"महावीर": अवतरणों में अंतर
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''' | '''महावीर''' या '''वर्धमान महावीर''' [[जैन धर्म]] के [[प्रवर्तक]] भगवान [[ऋषभनाथ तीर्थंकर|ऋषभनाथ]]<ref>श्री आदिनाथ</ref> की परम्परा में 24वें जैन [[तीर्थंकर]] थे। इनका जीवन काल 599 ई. ईसा पूर्व से 527 ई. ईसा पूर्व तक माना जाता है। भगवान महावीर स्वामी का जन्म कुंडलपुर [[वैशाली]] के [[इक्ष्वाकु वंश]] में [[चैत्र मास]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[त्रयोदशी]] को [[उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र]] में हुआ था। इनकी [[माता]] का नाम त्रिशला देवी और [[पिता]] का नाम राजा सिद्धार्थ था। बचपन में इनका नाम 'वर्धमान' था, लेकिन बाल्यकाल से ही यह साहसी, तेजस्वी, ज्ञान पिपासु और अत्यंत बलशाली होने के कारण 'महावीर' कहलाए। भगवान महावीर ने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया था, जिस कारण इन्हें 'जीतेंद्र' भी कहा जाता है। | ||
==विवाह== | |||
[[कलिंग]] नरेश की कन्या यशोदा से महावीर का [[विवाह]] हुआ। किंतु 30 वर्ष की उम्र में अपने जेष्ठबंधु की आज्ञा लेकर इन्होंने घर-बार छोड़ दिया और तपस्या करके 'कैवल्य ज्ञान' प्राप्त किया। महावीर ने [[पार्श्वनाथ तीर्थंकर|पार्श्वनाथ]] के आरंभ किए तत्वज्ञान को परिमार्जित करके उसे [[जैन दर्शन]] का स्थायी आधार प्रदान किया। महावीर ऐसे धार्मिक नेता हैं, जिन्होंने राज्य का या किसी बाहरी शक्ति का सहारा लिए बिना, केवल अपनी श्रद्धा के बल पर जैन धर्म की पुन: प्रतिष्ठा की। आधुनिक काल में जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का पूरा श्रेय महावीर को दिया जाता है। | |||
====दीक्षा प्राप्ति==== | |||
महावीर स्वामी के शरीर का वर्ण सुवर्ण और चिह्न सिंह था। इनके [[यक्ष]] का नाम ब्रह्मशांति और यक्षिणी का नाम सिद्धायिका देवी था। जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार भगवान महावीर के गणधरों की कुल संख्या 11 थी, जिनमें गौतम स्वामी इनके प्रथम गणधर थे। महावीर ने [[मार्गशीर्ष मास|मार्गशीर्ष]] [[दशमी]] को कुंडलपुर में दीक्षा की प्राप्ति की और दीक्षा प्राप्ति के पश्चात 2 दिन बाद खीर से इन्होनें प्रथम पारणा किया। दीक्षा प्राप्ति के बाद 12 वर्ष और 6.5 महीने तक कठोर तप करने के बाद [[वैशाख मास|वैशाख]] शुक्ल दशमी को ऋजुबालुका नदी के किनारे 'साल वृक्ष' के नीचे भगवान महावीर को 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई थी। | |||
==अन्य नाम== | |||
महावीर के अनेक नाम हैं- 'अर्हत', 'जिन', 'निर्ग्रथ', 'महावीर', 'अतिवीर' आदि। इनके 'जिन' नाम से ही आगे चलकर इस [[धर्म]] का नाम '[[जैन धर्म]]' पड़ा। जैन धर्म में [[अहिंसा व्रत|अहिंसा]] तथा कर्मों की पवित्रता पर विशेष बल दिया जाता है। उनका तीसरा मुख्य सिद्धांत 'अनेकांतवाद' है, जिसके अनुसार दूसरों के दृष्टिकोण को भी ठीक-ठाक समझ कर ही पूर्ण [[सत्य]] के निकट पहुँचा जा सकता है। भगवान महावीर अहिंसा और अपरिग्रह की साक्षात मूर्ति थे। वे सभी के साथ सामान भाव रखते थे और किसी को कोई भी दुःख देना नहीं चाहते थे। अपनी श्रद्धा से जैन धर्म को पुनः प्रतिष्ठापित करने के बाद कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली के दिन पावापुरी में भगवान महावीर ने [[निर्वाण]] को प्राप्त किया। | |||
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[[भारत]] के वृज्जि गणराज्य की वैशाली नगरी के निकट [[कुण्डग्राम]] में राजा सिद्धार्थ अपनी पत्नी प्रियकारिणी के साथ निवास करते थे। [[इन्द्र]] ने यह जानकर कि प्रियकारिणी के गर्भ से तीर्थंकर पुत्र का जन्म होने वाला है, उन्होंने प्रियकारिणी की सेवा के लिए षटकुमारिका देवियों को भेजा। प्रियकारिणी ने [[ऐरावत]] हाथी के स्वप्न देखे, जिससे राजा सिद्धार्थ ने भी यही अनुमान लगाया कि तीर्थंकर का जन्म होगा। [[आषाढ़]], [[शुक्ल पक्ष]] की [[षष्ठी]] के अवसर पर पुरुषोत्तर विमान से आकर | [[भारत]] के वृज्जि गणराज्य की वैशाली नगरी के निकट [[कुण्डग्राम]] में राजा सिद्धार्थ अपनी पत्नी प्रियकारिणी के साथ निवास करते थे। [[इन्द्र]] ने यह जानकर कि प्रियकारिणी के गर्भ से तीर्थंकर पुत्र का जन्म होने वाला है, उन्होंने प्रियकारिणी की सेवा के लिए षटकुमारिका देवियों को भेजा। प्रियकारिणी ने [[ऐरावत]] हाथी के स्वप्न देखे, जिससे राजा सिद्धार्थ ने भी यही अनुमान लगाया कि तीर्थंकर का जन्म होगा। [[आषाढ़]], [[शुक्ल पक्ष]] की [[षष्ठी]] के अवसर पर पुरुषोत्तर विमान से आकर प्राणतेन्द्र ने प्रियकारिणी के गर्भ में प्रवेश किया। [[चैत्र]], [[शुक्ल पक्ष]] की [[त्रयोदशी]] को [[सोमवार]] के दिन वर्धमान का जन्म हुआ। देवताओं को इसका पूर्वाभास था। अत: सबने विभिन्न प्रकार के उत्सव मनाये तथा बालक को विभिन्न नामों से विभूषित किया। इस बालक का नाम सौधर्मेन्द्र ने वर्धमान रखा तो ऋद्धिधारी मुनियों ने सन्मति रखा। संगमदेव ने उसके अपरिमित साहस की परीक्षा लेकर उसे महावीर नाम से अभिहित किया। | ||
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महावीर ने जो आचार-संहिता बनाई वह | महावीर ने जो आचार-संहिता बनाई वह निम्न प्रकार है- | ||
#किसी भी जीवित प्राणी अथवा कीट की हिंसा न करना | #किसी भी जीवित प्राणी अथवा कीट की हिंसा न करना | ||
#किसी भी वस्तु को किसी के दिए बिना स्वीकार न करना | #किसी भी वस्तु को किसी के दिए बिना स्वीकार न करना | ||
#मिथ्या भाषण न करना | #मिथ्या भाषण न करना | ||
#आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना | #आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना | ||
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09:52, 4 मार्च 2012 का अवतरण
महावीर या वर्धमान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान ऋषभनाथ[1] की परम्परा में 24वें जैन तीर्थंकर थे। इनका जीवन काल 599 ई. ईसा पूर्व से 527 ई. ईसा पूर्व तक माना जाता है। भगवान महावीर स्वामी का जन्म कुंडलपुर वैशाली के इक्ष्वाकु वंश में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में हुआ था। इनकी माता का नाम त्रिशला देवी और पिता का नाम राजा सिद्धार्थ था। बचपन में इनका नाम 'वर्धमान' था, लेकिन बाल्यकाल से ही यह साहसी, तेजस्वी, ज्ञान पिपासु और अत्यंत बलशाली होने के कारण 'महावीर' कहलाए। भगवान महावीर ने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया था, जिस कारण इन्हें 'जीतेंद्र' भी कहा जाता है।
विवाह
कलिंग नरेश की कन्या यशोदा से महावीर का विवाह हुआ। किंतु 30 वर्ष की उम्र में अपने जेष्ठबंधु की आज्ञा लेकर इन्होंने घर-बार छोड़ दिया और तपस्या करके 'कैवल्य ज्ञान' प्राप्त किया। महावीर ने पार्श्वनाथ के आरंभ किए तत्वज्ञान को परिमार्जित करके उसे जैन दर्शन का स्थायी आधार प्रदान किया। महावीर ऐसे धार्मिक नेता हैं, जिन्होंने राज्य का या किसी बाहरी शक्ति का सहारा लिए बिना, केवल अपनी श्रद्धा के बल पर जैन धर्म की पुन: प्रतिष्ठा की। आधुनिक काल में जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का पूरा श्रेय महावीर को दिया जाता है।
दीक्षा प्राप्ति
महावीर स्वामी के शरीर का वर्ण सुवर्ण और चिह्न सिंह था। इनके यक्ष का नाम ब्रह्मशांति और यक्षिणी का नाम सिद्धायिका देवी था। जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार भगवान महावीर के गणधरों की कुल संख्या 11 थी, जिनमें गौतम स्वामी इनके प्रथम गणधर थे। महावीर ने मार्गशीर्ष दशमी को कुंडलपुर में दीक्षा की प्राप्ति की और दीक्षा प्राप्ति के पश्चात 2 दिन बाद खीर से इन्होनें प्रथम पारणा किया। दीक्षा प्राप्ति के बाद 12 वर्ष और 6.5 महीने तक कठोर तप करने के बाद वैशाख शुक्ल दशमी को ऋजुबालुका नदी के किनारे 'साल वृक्ष' के नीचे भगवान महावीर को 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई थी।
अन्य नाम
महावीर के अनेक नाम हैं- 'अर्हत', 'जिन', 'निर्ग्रथ', 'महावीर', 'अतिवीर' आदि। इनके 'जिन' नाम से ही आगे चलकर इस धर्म का नाम 'जैन धर्म' पड़ा। जैन धर्म में अहिंसा तथा कर्मों की पवित्रता पर विशेष बल दिया जाता है। उनका तीसरा मुख्य सिद्धांत 'अनेकांतवाद' है, जिसके अनुसार दूसरों के दृष्टिकोण को भी ठीक-ठाक समझ कर ही पूर्ण सत्य के निकट पहुँचा जा सकता है। भगवान महावीर अहिंसा और अपरिग्रह की साक्षात मूर्ति थे। वे सभी के साथ सामान भाव रखते थे और किसी को कोई भी दुःख देना नहीं चाहते थे। अपनी श्रद्धा से जैन धर्म को पुनः प्रतिष्ठापित करने के बाद कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली के दिन पावापुरी में भगवान महावीर ने निर्वाण को प्राप्त किया।
वर्धमान
भारत के वृज्जि गणराज्य की वैशाली नगरी के निकट कुण्डग्राम में राजा सिद्धार्थ अपनी पत्नी प्रियकारिणी के साथ निवास करते थे। इन्द्र ने यह जानकर कि प्रियकारिणी के गर्भ से तीर्थंकर पुत्र का जन्म होने वाला है, उन्होंने प्रियकारिणी की सेवा के लिए षटकुमारिका देवियों को भेजा। प्रियकारिणी ने ऐरावत हाथी के स्वप्न देखे, जिससे राजा सिद्धार्थ ने भी यही अनुमान लगाया कि तीर्थंकर का जन्म होगा। आषाढ़, शुक्ल पक्ष की षष्ठी के अवसर पर पुरुषोत्तर विमान से आकर प्राणतेन्द्र ने प्रियकारिणी के गर्भ में प्रवेश किया। चैत्र, शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को सोमवार के दिन वर्धमान का जन्म हुआ। देवताओं को इसका पूर्वाभास था। अत: सबने विभिन्न प्रकार के उत्सव मनाये तथा बालक को विभिन्न नामों से विभूषित किया। इस बालक का नाम सौधर्मेन्द्र ने वर्धमान रखा तो ऋद्धिधारी मुनियों ने सन्मति रखा। संगमदेव ने उसके अपरिमित साहस की परीक्षा लेकर उसे महावीर नाम से अभिहित किया।
आचार-संहिता
महावीर ने जो आचार-संहिता बनाई वह निम्न प्रकार है-
- किसी भी जीवित प्राणी अथवा कीट की हिंसा न करना
- किसी भी वस्तु को किसी के दिए बिना स्वीकार न करना
- मिथ्या भाषण न करना
- आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना
- वस्त्रों के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु का संचय न करना।
इन्हें भी देखें: वर्धमान एवं महावीर जयन्ती
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्री आदिनाथ
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