"त्रिविक्रम तृतीया": अवतरणों में अंतर
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*यह व्रत तीन या बारह वर्ष तह होता है। | *यह व्रत तीन या बारह वर्ष तह होता है। | ||
*इस व्रत में त्रिविक्रम एवं लक्ष्मी की पूजा की जाती है। | *इस व्रत में त्रिविक्रम एवं लक्ष्मी की पूजा की जाती है। | ||
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*अन्य मतों के अनुसार [[ज्येष्ठ]] शुक्ल की तृतीया को आरम्भ होता है। | *अन्य मतों के अनुसार [[ज्येष्ठ]] शुक्ल की तृतीया को आरम्भ होता है। | ||
*द्वितीया को उपवास और तृतीया के प्रातः अग्निपूजा तथा संध्या को सूर्यपूजा होती है। | *द्वितीया को उपवास और तृतीया के प्रातः अग्निपूजा तथा संध्या को सूर्यपूजा होती है। | ||
*उस दिन नक्त (रात्रि में भोजन), [[विष्णु]] के तीन पदों की पूजा की जाती है। | *उस दिन नक्त (रात्रि में भोजन), [[विष्णु]] के तीन पदों की पूजा की जाती है। | ||
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12:44, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया पर आरम्भ होता है।
- यह व्रत तीन या बारह वर्ष तह होता है।
- इस व्रत में त्रिविक्रम एवं लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
- ऋग्वेद[1] के मन्त्र के साथ नारियों तथा शूद्रों के लिए 'त्रिविक्रमाय नमः' के साथ होम भी होता है।[2]
- अन्य मतों के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल की तृतीया को आरम्भ होता है।
- द्वितीया को उपवास और तृतीया के प्रातः अग्निपूजा तथा संध्या को सूर्यपूजा होती है।
- उस दिन नक्त (रात्रि में भोजन), विष्णु के तीन पदों की पूजा की जाती है।
- यह व्रत एक वर्ष तक होता है।[3]
अन्य संबंधित लिंक
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