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*इसका रचना काल सं. 1926 तदनुसार 1969 ई. है। अर्थात सन 1957 के जन-आन्दोलन के कुल 12 वर्ष की समयावधि के पश्चात की रचना है। | *इसका रचना काल सं. 1926 तदनुसार 1969 ई. है। अर्थात सन 1957 के जन-आन्दोलन के कुल 12 वर्ष की समयावधि के पश्चात की रचना है। |
10:38, 11 जुलाई 2011 का अवतरण
- झाँसी की रायसी नामक इस रासो काव्य के रचनाकार प्रधान कल्याणसिंह कुड़रा है।
- इसकी छन्द संख्या लगभग 200 है।
- उपलब्ध पुस्तक में छन्द गणना के लिए छन्दों पर क्रमांक नहीं डाले गये हैं।
- इसमें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई तथा टेहरी ओरछा वाली रानी लिड़ई सरकार के दीवान नत्थे ख़ाँ के साथ हुए युद्ध का विस्तृत वर्णन किया गया है।
- झांसी की रानी तथा अंग्रेज़ों के मध्य हुए झांसी, कालपी, कौंच तथा ग्वालियर के युद्धों का भी वर्णन संक्षिप्त रुप में इसमें पाया जाता है।
- इसका रचना काल सं. 1926 तदनुसार 1969 ई. है। अर्थात सन 1957 के जन-आन्दोलन के कुल 12 वर्ष की समयावधि के पश्चात की रचना है।
- इसे श्री 'हरिमोहन लाल श्रीवास्तव' दतिया ने 'वीरांगना लक्ष्मीबाई रासो' और कहानी नाम से सम्पादित कर सहयोगी प्रकाशन मन्दिर लि., दतिया से प्रकाशित कराया है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रासो काव्य : वीरगाथायें (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 मई, 2011।