"खम्माण रासो": अवतरणों में अंतर

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#खुम्माण (दूसरा) वि. संवत 870-900
#खुम्माण (दूसरा) वि. संवत 870-900
#खुम्माण (तीसरा) वि. संवत 965-990
#खुम्माण (तीसरा) वि. संवत 965-990
'अब्बासिया वंश' का अलमामूँ वि. संवत 870 से 890 तक खलीफ़ा रहा। इस समय के पूर्व खलीफ़ाओं के सेनापतियों ने [[सिंध]] देश की विजय कर ली थी और उधर से राजपूताने पर मुसलमानों की चढ़ाइयाँ होने लगी थीं। अतएव यदि किसी खुम्माण से अलमामँ की सेना से लड़ाई हुई होगी तो वह दूसरा खुम्माण रहा होगा और उसी के नाम पर 'खुमानरासो' की रचना हुई होगी। यह नहीं कहा जा सकता कि इस समय जो खुमानरासो मिलता है, उसमें कितना अंश पुराना है। उसमें महाराणा प्रताप सिंह तक का वर्णन मिलने से यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जिस रूप में यह ग्रंथ अब मिलता है वह उसे वि. संवत् की सत्रहवीं शताब्दी में प्राप्त हुआ होगा। 'शिवसिंह सरोज' के कथनानुसार एक अज्ञातनामा भाट ने खुमानरासो नामक काव्य ग्रंथ लिखा था जिसमें [[राम|श्रीरामचंद्र]] से लेकर खुमान तक के युध्दों का वर्णन था। यह नहीं कहा जा सकता कि दलपतविजय असली खुमानरासो का रचयिता था अथवा उसके पिछले परिशिष्ट का। <ref>हिंदी साहित्य का इतिहास, वीरगाथा काल (संवत् 1050 - 1375) प्रकरण 3, लेखक - रामचन्द्र शुक्ल</ref>  
'अब्बासिया वंश' का अलमामूँ वि. संवत 870 से 890 तक खलीफ़ा रहा। इस समय के पूर्व खलीफ़ाओं के सेनापतियों ने [[सिंध]] देश की विजय कर ली थी और उधर से राजपूताने पर मुसलमानों की चढ़ाइयाँ होने लगी थीं। अतएव यदि किसी खुम्माण से अलमामँ की सेना से लड़ाई हुई होगी तो वह दूसरा खुम्माण रहा होगा और उसी के नाम पर 'खुमानरासो' की रचना हुई होगी। यह नहीं कहा जा सकता कि इस समय जो खुमानरासो मिलता है, उसमें कितना अंश पुराना है। उसमें महाराणा प्रताप सिंह तक का वर्णन मिलने से यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जिस रूप में यह ग्रंथ अब मिलता है वह उसे वि. संवत् की सत्रहवीं शताब्दी में प्राप्त हुआ होगा। 'शिवसिंह सरोज' के कथनानुसार एक अज्ञातनामा भाट ने खुमानरासो नामक काव्य ग्रंथ लिखा था जिसमें [[राम|श्रीरामचंद्र]] से लेकर खुमान तक के युध्दों का वर्णन था। यह नहीं कहा जा सकता कि दलपतविजय असली खुमानरासो का रचयिता था अथवा उसके पिछले परिशिष्ट का। <ref>हिंदी साहित्य का इतिहास, वीरगाथा काल (संवत् 1050 - 1375) अध्याय 3, लेखक - रामचन्द्र शुक्ल</ref>  
*डॉ. उदयनारायण तिवारी ने श्री अगरचन्द नाहटा के एक लेख के अनुसार इसे सं. 1730 - 1760 के मध्य लिखा बताया गया है।
*डॉ. उदयनारायण तिवारी ने श्री अगरचन्द नाहटा के एक लेख के अनुसार इसे सं. 1730 - 1760 के मध्य लिखा बताया गया है।
*[[रामचन्द्र शुक्ल|श्री रामचन्द्र शुक्ल]] इसे सं. 969 - सं. 899 के बीच की रचना मानते हैं।  
*[[रामचन्द्र शुक्ल|श्री रामचन्द्र शुक्ल]] इसे सं. 969 - सं. 899 के बीच की रचना मानते हैं।  

09:44, 3 जून 2011 का अवतरण

  • खम्माण रासो की रचना कवि दलपति विजय ने की है।
  • इसे खुमाण के समकालीन अर्थातद्य सं. 790 सं. 890 वि. माना गया है किन्तु इसकी प्रतियों में राणा संग्राम सिंह द्वितीय के समय 1760 - 1790 के पूर्व की नहीं होनी चाहिए।
  • श्री रामचन्द्र शुक्ल ने 'हिंदी साहित्य का इतिहास' में लिखा है - 'खम्माण रासो संवत 810 और 1000 के बीच में चित्तौड़ के रावल खुमान नाम के तीन राजा हुए हैं। कर्नल टाड ने इनको एक मानकर इनके युध्दों का विस्तार से वर्णन किया है। उनके वर्णन का सारांश यह है कि कालभोज (बाप्पा) के पीछे खुम्माण गद्दी पर बैठा, जिसका नाम मेवाड़ के इतिहास में प्रसिद्ध है और जिसके समय में बग़दाद के खलीफा अलमामूँ ने चित्तौड़ पर चढ़ाई की। खुम्माण की सहायता के लिए बहुत-से राजा आए और चित्तौड़ की रक्षा हो गई। खुम्माण ने 24 युद्ध किए और वि. संवत 869 से 893 तक राज्य किया। यह समस्त वर्णन 'दलपतविजय' नामक किसी कवि के रचित खुमाण रासो के आधार पर लिखा गया जान पड़ता है। पर इस समय खुमाणरासो की जो प्रति प्राप्त है, वह अपूर्ण है और उसमें महाराणा प्रताप सिंह तक का वर्णन है। कालभोज (बाप्पा) से लेकर तीसरे खुमान तक की वंश परंपरा इस प्रकार है कालभोज (बाप्पा), खुम्माण, मत्ताट, भर्तृपट्ट, सिंह, खुम्माण (दूसरा), महायक, खुम्माण (तीसरा)। कालभोज का समय वि. संवत 791 से 810 तक है और तीसरे खुम्माण के उत्तराधिकारी भर्तृपट्ट (दूसरे) के समय के दो शिलालेख वि. संवत् 999 और 1000 के मिले हैं। अतएव 190 वर्षों का औसत लगाने पर तीनों खुम्माणों का समय अनुमानत: इस प्रकार ठहराया जा सकता है
  1. खुम्माण (पहला) वि. संवत 810-865
  2. खुम्माण (दूसरा) वि. संवत 870-900
  3. खुम्माण (तीसरा) वि. संवत 965-990

'अब्बासिया वंश' का अलमामूँ वि. संवत 870 से 890 तक खलीफ़ा रहा। इस समय के पूर्व खलीफ़ाओं के सेनापतियों ने सिंध देश की विजय कर ली थी और उधर से राजपूताने पर मुसलमानों की चढ़ाइयाँ होने लगी थीं। अतएव यदि किसी खुम्माण से अलमामँ की सेना से लड़ाई हुई होगी तो वह दूसरा खुम्माण रहा होगा और उसी के नाम पर 'खुमानरासो' की रचना हुई होगी। यह नहीं कहा जा सकता कि इस समय जो खुमानरासो मिलता है, उसमें कितना अंश पुराना है। उसमें महाराणा प्रताप सिंह तक का वर्णन मिलने से यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जिस रूप में यह ग्रंथ अब मिलता है वह उसे वि. संवत् की सत्रहवीं शताब्दी में प्राप्त हुआ होगा। 'शिवसिंह सरोज' के कथनानुसार एक अज्ञातनामा भाट ने खुमानरासो नामक काव्य ग्रंथ लिखा था जिसमें श्रीरामचंद्र से लेकर खुमान तक के युध्दों का वर्णन था। यह नहीं कहा जा सकता कि दलपतविजय असली खुमानरासो का रचयिता था अथवा उसके पिछले परिशिष्ट का। [1]

  • डॉ. उदयनारायण तिवारी ने श्री अगरचन्द नाहटा के एक लेख के अनुसार इसे सं. 1730 - 1760 के मध्य लिखा बताया गया है।
  • श्री रामचन्द्र शुक्ल इसे सं. 969 - सं. 899 के बीच की रचना मानते हैं।
  • उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर इसे सं. 1730 - 790 के मध्य लिखा माना जा सकता है।[2]




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी साहित्य का इतिहास, वीरगाथा काल (संवत् 1050 - 1375) अध्याय 3, लेखक - रामचन्द्र शुक्ल
  2. रासो काव्य : वीरगाथायें (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 मई, 2011।

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