"झूलेलाल": अवतरणों में अंतर
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समय ने करवट ली और नसरपुर के ठाकुर रतनराय के घर माता देवकी ने चैत्र शुक्ल 2 संवत 1007 को बालक को जन्म दिया। बालक का नाम उदयचंद रखा गया। इस चमत्कारिक बालक के जन्म का हाल जब मिरक शाह को पता चला तो उसने अपना अंत मानकर इस बालक को समाप्त करवाने की योजना बनाई। बादशाह के सेनापति दल-बल के साथ रतनराय के यहाँ पहुँचे और बालक के अपहरण का प्रयास किया, लेकिन झूलेलालजी ने अपनी दिव्य शक्ति से बादशाह के महल पर आग का कहर बरपा दिया। मिरक शाह की फ़ौजी ताक़त पंगु हो गई। उन्हें उदेरोलाल सिंहासन पर आसीन दिव्य पुरुष दिखाई दिया। सेनापतियों ने बादशाह को सब हकीकत बयान की। जब महल भयानक आग से जलने लगा तो बादशाह भागकर झूलेलाल जी के चरणों में गिर पड़ा। | समय ने करवट ली और नसरपुर के ठाकुर रतनराय के घर माता देवकी ने चैत्र शुक्ल 2 संवत 1007 को बालक को जन्म दिया। बालक का नाम उदयचंद रखा गया। इस चमत्कारिक बालक के जन्म का हाल जब मिरक शाह को पता चला तो उसने अपना अंत मानकर इस बालक को समाप्त करवाने की योजना बनाई। बादशाह के सेनापति दल-बल के साथ रतनराय के यहाँ पहुँचे और बालक के अपहरण का प्रयास किया, लेकिन झूलेलालजी ने अपनी दिव्य शक्ति से बादशाह के महल पर आग का कहर बरपा दिया। मिरक शाह की फ़ौजी ताक़त पंगु हो गई। उन्हें उदेरोलाल सिंहासन पर आसीन दिव्य पुरुष दिखाई दिया। सेनापतियों ने बादशाह को सब हकीकत बयान की। जब महल भयानक आग से जलने लगा तो बादशाह भागकर झूलेलाल जी के चरणों में गिर पड़ा। | ||
[[चित्र:Jhulelal-Jyanti-Mathura-1.jpg|thumb|झूलेलाल जयन्ती, [[मथुरा]]<br /> Jhulelal Jayanti, Mathura|200px|left]] | |||
उदेरोलाल ने किशोर अवस्था में ही अपना चमत्कारी पराक्रम दिखाकर जनता को ढाँढस बँधाया और यौवन में प्रवेश करते ही जनता से कहा कि बेखौफ अपना काम करे। उदेरोलाल ने बादशाह को संदेश भेजा कि शांति ही परम सत्य है। इसे चुनौती मान बादशाह ने उदेरोलाल पर आक्रमण कर दिया। बादशाह का दर्प चूर-चूर हुआ और पराजय झेलकर उदेरोलाल के चरणों में स्थान माँगा। '''उदेरोलाल ने सर्वधर्म समभाव का संदेश दिया'''। इसका असर यह हुआ कि मिरक शाह उदयचंद का परम शिष्य बनकर उनके विचारों के प्रचार में जुट गया। झूलेलाल जी की शक्ति से प्रभावित होकर ही मिरख शाह ने अमन का रास्ता अपनाकर बाद में [[कुरुक्षेत्र]] में एक ऐसा भव्य मंदिर बनाकर दिया, जो आज भी हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक और पवित्र स्थान माना जाता है। पाकिस्तान में झूलेलाल जी को जिंद पीर और लालशाह के नाम से जाना जाता है। | उदेरोलाल ने किशोर अवस्था में ही अपना चमत्कारी पराक्रम दिखाकर जनता को ढाँढस बँधाया और यौवन में प्रवेश करते ही जनता से कहा कि बेखौफ अपना काम करे। उदेरोलाल ने बादशाह को संदेश भेजा कि शांति ही परम सत्य है। इसे चुनौती मान बादशाह ने उदेरोलाल पर आक्रमण कर दिया। बादशाह का दर्प चूर-चूर हुआ और पराजय झेलकर उदेरोलाल के चरणों में स्थान माँगा। '''उदेरोलाल ने सर्वधर्म समभाव का संदेश दिया'''। इसका असर यह हुआ कि मिरक शाह उदयचंद का परम शिष्य बनकर उनके विचारों के प्रचार में जुट गया। झूलेलाल जी की शक्ति से प्रभावित होकर ही मिरख शाह ने अमन का रास्ता अपनाकर बाद में [[कुरुक्षेत्र]] में एक ऐसा भव्य मंदिर बनाकर दिया, जो आज भी हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक और पवित्र स्थान माना जाता है। पाकिस्तान में झूलेलाल जी को जिंद पीर और लालशाह के नाम से जाना जाता है। | ||
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झूलेलाल महोत्सव सिंधी समाज का सबसे बडा पर्व माना जाता है। झूलेलाल भगवान वरुणदेव का अवतरण है जो कि भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं। जो भी 4 दिन तक विधि- विधान से भगवान झूलेलाल की पूजा-अर्चना करता है, वह सभी दुःखों से दूर हो जाता है। सिंधी समाज का सबसे बडा धार्मिक आयोजन झूलेलाल महोत्सव माना जाता है। झूलेलाल उत्सव चेटीचंड, जिसे सिन्धी समाज सिन्धी दिवस के रूप में मनाता चला आ रहा है, पर समाज की विभाजक रेखाएँ समाप्त हो जाती हैं। '''यह सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है।''' | झूलेलाल महोत्सव सिंधी समाज का सबसे बडा पर्व माना जाता है। झूलेलाल भगवान वरुणदेव का अवतरण है जो कि भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं। जो भी 4 दिन तक विधि- विधान से भगवान झूलेलाल की पूजा-अर्चना करता है, वह सभी दुःखों से दूर हो जाता है। सिंधी समाज का सबसे बडा धार्मिक आयोजन झूलेलाल महोत्सव माना जाता है। झूलेलाल उत्सव चेटीचंड, जिसे सिन्धी समाज सिन्धी दिवस के रूप में मनाता चला आ रहा है, पर समाज की विभाजक रेखाएँ समाप्त हो जाती हैं। '''यह सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है।''' | ||
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08:09, 29 मार्च 2011 का अवतरण
सिंधी समाज के भगवान झूलेलाल का अवतरण धर्म के लिए हुआ है। भगवान झूलेलालजी के अवतरण की ऐसी ही एक कथा है। शताब्दियों पूर्व सिन्ध प्रदेश में मिरक शाह नाम का एक राजा राज करता था। राजा बहुत दंभी तथा असहिष्णु प्रकृति का था। सदैव अपनी प्रजा पर अत्याचार करता था। इस राजा के शासनकाल में सांस्कृतिक और जीवन-मूल्यों का कोई महत्त्व नहीं था। पूरा सिन्ध प्रदेश राजा के अत्याचारों से त्रस्त था। उन्हें कोई ऐसा मार्ग नहीं मिल रहा था जिससे वे इस क्रूर शासक के अत्याचारों से मुक्ति पा सकें।
लोककथाओं में यह बात लंबे समय से प्रचलित है कि मिरक शाह के आतंक ने जब जनता को मानसिक यंत्रणा दी तो जनता ने ईश्वर की शरण ली। सिन्धु नदी के तट पर ईश्वर का स्मरण किया तथा वरुणदेव उदेरोलाल ने जलपति के रूप में मत्स्य पर सवार होकर दर्शन दिए। तभी नामवाणी हुई कि अवतार होगा एवं नसरपुर के ठाकुर भाई रतनराय के घर माता देवकी की कोख से उपजा बालक सभी की मनोकामना पूर्ण करेगा।
समय ने करवट ली और नसरपुर के ठाकुर रतनराय के घर माता देवकी ने चैत्र शुक्ल 2 संवत 1007 को बालक को जन्म दिया। बालक का नाम उदयचंद रखा गया। इस चमत्कारिक बालक के जन्म का हाल जब मिरक शाह को पता चला तो उसने अपना अंत मानकर इस बालक को समाप्त करवाने की योजना बनाई। बादशाह के सेनापति दल-बल के साथ रतनराय के यहाँ पहुँचे और बालक के अपहरण का प्रयास किया, लेकिन झूलेलालजी ने अपनी दिव्य शक्ति से बादशाह के महल पर आग का कहर बरपा दिया। मिरक शाह की फ़ौजी ताक़त पंगु हो गई। उन्हें उदेरोलाल सिंहासन पर आसीन दिव्य पुरुष दिखाई दिया। सेनापतियों ने बादशाह को सब हकीकत बयान की। जब महल भयानक आग से जलने लगा तो बादशाह भागकर झूलेलाल जी के चरणों में गिर पड़ा।
उदेरोलाल ने किशोर अवस्था में ही अपना चमत्कारी पराक्रम दिखाकर जनता को ढाँढस बँधाया और यौवन में प्रवेश करते ही जनता से कहा कि बेखौफ अपना काम करे। उदेरोलाल ने बादशाह को संदेश भेजा कि शांति ही परम सत्य है। इसे चुनौती मान बादशाह ने उदेरोलाल पर आक्रमण कर दिया। बादशाह का दर्प चूर-चूर हुआ और पराजय झेलकर उदेरोलाल के चरणों में स्थान माँगा। उदेरोलाल ने सर्वधर्म समभाव का संदेश दिया। इसका असर यह हुआ कि मिरक शाह उदयचंद का परम शिष्य बनकर उनके विचारों के प्रचार में जुट गया। झूलेलाल जी की शक्ति से प्रभावित होकर ही मिरख शाह ने अमन का रास्ता अपनाकर बाद में कुरुक्षेत्र में एक ऐसा भव्य मंदिर बनाकर दिया, जो आज भी हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक और पवित्र स्थान माना जाता है। पाकिस्तान में झूलेलाल जी को जिंद पीर और लालशाह के नाम से जाना जाता है।
हिन्दू धर्म में भगवान झूलेलाल को उदेरोलाल, लालसाँई, अमरलाल, जिंद पीर, लालशाह आदि नाम से जाना जाता है। इन्हें जल के देवता वरुण का अवतार माना जाता है। पाकिस्तान के सिंध प्रांत से भारत के अन्य प्रांतों में आकर बस गए हिंदुओं में झूलेलाल को पूजने का प्रचलन ज़्यादा है। उपासक भगवान झूलेलाल जी को उदेरोलाल, घोड़ेवारो, जिन्दपीर, लालसाँई, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल आदि नामों से पूजते हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता के निवासी चैत्र मास के चन्द्र दर्शन के दिन भगवान झूलेलाल जी का उत्सव संपूर्ण विश्व में चेटीचंड के त्योहार के रूप में परंपरागत हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।
भगवान झूलेलालजी को जल और ज्योति का अवतार माना गया है, इसलिए काष्ठ का एक मंदिर बनाकर उसमें एक लोटी से जल और ज्योति प्रज्वलित की जाती है और इस मंदिर को श्रद्धालु चेटीचंड के दिन अपने सिर पर उठाकर, जिसे बहिराणा साहब भी कहा जाता है, भगवान वरुण देव का स्तुतिगान करते हैं एवं समाज का परंपरागत नृत्य छेज करते हैं।
सिंधियों का सबसे बडा पर्व
झूलेलाल महोत्सव सिंधी समाज का सबसे बडा पर्व माना जाता है। झूलेलाल भगवान वरुणदेव का अवतरण है जो कि भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं। जो भी 4 दिन तक विधि- विधान से भगवान झूलेलाल की पूजा-अर्चना करता है, वह सभी दुःखों से दूर हो जाता है। सिंधी समाज का सबसे बडा धार्मिक आयोजन झूलेलाल महोत्सव माना जाता है। झूलेलाल उत्सव चेटीचंड, जिसे सिन्धी समाज सिन्धी दिवस के रूप में मनाता चला आ रहा है, पर समाज की विभाजक रेखाएँ समाप्त हो जाती हैं। यह सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है।
वीथिका
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झूलेलाल जयन्ती, मथुरा
Jhulelal Jayanti, Mathura -
झूलेलाल जयन्ती, मथुरा
Jhulelal Jayanti, Mathura -
झूलेलाल जयन्ती, मथुरा
Jhulelal Jayanti, Mathura
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