"सदस्य:DrMKVaish": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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| ;अंतरिक्ष यान मैसेंजर बुध ग्रह पर पहुंचा | | | ||
;अंतरिक्ष यान मैसेंजर बुध ग्रह पर पहुंचा | |||
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के कार के आकार के एक अंतरिक्ष यान मैसेंजर का प्रक्षेपण 2004 में किया गया था। इसे बुध की सतह, भू-रसायन और अंतरिक्ष पर्यावरण का अध्ययन करना था । मैसेंजर सोमवार, अक्तूबर 6, 2008 को बुध ग्रह की महज 200 किलोमीटर की परिधि में पहुंच गया था और 07 अक्टूबर 2008 को पहली बार सौर मंडल के सबसे छोटे ग्रह बुध के सतह की करीब से तस्वीर लेने में सफलता हासिल कर ली थी । अंतरिक्ष यान मैसेंजर ने सूर्य के सबसे करीब स्थित इस ग्रह की भूमध्य रेखा के नजदीक करीब 200 किलोमीटर की दूरी से उड़ान भरी थी । यान के साथ भेजे गए तीन फ्लाइबाइ उपकरणों में से दूसरा उपकरण बुध की कक्षा में स्थापित होने के लिए छोड़ दिया गया था। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस यान द्वारा भेजी गई तस्वीरें बुध ग्रह की अब तक की सबसे बेहतरीन तस्वीरें हैं। मार्च 1975 में मैरिनर-10 की तीसरी और अंतिम उ़ड़ान के बाद से यह पहली बार है जब कोई अंतरिक्ष यान बुध की सतह के इतने करीब से गुजरा है। यह अंतरिक्ष यान उन तीन यानों में से एक है जो वर्ष 2011 तक बुध की कक्षा में प्रवेश करने जा रहा है। | अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के कार के आकार के एक अंतरिक्ष यान मैसेंजर का प्रक्षेपण 2004 में किया गया था। इसे बुध की सतह, भू-रसायन और अंतरिक्ष पर्यावरण का अध्ययन करना था । मैसेंजर सोमवार, अक्तूबर 6, 2008 को बुध ग्रह की महज 200 किलोमीटर की परिधि में पहुंच गया था और 07 अक्टूबर 2008 को पहली बार सौर मंडल के सबसे छोटे ग्रह बुध के सतह की करीब से तस्वीर लेने में सफलता हासिल कर ली थी । अंतरिक्ष यान मैसेंजर ने सूर्य के सबसे करीब स्थित इस ग्रह की भूमध्य रेखा के नजदीक करीब 200 किलोमीटर की दूरी से उड़ान भरी थी । यान के साथ भेजे गए तीन फ्लाइबाइ उपकरणों में से दूसरा उपकरण बुध की कक्षा में स्थापित होने के लिए छोड़ दिया गया था। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस यान द्वारा भेजी गई तस्वीरें बुध ग्रह की अब तक की सबसे बेहतरीन तस्वीरें हैं। मार्च 1975 में मैरिनर-10 की तीसरी और अंतिम उ़ड़ान के बाद से यह पहली बार है जब कोई अंतरिक्ष यान बुध की सतह के इतने करीब से गुजरा है। यह अंतरिक्ष यान उन तीन यानों में से एक है जो वर्ष 2011 तक बुध की कक्षा में प्रवेश करने जा रहा है। | ||
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;बुध ग्रह का वातावरण | ;बुध ग्रह का वातावरण | ||
पृथ्वी से 770 लाख किलोमीटर दूर स्थित सूर्य के ताप में तपते इस ग्रह की सतह के रासायनिक संगठन के बारे में भी पहली बार वैज्ञानिकों को जानकारी मिली है। अंतरिक्ष यान मैसेंजर ने बुध ग्रह के पतले वातावरण की संरचना की जांच की, ग्रह के निकट आवेशयुक्त कणों या आयनों के नमूने लिए और प्रेक्षण तथा ग्रह की सतह पर मौजूद पदार्थो के बारे में नए संबंधों का प्रदर्शन किया। अंतरिक्ष यान ने बुध ग्रह की अनूठी बाहरी सतह पर आयनीकृत कणों का भी पता लगाया। यह सतह एक बेहद पतले वातावरण से बनी है जिसमें कण इतनी दूर हैं कि एक दूसरे से टकराने के बजाय वे सतह से टकरा जाते हैं। ग्रह की अंडाकार कक्षा इसका धीमा घूर्णन और कणों की सतह के साथ प्रतिक्रिया और सौर हवा के कारण तीव्र मौसमी और दिन रात संबंधी बदलाव होते हैं। | मेसेंजर खोजी यान ने बुध ग्रह के वायुमंडल का नया मापन भी किया है. बुध का वायुमंडल अत्यंत सूक्ष्म अणुओं के बादलों से बना है जो सौर गतिविधियों और क्षुद्र उल्का पिंडों के टकराने के कारण ग्रह की सतह से उठते हैं। पृथ्वी से 770 लाख किलोमीटर दूर स्थित सूर्य के ताप में तपते इस ग्रह की सतह के रासायनिक संगठन के बारे में भी पहली बार वैज्ञानिकों को जानकारी मिली है। अंतरिक्ष यान मैसेंजर ने बुध ग्रह के पतले वातावरण की संरचना की जांच की, ग्रह के निकट आवेशयुक्त कणों या आयनों के नमूने लिए और प्रेक्षण तथा ग्रह की सतह पर मौजूद पदार्थो के बारे में नए संबंधों का प्रदर्शन किया। अंतरिक्ष यान ने बुध ग्रह की अनूठी बाहरी सतह पर आयनीकृत कणों का भी पता लगाया। यह सतह एक बेहद पतले वातावरण से बनी है जिसमें कण इतनी दूर हैं कि एक दूसरे से टकराने के बजाय वे सतह से टकरा जाते हैं। ग्रह की अंडाकार कक्षा इसका धीमा घूर्णन और कणों की सतह के साथ प्रतिक्रिया और सौर हवा के कारण तीव्र मौसमी और दिन रात संबंधी बदलाव होते हैं। | ||
समाचार एजेंसी डीपीए के अनुसार नासा के वैज्ञानिकों ने बताया कि यह बुधवार से धरती को आंकड़े भेजना शुरू कर देगा। मेसेंजर के पहले फ्लाइबाइ द्वारा जनवरी में भेजी गई तस्वीरों से बुध की सतह पर पहले हुए लावा के भारी बहाव का पता चला था। | समाचार एजेंसी डीपीए के अनुसार नासा के वैज्ञानिकों ने बताया कि यह बुधवार से धरती को आंकड़े भेजना शुरू कर देगा। मेसेंजर के पहले फ्लाइबाइ द्वारा जनवरी में भेजी गई तस्वीरों से बुध की सतह पर पहले हुए लावा के भारी बहाव का पता चला था। | ||
जॉन्स हॉपकिन्स युनिवर्सिटी के भौतिकी प्रयोगशाला के वैज्ञानिक राल्फ मैकनट ने बताया कि शुरूआती तस्वीरों से पता लगा है कि बुध की सतह पर चट्टानी मैदान हैं। उन्होंने बताया कि वहां खडी चट्टानें हैं । | जॉन्स हॉपकिन्स युनिवर्सिटी के भौतिकी प्रयोगशाला के वैज्ञानिक राल्फ मैकनट ने बताया कि शुरूआती तस्वीरों से पता लगा है कि बुध की सतह पर चट्टानी मैदान हैं। उन्होंने बताया कि वहां खडी चट्टानें हैं । | ||
श्री मैकनट ने कहा कि इस बार के आंकडे की तुलना जनवरी में भेजे आंकडे से करने के बाद ही बुध की भौगोलिक स्थिति का सही पता लग सकेगा। जनवरी के आंकडों से पता लगा था कि बुध के सतह के निर्माण में ज्वालामुखी सम्बन्धी गतिविधियों ने अहम भूमिका निभायी थी तथा यह ग्रह सिकुड रहा है। | श्री मैकनट ने कहा कि इस बार के आंकडे की तुलना जनवरी में भेजे आंकडे से करने के बाद ही बुध की भौगोलिक स्थिति का सही पता लग सकेगा। जनवरी के आंकडों से पता लगा था कि बुध के सतह के निर्माण में ज्वालामुखी सम्बन्धी गतिविधियों ने अहम भूमिका निभायी थी तथा यह ग्रह सिकुड रहा है। | ||
बुध की सतह पर मैदान तथा गहरे गड्ढे तथा लम्बी और ऊंचीं चट्टाने हैं। इसका आकार पृथ्वी के एक तिहाई के बराबर तथा हमारे चांद से थोडा सा ही बड़ा है। | बुध की सतह पर मैदान तथा गहरे गड्ढे तथा लम्बी और ऊंचीं चट्टाने हैं। इसका आकार पृथ्वी के एक तिहाई के बराबर तथा हमारे चांद से थोडा सा ही बड़ा है। | ||
खगोलविदों ने अब तक बुध को भले ही नीरस ग्रह का दर्जा दिया हो, लेकिन उसकी ताजा तस्वीरें बताती हैं कि वह अपने भीतर कई रहस्य समेटे हुए है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के प्रोब मैसेंजर से भेजी गई तस्वीरों से संकेत मिले हैं कि बुध पर करोड़ों साल पहले ज्वालामुखी भी थे। | खगोलविदों ने अब तक बुध को भले ही नीरस ग्रह का दर्जा दिया हो, लेकिन उसकी ताजा तस्वीरें बताती हैं कि वह अपने भीतर कई रहस्य समेटे हुए है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के प्रोब मैसेंजर से भेजी गई तस्वीरों से संकेत मिले हैं कि बुध पर करोड़ों साल पहले ज्वालामुखी भी थे। | ||
बुध की सतह के चिकनी होने को लेकर दशकों से बहस जारी है और खगोलविद अब तक बुध को सूर्य के सर्वाधिक करीब की एक चट्टान कहते आए थे लेकिन एमआईटी की वैज्ञानिक मारिया जुबेर का कहना है कि बुध कहीं ज्यादा दिलचस्प है। आश्चर्य की बात है कि वहां कभी ज्वालामुखी संबंधी गतिविधियों की भरमार थी। नई तस्वीरों में बुध की सतह पर ज्वालामुखियों के गड्ढे साफ दिखाई दे रहे हैं। | बुध की सतह के चिकनी होने को लेकर दशकों से बहस जारी है और खगोलविद अब तक बुध को सूर्य के सर्वाधिक करीब की एक चट्टान कहते आए थे लेकिन एमआईटी की वैज्ञानिक मारिया जुबेर का कहना है कि बुध कहीं ज्यादा दिलचस्प है। आश्चर्य की बात है कि वहां कभी ज्वालामुखी संबंधी गतिविधियों की भरमार थी। नई तस्वीरों में बुध की सतह पर ज्वालामुखियों के गड्ढे साफ दिखाई दे रहे हैं। | ||
इस यान की भेजी जानकारी के बाद वैज्ञानिकों ने कहा है कि उन्होंने बुध में ज्वालामुखीय गतिविधियाँ भी देखी हैं। इससे पहले मैरिनर-10 ने भी ऐसे संकेत दिए थे। | इस यान की भेजी जानकारी के बाद वैज्ञानिकों ने कहा है कि उन्होंने बुध में ज्वालामुखीय गतिविधियाँ भी देखी हैं। इससे पहले मैरिनर-10 ने भी ऐसे संकेत दिए थे। | ||
वैज्ञानिकों ने बुध की सतह पर भी चंद्रमा और मंगल ग्रह की तरह की संरचनाएँ देखी हैं और उनका कहना है कि यह भारी मात्रा में निकले लावा के कारण हो सकता है। उनका कहना है कि इससे पता चलता है कि इतिहास के शुरुआती दिनों में ग्रह में हलचल तेज रही होंगीं। उनका अनुमान है कि ये गतिविधियाँ तीन से चार अरब साल पहले हुई होंगीं। | वैज्ञानिकों ने बुध की सतह पर भी चंद्रमा और मंगल ग्रह की तरह की संरचनाएँ देखी हैं और उनका कहना है कि यह भारी मात्रा में निकले लावा के कारण हो सकता है। उनका कहना है कि इससे पता चलता है कि इतिहास के शुरुआती दिनों में ग्रह में हलचल तेज रही होंगीं। उनका अनुमान है कि ये गतिविधियाँ तीन से चार अरब साल पहले हुई होंगीं। | ||
पहले ऐसा माना जाता था कि बुध ग्रह की सतह का आकार बाहरी तत्व तय करते हैं, लेकिन इस ग्रह के नजदीक से गुजरे अंतरिक्ष यान से मिले ताजा आंकड़ों के आधार पर वैज्ञानिकों ने कहा है कि यह आकार वहां मौजूद सक्रिय ज्वालामुखी तय करते हैं । | |||
पहले ऐसा माना जाता था कि बुध ग्रह की सतह का आकार बाहरी तत्व तय करते हैं, लेकिन इस ग्रह के नजदीक से गुजरे अंतरिक्ष यान से मिले ताजा आंकड़ों के आधार पर वैज्ञानिकों ने कहा है कि यह आकार वहां मौजूद सक्रिय ज्वालामुखी तय करते हैं | |||
बुध ग्रह के सपाट मैदानों के उद्भव को लेकर विवाद 1972 के अपोलो 16 मिशन के साथ शुरू हो गया था। इस मिशन के बाद यह बात सामने आई थी कि कुछ मैदानी हिस्सा उस पदार्थ से बना जो ब्रह्मांडीय टक्करों के कारण छिटक गया था और फिर इससे सपाट तालाब बन गए। | बुध ग्रह के सपाट मैदानों के उद्भव को लेकर विवाद 1972 के अपोलो 16 मिशन के साथ शुरू हो गया था। इस मिशन के बाद यह बात सामने आई थी कि कुछ मैदानी हिस्सा उस पदार्थ से बना जो ब्रह्मांडीय टक्करों के कारण छिटक गया था और फिर इससे सपाट तालाब बन गए। | ||
जब अंतरिक्ष यान मैरीनर 10 ने सौर मंडल के सबसे छोटे बुध ग्रह की 1975 में ऐसी ही आकृतियों की तस्वीरें ली तो कुछ वैज्ञानिकों का मानना था कि ग्रह पर कुछ प्रक्रियाएं जारी हैं। कुछ अन्य वैज्ञानिकों का अनुमान था कि बुध ग्रह का मैदानी पदार्थ ज्वालामुखी विस्फोट से निकला लावा है लेकिन उस मिशन के दौरान ली गई तस्वीरों में ज्वालामुखी के दहानों या ज्वालामुखी के कारण दिखाई पड़ने वाली अन्य परिघटनाओं के न होने के चलते इस विचार पर आम राय नहीं बन पाई। | जब अंतरिक्ष यान मैरीनर 10 ने सौर मंडल के सबसे छोटे बुध ग्रह की 1975 में ऐसी ही आकृतियों की तस्वीरें ली तो कुछ वैज्ञानिकों का मानना था कि ग्रह पर कुछ प्रक्रियाएं जारी हैं। कुछ अन्य वैज्ञानिकों का अनुमान था कि बुध ग्रह का मैदानी पदार्थ ज्वालामुखी विस्फोट से निकला लावा है लेकिन उस मिशन के दौरान ली गई तस्वीरों में ज्वालामुखी के दहानों या ज्वालामुखी के कारण दिखाई पड़ने वाली अन्य परिघटनाओं के न होने के चलते इस विचार पर आम राय नहीं बन पाई। | ||
लेकिन अब अनुसंधानकर्ताओं ने ग्रह के कोलारिस बेसिन नामक स्थान के किनारे - किनारे ज्वालामुखी गतिविधियों का पता लगाया है। उन्होंने यह भी पाया कि कोलारिस का भौगोलिक इतिहास वैज्ञानिकों की पूर्व अवधारणा से कहीं अधिक जटिल है। ग्रह पर ऊंचाई जानने के लिए पहली बार की गई गणनाओं से पता लगा कि यहां पाए गए गड्ढे पृथ्वी के चंद्रमा पर पाए जाने वाले गड्ढों से कुछ ही उथले हैं। इन गणनाओं में बुध ग्रह के जटिल भौगोलिक इतिहास का भी पता लगा है। | लेकिन अब अनुसंधानकर्ताओं ने ग्रह के कोलारिस बेसिन नामक स्थान के किनारे - किनारे ज्वालामुखी गतिविधियों का पता लगाया है। उन्होंने यह भी पाया कि कोलारिस का भौगोलिक इतिहास वैज्ञानिकों की पूर्व अवधारणा से कहीं अधिक जटिल है। ग्रह पर ऊंचाई जानने के लिए पहली बार की गई गणनाओं से पता लगा कि यहां पाए गए गड्ढे पृथ्वी के चंद्रमा पर पाए जाने वाले गड्ढों से कुछ ही उथले हैं। इन गणनाओं में बुध ग्रह के जटिल भौगोलिक इतिहास का भी पता लगा है। | ||
बुध ग्रह के नजदीक से गुजरे अंतरिक्ष यान मैसेंजर ने जानकारी दी है कि ग्रह की चुंबकीय शक्ति इसके भीतरी भाग और सतह में बेहद गतिशील और जटिल प्रतिक्रिया करती है। | बुध ग्रह के नजदीक से गुजरे अंतरिक्ष यान मैसेंजर ने जानकारी दी है कि इस ग्रह का चुंबकीय क्षेत्र पिघली हुई सतह से बनता है और ग्रह की चुंबकीय शक्ति इसके भीतरी भाग और सतह में बेहद गतिशील और जटिल प्रतिक्रिया करती है। | ||
मेसेंजर यान बुध ग्रह की 98 प्रतिशत सतह देख चुका है जिसके दौरान उसे एक गह्वर के चारों ओर का चमकदार क्षेत्र भी दिखाई दिया है जो संभवत ज्वालामुखी रहा होगा. | मेसेंजर यान बुध ग्रह की 98 प्रतिशत सतह देख चुका है जिसके दौरान उसे एक गह्वर के चारों ओर का चमकदार क्षेत्र भी दिखाई दिया है जो संभवत ज्वालामुखी रहा होगा. | ||
उसे दोहरे छल्ले वाला अपेक्षाकृत युवा कुंड भी मिला है जिसका व्यास 290 किलोमीटर है. | उसे दोहरे छल्ले वाला अपेक्षाकृत युवा कुंड भी मिला है जिसका व्यास 290 किलोमीटर है. इस खोजी दल की सदस्य ब्रेट डेनेवी इसकी व्याख्या करते हुए कहते हैं, ग्रह भू-विज्ञानियों के लिए युवा का मतलब कोई एक अरब साल पुराना हुआ क्योंकि बुध ग्रह के अन्य कुंड तीन अरब साल पुराने हैं. | ||
इस खोजी दल की सदस्य ब्रेट डेनेवी इसकी व्याख्या करते हुए कहते हैं, ग्रह भू-विज्ञानियों के लिए युवा का मतलब कोई एक अरब साल पुराना हुआ क्योंकि बुध ग्रह के अन्य कुंड तीन अरब साल पुराने हैं. | |||
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