"पौष व्रत": अवतरणों में अंतर
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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में | *[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक [[व्रत]] संस्कार है। | ||
*कृत्यरत्नाकर<ref>कृत्यरत्नाकर (474-786 | *कृत्यरत्नाकर<ref>कृत्यरत्नाकर (474-786</ref>; वर्षक्रियाकौमुदी<ref>वर्षक्रियाकौमुदी (487-490</ref>; निर्णयसिन्धु<ref>निर्णयसिन्धु (211-212</ref>; स्मृतिकौस्तुभ<ref>स्मृतिकौस्तुभ (432-439</ref> में इस व्रत का विस्तृत विवरन् है। | ||
*[[पौष]] में [[शिवलिंग|शिव लिंग]] पर किसी पात्र से घृत ढारना चाहिए। | *[[पौष]] में [[शिवलिंग|शिव लिंग]] पर किसी पात्र से घृत ढारना चाहिए। | ||
*ऐसा करते समय संगीत, नृत्य आदि किये जाते हैं और प्रकाश आदि का सुन्दर प्रबन्ध रहता है। | *ऐसा करते समय संगीत, नृत्य आदि किये जाते हैं और प्रकाश आदि का सुन्दर प्रबन्ध रहता है। | ||
*इससे पापमोचन होता है और व्यक्ति शिवलोक को जाता है।<ref> | *इससे पापमोचन होता है और व्यक्ति शिवलोक को जाता है।<ref>कृत्यरत्नाकर 478</ref> | ||
*[[बुधवार]] से युक्त पौष [[अष्टमी]] पर [[शिव]] पूजार्थ स्नान, जप, होम, ब्रह्म भोज करने पर सहस्रगुना पुण्य लाभ प्राप्त होता है।<ref> | *[[बुधवार]] से युक्त पौष [[अष्टमी]] पर [[शिव]] पूजार्थ स्नान, जप, होम, ब्रह्म भोज करने पर सहस्रगुना पुण्य लाभ प्राप्त होता है।<ref>निर्णयसिन्धु 211</ref> | ||
*पौष के दोनों पक्षों की [[नवमी]] पर [[उपवास]] और प्रतिदिन तीन बार [[दुर्गा]] पूजा करनी चाहिए। | *पौष के दोनों पक्षों की [[नवमी]] पर [[उपवास]] और प्रतिदिन तीन बार [[दुर्गा]] पूजा करनी चाहिए। | ||
*पूरे मास भर नक्त भोजन तथा दुर्गा प्रतिमा को घृत से नहलाना, आठ कुमारियों को खिलाना, आटे से निर्मित दुर्गा प्रतिमा की पूजा करना चाहिए। | *पूरे मास भर नक्त भोजन तथा दुर्गा प्रतिमा को घृत से नहलाना, आठ कुमारियों को खिलाना, आटे से निर्मित दुर्गा प्रतिमा की पूजा करना चाहिए। | ||
*इससे दुर्गा लोक | *इससे दुर्गा लोक में पहुँच होती है।<ref>कृत्यरत्नाकर, 477, भविष्यपुराण से उद्धरण</ref> | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
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07:37, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- कृत्यरत्नाकर[1]; वर्षक्रियाकौमुदी[2]; निर्णयसिन्धु[3]; स्मृतिकौस्तुभ[4] में इस व्रत का विस्तृत विवरन् है।
- पौष में शिव लिंग पर किसी पात्र से घृत ढारना चाहिए।
- ऐसा करते समय संगीत, नृत्य आदि किये जाते हैं और प्रकाश आदि का सुन्दर प्रबन्ध रहता है।
- इससे पापमोचन होता है और व्यक्ति शिवलोक को जाता है।[5]
- बुधवार से युक्त पौष अष्टमी पर शिव पूजार्थ स्नान, जप, होम, ब्रह्म भोज करने पर सहस्रगुना पुण्य लाभ प्राप्त होता है।[6]
- पौष के दोनों पक्षों की नवमी पर उपवास और प्रतिदिन तीन बार दुर्गा पूजा करनी चाहिए।
- पूरे मास भर नक्त भोजन तथा दुर्गा प्रतिमा को घृत से नहलाना, आठ कुमारियों को खिलाना, आटे से निर्मित दुर्गा प्रतिमा की पूजा करना चाहिए।
- इससे दुर्गा लोक में पहुँच होती है।[7]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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