"प्रयोग:लक्ष्मी3": अवतरणों में अंतर
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||[[चित्र:Mohenjodaro-Sindh.jpg|सिन्ध में [[मोहनजोदाड़ो]] में [[हड़प्पा]] संस्कृति के अवशेष|100px|right]]लगभग एक वर्ष बाद 1922 में 'श्री राखल दास बनर्जी' के नेतृत्व में [[पाकिस्तान]] के [[सिंध]] प्रान्त के 'लरकाना' ज़िले के [[मोहनजोदड़ो]] में स्थित एक [[बौद्ध]] [[स्तूप]] की खुदाई के समय एक और स्थान का पता चला। इस नवीनतम स्थान के प्रकाश में आने के उपरान्त यह मान लिया गया कि संभवतः यह सभ्यता [[सिंधु नदी]] की घाटी तक ही सीमित है, अतः इस सभ्यता का नाम ‘सिधु घाटी की सभ्यता‘ (Indus Valley Civilization) रखा गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिंध]] | |||
{[[हड़प्पा सभ्यता]] के निवासी थे- | {[[हड़प्पा सभ्यता]] के निवासी थे- | ||
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-जनजातीय | -जनजातीय | ||
{[[भारत]] में खोजा गया सबसे पुराना शहर था | {[[भारत]] में खोजा गया सबसे पुराना शहर कौन-सा था? | ||
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+[[हड़प्पा]] | +[[हड़प्पा]] | ||
-[[पंजाब]] | -[[पंजाब]] | ||
-[[मोहनजोदड़ो]] | -[[मोहनजोदड़ो]] | ||
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||[[चित्र:Harappa-seals.jpg|हड़प्पा मुहर, हड़प्पा|100px|right]] [[पाकिस्तान]] के [[पंजाब]] प्रान्त में स्थित 'माण्टगोमरी ज़िले' में [[रावी नदी]] के बायें तट पर यह पुरास्थल है। हड़प्पा में ध्वंशावशेषों के विषय में सबसे पहले जानकारी 1826 ई. में 'चार्ल्स मैन्सर्न' ने दी। 1856 ई. में 'ब्रण्टन बन्धुओं' ने हड़प्पा के पुरातात्विक महत्त्व को स्पष्ट किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हड़प्पा]] | ||[[चित्र:Harappa-seals.jpg|हड़प्पा मुहर, हड़प्पा|100px|right]][[पाकिस्तान]] के [[पंजाब]] प्रान्त में स्थित 'माण्टगोमरी ज़िले' में [[रावी नदी]] के बायें तट पर यह पुरास्थल है। [[हड़प्पा]] में ध्वंशावशेषों के विषय में सबसे पहले जानकारी 1826 ई. में 'चार्ल्स मैन्सर्न' ने दी। 1856 ई. में 'ब्रण्टन बन्धुओं' ने हड़प्पा के पुरातात्विक महत्त्व को स्पष्ट किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हड़प्पा]] | ||
{[[हड़प्पा]] के मिट्टी के बर्तनों पर सामान्यत: किस [[रंग]] का उपयोग हुआ था? | {[[हड़प्पा]] के मिट्टी के बर्तनों पर सामान्यत: किस [[रंग]] का उपयोग हुआ था? | ||
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-पांडु रंग | -पांडु रंग | ||
-[[गुलाबी रंग]] | -[[गुलाबी रंग]] | ||
||मां [[लक्ष्मी]] को [[लाल रंग]] प्रिय है। दरअसल, लाल रंग हमें आगे बढने की प्रेरणा देता है। यह रंग हम सभी में आत्मविश्वास जगाता है। हम अपने आत्मविश्वास और मजबूत इरादों के बल पर ही लक्ष्मी की प्राप्ति कर पाते हैं। लाल रंग सौभाग्य का प्रतीक है। मां लक्ष्मी लाल वस्त्र पहनती हैं और लाल रंग के कमल पर शोभायमान रहती हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[लाल रंग]] | |||
{कौन-सी बौद्ध रचना [[गीता]] के समान पवित्र मानी जाती है? | {कौन-सी [[बौद्ध]] रचना [[गीता]] के समान पवित्र मानी जाती है? | ||
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-जातक | -[[जातक कथा|जातक]] | ||
+धम्मपद | +धम्मपद | ||
-पिटक | -पिटक | ||
-बुद्धचरित | -[[बुद्धचरित]] | ||
{[[चाणक्य]] का अन्य नाम क्या था? | {[[चाणक्य]] का अन्य नाम क्या था? | ||
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-भट्टस्वामी | -भट्टस्वामी | ||
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-विशाखदत्त | -विशाखदत्त | ||
{[[चरक]] और [[नागार्जुन]] किसके दरबार की शोभा थे? | {[[चरक]] और [[नागार्जुन]] किसके दरबार की शोभा थे? | ||
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+[[कनिष्क]] | +[[कनिष्क]] | ||
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-[[अशोक]] | -[[अशोक]] | ||
-[[समुद्रगुप्त]] | -[[समुद्रगुप्त]] | ||
||[[चित्र:Kanishka-Coin.jpg|कनिष्क का सिक्का|100px|right]]कनिष्क के संरक्षण में न केवल बौद्ध धर्म की उन्नति हुई, अपितु अनेक प्रसिद्ध विद्वानों ने भी उसके राजदरबार में आश्रय ग्रहण किया। वसुमित्र, पार्श्व और [[अश्वघोष]] के अतिरिक्त प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान नागार्जुन भी उसका समकालीन था। नागार्जुन | ||[[चित्र:Kanishka-Coin.jpg|कनिष्क का सिक्का|100px|right]][[कनिष्क]] के संरक्षण में न केवल [[बौद्ध धर्म]] की उन्नति हुई, अपितु अनेक प्रसिद्ध विद्वानों ने भी उसके राजदरबार में आश्रय ग्रहण किया। वसुमित्र, पार्श्व और [[अश्वघोष]] के अतिरिक्त प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान [[नागार्जुन]] भी उसका समकालीन था। नागार्जुन बौद्ध धर्म का प्रसिद्ध दार्शनिक हुआ है, और [[महायान]] सम्प्रदाय का प्रवर्तक उसी को माना जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कनिष्क]] | ||
{[[भारत]] में सर्वप्रथम [[सोना|स्वर्ण]] मुद्राएँ किसने | {[[भारत]] में सर्वप्रथम [[सोना|स्वर्ण]] मुद्राएँ किसने चलवाईं? | ||
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-[[कुषाण]] | -[[कुषाण]] | ||
+इण्डो-बैक्ट्रियन | +इण्डो-बैक्ट्रियन | ||
-[[शक]] | -[[शक]] | ||
-गुप्त | -[[गुप्त]] | ||
{'[[अमरकोश]]' के लेखक अमर सिंह किस शासक के दरबार से जुड़े थे? | {'[[अमरकोश]]' के लेखक अमर सिंह किस शासक के दरबार से जुड़े थे? | ||
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-[[चन्द्रगुप्त प्रथम]] | -[[चन्द्रगुप्त प्रथम]] | ||
-[[स्कन्दगुप्त]] | -[[स्कन्दगुप्त]] | ||
+[[ | +[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] | ||
||[[चित्र:Chandragupta-Coins.JPG|चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की मुद्राए|100px|right]] शकारि समुद्रगुप्त के पुत्र एवं उज्जयनी के विख्यात विद्याप्रेमी सम्राट के रूप में ये प्रसिद्ध हैं। इनका वास्तविक नाम चन्द्रगुप्त है। अश्वमेध के अनंतर इन्होंने 'विक्रमादित्य' की उपाधि ग्रहण की थी। इतिहास में इनकी सभा के नौ रत्न उस समय के अपने विषय में पारंगत एवं मनीषी विद्वान थे। इनके नाम क्रमश: कालिदास, वररुचि, अमर सिंह, धंवंतरि, क्षपणक, वेतालभट्ट, वराहमिहिर, घटकर्पर, और शंकु थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] | ||[[चित्र:Chandragupta-Coins.JPG|चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की मुद्राए|100px|right]]'शकारि' [[समुद्रगुप्त]] के पुत्र एवं उज्जयनी के विख्यात विद्याप्रेमी सम्राट के रूप में ये प्रसिद्ध हैं। इनका वास्तविक नाम चन्द्रगुप्त है। अश्वमेध के अनंतर इन्होंने 'विक्रमादित्य' की उपाधि ग्रहण की थी। [[इतिहास]] में इनकी सभा के नौ रत्न उस समय के अपने विषय में पारंगत एवं मनीषी विद्वान थे। इनके नाम क्रमश: [[कालिदास]], वररुचि, अमर सिंह, धंवंतरि, क्षपणक, वेतालभट्ट, [[वराहमिहिर]], घटकर्पर, और शंकु थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] | ||
{[[कालिदास]] द्वारा रचित '[[मालविकाग्निमित्र]]' नाटक का नायक था? | {[[कालिदास]] द्वारा रचित '[[मालविकाग्निमित्र]]' नाटक का नायक कौन था? | ||
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-[[पुष्यमित्र शुंग]] | -[[पुष्यमित्र शुंग]] | ||
-गौतमीपुत्र | -[[गौतमीपुत्र सातकर्णि]] | ||
+[[अग्निमित्र]] | +[[अग्निमित्र]] | ||
-[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] | -[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] | ||
||अग्निमित्र (149 - 141 ई. पू.) [[पुष्यमित्र शुंग]] का बेटा और [[शुंग वंश]] का द्वितीय राजा था। [[कालिदास]] के प्रसिद्ध नाटक '[[मालविकाग्निमित्र]]' में इसी अग्निमित्र की प्रेम कथा का वर्णन है। इसके नाम के अनेक सिक्के भी मिले हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अग्निमित्र]] | |||
{'[[हर्षचरित]]' किसके द्वारा लिखी गई थी? | {'[[हर्षचरित]]' किसके द्वारा लिखी गई थी? | ||
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-[[कालिदास]] | -[[कालिदास]] | ||
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+[[बाणभट्ट]] | +[[बाणभट्ट]] | ||
-[[व्यास]] | -[[व्यास]] | ||
||बाणभट्ट की लेखनी से अनेक ग्रन्थ रत्नों का लेखन हुआ है किन्तु बाणभट्ट का महाकवित्व केवल 'हर्षचरित' और 'कादम्बरी' पर प्रधानतया आश्रित है। इन दोनों गद्य काव्यों के अतिरिक्त मुकुटताडितक, चण्डीशतक और पार्वती-परिणय भी बाणभट्ट की रचनाओं में परिगणित हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बाणभट्ट]] | |||
{[[जगन्नाथ मंदिर पुरी]] किस राज्य में है? | {[[जगन्नाथ मंदिर पुरी|जगन्नाथ मंदिर]] [[पुरी]] किस राज्य में है? | ||
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-[[बंगाल]] | -[[बंगाल]] | ||
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-[[केरल]] | -[[केरल]] | ||
-[[उत्तर प्रदेश]] | -[[उत्तर प्रदेश]] | ||
||[[चित्र:Mahanadi-River.jpg|महानदी, उड़ीसा|100px|right]] उड़ीसा [[भारत]] | ||[[चित्र:Mahanadi-River.jpg|महानदी, उड़ीसा|100px|right]][[उड़ीसा]] [[भारत]] का एक प्रान्त है, जो [[भारत]] के पूर्वी तट पर बसा है। उड़ीसा उत्तर में [[झारखण्ड]], उत्तर पूर्व में [[पश्चिम बंगाल]] दक्षिण में [[आंध्र प्रदेश]] और पश्चिम में [[छत्तीसगढ़]] से घिरा है तथा पूर्व में [[बंगाल की खाड़ी]] है। भौगोलिक लिहाज से इसके उत्तर में छोटा नागपुर का पठार है, जो अपेक्षाकत कम उपजाऊ है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[उड़ीसा]] | ||
{अटाला मस्जिद कहाँ स्थित है? | {[[अटाला मस्जिद]] कहाँ स्थित है? | ||
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+[[जौनपुर]] में | +[[जौनपुर]] में | ||
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-[[बंगाल]] | -[[बंगाल]] | ||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
||[[चित्र:Central-Pishtaq-Atala-Masjid-Jaunpur.jpg|right|100px|केंद्रीय तोरण द्वार, [[अटाला मस्जिद]], जौनपुर]][[जौनपुर]] शहर शर्क़ी वंश (1394-1479) के स्वतंत्र मुस्लिम राज्य की राजधानी था। 1559 ने [[अकबर]] ने इसे जीता और 1775 में यह ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आ गया। जौनपुर में [[अटाला मस्जिद]] (1408) और जामी मस्जिद (1478) समेत कई पुरानी मस्जिदें हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जौनपुर]] | |||
{[[विजयनगर साम्राज्य]] की स्थापना कब हुई? | {[[विजयनगर साम्राज्य]] की स्थापना कब हुई? | ||
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05:47, 28 मई 2011 का अवतरण
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