"काउंत डी एक": अवतरणों में अंतर
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*काउंत डी एक [[फ़्राँस]] का एक नौसैनिक अधिकारी था। | *काउंत डी एक [[फ़्राँस]] का एक नौसैनिक अधिकारी था। | ||
*काउंत डी एक फ़्राँस के उस जहाजी बेड़े का कमाण्डर था, जिस पर सवार होकर [[कर्नाटक]] में [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] और [[फ़्राँसीसी|फ़्राँसीसियों]] के बीच हो रहे युद्ध के आख़िरी चरण में 1758 ई. में काउंत दि लाली और फ़्राँसीसी सेना [[भारत]] आई थी। | *काउंत डी एक फ़्राँस के उस जहाजी बेड़े का कमाण्डर था, जिस पर सवार होकर [[कर्नाटक]] में [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] और [[फ़्राँसीसी|फ़्राँसीसियों]] के बीच हो रहे युद्ध के आख़िरी चरण में 1758 ई. में काउंत दि लाली और फ़्राँसीसी सेना [[भारत]] आई थी। | ||
*प्रारम्भ में काउंत डी एक को भारी सफलता प्राप्त हुई और उसने पीकाक के नेतृत्व में [[ब्रिटिश साम्राज्य|ब्रिटिश]] बेड़े को [[मद्रास]] के समुद्र तट से दूर भागने को | *प्रारम्भ में काउंत डी एक को भारी सफलता प्राप्त हुई और उसने पीकाक के नेतृत्व में [[ब्रिटिश साम्राज्य|ब्रिटिश]] बेड़े को [[मद्रास]] के समुद्र तट से दूर भागने को मज़बूर कर दिया। किन्तु पीकाक का बेड़ा शीघ्र ही लौट आया और उसने [[कारीकल]] से कुछ दूरी पर काउंत डी एक को 1758 में परास्त कर दिया। | ||
*काउंत डी एक की इस पराजय से चौथे कर्नाटक युद्ध में फ़्राँसीसियों को बहुत नुकसान पहुँचा और उसे फ़्राँस वापस लौट जाना पड़ा।<ref>पुस्तक भारतीय इतिहास कोश, पृष्ठ संख्या-182</ref> | *काउंत डी एक की इस पराजय से चौथे कर्नाटक युद्ध में फ़्राँसीसियों को बहुत नुकसान पहुँचा और उसे फ़्राँस वापस लौट जाना पड़ा।<ref>पुस्तक भारतीय इतिहास कोश, पृष्ठ संख्या-182</ref> | ||
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06:42, 10 अप्रैल 2011 का अवतरण
- काउंत डी एक फ़्राँस का एक नौसैनिक अधिकारी था।
- काउंत डी एक फ़्राँस के उस जहाजी बेड़े का कमाण्डर था, जिस पर सवार होकर कर्नाटक में अंग्रेज़ों और फ़्राँसीसियों के बीच हो रहे युद्ध के आख़िरी चरण में 1758 ई. में काउंत दि लाली और फ़्राँसीसी सेना भारत आई थी।
- प्रारम्भ में काउंत डी एक को भारी सफलता प्राप्त हुई और उसने पीकाक के नेतृत्व में ब्रिटिश बेड़े को मद्रास के समुद्र तट से दूर भागने को मज़बूर कर दिया। किन्तु पीकाक का बेड़ा शीघ्र ही लौट आया और उसने कारीकल से कुछ दूरी पर काउंत डी एक को 1758 में परास्त कर दिया।
- काउंत डी एक की इस पराजय से चौथे कर्नाटक युद्ध में फ़्राँसीसियों को बहुत नुकसान पहुँचा और उसे फ़्राँस वापस लौट जाना पड़ा।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुस्तक भारतीय इतिहास कोश, पृष्ठ संख्या-182