कुल के हैं, जिनका विशिष्ट लक्षण उनका बड़ा आकार, लंबी सूंड़ (विस्तारित नाक), स्तंभाकार पैर, विशाल कान (विशेषकर एल अफ़्रीकाना में) और बड़ा सिर है। एलिफ़ैस मैक्सीमस भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण-पूर्वी [[एशिया]] में पाया जाता है; जबकि एल. अफ़्रीकाना, अफ़्रीका के उपसहारा क्षेत्र में पाया जाता है। दोनों ही प्रजातियाँ घने जंगलों से लेकर सवाना (घास के खुले मैदान) तक में रहती हैं। | |||
==एशियाई हाथी== | ==एशियाई हाथी== | ||
एशियाई हाथी अब पहले के मुक़ाबले सीमित क्षेत्र में ही पाए जाते हैं। पहले यह क्षेत्र पश्चिम एशिया के टिग्रिस-यूफ़्रेटस बेसिन से पूर्व की ओर उत्तरी [[चीन]] तक फैला हुआ था। इसमें वर्तमान [[इराक़]] और पड़ोसी देश, दक्षिण [[ईरान]], [[पाकिस्तान]], [[हिमालय]] के दक्षिण में समूचा भारतीय उपमहाद्वीप, [[एशिया महाद्वीप]] का दक्षिण-पूर्वी हिस्सा, चीन का एक बड़ा हिस्सा और [[श्रीलंका]] , सुमात्रा तथा संभवतः जावा के क्षेत्र शामिल हैं। आमतौर पर हाथी स्लेटी भूरे रंग का होता है। कुछ हाथी सफेद होते हैं। इन्हें 'एल्बिनो' कहते हैं। [[म्याँमार]] आदि देशों में ऐसे हाथी पवित्र माने जाते हैं और इनसे कोई काम नहीं लिया जाता। | |||
एक गणना के अनुसार, जंगली एशियाई हाथियों की संख्या 37 से 57 हज़ार के बीच है; इनका पर्यावास लगभग 5,00,000 वर्ग किमी में फ़ैला हुआ है। हाथी कंटीले झाड़ीदार जंगलों से लेकर सदाबहार वनों तक, दलदली क्षेत्र से लेकर घास के मैदानों तक और शुष्क एवं नम पर्णपाती वनों जैसे भिन्न पर्यावासों में पाए जाते हैं। पूर्वी हिमालय में हाथी 3,000 मीटर की | जीवाश्मों से पता चलता है कि किसी समय बोर्नियों में भी हाथी थे, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि वे वहाँ के मूल निवासी थे या 1750 के दशक में वहाँ लाकर छोड़े गए बंदी हाथियों के वंशज हैं। अभी मुख्य रूप से हाथी सबाह ([[मलेशिया]]) और कालिमंतन ([[इंडोनेशिया]]) के एक छोटे क्षेत्र तक सीमित हैं। हाथी पश्चिम एशिया, भारतीय महाद्वीप के अधिकांश हिस्से, दक्षिण-पूर्व एशिया के काफ़ी हिस्से और लगभग समूचे चीन (युन्नान प्रांत के दक्षिणी क्षेत्रों को छोड़कर) से विलुप्त हो चुके हैं। इसके क्षेत्र के पश्चिमी हिस्सों की शुष्कता, पालतू बनाए जाने के लिए बड़े पैमाने पर बंदी बनाने (जो लगभग 4,000 साल पाहले [[सिंधु घाटी]] में शुरू हुआ था), मानव आबादी के लगातार बढ़ने से इनके पर्यावास में कमी और इनका शिकार, इनके क्षेत्र व संख्या में कमी के प्रमुख कारण हैं। | ||
[[चित्र:Asian-Elephant.jpg|left|एशियाई हाथी|thumb|300px]] | |||
एक गणना के अनुसार, जंगली एशियाई हाथियों की संख्या 37 से 57 हज़ार के बीच है; इनका पर्यावास लगभग 5,00,000 वर्ग किमी में फ़ैला हुआ है। हाथी कंटीले झाड़ीदार जंगलों से लेकर सदाबहार वनों तक, दलदली क्षेत्र से लेकर घास के मैदानों तक और शुष्क एवं नम पर्णपाती वनों जैसे भिन्न पर्यावासों में पाए जाते हैं। पूर्वी हिमालय में हाथी 3,000 मीटर की ऊँचाई तक रहने में सक्षम है। 15 हज़ार हाथी बंदी अवस्था में हैं। [[भारत]] में लगभग 22 हज़ार जंगली और 3,000 पालतू हाथी हैं। | |||
====भारतीय हाथी==== | ====भारतीय हाथी==== | ||
भारतीय हाथी एशियाई हाथियों की ही उपजाति हैं, अतः इनमें कोई | भारतीय हाथी एशियाई हाथियों की ही उपजाति हैं, अतः इनमें कोई विशेष अन्तर नहीं है। भारतीय हाथियों के अफ़्रीकी हाथियों के मुक़ाबले कान छोटे होते हैं, और माथा चौड़ा होता है। मादा के हाथीदाँत नहीं होते हैं। नर मादा से ज़्यादा बड़े होते हैं। सूँड अफ़्रीकी हाथी से ज़्यादा बड़ी होती है। पंजे बड़े व चौड़े होते हैं। पैर के नाख़ून ज़्यादा बड़े नहीं होते हैं। अफ़्रीकी पड़ोसियों के मुक़ाबले इनका पेट शरीर के वज़न के अनुपात में ही होता है, लेकिन अफ़्रीकी हाथी का सिर के अनुपात में पेट बड़ा होता है। | ||
भारतीय हाथी लंबाई में 6.4 मीटर (21 फ़ुट) तक पहुँच सकता है; यह थाईलैंड के एशियाई हाथी से लंबा व पतला होता है। सबसे लंबा ज्ञात भारतीय हाथी 26 फ़ुट (7.88 मी) का था, पीठ के मेहराब के स्थान पर इसकी ऊँचाई 11 फुट (3.4 मीटर), 9 इंच (3.61 मीटर) थी और इसका वज़न 8 टन (17935 पौंड) था। | |||
==हाथी का पारिवारिक जीवन== | |||
[[चित्र:African-Elephant.jpg|thumb|300px|अफ़्रीकी हाथी]] | |||
[[अफ़्रीका|अफ़्रीकी]] हाथी ज़मीन पर पाया जाने वाला सबसे बड़ा जीवित जानवर है, जिसका वजन 7,500 किलोग्राम तक होता है और कंधे तक ऊँचाई 3 से 4 मीटर होती है। भारतीय हाथी का वज़न लगभग 5,500 किलोग्राम और कंधे तह ऊँचाई 3 मीटर होती है; इसके कान अफ़्रीकी हाथी की तुलना में काफ़ी छोटे होते हैं। हाथियों में चर्वणक दाँत एक साथ ही पैदा नहीं होते; बल्कि पुराने दाँत के घिस जाने पर नया पैदा हो जाता है, लगभग 40 वर्ष की आयु में चर्वणक दाँतों का छठा और अंतिम जोड़ा निकलता है, इसलिए बहुत कम हाथी इससे अधिक आयु तक जीवित रह पाते हैं। | |||
हाथी की औसत आयु 60 वर्ष की होती है, यद्यपि कुछ हाथी 70 वर्ष तक जीते पाए गए हैं। जन्म के समय बच्चा 1 मीटर ऊँचा और 90 किलोग्राम भार का होता है। तीन चार वर्षों तक हथिनी बच्चे को दूध पिलाती है और सिंह, बाघ, चीते आदि से बड़ी सर्तकता से उसकी रक्षा करती है। | |||
जंगलों में हाथी वरिष्ठ हथिनी के नेतृत्व में छोटे पारिवारिक समूहों में रहते हैं। जहाँ भरपूर भोजन उपलब्ध होता है, वहाँ झुंड बड़े भी हो सकते हैं। अधिकांश नर मादाओं से अलग झुंड में रहते हैं। भोजन और पानी की उपलब्धता के अनुसार, हाथी मौसमी प्रवास करते हैं। वे कई घंटे भोजन करने में बिताते है और एक दिन में 225 किलोग्राम घास और अन्य वनस्पति खा सकते हैं। एशियाई हाथी अफ़्रीकी हाथी की तुलना में छोटा होता है और उसके शरीर का उच्चतम बिंदु कंधे के बजाय सिर होते हैं, सामने के पैरों पर नाख़ून जैसी पांच संरचनाएं और पिछले पैरों पर चार संरचनाएँ होती हैं। हाथी के पैर स्तंभ की भाँति सीधे होते हैं। खड़ा रहने के लिए इसे बहुत कम पेशी शक्ति की आवश्यकता पड़ती है। जब तक बीमार न पड़े या घायल न हो, तब तक अफ़्रीकी हाथी कदाचित् ही लेटता है। भारतीय हाथी प्राय: लेटते हुए पाए जाते हैं। हाथी की अँगुलियाँ त्वचा की गद्दी में धँसी रहती हैं। गद्दी के बीच में चर्बी की एक गद्दी होती है, जो शरीर के भार पड़ने पर फैल जाती और पैर ऊपर उठाने पर सिकुड़ जाती है। हाथी की त्वचा एक इंच मोटी पर पर्याप्त संवेदनशील होती है। त्वचा पर एक-एक इंच की दूरी पर बाल होते हैं। इसकी खाल खोल के सदृश और झुर्रीदार होती है। खाल का भार एक टन तक का हो सकता है। | |||
आमतौर पर सिर्फ़ नरों के ही गजदंत होते हैं, जबकि अफ़्रीकी हाथियों में नर और मादा, दोनों में गजदंत पाए जाते हैं। हाथियों में घ्राणशाक्ति अत्यंत विकसित होती है और इसके ज़रिये वे ख़तरों का पता लगाते हैं तथा बांस के घने झुंडों में नरम कॉपल जैसे मनपसंद आहार ढूंढते हैं। खाते समय हाथी इस प्रकार खड़े होते है कि सबसे बड़ी हथिनी हवा की दिशा में खड़ी हो और बच्चे उसे ढूंढ सकें। | |||
एशियाई हाथी किसी भी समय भोजन कर सकते हैं, लेकिन 24 घंटों में दो मुख्य भोजनकाल होते हैं। वयस्कों की गतिविधियों का 72 से 90 प्रतिशत हिस्सा भोजन ढूंढने और उसे खाने में बीतता है। | एशियाई हाथी किसी भी समय भोजन कर सकते हैं, लेकिन 24 घंटों में दो मुख्य भोजनकाल होते हैं। वयस्कों की गतिविधियों का 72 से 90 प्रतिशत हिस्सा भोजन ढूंढने और उसे खाने में बीतता है। | ||
==शारीरिक विलक्षणता== | |||
हाथी कुछ-कुछ स्लेटी से भूरे रंग के होते है और उनके शरीर के बाल बिखरे हुए तथा रूखे होते हैं। दोनों प्रजातियों में दो ऊपरी कृंतक दंत हाथीदाँत के रूप में विकसित होते हैं, लेकिन भारतीय हाथियों में यह आमतौर पर नहीं पाए जाते। नथुने, मांसल सूंड के छोर पर स्थित होते हैं, जो सांस लेने, खाने और पीने में उपयोगी होते हैं। [[चित्र:Elephant-5.jpg|thumb|300px|left|जंगल में लकड़ी ढ़ोता गजराज]] हाथी सूंड के ज़रिये पानी खींचकर अपने मुंह में डालते हैं। | |||
हाथी की सूँड लगभग 2 मीटर लंबी और प्राय: 136 किलोग्राम भार की चमड़ी और अंतर्ग्रथित स्नायु और पेशियों की बनी होती है। यह अस्थिहीन, लचीली और असाधारण मज़बूत होती है। इससे वह सूंघता, पानी पीता, भोजन प्राप्त करता और उसे मुँह में डालता तथा अपने जोड़े और बच्चे को सहलाकर प्रेम प्रदर्शन आदि काम करता है। हाथी अपनी सूंड के छोर से घास, पत्तियाँ और [[भारत के फल|फल]] तोड़कर अपने मुंह में डालते हैं। हाथी अपनी सूँड से भारी से भारी भी और छोटे सी छोटी यहाँ तक की मूँगफली सदृश वस्तुओं को भी उठा सकता है। हाथी की नासिका छोटी और खोपड़ी बहुत बड़ी होती है। हाथी अपनी सूंड के छोर से घास, पत्तियाँ और [[भारत के फल|फल]] तोड़कर अपने मुंह में डालते हैं। किसी किसी भारतीय नर हाथी के गजदंत नहीं होता। ऐसे हाथी को 'मखना' हाथी कहते हैं। मखना का शरीर असाधारण बड़ा होता है। | |||
हाथी स्नान करने में बड़ा नियमित होता है। अपने बच्चों को नियमित रूप से स्नान कराता है। यह अच्छा तैराक होता हैं। सारे शरीर को पानी में डूबोकर, केवल साँस के लिए सूँड़ को बाहर निकाले रख सकता है। यह किसी निश्चित स्थान पर पानी पीता, और एक स्थान पर जाकर विश्राम करता है। धूप से बचने के लिए घने जंगलों की छाया में सोता है। हाथी खड़ा खड़ा ही विश्राम करता है, अथवा करवट लेटता है। विश्राम के समय बिल्कुल शांत रहता है, केवल कान की फड़फड़ाहट या शरीर के डालने से उसकी उपस्थिति जानी जाती है। | |||
हाथी | |||
जंगली हाथी दल बनाकर रहता है। दल में साधारणतया 30-40 बच्चे, बूढ़े, जवान, नर और मादा रहते हैं। किसी किसी दल में 300-400 तक रह सकते हैं। प्रस्थान करने पर ये एक कतार में श्रेणीबद्ध चलते हैं। बच्चे आगे आगे और शेष पीछे चलते हैं। आक्रमण के समय यह क्रम बदल जाता है और छोटी छोटी टुकड़ियाँ बनाकर वे विभिन्न दिशाओं में खिसक जाते हैं। आक्रमण की सूचना सूँड़ की गति से देते हैं। कुछ हाथी दल के नियमों का पालन नहीं करते। वे तब 'शैतान' या 'आवारा' कह जाते हैं और उन्हें दल से निकाल दिया जाता है। | |||
ऐसा कहा जाता है कि हाथी कुशाग्रबुद्धि होता है। कुशाग्रता के प्राणियों में पहला स्थान मनुष्य का, दूसरा चिम्पॅज़ी का, तीसरा औरांग ऊटांग का और चौथा हाथी का माना जाता है। डॉल्फ़िन पानी के भीतर सबसे बुद्धिमान है। ऐसा कहा जाता है कि हाथी की दृष्टि कमज़ोर होती है और वह 75 मीटर से अधिक दूरी पर खड़े किसी मनुष्य को पहचान नहीं सकता। इसकी श्रवणशक्ति अच्छी तथा घ्राण शक्ति और भी अच्छी होती है। | |||
[[चित्र:Elephant.jpg|thumb|250px|हाथी|right]] | |||
==भोजन== | ==भोजन== | ||
विशालकाय जंगली हाथी की ख़ुराक भी उसके शरीर के अनुसार होती है। एक सामान्य वयस्क हाथी आराम के दिनों में 75 | विशालकाय जंगली हाथी की ख़ुराक भी उसके शरीर के अनुसार होती है। एक सामान्य वयस्क हाथी आराम के दिनों में 75 किलोग्राम तक भोजन एक दिन में खाता है। यह भोजन विभिन्न वनस्पतियों के रूप में होता है. लेकिन, लंबी यात्रा और श्रम करने वाला हाथी एक दिन में 150 किलोग्राम चारा यानी घास, पत्ती, वनस्पति और फल-फूल खा लेता है। गर्भवती और स्तनपान कराने वाली हथनी तो 200 किलोग्राम तक भोजन कर लेती है। | ||
एक वयस्क हाथी एक घंटे में सात | एक वयस्क हाथी एक घंटे में सात किलोग्राम भोजन ग्रहण कर सकता है और वे प्रतिदिन 18 घंटे भोजन करते हैं, इस प्रकार वे प्रतिदिन 150 किलोग्राम वनस्पति सामग्री (आर्द्र वज़न) का भक्षण करते हैं। दक्षिण भारत में एक अध्ययन से पाया गया कि हाथी पौधों की कम से कम 112 किस्म की प्रजातियाँ खाते हैं, लेकिन उनके आहार का लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा मॉलवेल्स गण और लेगुमिनसी, पाल्मे, साइपरेसी और ग्रामिनी परिवार की सिर्फ़ 25 प्रजातियों पर आधारित है। | ||
अध्ययन से पता चला कि आर्द्र मौसम की शुरुआत में ये [[प्रोटीन]] युक्त घास खाते है और जब शुष्क मौसम में घास बड़ी हो जाती है, तब आहार में कोपलों की प्रधानता रहती है। चूंकि खेत में पैदा होने वाले खाद्यान्न तथा मिलेट फ़सलों में जंगली घास की अपेक्षा अधिक प्रोटीन, [[कैल्शियम]] और [[सोडियम]] होता है, इसलिए वे प्रायः खेतों पर भी धावा बोल देते हैं, लेकिन चाहे खेत जंगलों के पास स्थित क्यों न हों, सभी हाथी फ़सलों में घुसपैठ नहीं करते। हाथी, मिट्टी से सोडियम और पेड़ की छालों से भी कैल्शियम प्राप्त करते हैं। ये दिन में कम से कम एक बार पानी अवश्य पीते हैं और ताज़े पानी के स्थायी स्रोतों से कभी बहुत दूर नहीं जाते। दिन के गर्म समय में इनके लिए छांव अनिवार्य है। हाथी अपने कानों के ज़रिये [[ऊष्मा]] का विकिरण करते है और इनके कानों के फड़फड़ाने की दर हवा के [[वेग]], परिवेश के [[तापमान]] तथा बादलों की स्थिति के अनुसार बदलती रहती है। | |||
==वितरण== | ==वितरण== | ||
वर्तमान समय में हाथी अपेक्षाकृत छोटे टेपिरनुमा स्तनधारी जंतु के वंशज हैं, जो कम से कम 4.50 करोड़ वर्ष पहले पाए जाते | [[चित्र:Indian-Elephant.jpg|thumb|300px|भारतीय हाथी]] | ||
वर्तमान समय में हाथी अपेक्षाकृत छोटे टेपिरनुमा स्तनधारी जंतु के वंशज हैं, जो कम से कम 4.50 करोड़ वर्ष पहले पाए जाते थे। इनके अवशेष [[मिस्र]] में मोएरिस झील के पास पाए गए हैं। इसी आधार पर इन्हें मोएरिथेरियम नाम दिया गया। इनके दोनों जबड़ों में दो-दो बड़े कृंतक दाँत प्राथमिक गजदंतों के रूप में विकसित हो चुके थे। मोएरिथेरियम की एक प्रशाखा प्रिमिलेफ़स से वृहद परिवार एलिफ़ैंटोइडी का विकास हुआ, जिसके तहत नवीनतम प्रोबोसीडियन परिवार भी आते हैं। ये परिवार होमो सेपियंस (मानव जाति) के प्रादुर्भाव के एकमात्र साक्षी हैं। विकास क्रम में इनके कई रूपों की उत्पत्ति और विलुप्ति हुई। 10 हज़ार साल पहले तक इस परिवार में सित्ग रोएंदार मैमथ (मैमथस प्रिमीजीनियस), इसके निकट संबंधी एशियाई हाथी (एलिफ़ैस मैक्सीमस), और इससे भिन्न अफ़्रीकी हाथी (लॉक्सोडोंटा अफ़्रीकाना) ही बचे थे। लगभग 5,000 साल पहले रोएंदार मैमथ समाप्त हो गए। जलवायु के गर्म होने से इनके विलुप्त होने की प्रक्रिया शुरू हुई, क्योंकि उससे इनका चारा जलमग्न को गया। मानव द्वारा शिकार से भी इनके विलुप्त होने की गति तेज़ हुई। | |||
[[चित्र:Tusker-Elephant.jpg|thumb|250px|left|हाथी के दाँत]] | |||
कई शताब्दियों से भारतीय हाथी, समारोहों और बोझा ढोने के काम के लिए महत्त्वपूर्ण रहे हैं। अपने महावत के नियंत्रण में हाथी पेड़ों की कटाई के अपरिहार्य अंग हैं। अफ़्रीकी हाथी का भी इस्तेमाल बोझा ढोने के लिए होता है, लेकिन यह अपेक्षाकृत बहुत व्यापक नहीं है। | |||
कई | ==पारिवारिक इकाई== | ||
हाथी की दोनों ही प्रजातियों में उसी झुंड में रहने की प्रवृत्ति होती है, जिसमें उनका जन्म हुआ हो। हाथियों के सामाजिक संगठन की आधारभूत इकाई पारिवारिक समूह है, जिसमें दो से आठ हाथी हो सकते हैं। कई समूह मिलकर एक झुंड या कुल का निर्माण करते हैं तथा कई कुलों से किसी क्षेत्र में हाथियों की संख्या का निर्धारण होता है। झुंड मातृवंशीय आधार पर संगठित होता है और सबसे बड़ी व अनुभवी मादा इसके संचालन की देखरेख करती है। लेकिन सबसे मज़बूत बंधन मादा और उसके नवजात बच्चे का होती है। [[चित्र:Africa-India-Forum-Summit-Stamp.jpg|thumb|left|250px|द्वितीय [[अफ़्रीका]]-[[भारत]] शिखर सम्मेलन पर जारी [[डाक टिकट]]]] चार वर्ष की आयु में वे झुंड की मादाओं के साथ कम समय व्यतीत करते हैं तथा अपनी उम्र के या अपने से बड़े नरों के साथ अस्थायी रूप से संपर्क स्थापित करते हैं। एशियाई नर हाथियों के सबसे बड़े झुंड में सात सदस्य होते हैं। नर 14 से 15 वर्ष की आयु में यौन परिपक्वता हासिल कर लेते हैं और मादाएँ 15 या 16 वर्ष की आयु में पहले बच्चे को जन्म देती हैं। | |||
वयस्क नर तब तक किसी झुंड से संबद्ध नहीं होता है, जब तक झुंड में मैथुन के लिए तैयार कोई हथिनी मौज़ूद न हो। दिखावटी संघर्ष और अन्य सामान्य मुक़ाबलों से नर एक-दूसरे की शक्ति का अनुमान लगाते हैं, इसलिए मादाओं के लिए गंभीर संघर्ष शायद ही कभी होते हैं। 20 वर्ष की अवस्था में नर के शरीर का पूर्ण विकास हो जाता है। परिपक्व हाथी हर साल एक बार मद की स्थिति में आता है, जिसके दौरान उसकी आँखों के पीछे स्थित ग्रंथियों से स्राव होता है। वे आक्रामक हो जाते हैं और मादाओं के साथ रहने लगते हैं, जिसके बाद सहवास होता है। मद की तुलना अन्य खुरदार पशुओं के मैथुन काल से की जा सकती है। नर हाथी कभी भी सहवास कर सकते हैं, लेकिन मदकाल में उनकी यौन उत्तेजना बढ़ जाती है। | |||
वयस्क नर तब तक किसी झुंड से संबद्ध नहीं होता है, जब तक झुंड में मैथुन के लिए तैयार कोई हथिनी | |||
हथिनियों में गर्भावस्था 18 से 22 महीने तक की होती है। अंतिम चरण को छोड़कर अन्य समय में गर्भ का बाहर से पता नहीं चलता है। गर्भावधि के अंत में स्तनों में सूजन आ जाती है, थन फूल जाते है और उनसे पानी जैसे द्रव का रिसाव भी हो सकता है। प्रसव पीड़ा कम समय से लेकर कई घंटों | हथिनियों में गर्भावस्था 18 से 22 महीने तक की होती है। अंतिम चरण को छोड़कर अन्य समय में गर्भ का बाहर से पता नहीं चलता है। गर्भावधि के अंत में स्तनों में सूजन आ जाती है, थन फूल जाते है और उनसे पानी जैसे [[द्रव]] का रिसाव भी हो सकता है। प्रसव पीड़ा कम समय से लेकर कई घंटों की हो सकती है, लेकिन प्रसव लगभग पाँच मिनट में ही हो जाता है। मादा आमतौर पर प्रसव के समय निकलने वाले पदार्थों को खा जाती है। | ||
====बच्चों का जन्म==== | ====बच्चों का जन्म==== | ||
बच्चों का जन्म साल के किसी भी मौसम में हो सकता है, लेकिन अधिकांश बच्चे वर्षा ॠतु के अंतिम दिनों में पैदा होते हैं। आमतौर पर एक ही बच्चा जन्म लेता है और कभी-कभार ही | [[चित्र:Elephant-7.jpg|thumb|300px|हाथी]] | ||
बच्चों का जन्म साल के किसी भी मौसम में हो सकता है, लेकिन अधिकांश बच्चे वर्षा ॠतु के अंतिम दिनों में पैदा होते हैं। आमतौर पर एक ही बच्चा जन्म लेता है और कभी-कभार ही जुड़वाँ या तीन बच्चों का जन्म होता है। अनुकूल पर्यावास में दो बच्चों के बीच का अंतर 2.5-4 वर्ष होता है। कम अनुकूल क्षेत्रों में यह अंतराल 5 से 8 वर्ष तक का हो सकता है। नवजात का वज़न 100 किलोग्राम (80 से 110 किलोग्राम तक) और कंधे तक ऊँचाई 75 से 90 सेमी होती है। वयस्कों के मुक़ाबले बच्चों के शरीर पर काफ़ी बाल होते हैं। शिशु प्रायः माता की सहायता से सीधे थन पर मुंह लगाकर (सूंड के ज़रिये नहीं) दूध पीते हैं, और अपनी माँ या अन्य दुग्धपान करा सकने वाली मादाओं का दूध पीते हैं। डेढ महीने से बच्चे ठोस आहार लेना शुरू कर देते हैं और वे वयस्कों से उचित भोजन के बारे में सीखते हैं। प्रायः बच्चे अपनी माँ की लीद भी खा लेते हैं, जिससे सेल्युलोज़ पचाने में सहायक सहजीवी [[बैक्टीरिया]] उनके जठरांत्र में पहुँच जाता है। | |||
==मृत्यु== | ==मृत्यु== | ||
हाथियों की मृत्यु छोटी अवस्था में अन्य पशुओं द्वारा उन्हें मारकर खाने, रोग और परजीवी, दुर्घटनाओं, | हाथियों की मृत्यु छोटी अवस्था में अन्य पशुओं द्वारा उन्हें मारकर खाने, रोग और परजीवी, दुर्घटनाओं, सूखा, तनाव, शिकार, वृद्धावस्था और आपसी संघर्ष के कारण होती है। जब हाथी की छह चर्वणक दंतावलियों में से अंतिम दंतावली भी घिस जाती है, तो वह भूख से मर जाता है। जीवन भर सेलखड़ी और घास के पौष्टिक आहार और कई प्रकार की रसदार वनस्पतियों के आहार के बाद के बाद भी हाथी आमतौर पर 50 वर्ष से 65 वर्ष के बीच ऐसा भोगते हैं। | ||
[[चित्र: | [[चित्र:Elephant-6.jpg|thumb|हाथी|300px|left]] | ||
झुंड तथा नरों का गृहक्षेत्र 60 से 500 वर्ग | ==जन-जीवन का विनाश== | ||
झुंड तथा नरों का गृहक्षेत्र 60 से 500 वर्ग किलोमीटर तक होता है, इसलिए इनके संरक्षण के सफल उपाय के लिए विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों और पर्याप्त स्वच्छ जल वाले विशाम क्षेत्र की आवश्यकता होती है। हाथियों के पर्यावास के अंदर और उसके किनारे पर मानव आबादी के फलस्वरूप हाथी और मनुष्यों में संघर्ष से हाथी व मनुष्य, दोनों की ही जानों का नुक़सान होता है। भारत में प्रतिवर्ष लगभग 300 लोग हाथियों द्वारा मारे जाते हैं और 200 हाथी अवैध शिकार, फ़सल रक्षा और दुर्घटनाओं के कारण मरते हैं। | |||
==संकट ग्रस्त प्रजाति का संरक्षण== | |||
हाथी अपने पर्यावास के विनाश और मनुष्यों द्वारा शोषण के कारण गहरे संकट में है। भारतीय हाथी को विलुप्तप्राय प्रजाति माना गया है और अफ़्रीकी हाथी संकटग्रस्त वर्ग में है। अफ़्रीकी हाथी को प्रमुख ख़तरा हाथीदाँत के व्यापार के कारण होने वाले अवैध शिकार से है। चूंकि मादा एशियाई हाथी के गजदंत नहीं होते और सिर्फ़ मांस के लिए शिकार आमतौर पर नहीं होता, इसलिए वे सुरक्षित हैं। लेकिन हाथीदाँत के लिए नर एशियाई हाथियों के शिकार के कारण दक्षिण भारत के कई इलाकों में वयस्कों का लैंगिक अनुपात बिगड़ गया है। कुछ इलाक़ों में गजदंत वाले नर की अनुपस्थिति में गजदंतहीन नर (जिसे मखना कहा जाता है) प्रजनन कर सकता है। [[चित्र:Skull-Of-Elephant.jpg|thumb|250px|1894 में जिस ज़ख्मी भीमकाय से रेलगाड़ी टकराई थी यह उसकी खोपड़ी है]] लेकिन कुछ इलाक़ों में बहुत कम गजदाँतहीन नर हैं, इसलिए अंततः स्थिति यह है कि सभी मादाओं के साथ सहवास के लिए किसी भी प्रकार के नरों की संख्या काफ़ी नहीं है। | |||
1999 में दक्षिण भारत के सबसे अधिक अवैध शिकार प्रभावित पेरियार व्याघ्र अभयारण्य में यह लिंग अनुपात 100 मादाओं पर एक नर का था। दूसरी तरफ़ [[हिमालय]] के निचले क्षेत्रों के राजाजी कॉर्बेट अभयारण्य में यह अनुपात 2.5 मादाओं पर एक हाथी का है और वहाँ 90 प्रतिशत से अधिक वयस्क मादाओं के साथ 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे थे। भारत सरकार द्वारा 1992 में शुरू की गई हाथी परियोजना उनके पर्यावास विखंडन, पर्यावास क्षरण, शिकार-चोरी और हाथी-मानव संघर्ष जैसे समस्याओं को दूर करने का एक प्रयास है। | |||
वन्यजीव अभयारण्यों में हाथियों की संख्या आवश्यकता से अधिक भी हो सकती है, जिससे उनके पर्यावास को और नुक़सान हो सकता है। इसलिए सीमित संख्या में उन्हें मार डालने की भी ज़रूरत होती है। संरक्षण के उपायों में अवैध शिकारियों से सुरक्षा और प्रमुख प्रवासी मार्ग की रक्षा के लिए पगडंडियों समेत बड़े अभयारण्यों की स्थापना भी शामिल है। | वन्यजीव अभयारण्यों में हाथियों की संख्या आवश्यकता से अधिक भी हो सकती है, जिससे उनके पर्यावास को और नुक़सान हो सकता है। इसलिए सीमित संख्या में उन्हें मार डालने की भी ज़रूरत होती है। संरक्षण के उपायों में अवैध शिकारियों से सुरक्षा और प्रमुख प्रवासी मार्ग की रक्षा के लिए पगडंडियों समेत बड़े अभयारण्यों की स्थापना भी शामिल है। | ||
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==हाथी के अन्य संदर्भ== | ==हाथी के अन्य संदर्भ== | ||
====गुलाबी हाथी==== | ====गुलाबी हाथी==== | ||
अभी तक काले और सफ़ेद हाथी के बारे में ही सुना जाता था, पर हाल ही में एक फ़ोटोग्राफर ने अफ़्रीका के जंगल में गुलाबी हाथी के बच्चे को कैद किया है। बोत्सवाना के जंगल में देखे गए इस हाथी के बच्चे को लेकर विशेषज्ञों को काफ़ी आशंकाएँ हैं। उनका मानना है कि यह एल्बिनो नस्ल का हाथी रहा होगा, जिसके बचने की संभावना काफ़ी कम है। [[चित्र:Indian-Elephant-1.jpg|thumb|250px|left|भारतीय हाथी <br /> Indian Elephant]] उनका मानना है कि अफ़्रीका के जंगलों में चिलचिलाती सूरज की किरणों की वजह से उसे अंधापन और चमड़े की बीमारी हो सकती है। बीबीसी वाइल्ड लाइफ प्रोग्राम के लिए फ़िल्म की शूटिंग कर रहे माइक होल्डिंग ने ओकावेंगो नदी के पास 80 हाथियों के समूह में एक [[गुलाबी रंग]] के हाथी बच्चे को जाते देखा और उन्होंने इस दृश्य को कैमरे में कैद करने में तनिक भी देरी नहीं की।<ref>{{cite web |url=http://navbharattimes.indiatimes.com/rssarticleshow/4295725.cms?prtpage=1 |title=अफ्रीका के जंगल में दिखा गुलाबी हाथी |accessmonthday=[[7 मई]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=नवभारत टाइम्स |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | |||
अभी तक | |||
बीबीसी वाइल्ड लाइफ प्रोग्राम के लिए | |||
====हिंसक हाथी==== | ====हिंसक हाथी==== | ||
[[चित्र:Leg-Elephant.jpg|thumb|हाथी का पैर]] | |||
हाथियों ने पिछले दो दशकों के दौरान [[छत्तीसगढ़]] में 120 से ज़्यादा मनुष्यों की जान ली है। आंकड़ों की यह सच्चाई बताती है कि विकास के नाम पर जंगलों के कटने और वनस्पतियों के अभाव के कारण पर्यावरण को कितना नुक़सान हो रहा है। अपने ठिकानों पर क़ब्ज़ा होते देखकर जानवर शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन कर रहे हैं। इसी आपाधापी में वे हिंसक भी होते जा रहे हैं। राज्य सरकारें केवल मुआवज़ा वितरित कर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेती हैं, जबकि समस्या का हल केवल पर्यावरण एवं वन संरक्षण के ज़रिए ही संभव है। ज्ञान-[[विज्ञान]] एवं तकनीक में लगातार समृद्ध हो रहे मानव समाज ने वनों और प्राकृतिक पर्यावरण से जिस प्रकार छेड़छाड़ की है, उससे अब वन्य प्राणियों में अपने अस्तित्व के लिए जंग लड़ने की भावना पैदा हो गई है। | |||
आए दिन वन्य प्राणियों के गांवों एवं शहरों में प्रवेश, खेती-पालतू पशुओं को नुक़सान | आए दिन वन्य प्राणियों के गांवों एवं शहरों में प्रवेश, खेती-पालतू पशुओं को नुक़सान पहुँचाने और मनुष्यों पर घातक हमला करने की घटनाएँ [[मध्य प्रदेश]] में भी बढ़ रही हैं। मनुष्य ने वनों पर क़ब्ज़ा कर लिया है। इसलिए वन्य प्राणियों के सामने सुरक्षित निवास और भोजन की समस्या पैदा हो गई है। पेट की आग बुझाने के लिए वे मौक़ा पाते ही गांवों और शहरों की तरफ दौड़ते हैं तथा मनचाहा भोजन छीन लेते हैं। | ||
सरगुजा ज़िले में 2000 से सितंबर 2009 तक हाथियों के हमलों | सरगुजा ज़िले में [[2000]] से [[सितंबर]] [[2009]] तक हाथियों के हमलों से 20 लोग मारे गए, जिनके परिवारजनों को 17 लाख 90 हज़ार रुपये का मुआवज़ा दिया गया। 19 घायलों को 27000 रुपये और फ़सल-मकान उजाड़ने के 8263 मामलों में सात करोड़ 13 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया गया। मुआवज़ा वितरण, मनुष्यों के मारे जाने और घायल होने के आँकड़े इस अंचल में हाथियों एवं मनुष्यों के बीच चल रही जंग के सबूत हैं। इसके बावज़ूद सरकार हाथियों के लिए सुरक्षित निवास और आरक्षित वन क्षेत्र देने में आनाकानी कर रही है। सरकार मान चुकी है कि छत्तीसगढ़ में हाथियों की रक्षा के लिए एक अभयारण्य और एक सुरक्षित हरा-भरा वनक्षेत्र होना चाहिए।<ref>{{cite web |url=http://www.chauthiduniya.com/2010/01/hathi-hinshak-kyon-ho-rahe-hai.html |title=हाथी हिंसक क्यों हो रहे हैं? |accessmonthday=[[18 फ़रवरी]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=चौथी दुनिया |language=[[हिन्दी]] }}</ref> | ||
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|alt =हाथियों का विहंगम दृश्य | |alt =हाथियों का विहंगम दृश्य | ||
|caption= हाथियों का विहंगम दृश्य | |caption= हाथियों का विहंगम दृश्य | ||
}} | }} | ||
==भारतीय संस्कृति का प्रतीक हाथी== | |||
[[हिन्दू धर्म]] में हाथी को पवित्र प्राणी माना गया है। अश्विन मास की [[पूर्णिमा]] के दिन '''गजपूजाविधि व्रत''' रखा जाता है। सुख समृद्धि की इच्छा रखने वाले उस दिन हाथी की पूजा करते हैं। [[गणेश]] जी का मुख हाथी का होने के कारण उनके गजतुंड, गजानन आदि नाम हैं। | |||
'''गजेन्द्र मोक्ष कथा''' में गजेन्द्र ने मगर के ग्राह से छूटने के लिए [[विष्णु|श्री हरि]] की स्तुति की थी। श्री हरि ने गजेन्द्र को मगर के ग्राह से छुड़ाया था। '''गजेन्द्र मोक्ष स्रोत''' का स्थान [[गीता]] में है। गीता में [[श्री कृष्ण]] ने हाथियों में '''ऐरावत''' को अपनी विभूति बताया है। हाथी शुभ शकुन वाला और [[लक्ष्मी]] दाता माना जाता है। | |||
==समाचार== | ==समाचार== | ||
[[चित्र:Indian-Elephant-2.jpg|thumb|300px|हाथियों के अस्तित्व पर भीषण संकट]] | [[चित्र:Indian-Elephant-2.jpg|thumb|300px|हाथियों के अस्तित्व पर भीषण संकट]] | ||
====रविवार, 12 सितंबर, 2010==== | ====रविवार, 12 सितंबर, 2010==== | ||
''' | '''हाथी राष्ट्रीय धरोहर प्राणी घोषित होगा''' | ||
केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री [[जयराम रमेश]] ने गजराज यानी हाथी को राष्ट्रीय धरोहर प्राणी घोषित किया है। इसके संरक्षण हेतु [[बाघ]] संरक्षण प्राधिकरण की तर्ज़ पर गजराज संरक्षण प्राधिकरण बनाया जायेगा व विशेष टॉस्क फोर्स का गठन किया जायेगा। यही नहीं, 12वीं पंचवर्षीय योजना में इसके लिए 600 करोड़ की राशि दी जायेगी। इसका कारण यह है कि आज हाथियों के अस्तित्व पर भीषण संकट है। हाथी-दाँत के कारोबार के चलते आये दिन शिकारियों द्वारा हाथियों की हत्याएँ की जा रही हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है.... | |||
====समाचार को विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें==== | |||
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*[http://dainiktribuneonline.com/2010/09/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%9F-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%97%E0%A4%9C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C/ दैनिक ट्रिब्यून] | *[http://dainiktribuneonline.com/2010/09/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%9F-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%97%E0%A4%9C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C/ दैनिक ट्रिब्यून] | ||
*[http://www.mediaclubofindia.com/profiles/blogs/4335940:BlogPost:76486 मीडिया क्लब ऑफ़ इंडिया] | *[http://www.mediaclubofindia.com/profiles/blogs/4335940:BlogPost:76486 मीडिया क्लब ऑफ़ इंडिया] | ||
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====शुक्रवार, 15 अक्टूबर, 2010==== | ====शुक्रवार, 15 अक्टूबर, 2010==== | ||
''' | '''हाथी राष्ट्रीय विरासत पशु घोषित''' | ||
पर्यावरण मंत्रालय ने हाथियों के संरक्षण की दिशा में | पर्यावरण मंत्रालय ने हाथियों के संरक्षण की दिशा में क़दम उठाते हुए उन्हें राष्ट्रीय धरोहर पशु घोषित कर दिया। राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड (एनबीडब्ल्यूएल) की स्थाई समिति की [[13 अक्टूबर]], [[2010]] को हुई बैठक में हाथियों को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने वाले प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी। इसके बाद पर्यावरण मंत्रालय ने [[15 अक्टूबर]], 2010 को इस सम्बंध में अधिसूचना जारी की। ... | ||
==== | ====समाचार को विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें==== | ||
*[http://www.khaskhabar.com/elephant-declared-national-heritage-animal-102010221039282276.html ख़ास ख़बर] | *[http://www.khaskhabar.com/elephant-declared-national-heritage-animal-102010221039282276.html ख़ास ख़बर] | ||
*[http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6839609.html जागरण याहू] | *[http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6839609.html जागरण याहू] | ||
*[http://www.patrika.com/news.aspx?id=463350 पत्रिका] | *[http://www.patrika.com/news.aspx?id=463350 पत्रिका] | ||
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|आधार= | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= |माध्यमिक=माध्यमिक1 |पूर्णता= |शोध= }} | ||
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==बाहरी कड़ियाँ== | |||
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09:22, 6 मार्च 2024 के समय का अवतरण
हाथी
| |
जगत | जीव - जन्तु |
संघ | कॉर्डेटा (Chordata) |
वर्ग | स्तनपायी (Mammalia) |
गण | प्रोबोसिडिया (Proboscidea) |
कुल | एलिफ़ैंटिडी (Elephantidae) |
जाति | एलिफ़स (Elephas) |
प्रजाति | मैक्सीमस (maximus) |
द्विपद नाम | एलिफ़स मैक्सिमस (Elephas maximus) |
उपप्रजाति | इंडिकस (indicus) |
अन्य जानकारी | भारतीय हाथी एशियाई हाथियों की ही उपजाति हैं। भारतीय हाथियों के अफ़्रीकी हाथियों के मुक़ाबले कान छोटे होते हैं, और माथा चौड़ा होता है। मादा के हाथीदाँत नहीं होते हैं। |
अद्यतन | 14:39, 25 सितम्बर 2011 (IST)
|
हाथी आधुनिक मानव के समय का पृथ्वी पर विचरण करने वाला, सबसे विशालकाय स्तनपायी जीव है। इसकी दो प्रजातियों, एशियाई हाथी (एलिफ़स मैक्सीमस) और अफ़्रीकी हाथी (लॉक्सोडोंटा अफ़्रीकाना) में से एक, दोनों ही एलिफ़ैंटिडी परिवार गण, कुल के हैं, जिनका विशिष्ट लक्षण उनका बड़ा आकार, लंबी सूंड़ (विस्तारित नाक), स्तंभाकार पैर, विशाल कान (विशेषकर एल अफ़्रीकाना में) और बड़ा सिर है। एलिफ़ैस मैक्सीमस भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण-पूर्वी एशिया में पाया जाता है; जबकि एल. अफ़्रीकाना, अफ़्रीका के उपसहारा क्षेत्र में पाया जाता है। दोनों ही प्रजातियाँ घने जंगलों से लेकर सवाना (घास के खुले मैदान) तक में रहती हैं।
एशियाई हाथी
एशियाई हाथी अब पहले के मुक़ाबले सीमित क्षेत्र में ही पाए जाते हैं। पहले यह क्षेत्र पश्चिम एशिया के टिग्रिस-यूफ़्रेटस बेसिन से पूर्व की ओर उत्तरी चीन तक फैला हुआ था। इसमें वर्तमान इराक़ और पड़ोसी देश, दक्षिण ईरान, पाकिस्तान, हिमालय के दक्षिण में समूचा भारतीय उपमहाद्वीप, एशिया महाद्वीप का दक्षिण-पूर्वी हिस्सा, चीन का एक बड़ा हिस्सा और श्रीलंका , सुमात्रा तथा संभवतः जावा के क्षेत्र शामिल हैं। आमतौर पर हाथी स्लेटी भूरे रंग का होता है। कुछ हाथी सफेद होते हैं। इन्हें 'एल्बिनो' कहते हैं। म्याँमार आदि देशों में ऐसे हाथी पवित्र माने जाते हैं और इनसे कोई काम नहीं लिया जाता।
जीवाश्मों से पता चलता है कि किसी समय बोर्नियों में भी हाथी थे, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि वे वहाँ के मूल निवासी थे या 1750 के दशक में वहाँ लाकर छोड़े गए बंदी हाथियों के वंशज हैं। अभी मुख्य रूप से हाथी सबाह (मलेशिया) और कालिमंतन (इंडोनेशिया) के एक छोटे क्षेत्र तक सीमित हैं। हाथी पश्चिम एशिया, भारतीय महाद्वीप के अधिकांश हिस्से, दक्षिण-पूर्व एशिया के काफ़ी हिस्से और लगभग समूचे चीन (युन्नान प्रांत के दक्षिणी क्षेत्रों को छोड़कर) से विलुप्त हो चुके हैं। इसके क्षेत्र के पश्चिमी हिस्सों की शुष्कता, पालतू बनाए जाने के लिए बड़े पैमाने पर बंदी बनाने (जो लगभग 4,000 साल पाहले सिंधु घाटी में शुरू हुआ था), मानव आबादी के लगातार बढ़ने से इनके पर्यावास में कमी और इनका शिकार, इनके क्षेत्र व संख्या में कमी के प्रमुख कारण हैं।
एक गणना के अनुसार, जंगली एशियाई हाथियों की संख्या 37 से 57 हज़ार के बीच है; इनका पर्यावास लगभग 5,00,000 वर्ग किमी में फ़ैला हुआ है। हाथी कंटीले झाड़ीदार जंगलों से लेकर सदाबहार वनों तक, दलदली क्षेत्र से लेकर घास के मैदानों तक और शुष्क एवं नम पर्णपाती वनों जैसे भिन्न पर्यावासों में पाए जाते हैं। पूर्वी हिमालय में हाथी 3,000 मीटर की ऊँचाई तक रहने में सक्षम है। 15 हज़ार हाथी बंदी अवस्था में हैं। भारत में लगभग 22 हज़ार जंगली और 3,000 पालतू हाथी हैं।
भारतीय हाथी
भारतीय हाथी एशियाई हाथियों की ही उपजाति हैं, अतः इनमें कोई विशेष अन्तर नहीं है। भारतीय हाथियों के अफ़्रीकी हाथियों के मुक़ाबले कान छोटे होते हैं, और माथा चौड़ा होता है। मादा के हाथीदाँत नहीं होते हैं। नर मादा से ज़्यादा बड़े होते हैं। सूँड अफ़्रीकी हाथी से ज़्यादा बड़ी होती है। पंजे बड़े व चौड़े होते हैं। पैर के नाख़ून ज़्यादा बड़े नहीं होते हैं। अफ़्रीकी पड़ोसियों के मुक़ाबले इनका पेट शरीर के वज़न के अनुपात में ही होता है, लेकिन अफ़्रीकी हाथी का सिर के अनुपात में पेट बड़ा होता है।
भारतीय हाथी लंबाई में 6.4 मीटर (21 फ़ुट) तक पहुँच सकता है; यह थाईलैंड के एशियाई हाथी से लंबा व पतला होता है। सबसे लंबा ज्ञात भारतीय हाथी 26 फ़ुट (7.88 मी) का था, पीठ के मेहराब के स्थान पर इसकी ऊँचाई 11 फुट (3.4 मीटर), 9 इंच (3.61 मीटर) थी और इसका वज़न 8 टन (17935 पौंड) था।
हाथी का पारिवारिक जीवन
अफ़्रीकी हाथी ज़मीन पर पाया जाने वाला सबसे बड़ा जीवित जानवर है, जिसका वजन 7,500 किलोग्राम तक होता है और कंधे तक ऊँचाई 3 से 4 मीटर होती है। भारतीय हाथी का वज़न लगभग 5,500 किलोग्राम और कंधे तह ऊँचाई 3 मीटर होती है; इसके कान अफ़्रीकी हाथी की तुलना में काफ़ी छोटे होते हैं। हाथियों में चर्वणक दाँत एक साथ ही पैदा नहीं होते; बल्कि पुराने दाँत के घिस जाने पर नया पैदा हो जाता है, लगभग 40 वर्ष की आयु में चर्वणक दाँतों का छठा और अंतिम जोड़ा निकलता है, इसलिए बहुत कम हाथी इससे अधिक आयु तक जीवित रह पाते हैं।
हाथी की औसत आयु 60 वर्ष की होती है, यद्यपि कुछ हाथी 70 वर्ष तक जीते पाए गए हैं। जन्म के समय बच्चा 1 मीटर ऊँचा और 90 किलोग्राम भार का होता है। तीन चार वर्षों तक हथिनी बच्चे को दूध पिलाती है और सिंह, बाघ, चीते आदि से बड़ी सर्तकता से उसकी रक्षा करती है।
जंगलों में हाथी वरिष्ठ हथिनी के नेतृत्व में छोटे पारिवारिक समूहों में रहते हैं। जहाँ भरपूर भोजन उपलब्ध होता है, वहाँ झुंड बड़े भी हो सकते हैं। अधिकांश नर मादाओं से अलग झुंड में रहते हैं। भोजन और पानी की उपलब्धता के अनुसार, हाथी मौसमी प्रवास करते हैं। वे कई घंटे भोजन करने में बिताते है और एक दिन में 225 किलोग्राम घास और अन्य वनस्पति खा सकते हैं। एशियाई हाथी अफ़्रीकी हाथी की तुलना में छोटा होता है और उसके शरीर का उच्चतम बिंदु कंधे के बजाय सिर होते हैं, सामने के पैरों पर नाख़ून जैसी पांच संरचनाएं और पिछले पैरों पर चार संरचनाएँ होती हैं। हाथी के पैर स्तंभ की भाँति सीधे होते हैं। खड़ा रहने के लिए इसे बहुत कम पेशी शक्ति की आवश्यकता पड़ती है। जब तक बीमार न पड़े या घायल न हो, तब तक अफ़्रीकी हाथी कदाचित् ही लेटता है। भारतीय हाथी प्राय: लेटते हुए पाए जाते हैं। हाथी की अँगुलियाँ त्वचा की गद्दी में धँसी रहती हैं। गद्दी के बीच में चर्बी की एक गद्दी होती है, जो शरीर के भार पड़ने पर फैल जाती और पैर ऊपर उठाने पर सिकुड़ जाती है। हाथी की त्वचा एक इंच मोटी पर पर्याप्त संवेदनशील होती है। त्वचा पर एक-एक इंच की दूरी पर बाल होते हैं। इसकी खाल खोल के सदृश और झुर्रीदार होती है। खाल का भार एक टन तक का हो सकता है।
आमतौर पर सिर्फ़ नरों के ही गजदंत होते हैं, जबकि अफ़्रीकी हाथियों में नर और मादा, दोनों में गजदंत पाए जाते हैं। हाथियों में घ्राणशाक्ति अत्यंत विकसित होती है और इसके ज़रिये वे ख़तरों का पता लगाते हैं तथा बांस के घने झुंडों में नरम कॉपल जैसे मनपसंद आहार ढूंढते हैं। खाते समय हाथी इस प्रकार खड़े होते है कि सबसे बड़ी हथिनी हवा की दिशा में खड़ी हो और बच्चे उसे ढूंढ सकें।
एशियाई हाथी किसी भी समय भोजन कर सकते हैं, लेकिन 24 घंटों में दो मुख्य भोजनकाल होते हैं। वयस्कों की गतिविधियों का 72 से 90 प्रतिशत हिस्सा भोजन ढूंढने और उसे खाने में बीतता है।
शारीरिक विलक्षणता
हाथी कुछ-कुछ स्लेटी से भूरे रंग के होते है और उनके शरीर के बाल बिखरे हुए तथा रूखे होते हैं। दोनों प्रजातियों में दो ऊपरी कृंतक दंत हाथीदाँत के रूप में विकसित होते हैं, लेकिन भारतीय हाथियों में यह आमतौर पर नहीं पाए जाते। नथुने, मांसल सूंड के छोर पर स्थित होते हैं, जो सांस लेने, खाने और पीने में उपयोगी होते हैं।
हाथी सूंड के ज़रिये पानी खींचकर अपने मुंह में डालते हैं।
हाथी की सूँड लगभग 2 मीटर लंबी और प्राय: 136 किलोग्राम भार की चमड़ी और अंतर्ग्रथित स्नायु और पेशियों की बनी होती है। यह अस्थिहीन, लचीली और असाधारण मज़बूत होती है। इससे वह सूंघता, पानी पीता, भोजन प्राप्त करता और उसे मुँह में डालता तथा अपने जोड़े और बच्चे को सहलाकर प्रेम प्रदर्शन आदि काम करता है। हाथी अपनी सूंड के छोर से घास, पत्तियाँ और फल तोड़कर अपने मुंह में डालते हैं। हाथी अपनी सूँड से भारी से भारी भी और छोटे सी छोटी यहाँ तक की मूँगफली सदृश वस्तुओं को भी उठा सकता है। हाथी की नासिका छोटी और खोपड़ी बहुत बड़ी होती है। हाथी अपनी सूंड के छोर से घास, पत्तियाँ और फल तोड़कर अपने मुंह में डालते हैं। किसी किसी भारतीय नर हाथी के गजदंत नहीं होता। ऐसे हाथी को 'मखना' हाथी कहते हैं। मखना का शरीर असाधारण बड़ा होता है।
हाथी स्नान करने में बड़ा नियमित होता है। अपने बच्चों को नियमित रूप से स्नान कराता है। यह अच्छा तैराक होता हैं। सारे शरीर को पानी में डूबोकर, केवल साँस के लिए सूँड़ को बाहर निकाले रख सकता है। यह किसी निश्चित स्थान पर पानी पीता, और एक स्थान पर जाकर विश्राम करता है। धूप से बचने के लिए घने जंगलों की छाया में सोता है। हाथी खड़ा खड़ा ही विश्राम करता है, अथवा करवट लेटता है। विश्राम के समय बिल्कुल शांत रहता है, केवल कान की फड़फड़ाहट या शरीर के डालने से उसकी उपस्थिति जानी जाती है।
जंगली हाथी दल बनाकर रहता है। दल में साधारणतया 30-40 बच्चे, बूढ़े, जवान, नर और मादा रहते हैं। किसी किसी दल में 300-400 तक रह सकते हैं। प्रस्थान करने पर ये एक कतार में श्रेणीबद्ध चलते हैं। बच्चे आगे आगे और शेष पीछे चलते हैं। आक्रमण के समय यह क्रम बदल जाता है और छोटी छोटी टुकड़ियाँ बनाकर वे विभिन्न दिशाओं में खिसक जाते हैं। आक्रमण की सूचना सूँड़ की गति से देते हैं। कुछ हाथी दल के नियमों का पालन नहीं करते। वे तब 'शैतान' या 'आवारा' कह जाते हैं और उन्हें दल से निकाल दिया जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि हाथी कुशाग्रबुद्धि होता है। कुशाग्रता के प्राणियों में पहला स्थान मनुष्य का, दूसरा चिम्पॅज़ी का, तीसरा औरांग ऊटांग का और चौथा हाथी का माना जाता है। डॉल्फ़िन पानी के भीतर सबसे बुद्धिमान है। ऐसा कहा जाता है कि हाथी की दृष्टि कमज़ोर होती है और वह 75 मीटर से अधिक दूरी पर खड़े किसी मनुष्य को पहचान नहीं सकता। इसकी श्रवणशक्ति अच्छी तथा घ्राण शक्ति और भी अच्छी होती है।
भोजन
विशालकाय जंगली हाथी की ख़ुराक भी उसके शरीर के अनुसार होती है। एक सामान्य वयस्क हाथी आराम के दिनों में 75 किलोग्राम तक भोजन एक दिन में खाता है। यह भोजन विभिन्न वनस्पतियों के रूप में होता है. लेकिन, लंबी यात्रा और श्रम करने वाला हाथी एक दिन में 150 किलोग्राम चारा यानी घास, पत्ती, वनस्पति और फल-फूल खा लेता है। गर्भवती और स्तनपान कराने वाली हथनी तो 200 किलोग्राम तक भोजन कर लेती है।
एक वयस्क हाथी एक घंटे में सात किलोग्राम भोजन ग्रहण कर सकता है और वे प्रतिदिन 18 घंटे भोजन करते हैं, इस प्रकार वे प्रतिदिन 150 किलोग्राम वनस्पति सामग्री (आर्द्र वज़न) का भक्षण करते हैं। दक्षिण भारत में एक अध्ययन से पाया गया कि हाथी पौधों की कम से कम 112 किस्म की प्रजातियाँ खाते हैं, लेकिन उनके आहार का लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा मॉलवेल्स गण और लेगुमिनसी, पाल्मे, साइपरेसी और ग्रामिनी परिवार की सिर्फ़ 25 प्रजातियों पर आधारित है।
अध्ययन से पता चला कि आर्द्र मौसम की शुरुआत में ये प्रोटीन युक्त घास खाते है और जब शुष्क मौसम में घास बड़ी हो जाती है, तब आहार में कोपलों की प्रधानता रहती है। चूंकि खेत में पैदा होने वाले खाद्यान्न तथा मिलेट फ़सलों में जंगली घास की अपेक्षा अधिक प्रोटीन, कैल्शियम और सोडियम होता है, इसलिए वे प्रायः खेतों पर भी धावा बोल देते हैं, लेकिन चाहे खेत जंगलों के पास स्थित क्यों न हों, सभी हाथी फ़सलों में घुसपैठ नहीं करते। हाथी, मिट्टी से सोडियम और पेड़ की छालों से भी कैल्शियम प्राप्त करते हैं। ये दिन में कम से कम एक बार पानी अवश्य पीते हैं और ताज़े पानी के स्थायी स्रोतों से कभी बहुत दूर नहीं जाते। दिन के गर्म समय में इनके लिए छांव अनिवार्य है। हाथी अपने कानों के ज़रिये ऊष्मा का विकिरण करते है और इनके कानों के फड़फड़ाने की दर हवा के वेग, परिवेश के तापमान तथा बादलों की स्थिति के अनुसार बदलती रहती है।
वितरण
वर्तमान समय में हाथी अपेक्षाकृत छोटे टेपिरनुमा स्तनधारी जंतु के वंशज हैं, जो कम से कम 4.50 करोड़ वर्ष पहले पाए जाते थे। इनके अवशेष मिस्र में मोएरिस झील के पास पाए गए हैं। इसी आधार पर इन्हें मोएरिथेरियम नाम दिया गया। इनके दोनों जबड़ों में दो-दो बड़े कृंतक दाँत प्राथमिक गजदंतों के रूप में विकसित हो चुके थे। मोएरिथेरियम की एक प्रशाखा प्रिमिलेफ़स से वृहद परिवार एलिफ़ैंटोइडी का विकास हुआ, जिसके तहत नवीनतम प्रोबोसीडियन परिवार भी आते हैं। ये परिवार होमो सेपियंस (मानव जाति) के प्रादुर्भाव के एकमात्र साक्षी हैं। विकास क्रम में इनके कई रूपों की उत्पत्ति और विलुप्ति हुई। 10 हज़ार साल पहले तक इस परिवार में सित्ग रोएंदार मैमथ (मैमथस प्रिमीजीनियस), इसके निकट संबंधी एशियाई हाथी (एलिफ़ैस मैक्सीमस), और इससे भिन्न अफ़्रीकी हाथी (लॉक्सोडोंटा अफ़्रीकाना) ही बचे थे। लगभग 5,000 साल पहले रोएंदार मैमथ समाप्त हो गए। जलवायु के गर्म होने से इनके विलुप्त होने की प्रक्रिया शुरू हुई, क्योंकि उससे इनका चारा जलमग्न को गया। मानव द्वारा शिकार से भी इनके विलुप्त होने की गति तेज़ हुई।
कई शताब्दियों से भारतीय हाथी, समारोहों और बोझा ढोने के काम के लिए महत्त्वपूर्ण रहे हैं। अपने महावत के नियंत्रण में हाथी पेड़ों की कटाई के अपरिहार्य अंग हैं। अफ़्रीकी हाथी का भी इस्तेमाल बोझा ढोने के लिए होता है, लेकिन यह अपेक्षाकृत बहुत व्यापक नहीं है।
पारिवारिक इकाई
हाथी की दोनों ही प्रजातियों में उसी झुंड में रहने की प्रवृत्ति होती है, जिसमें उनका जन्म हुआ हो। हाथियों के सामाजिक संगठन की आधारभूत इकाई पारिवारिक समूह है, जिसमें दो से आठ हाथी हो सकते हैं। कई समूह मिलकर एक झुंड या कुल का निर्माण करते हैं तथा कई कुलों से किसी क्षेत्र में हाथियों की संख्या का निर्धारण होता है। झुंड मातृवंशीय आधार पर संगठित होता है और सबसे बड़ी व अनुभवी मादा इसके संचालन की देखरेख करती है। लेकिन सबसे मज़बूत बंधन मादा और उसके नवजात बच्चे का होती है।
चार वर्ष की आयु में वे झुंड की मादाओं के साथ कम समय व्यतीत करते हैं तथा अपनी उम्र के या अपने से बड़े नरों के साथ अस्थायी रूप से संपर्क स्थापित करते हैं। एशियाई नर हाथियों के सबसे बड़े झुंड में सात सदस्य होते हैं। नर 14 से 15 वर्ष की आयु में यौन परिपक्वता हासिल कर लेते हैं और मादाएँ 15 या 16 वर्ष की आयु में पहले बच्चे को जन्म देती हैं।
वयस्क नर तब तक किसी झुंड से संबद्ध नहीं होता है, जब तक झुंड में मैथुन के लिए तैयार कोई हथिनी मौज़ूद न हो। दिखावटी संघर्ष और अन्य सामान्य मुक़ाबलों से नर एक-दूसरे की शक्ति का अनुमान लगाते हैं, इसलिए मादाओं के लिए गंभीर संघर्ष शायद ही कभी होते हैं। 20 वर्ष की अवस्था में नर के शरीर का पूर्ण विकास हो जाता है। परिपक्व हाथी हर साल एक बार मद की स्थिति में आता है, जिसके दौरान उसकी आँखों के पीछे स्थित ग्रंथियों से स्राव होता है। वे आक्रामक हो जाते हैं और मादाओं के साथ रहने लगते हैं, जिसके बाद सहवास होता है। मद की तुलना अन्य खुरदार पशुओं के मैथुन काल से की जा सकती है। नर हाथी कभी भी सहवास कर सकते हैं, लेकिन मदकाल में उनकी यौन उत्तेजना बढ़ जाती है।
हथिनियों में गर्भावस्था 18 से 22 महीने तक की होती है। अंतिम चरण को छोड़कर अन्य समय में गर्भ का बाहर से पता नहीं चलता है। गर्भावधि के अंत में स्तनों में सूजन आ जाती है, थन फूल जाते है और उनसे पानी जैसे द्रव का रिसाव भी हो सकता है। प्रसव पीड़ा कम समय से लेकर कई घंटों की हो सकती है, लेकिन प्रसव लगभग पाँच मिनट में ही हो जाता है। मादा आमतौर पर प्रसव के समय निकलने वाले पदार्थों को खा जाती है।
बच्चों का जन्म
बच्चों का जन्म साल के किसी भी मौसम में हो सकता है, लेकिन अधिकांश बच्चे वर्षा ॠतु के अंतिम दिनों में पैदा होते हैं। आमतौर पर एक ही बच्चा जन्म लेता है और कभी-कभार ही जुड़वाँ या तीन बच्चों का जन्म होता है। अनुकूल पर्यावास में दो बच्चों के बीच का अंतर 2.5-4 वर्ष होता है। कम अनुकूल क्षेत्रों में यह अंतराल 5 से 8 वर्ष तक का हो सकता है। नवजात का वज़न 100 किलोग्राम (80 से 110 किलोग्राम तक) और कंधे तक ऊँचाई 75 से 90 सेमी होती है। वयस्कों के मुक़ाबले बच्चों के शरीर पर काफ़ी बाल होते हैं। शिशु प्रायः माता की सहायता से सीधे थन पर मुंह लगाकर (सूंड के ज़रिये नहीं) दूध पीते हैं, और अपनी माँ या अन्य दुग्धपान करा सकने वाली मादाओं का दूध पीते हैं। डेढ महीने से बच्चे ठोस आहार लेना शुरू कर देते हैं और वे वयस्कों से उचित भोजन के बारे में सीखते हैं। प्रायः बच्चे अपनी माँ की लीद भी खा लेते हैं, जिससे सेल्युलोज़ पचाने में सहायक सहजीवी बैक्टीरिया उनके जठरांत्र में पहुँच जाता है।
मृत्यु
हाथियों की मृत्यु छोटी अवस्था में अन्य पशुओं द्वारा उन्हें मारकर खाने, रोग और परजीवी, दुर्घटनाओं, सूखा, तनाव, शिकार, वृद्धावस्था और आपसी संघर्ष के कारण होती है। जब हाथी की छह चर्वणक दंतावलियों में से अंतिम दंतावली भी घिस जाती है, तो वह भूख से मर जाता है। जीवन भर सेलखड़ी और घास के पौष्टिक आहार और कई प्रकार की रसदार वनस्पतियों के आहार के बाद के बाद भी हाथी आमतौर पर 50 वर्ष से 65 वर्ष के बीच ऐसा भोगते हैं।
जन-जीवन का विनाश
झुंड तथा नरों का गृहक्षेत्र 60 से 500 वर्ग किलोमीटर तक होता है, इसलिए इनके संरक्षण के सफल उपाय के लिए विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों और पर्याप्त स्वच्छ जल वाले विशाम क्षेत्र की आवश्यकता होती है। हाथियों के पर्यावास के अंदर और उसके किनारे पर मानव आबादी के फलस्वरूप हाथी और मनुष्यों में संघर्ष से हाथी व मनुष्य, दोनों की ही जानों का नुक़सान होता है। भारत में प्रतिवर्ष लगभग 300 लोग हाथियों द्वारा मारे जाते हैं और 200 हाथी अवैध शिकार, फ़सल रक्षा और दुर्घटनाओं के कारण मरते हैं।
संकट ग्रस्त प्रजाति का संरक्षण
हाथी अपने पर्यावास के विनाश और मनुष्यों द्वारा शोषण के कारण गहरे संकट में है। भारतीय हाथी को विलुप्तप्राय प्रजाति माना गया है और अफ़्रीकी हाथी संकटग्रस्त वर्ग में है। अफ़्रीकी हाथी को प्रमुख ख़तरा हाथीदाँत के व्यापार के कारण होने वाले अवैध शिकार से है। चूंकि मादा एशियाई हाथी के गजदंत नहीं होते और सिर्फ़ मांस के लिए शिकार आमतौर पर नहीं होता, इसलिए वे सुरक्षित हैं। लेकिन हाथीदाँत के लिए नर एशियाई हाथियों के शिकार के कारण दक्षिण भारत के कई इलाकों में वयस्कों का लैंगिक अनुपात बिगड़ गया है। कुछ इलाक़ों में गजदंत वाले नर की अनुपस्थिति में गजदंतहीन नर (जिसे मखना कहा जाता है) प्रजनन कर सकता है।
लेकिन कुछ इलाक़ों में बहुत कम गजदाँतहीन नर हैं, इसलिए अंततः स्थिति यह है कि सभी मादाओं के साथ सहवास के लिए किसी भी प्रकार के नरों की संख्या काफ़ी नहीं है।
1999 में दक्षिण भारत के सबसे अधिक अवैध शिकार प्रभावित पेरियार व्याघ्र अभयारण्य में यह लिंग अनुपात 100 मादाओं पर एक नर का था। दूसरी तरफ़ हिमालय के निचले क्षेत्रों के राजाजी कॉर्बेट अभयारण्य में यह अनुपात 2.5 मादाओं पर एक हाथी का है और वहाँ 90 प्रतिशत से अधिक वयस्क मादाओं के साथ 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे थे। भारत सरकार द्वारा 1992 में शुरू की गई हाथी परियोजना उनके पर्यावास विखंडन, पर्यावास क्षरण, शिकार-चोरी और हाथी-मानव संघर्ष जैसे समस्याओं को दूर करने का एक प्रयास है।
वन्यजीव अभयारण्यों में हाथियों की संख्या आवश्यकता से अधिक भी हो सकती है, जिससे उनके पर्यावास को और नुक़सान हो सकता है। इसलिए सीमित संख्या में उन्हें मार डालने की भी ज़रूरत होती है। संरक्षण के उपायों में अवैध शिकारियों से सुरक्षा और प्रमुख प्रवासी मार्ग की रक्षा के लिए पगडंडियों समेत बड़े अभयारण्यों की स्थापना भी शामिल है।
हाथी के अन्य संदर्भ
गुलाबी हाथी
अभी तक काले और सफ़ेद हाथी के बारे में ही सुना जाता था, पर हाल ही में एक फ़ोटोग्राफर ने अफ़्रीका के जंगल में गुलाबी हाथी के बच्चे को कैद किया है। बोत्सवाना के जंगल में देखे गए इस हाथी के बच्चे को लेकर विशेषज्ञों को काफ़ी आशंकाएँ हैं। उनका मानना है कि यह एल्बिनो नस्ल का हाथी रहा होगा, जिसके बचने की संभावना काफ़ी कम है।
उनका मानना है कि अफ़्रीका के जंगलों में चिलचिलाती सूरज की किरणों की वजह से उसे अंधापन और चमड़े की बीमारी हो सकती है। बीबीसी वाइल्ड लाइफ प्रोग्राम के लिए फ़िल्म की शूटिंग कर रहे माइक होल्डिंग ने ओकावेंगो नदी के पास 80 हाथियों के समूह में एक गुलाबी रंग के हाथी बच्चे को जाते देखा और उन्होंने इस दृश्य को कैमरे में कैद करने में तनिक भी देरी नहीं की।[1]
हिंसक हाथी
हाथियों ने पिछले दो दशकों के दौरान छत्तीसगढ़ में 120 से ज़्यादा मनुष्यों की जान ली है। आंकड़ों की यह सच्चाई बताती है कि विकास के नाम पर जंगलों के कटने और वनस्पतियों के अभाव के कारण पर्यावरण को कितना नुक़सान हो रहा है। अपने ठिकानों पर क़ब्ज़ा होते देखकर जानवर शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन कर रहे हैं। इसी आपाधापी में वे हिंसक भी होते जा रहे हैं। राज्य सरकारें केवल मुआवज़ा वितरित कर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेती हैं, जबकि समस्या का हल केवल पर्यावरण एवं वन संरक्षण के ज़रिए ही संभव है। ज्ञान-विज्ञान एवं तकनीक में लगातार समृद्ध हो रहे मानव समाज ने वनों और प्राकृतिक पर्यावरण से जिस प्रकार छेड़छाड़ की है, उससे अब वन्य प्राणियों में अपने अस्तित्व के लिए जंग लड़ने की भावना पैदा हो गई है।
आए दिन वन्य प्राणियों के गांवों एवं शहरों में प्रवेश, खेती-पालतू पशुओं को नुक़सान पहुँचाने और मनुष्यों पर घातक हमला करने की घटनाएँ मध्य प्रदेश में भी बढ़ रही हैं। मनुष्य ने वनों पर क़ब्ज़ा कर लिया है। इसलिए वन्य प्राणियों के सामने सुरक्षित निवास और भोजन की समस्या पैदा हो गई है। पेट की आग बुझाने के लिए वे मौक़ा पाते ही गांवों और शहरों की तरफ दौड़ते हैं तथा मनचाहा भोजन छीन लेते हैं।
सरगुजा ज़िले में 2000 से सितंबर 2009 तक हाथियों के हमलों से 20 लोग मारे गए, जिनके परिवारजनों को 17 लाख 90 हज़ार रुपये का मुआवज़ा दिया गया। 19 घायलों को 27000 रुपये और फ़सल-मकान उजाड़ने के 8263 मामलों में सात करोड़ 13 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया गया। मुआवज़ा वितरण, मनुष्यों के मारे जाने और घायल होने के आँकड़े इस अंचल में हाथियों एवं मनुष्यों के बीच चल रही जंग के सबूत हैं। इसके बावज़ूद सरकार हाथियों के लिए सुरक्षित निवास और आरक्षित वन क्षेत्र देने में आनाकानी कर रही है। सरकार मान चुकी है कि छत्तीसगढ़ में हाथियों की रक्षा के लिए एक अभयारण्य और एक सुरक्षित हरा-भरा वनक्षेत्र होना चाहिए।[2]
भारतीय संस्कृति का प्रतीक हाथी
हिन्दू धर्म में हाथी को पवित्र प्राणी माना गया है। अश्विन मास की पूर्णिमा के दिन गजपूजाविधि व्रत रखा जाता है। सुख समृद्धि की इच्छा रखने वाले उस दिन हाथी की पूजा करते हैं। गणेश जी का मुख हाथी का होने के कारण उनके गजतुंड, गजानन आदि नाम हैं। गजेन्द्र मोक्ष कथा में गजेन्द्र ने मगर के ग्राह से छूटने के लिए श्री हरि की स्तुति की थी। श्री हरि ने गजेन्द्र को मगर के ग्राह से छुड़ाया था। गजेन्द्र मोक्ष स्रोत का स्थान गीता में है। गीता में श्री कृष्ण ने हाथियों में ऐरावत को अपनी विभूति बताया है। हाथी शुभ शकुन वाला और लक्ष्मी दाता माना जाता है।
समाचार
रविवार, 12 सितंबर, 2010
हाथी राष्ट्रीय धरोहर प्राणी घोषित होगा केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने गजराज यानी हाथी को राष्ट्रीय धरोहर प्राणी घोषित किया है। इसके संरक्षण हेतु बाघ संरक्षण प्राधिकरण की तर्ज़ पर गजराज संरक्षण प्राधिकरण बनाया जायेगा व विशेष टॉस्क फोर्स का गठन किया जायेगा। यही नहीं, 12वीं पंचवर्षीय योजना में इसके लिए 600 करोड़ की राशि दी जायेगी। इसका कारण यह है कि आज हाथियों के अस्तित्व पर भीषण संकट है। हाथी-दाँत के कारोबार के चलते आये दिन शिकारियों द्वारा हाथियों की हत्याएँ की जा रही हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है....
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शुक्रवार, 15 अक्टूबर, 2010
हाथी राष्ट्रीय विरासत पशु घोषित
पर्यावरण मंत्रालय ने हाथियों के संरक्षण की दिशा में क़दम उठाते हुए उन्हें राष्ट्रीय धरोहर पशु घोषित कर दिया। राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड (एनबीडब्ल्यूएल) की स्थाई समिति की 13 अक्टूबर, 2010 को हुई बैठक में हाथियों को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने वाले प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी। इसके बाद पर्यावरण मंत्रालय ने 15 अक्टूबर, 2010 को इस सम्बंध में अधिसूचना जारी की। ...
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वीथिका
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जंगली हाथियों का झुंड, जिम कोर्बेट राष्ट्रीय पार्क
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हाथी दांत
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अफ्रीका के जंगल में दिखा गुलाबी हाथी (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 7 मई, 2010।
- ↑ हाथी हिंसक क्यों हो रहे हैं? (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) चौथी दुनिया। अभिगमन तिथि: 18 फ़रवरी, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
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