"लार": अवतरणों में अंतर
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([[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]:Saliva) मनुष्य की [[मुख]] ग्रासन गुहिका सदैव लार नामक तरल से नम बनी रहती है। लार [[दाँत|दाँतों]], [[जीभ]] तथा मुखगुहिका की सफाई करती रहती है। भोजन करते समय मुखगुहिका में लार की मात्रा बढ़ जाती है और यह मुख में आए हुए भोजन को चिकना तथा घुलनशील बनाती है और इसके रासायनिक विबन्धन को प्रारम्भ करती है। | ([[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]:Saliva) इस लेख में [[मानव शरीर]] से संबंधित उल्लेख है। मनुष्य की [[मुख]] ग्रासन गुहिका सदैव लार नामक तरल से नम बनी रहती है। लार [[दाँत|दाँतों]], [[जीभ]] तथा मुखगुहिका की सफाई करती रहती है। भोजन करते समय मुखगुहिका में लार की मात्रा बढ़ जाती है और यह मुख में आए हुए भोजन को चिकना तथा घुलनशील बनाती है और इसके रासायनिक विबन्धन को प्रारम्भ करती है। | ||
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लार एक सीरमी तरल तथा एक चिपचिपे श्लेष्म का [[मिश्रण]] होती है। लार का स्रावण दो प्रकार की लार ग्रन्थियों से होता है- | लार एक सीरमी तरल तथा एक चिपचिपे श्लेष्म का [[मिश्रण]] होती है। लार का स्रावण दो प्रकार की लार ग्रन्थियों से होता है- | ||
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## अधोहनु या सबमैक्सिलरी या सबमैण्डीबुलर लार ग्रन्थियाँ- ये ऊपरी व निचले जबड़े के सन्धि स्थल के पास स्थित होती है। प्रत्येक ग्रन्थि की वाहिनी निचले जबड़े के कृन्तक दाँतों के ठीक पीछे खुलती है। | ## अधोहनु या सबमैक्सिलरी या सबमैण्डीबुलर लार ग्रन्थियाँ- ये ऊपरी व निचले जबड़े के सन्धि स्थल के पास स्थित होती है। प्रत्येक ग्रन्थि की वाहिनी निचले जबड़े के कृन्तक दाँतों के ठीक पीछे खुलती है। | ||
## कर्णमूल या पैरोटिड लार ग्रन्थियाँ- ये ग्रन्थियाँ सिर के दोनों ओर कर्णपल्लव के कुछ नीचे स्थित होती हैं। इनकी वाहिनियाँ ऊपरी कृन्तक दाँतों के पीछे खुलती हैं। | ## कर्णमूल या पैरोटिड लार ग्रन्थियाँ- ये ग्रन्थियाँ सिर के दोनों ओर कर्णपल्लव के कुछ नीचे स्थित होती हैं। इनकी वाहिनियाँ ऊपरी कृन्तक दाँतों के पीछे खुलती हैं। | ||
लार ग्रन्थियों से लार स्रावित होती है। इसमें 98% जल और 2% जल, श्लेष्म (म्यूसिन) तथा '''टायलिन''' [[एन्जाइम]] होता है। टायलिन भोजन की मण्ड को शर्करा में परिवर्तित करता है और म्यूसिन लुग्दी को चिकना बनाता है, जिससे भोजन सुगमतापूर्वक ग्रसिका की क्रमाकुंचन गति के द्वारा आमाशय में पहुँच जाता है। | लार ग्रन्थियों से लार स्रावित होती है। इसमें 98% जल और 2% जल, श्लेष्म (म्यूसिन) तथा '''टायलिन''' [[एन्जाइम]] होता है। टायलिन भोजन की मण्ड को शर्करा में परिवर्तित करता है और म्यूसिन लुग्दी को चिकना बनाता है, जिससे भोजन सुगमतापूर्वक ग्रसिका की क्रमाकुंचन गति के द्वारा [[आमाशय]] में पहुँच जाता है। | ||
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15:24, 27 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
(अंग्रेज़ी:Saliva) इस लेख में मानव शरीर से संबंधित उल्लेख है। मनुष्य की मुख ग्रासन गुहिका सदैव लार नामक तरल से नम बनी रहती है। लार दाँतों, जीभ तथा मुखगुहिका की सफाई करती रहती है। भोजन करते समय मुखगुहिका में लार की मात्रा बढ़ जाती है और यह मुख में आए हुए भोजन को चिकना तथा घुलनशील बनाती है और इसके रासायनिक विबन्धन को प्रारम्भ करती है।
लार ग्रन्थियाँ
लार एक सीरमी तरल तथा एक चिपचिपे श्लेष्म का मिश्रण होती है। लार का स्रावण दो प्रकार की लार ग्रन्थियों से होता है-
- लघु या सहायक लार ग्रन्थियाँ- ये होठों, कपोलों (गालों), तालु एवं जीभ पर ढँकी श्लेष्मिका में उपस्थित अनेक छोटी–छोटी सीरमी एवं श्लेष्मिका ग्रन्थियाँ होती हैं। ये श्लेष्मिका कला को नम बनाए रखने के लिए थोड़ी–थोड़ी मात्रा में सीधे ही लार का स्रावण मुखगुहा में सदैव करती रहती हैं।
- वृहद या प्रमुख लार ग्रन्थियाँ- हमारी मुख गुहिका में लार की अधिकांश मात्रा का स्रावण तीन जोड़ी बड़ी लार ग्रन्थियों के द्वारा होता है। ये मुखगुहिका के बाहर स्थित होती हैं और अपनी वाहिकाओं द्वारा स्रावित लार को मुखगुहिका में मुक्त करती हैं। ये ग्रन्थियाँ बहुकोशिकीय तथा पिण्डकीय होती हैं। ये निम्नलिखित होती हैं-
- अधोजिह्वा सबलिंगुअल लार ग्रन्थियाँ- इनका एक जोड़ा जीभ के नीचे मुखगुहा के तल पर स्थित होता है। ये कई महीन वाहिनियों के द्वारा जबड़े व जीभ के नीचे खुलती है।
- अधोहनु या सबमैक्सिलरी या सबमैण्डीबुलर लार ग्रन्थियाँ- ये ऊपरी व निचले जबड़े के सन्धि स्थल के पास स्थित होती है। प्रत्येक ग्रन्थि की वाहिनी निचले जबड़े के कृन्तक दाँतों के ठीक पीछे खुलती है।
- कर्णमूल या पैरोटिड लार ग्रन्थियाँ- ये ग्रन्थियाँ सिर के दोनों ओर कर्णपल्लव के कुछ नीचे स्थित होती हैं। इनकी वाहिनियाँ ऊपरी कृन्तक दाँतों के पीछे खुलती हैं।
लार ग्रन्थियों से लार स्रावित होती है। इसमें 98% जल और 2% जल, श्लेष्म (म्यूसिन) तथा टायलिन एन्जाइम होता है। टायलिन भोजन की मण्ड को शर्करा में परिवर्तित करता है और म्यूसिन लुग्दी को चिकना बनाता है, जिससे भोजन सुगमतापूर्वक ग्रसिका की क्रमाकुंचन गति के द्वारा आमाशय में पहुँच जाता है।
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