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मैना शाखाशयी गण के स्टनींडी कुल की पक्षी है, जो कत्थर्स, भूरी, सिलेटी, या चितली होती है। यह पहाड़ी मैनाओं से भिन्न पक्षी है, जो जगलों की अपेक्षा बस्ती के बागों और जलाशयों के किनारे रहना अधिक पसंद करता है। यह सर्वभक्षी पक्षी है, जो कद में फाखता के बराबर होती है। कुछ मैना पक्षी अपनी मीठी बोली के लिय प्रसिद्ध हैं। निम्नलिखित पाँच मैना बहुत प्रसिद्ध हैं:
मैना शाखाशयी गण के स्टनींडी कुल की पक्षी है, जो कत्थर्स, भूरी, सिलेटी, या चितली होती है। यह पहाड़ी मैनाओं से भिन्न पक्षी है, जो जगलों की अपेक्षा बस्ती के बागों और जलाशयों के किनारे रहना अधिक पसंद करता है। यह सर्वभक्षी पक्षी है, जो कद में फाखता के बराबर होती है। कुछ मैना पक्षी अपनी मीठी बोली के लिय प्रसिद्ध हैं। निम्नलिखित पाँच मैना बहुत प्रसिद्ध हैं:

14:58, 8 जुलाई 2011 का अवतरण

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मैना, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, भरतपुर
Starling, Keoladeo National Park, Bharatpur

मैना शाखाशयी गण के स्टनींडी कुल की पक्षी है, जो कत्थर्स, भूरी, सिलेटी, या चितली होती है। यह पहाड़ी मैनाओं से भिन्न पक्षी है, जो जगलों की अपेक्षा बस्ती के बागों और जलाशयों के किनारे रहना अधिक पसंद करता है। यह सर्वभक्षी पक्षी है, जो कद में फाखता के बराबर होती है। कुछ मैना पक्षी अपनी मीठी बोली के लिय प्रसिद्ध हैं। निम्नलिखित पाँच मैना बहुत प्रसिद्ध हैं:

  1. तैलियर, या स्टालिंग:- इसे अपनी मीठी बोली के कारण अंग्रेजी साहित्य में वही स्थान प्राप्त है, जो हमारे यहाँ पहाड़ी मैना की है।
  2. किलहँटा, या देशी मैना:- बस्ती बाग में हनेवाला यह बहुत प्रसिद्ध पक्षी है।
  3. चुहों, या हरिया मैना:- यह जलाशयों और गाय बैलों के आस-पास रहने वाली पक्षी है।
  4. अबलखा मैना:- काली और सफ़ेद पोशाक वाली पक्षी है।
  5. पवई:- यह बहुत मीठी बोली बोलने वाली पक्षी है।

पहाड़ी मैना

  • पहाड़ी मैना या सारिका शाखाशायी गण के ग्रेकुलिडी कुल का प्रसिद्ध पक्षी है, जो अपनी मीठी बोली के कारण शैकीनों द्वारा पिंजड़ों में पाला जाता है। अंग्रेजी साहित्य में स्टालिंग को जो स्थान प्राप्त है, वही इस मैंना को हमारे साहित्य में मिला हैं।
  • यह गिरोह में रहनेवाला पक्षी है, जो हमारा देश छोड़कर कहीं बाहर नहीं जाता। इसकी कई जातियाँ भारत में पाई जाती हैं, जिनमें थोड़ा ही भेद रहता है।
  • मैना का सारा शरीर चमकीला काला रहता है, जिसमें बैंगनी और हरी झलक रहती है। डैने पर एक सफेद चिता रहता है और आँखों के पीछे से गुद्दी तक फीते की तरह पीली खाल बढती रहती है।
  • इसका मुख्या भोजन तो फल फूल और कीड़े मकोड़े हैं, लेकिन यह फूलों का रस भी खूब पीती है। मादा फरवरी से मई के बीच में दो-तीन नीली छौंह हरे रंग के अंडे देती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

“खण्ड 9”, हिन्दी विश्वकोश, 1967 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी, 417।

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