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*राणा रासो नामक ग्रंथ [[रासो काव्य]] परम्परा का ग्रंथ है।
'''राणा रासो''' नामक [[ग्रंथ]] [[रासो काव्य]] परम्परा का ग्रंथ है। यह ग्रंथ दयालदास द्वारा लिखा गया है। इसमें [[सिसोदिया वंश]] के राजाओं के युद्ध एवं जीवन की घटनाओं का विस्तार पूर्वक वर्णन है।
*राणा रासो नामक ग्रंथ 'दयाल दास' द्वारा विरचित है।  
*इस ग्रन्थ में 'सिसौदिया वंश' के राजाओं के युद्ध एवं जीवन की घटनाओं का विस्तार पूर्वक वर्णन है।  
*इस ग्रंथ का रचना काल 1375 - 1381 के मध्य का हो सकता है।
*इस ग्रंथ में रतलाम, [[मध्य प्रदेश]] के 'राजा रतनसिंह' का जीवनवृत्त वर्णित किया गया है।<ref>{{cite web |url=http://knowhindi.blogspot.com/2011/02/blog-post_4165.html |title=रासो काव्य : वीरगाथायें|accessmonthday=15 मई|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>


*‘[[पृथ्वीराज रासो]]’ के समान [[शैली]] में लिखित दयालदास की कृति ‘राणा रासो’ है।
*[[मेवाड़]] के राजवंश का इस कृति में छन्दबद्ध [[इतिहास]] प्रस्तुत किया गया है।
*इस अप्रकाशित रचना की प्रतियों में सन 1618 ई. की लिखित प्रति का उल्लेख मिलता है, किंतु राणा रासो में अनेक परवर्ती राजाओं का उल्लेख मिलता है। अत: कृति का यह अंश प्रक्षिप्त है या कृति पीछे की रचना है।
*[[जयसिंह|महाराज जयसिंह]] का समय सन 1627 तक रहा, अत: कृति की रचना इसके बाद हुई होगी।
*‘राणा रासो’ में 875 [[छन्द]] हैं। ब्रह्म से प्रारम्भ करके महाराणा जयसिंह तक की वंशावली में अनेक कल्पित नाम होंगे।
*इतिहास के [[ग्रंथ]] की दृष्टि से ‘राणा रासो’ का कोई महत्त्व नहीं है। रसावला, विराज, साटक आदि विविध [[छन्द|छन्दों]] का कृति में प्रयोग हुआ है।
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10:08, 25 मई 2015 का अवतरण

राणा रासो नामक ग्रंथ रासो काव्य परम्परा का ग्रंथ है। यह ग्रंथ दयालदास द्वारा लिखा गया है। इसमें सिसोदिया वंश के राजाओं के युद्ध एवं जीवन की घटनाओं का विस्तार पूर्वक वर्णन है।

  • पृथ्वीराज रासो’ के समान शैली में लिखित दयालदास की कृति ‘राणा रासो’ है।
  • मेवाड़ के राजवंश का इस कृति में छन्दबद्ध इतिहास प्रस्तुत किया गया है।
  • इस अप्रकाशित रचना की प्रतियों में सन 1618 ई. की लिखित प्रति का उल्लेख मिलता है, किंतु राणा रासो में अनेक परवर्ती राजाओं का उल्लेख मिलता है। अत: कृति का यह अंश प्रक्षिप्त है या कृति पीछे की रचना है।
  • महाराज जयसिंह का समय सन 1627 तक रहा, अत: कृति की रचना इसके बाद हुई होगी।
  • ‘राणा रासो’ में 875 छन्द हैं। ब्रह्म से प्रारम्भ करके महाराणा जयसिंह तक की वंशावली में अनेक कल्पित नाम होंगे।
  • इतिहास के ग्रंथ की दृष्टि से ‘राणा रासो’ का कोई महत्त्व नहीं है। रसावला, विराज, साटक आदि विविध छन्दों का कृति में प्रयोग हुआ है।
  • कृति की भाषा राजस्थानी मिश्रत पिंगल (ब्रज) कही जा सकती है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सहायक ग्रंथ- राजस्थान का पिंगल साहित्य : डॉ. मोतीलाल मेनारिया, बम्बई, 1958 ई.

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