"गोलकुंडा": अवतरणों में अंतर
छो (→वीथिका) |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
[[चित्र:Golkunda-Fort-Hyderabad-2.jpg| | [[चित्र:Golkunda-Fort-Hyderabad-2.jpg|गोलकुण्डा क़िला, [[हैदराबाद]]<br /> Golkonda Fort, Hyderabad|thumb|300px]] | ||
गोलकुण्डा एक क़िला व भग्नशेष नगर है। यह [[आंध्र प्रदेश]] का एक नगर है। [[हैदराबाद]] से पांच मील पश्चिम की ओर [[बहमनी वंश]] के सुल्तानों की राजधानी गोलकुण्डा के विस्तृत खंडहर स्थित हैं। गोलकुण्डा का प्राचीन दुर्ग वारंगल के हिन्दू राजाओं ने बनवाया था। ये देवगिरी के यादव तथा वारंगल के ककातीय नेरशों के अधिकार में रहा था। इन राज्यवंशों के शासन के चिह्न तथा कई खंडित अभिलेख दुर्ग की दीवारों तथा द्वारों पर अंकित मिलते हैं। 1364 ई. में वारंगल नरेश ने इस क़िले को बहमनी सुल्तान [[महमूद शाह]] के हवाले कर दिया था। | |||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
इतिहासकार | इतिहासकार [[फ़रिश्ता]] लिखता है कि, [[बहमनी वंश]] की अवनति के पश्चात 1511 ई. में गोलकुण्डा के प्रथम सुल्तान ने अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया था। किंतु क़िले के अन्दर स्थित जामा मस्जिद के एक [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] अभिलेख से ज्ञात होता है कि, 1518 ई. में भी गोलकुण्डा का संस्थापक सुल्तान कुतुबशाह, [[महमूद शाह बहमनी]] का सामन्त था। गोलकुण्डा के आख़िरी सुल्तान का दरबारी और सिपहसलार [[अब्दुर्रज्जाक लारी]] था। कुतुबशाह के बाद उसका पुत्र 'जमशेद' सिंहासन पर बैठा। जमशेद के बाद गोलकुण्डा का शासक 'इब्राहिम' बना, जिसने [[विजयनगर साम्राज्य|विजयनगर]] से संघर्ष किया। 1580 ई. में इब्राहिम की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र 'मुहम्मद कुली' (1580-1612 ई.) उसका उत्तराधिकारी हुआ। वह [[हैदराबाद]] नगर का संस्थापक और दक्कनी [[उर्दू]] में लिखित प्रथम काव्य संग्रह या ‘दीवान’ का लेखक था। गोलकुण्डा का ही प्रसिद्ध अमीर 'मीरजुमला' [[मुग़ल|मुगलों]] से मिल गया था। | ||
कुतुबशाही साम्राज्य की प्रारम्भिक राजधानी गोलकुण्डा [[हीरा|हीरों]] के विश्व प्रसिद्ध बाज़ार के रूप में प्रसिद्ध थी, जबकि [[मसुलीपट्टम|मुसलीपत्तन]] कुतुबशाही साम्राज्य का विश्व प्रसिद्ध बन्दरगाह था। इस काल के प्रारम्भिक भवनों में सुल्तान कुतुबशाह द्वारा गोलकुण्डा में निर्मित 'जामी मस्जिद' उल्लेखनीय है। हैदराबाद के संस्थापक 'मुहम्मद कुली' द्वारा हैदराबाद में निर्मित [[चारमीनार]] की गणना भव्य इमारतों में होती है। सुल्तान मुहम्मद कुली को आदि उर्दू काव्य का जन्मदाता माना जाता है। सुल्तान 'अब्दुल्ला' महान् कवि एवं कवियो का संरक्षक था। उसके द्वारा संरक्षित महानतम् कवि 'मलिक-उस-शोरा' था, जिसने तीन मसनवियो की रचना की। अयोग्य शासक के कारण, अंततः 1637 ई. में [[औरंगजेब]] ने गोलकुण्डा को मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया। बहमनी साम्राज्य से स्वतंत्र होने वाले राज्य क्रमश [[बरार]], [[बीजापुर]], [[अहमदनगर]], गोलकुण्डा तथा [[बीदर]] हैं। | |||
==पर्यटन== | ==पर्यटन== | ||
[[चित्र:Golkunda-Fort-Hyderabad-1.jpg| | [[चित्र:Golkunda-Fort-Hyderabad-1.jpg|गोलकुण्डा क़िला, [[हैदराबाद]]<br /> Golkonda Fort, Hyderabad|thumb|300px]] | ||
गोलकुण्डा का क़िला 400 फुट ऊंची कणाश्म (ग्रेनाइट) की पहाड़ी पर स्थित है। इसके तीन परकोटे हैं और इसका परिमाप सात मील के लगभग है। इस पर 87 बुर्ज बने हैं। दुर्ग के अन्दर क़ुतुबशाही बेगमों के भवन उल्लेखनीय है। इनमें तारामती, पेमामती, हयात बख्शी बेगम और भागमती (जो हैदराबाद या भागनगर के संस्थापक कुली क़ुतुब शाह की प्रेयसी थी) के महलों से अनेक मधुर आख्यायिकी का संबंध बताया जाता है। क़िले के अन्दर नौमहल्ला नामक अन्य इमारतें हैं। जिन्हें हैदराबाद के निजामों ने बनवाया था। इनकी मनोहारी बाटिकाएँ तथा सुन्दर जलाशय इनके सौंदर्य को द्विगुणित कर देते हैं। क़िले से तीन फलांग पर इब्राहिम बाग़ में सात क़ुतुबशाही सुल्तानों के मक़्बरे हैं। जिनके नाम हैं- | |||
*कुली क़ुतुब, | *कुली क़ुतुब, | ||
*सुभान क़ुतुब, | *सुभान क़ुतुब, | ||
पंक्ति 14: | पंक्ति 15: | ||
*मुहम्मद क़ुतुब और | *मुहम्मद क़ुतुब और | ||
*अब्दुल्ला क़ुतुबशाह। | *अब्दुल्ला क़ुतुबशाह। | ||
[[चित्र:Golkunda-Fort-Hyderabad-6.jpg| | [[चित्र:Golkunda-Fort-Hyderabad-6.jpg|गोलकुण्डा क़िला, [[हैदराबाद]]<br /> Golkonda Fort, Hyderabad|thumb|200px]] | ||
प्रेमावती व हयात बख्शी बेगमों के मक़्बरे भी इसी उद्यान के अन्दर हैं। इन मक़्बरों के आधार वर्गाकार हैं तथा इन पर गुंबदों की छतें हैं। चारों ओर वीथीकाएँ बनी हैं जिनके महाराब नुकीले हैं। ये वीथीकाएँ कई स्थानों पर दुमंजिली भी हैं। मक़्बरों के हिन्दू वास्तुकला के विशिष्ट चिह्न कमल पुष्प तथा पत्र और कलियाँ, श्रृंखलाएँ, प्रक्षिप्त छज्जे, स्वस्तिकाकार स्तंभशीर्ष आदि बने हुए हैं। | प्रेमावती व हयात बख्शी बेगमों के मक़्बरे भी इसी उद्यान के अन्दर हैं। इन मक़्बरों के आधार वर्गाकार हैं तथा इन पर गुंबदों की छतें हैं। चारों ओर वीथीकाएँ बनी हैं जिनके महाराब नुकीले हैं। ये वीथीकाएँ कई स्थानों पर दुमंजिली भी हैं। मक़्बरों के हिन्दू वास्तुकला के विशिष्ट चिह्न कमल पुष्प तथा पत्र और कलियाँ, श्रृंखलाएँ, प्रक्षिप्त छज्जे, स्वस्तिकाकार स्तंभशीर्ष आदि बने हुए हैं। गोलकुण्डा दुर्ग के मुख्य प्रवेश द्वार में यदि जोर से करतल ध्वनि की जाए तो उसकी गूंज दुर्ग के सर्वोच्च भवन या कक्ष में पहुँचती है। एक प्रकार से यह ध्वनि आह्वान घंटी के समान थी। दुर्ग से डेढ़ मील पर तारामती की छतरी है। यह एक पहाड़ी पर स्थित है। देखने में यह वर्गाकार है और इसकी दो मंज़िले हैं। किंवदंती है कि तारामती, जो क़ुतुबशाही सुल्तानों की प्रेयसी तथा प्रसिद्ध नर्तकी थी, क़िले तथा छतरी के बीच बंधी हुई एक रस्सी पर चाँदनी में नृत्य करती थी। सड़क के दूसरी ओर प्रेमावती की छतरी है। यह भी क़ुतुबशाही नरेशों की प्रेमपात्री थी। हिमायत सागर सरोवर के पास ही प्रथम निज़ाम के पितामह चिनकिलिचख़ाँ का मक़्बरा है। | ||
==आक्रमण== | ==आक्रमण== | ||
28 जनवरी, 1627 ई. को [[औरंगज़ेब]] ने | 28 जनवरी, 1627 ई. को [[औरंगज़ेब]] ने गोलकुण्डा के क़िले पर आक्रमण किया और तभी मुग़ल सेना के एक नायक के रूप में किलिच ख़ाँ ने भी इस आक्रमण में भाग लिया था। युद्ध में इसका एक हाथ तोप के गोले से उड़ गया था जो मक़्बरे से आधा मील दूर क़िस्मतपुर में गड़ा हुआ है। इसी घाव से इसका कुछ दिन बाद निधन हो गया। कहा जाता है कि मरते वक़्त भी किलिच ख़ाँ जरा भी विचलित नहीं हुआ था और औरंगज़ेब के प्रधानमंत्री जमदातुल मुल्क असद ने, जो उससे मिलने आया था, उसे चुपचाप काफ़ी पीते देखा था। [[शिवाजी]] ने [[बीजापुर]] और गोलकुण्डा के सुल्तानों को बहुत संत्रस्त किया था तथा उनके अनेक क़िलों को जीत लिया था। उनका आतंक बीजापुर और गोलकुण्डा पर बहुत समय तक छाया रहा जिसका वर्णन हिन्दी के प्रसिद्ध कवि भूषण ने किया है- '''बीजापुर गोलकुण्डा आगरा दिल्ली कोट बाजे बाजे रोज़ दरवाजे उधरत हैं'''। | ||
==प्रसिद्धि== | ==प्रसिद्धि== | ||
गोलकुण्डा पहले हीरों के लिए विख्यात था। जिनमें से [[कोहिनूर हीरा]] सबसे मशहूर है। | |||
==वीथिका== | ==वीथिका== | ||
<gallery> | <gallery> | ||
चित्र:Golkunda-Fort-Hyderabad-3.jpg| | चित्र:Golkunda-Fort-Hyderabad-3.jpg|गोलकुण्डा क़िला, [[हैदराबाद]]<br /> Golkonda Fort, Hyderabad | ||
चित्र:Golkunda-Fort-Hyderabad-4.jpg| | चित्र:Golkunda-Fort-Hyderabad-4.jpg|गोलकुण्डा क़िला, [[हैदराबाद]]<br /> Golkonda Fort, Hyderabad | ||
चित्र:Golkunda-Fort-Hyderabad-5.jpg| | चित्र:Golkunda-Fort-Hyderabad-5.jpg|गोलकुण्डा क़िला, [[हैदराबाद]]<br /> Golkonda Fort, Hyderabad | ||
चित्र:Golkunda-Fort-Hyderabad-7.jpg| | चित्र:Golkunda-Fort-Hyderabad-7.jpg|गोलकुण्डा क़िला, [[हैदराबाद]]<br /> Golkonda Fort, Hyderabad | ||
</gallery> | </gallery> | ||
{{प्रचार}} | {{प्रचार}} | ||
पंक्ति 32: | पंक्ति 33: | ||
{{आंध्र प्रदेश के पर्यटन स्थल}}{{भारत के दुर्ग}} | {{आंध्र प्रदेश के पर्यटन स्थल}}{{भारत के दुर्ग}} | ||
[[Category:आंध्र प्रदेश]] | [[Category:आंध्र प्रदेश]] | ||
[[Category:आंध्र प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:आंध्र प्रदेश के ऐतिहासिक नगर]][[Category:आंध्र प्रदेश के पर्यटन स्थल]][[Category:भारत के दुर्ग]][[Category:स्थापत्य कला]][[Category:ऐतिहासिक स्थल]][[Category:कला कोश]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:इतिहास कोश]] | [[Category:आंध्र प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:आंध्र प्रदेश के ऐतिहासिक नगर]][[Category:आंध्र प्रदेश के पर्यटन स्थल]][[Category:भारत के दुर्ग]][[Category:स्थापत्य कला]][[Category:ऐतिहासिक स्थल]][[Category:कला कोश]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:इतिहास कोश]] | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
13:41, 28 जून 2011 का अवतरण
गोलकुण्डा एक क़िला व भग्नशेष नगर है। यह आंध्र प्रदेश का एक नगर है। हैदराबाद से पांच मील पश्चिम की ओर बहमनी वंश के सुल्तानों की राजधानी गोलकुण्डा के विस्तृत खंडहर स्थित हैं। गोलकुण्डा का प्राचीन दुर्ग वारंगल के हिन्दू राजाओं ने बनवाया था। ये देवगिरी के यादव तथा वारंगल के ककातीय नेरशों के अधिकार में रहा था। इन राज्यवंशों के शासन के चिह्न तथा कई खंडित अभिलेख दुर्ग की दीवारों तथा द्वारों पर अंकित मिलते हैं। 1364 ई. में वारंगल नरेश ने इस क़िले को बहमनी सुल्तान महमूद शाह के हवाले कर दिया था।
इतिहास
इतिहासकार फ़रिश्ता लिखता है कि, बहमनी वंश की अवनति के पश्चात 1511 ई. में गोलकुण्डा के प्रथम सुल्तान ने अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया था। किंतु क़िले के अन्दर स्थित जामा मस्जिद के एक फ़ारसी अभिलेख से ज्ञात होता है कि, 1518 ई. में भी गोलकुण्डा का संस्थापक सुल्तान कुतुबशाह, महमूद शाह बहमनी का सामन्त था। गोलकुण्डा के आख़िरी सुल्तान का दरबारी और सिपहसलार अब्दुर्रज्जाक लारी था। कुतुबशाह के बाद उसका पुत्र 'जमशेद' सिंहासन पर बैठा। जमशेद के बाद गोलकुण्डा का शासक 'इब्राहिम' बना, जिसने विजयनगर से संघर्ष किया। 1580 ई. में इब्राहिम की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र 'मुहम्मद कुली' (1580-1612 ई.) उसका उत्तराधिकारी हुआ। वह हैदराबाद नगर का संस्थापक और दक्कनी उर्दू में लिखित प्रथम काव्य संग्रह या ‘दीवान’ का लेखक था। गोलकुण्डा का ही प्रसिद्ध अमीर 'मीरजुमला' मुगलों से मिल गया था।
कुतुबशाही साम्राज्य की प्रारम्भिक राजधानी गोलकुण्डा हीरों के विश्व प्रसिद्ध बाज़ार के रूप में प्रसिद्ध थी, जबकि मुसलीपत्तन कुतुबशाही साम्राज्य का विश्व प्रसिद्ध बन्दरगाह था। इस काल के प्रारम्भिक भवनों में सुल्तान कुतुबशाह द्वारा गोलकुण्डा में निर्मित 'जामी मस्जिद' उल्लेखनीय है। हैदराबाद के संस्थापक 'मुहम्मद कुली' द्वारा हैदराबाद में निर्मित चारमीनार की गणना भव्य इमारतों में होती है। सुल्तान मुहम्मद कुली को आदि उर्दू काव्य का जन्मदाता माना जाता है। सुल्तान 'अब्दुल्ला' महान् कवि एवं कवियो का संरक्षक था। उसके द्वारा संरक्षित महानतम् कवि 'मलिक-उस-शोरा' था, जिसने तीन मसनवियो की रचना की। अयोग्य शासक के कारण, अंततः 1637 ई. में औरंगजेब ने गोलकुण्डा को मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया। बहमनी साम्राज्य से स्वतंत्र होने वाले राज्य क्रमश बरार, बीजापुर, अहमदनगर, गोलकुण्डा तथा बीदर हैं।
पर्यटन
गोलकुण्डा का क़िला 400 फुट ऊंची कणाश्म (ग्रेनाइट) की पहाड़ी पर स्थित है। इसके तीन परकोटे हैं और इसका परिमाप सात मील के लगभग है। इस पर 87 बुर्ज बने हैं। दुर्ग के अन्दर क़ुतुबशाही बेगमों के भवन उल्लेखनीय है। इनमें तारामती, पेमामती, हयात बख्शी बेगम और भागमती (जो हैदराबाद या भागनगर के संस्थापक कुली क़ुतुब शाह की प्रेयसी थी) के महलों से अनेक मधुर आख्यायिकी का संबंध बताया जाता है। क़िले के अन्दर नौमहल्ला नामक अन्य इमारतें हैं। जिन्हें हैदराबाद के निजामों ने बनवाया था। इनकी मनोहारी बाटिकाएँ तथा सुन्दर जलाशय इनके सौंदर्य को द्विगुणित कर देते हैं। क़िले से तीन फलांग पर इब्राहिम बाग़ में सात क़ुतुबशाही सुल्तानों के मक़्बरे हैं। जिनके नाम हैं-
- कुली क़ुतुब,
- सुभान क़ुतुब,
- जमशेदकुली,
- इब्राहिम,
- मुहम्मद कुली क़ुतुब,
- मुहम्मद क़ुतुब और
- अब्दुल्ला क़ुतुबशाह।
प्रेमावती व हयात बख्शी बेगमों के मक़्बरे भी इसी उद्यान के अन्दर हैं। इन मक़्बरों के आधार वर्गाकार हैं तथा इन पर गुंबदों की छतें हैं। चारों ओर वीथीकाएँ बनी हैं जिनके महाराब नुकीले हैं। ये वीथीकाएँ कई स्थानों पर दुमंजिली भी हैं। मक़्बरों के हिन्दू वास्तुकला के विशिष्ट चिह्न कमल पुष्प तथा पत्र और कलियाँ, श्रृंखलाएँ, प्रक्षिप्त छज्जे, स्वस्तिकाकार स्तंभशीर्ष आदि बने हुए हैं। गोलकुण्डा दुर्ग के मुख्य प्रवेश द्वार में यदि जोर से करतल ध्वनि की जाए तो उसकी गूंज दुर्ग के सर्वोच्च भवन या कक्ष में पहुँचती है। एक प्रकार से यह ध्वनि आह्वान घंटी के समान थी। दुर्ग से डेढ़ मील पर तारामती की छतरी है। यह एक पहाड़ी पर स्थित है। देखने में यह वर्गाकार है और इसकी दो मंज़िले हैं। किंवदंती है कि तारामती, जो क़ुतुबशाही सुल्तानों की प्रेयसी तथा प्रसिद्ध नर्तकी थी, क़िले तथा छतरी के बीच बंधी हुई एक रस्सी पर चाँदनी में नृत्य करती थी। सड़क के दूसरी ओर प्रेमावती की छतरी है। यह भी क़ुतुबशाही नरेशों की प्रेमपात्री थी। हिमायत सागर सरोवर के पास ही प्रथम निज़ाम के पितामह चिनकिलिचख़ाँ का मक़्बरा है।
आक्रमण
28 जनवरी, 1627 ई. को औरंगज़ेब ने गोलकुण्डा के क़िले पर आक्रमण किया और तभी मुग़ल सेना के एक नायक के रूप में किलिच ख़ाँ ने भी इस आक्रमण में भाग लिया था। युद्ध में इसका एक हाथ तोप के गोले से उड़ गया था जो मक़्बरे से आधा मील दूर क़िस्मतपुर में गड़ा हुआ है। इसी घाव से इसका कुछ दिन बाद निधन हो गया। कहा जाता है कि मरते वक़्त भी किलिच ख़ाँ जरा भी विचलित नहीं हुआ था और औरंगज़ेब के प्रधानमंत्री जमदातुल मुल्क असद ने, जो उससे मिलने आया था, उसे चुपचाप काफ़ी पीते देखा था। शिवाजी ने बीजापुर और गोलकुण्डा के सुल्तानों को बहुत संत्रस्त किया था तथा उनके अनेक क़िलों को जीत लिया था। उनका आतंक बीजापुर और गोलकुण्डा पर बहुत समय तक छाया रहा जिसका वर्णन हिन्दी के प्रसिद्ध कवि भूषण ने किया है- बीजापुर गोलकुण्डा आगरा दिल्ली कोट बाजे बाजे रोज़ दरवाजे उधरत हैं।
प्रसिद्धि
गोलकुण्डा पहले हीरों के लिए विख्यात था। जिनमें से कोहिनूर हीरा सबसे मशहूर है।
वीथिका
-
गोलकुण्डा क़िला, हैदराबाद
Golkonda Fort, Hyderabad -
गोलकुण्डा क़िला, हैदराबाद
Golkonda Fort, Hyderabad -
गोलकुण्डा क़िला, हैदराबाद
Golkonda Fort, Hyderabad -
गोलकुण्डा क़िला, हैदराबाद
Golkonda Fort, Hyderabad
संबंधित लेख