"स्कन्द षष्ठी": अवतरणों में अंतर

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*निर्णयामृत में इतना और आया है कि [[भाद्रपद]] की [[षष्ठी]] को दक्षिणापथ में कार्तिकेय का दर्शन लेने से [[ब्रह्म हत्या]] जैसे गम्भीर पापों से मुक्ति मिल जाती है।<ref>कृत्यरत्नाकर (275-277)</ref>
*निर्णयामृत में इतना और आया है कि [[भाद्रपद]] की [[षष्ठी]] को दक्षिणापथ में कार्तिकेय का दर्शन लेने से [[ब्रह्म हत्या]] जैसे गम्भीर पापों से मुक्ति मिल जाती है।<ref>कृत्यरत्नाकर (275-277)</ref>
*तमिल प्रदेश में स्कन्दषष्ठी महत्त्वपूर्ण है और इसका सम्पादन मन्दिरों या किन्हीं भवनों से होता है।
*तमिल प्रदेश में स्कन्दषष्ठी महत्त्वपूर्ण है और इसका सम्पादन मन्दिरों या किन्हीं भवनों से होता है।
*हेमाद्रि<ref>(हेमाद्रि काल, 622)</ref>, कृत्यरत्नाकर<ref>(कृत्यरत्नाकर 119)</ref> ने [[ब्रह्म पुराण]] से उद्धरण देकर बताया है कि [[स्कन्द]] की उत्पत्ति [[अमावास्या]] को [[अग्निदेव|अग्नि]] से हुई थी, वे [[चैत्र]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[षष्ठी]] को प्रत्यक्ष हुए थे, देवों के द्वारा सेनानायक बनाये गये थे तथा [[तारकासुर]] का वध किया था, अत: उनकी पूजा, [[दीपक|दीपों]], [[वस्त्र|वस्त्रों]], [[अलंकरण|अलंकरणों]], मुर्गों (खिलौनों के रूप में) आदि से की जानी चाहिए अथवा उनकी पूजा बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सभी शुक्ल षष्ठियों पर करनी चाहिए।
*हेमाद्रि<ref>हेमाद्रि काल, 622)</ref>, कृत्यरत्नाकर<ref>कृत्यरत्नाकर 119)</ref> ने [[ब्रह्म पुराण]] से उद्धरण देकर बताया है कि [[स्कन्द]] की उत्पत्ति [[अमावास्या]] को [[अग्निदेव|अग्नि]] से हुई थी, वे [[चैत्र]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[षष्ठी]] को प्रत्यक्ष हुए थे, देवों के द्वारा सेनानायक बनाये गये थे तथा [[तारकासुर]] का वध किया था, अत: उनकी पूजा, [[दीपक|दीपों]], [[वस्त्र|वस्त्रों]], [[अलंकरण|अलंकरणों]], मुर्गों (खिलौनों के रूप में) आदि से की जानी चाहिए अथवा उनकी पूजा बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सभी शुक्ल षष्ठियों पर करनी चाहिए।
*तिथितत्त्व <ref>(तिथितत्त्व 35)</ref> ने [[चैत्र]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[षष्ठी]] को स्कन्दषष्ठी कहा है।<ref>स्मृतिकौस्तुभ (93)</ref>
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. निर्णयसिन्धु (49); पुरुषार्थचिन्तामणि (101); स्मृतिकौस्तुभ (138)
  2. कृत्यरत्नाकर (275-277)
  3. हेमाद्रि काल, 622)
  4. कृत्यरत्नाकर 119)
  5. तिथितत्त्व 35)
  6. स्मृतिकौस्तुभ (93)

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