"मासोपनास व्रत": अवतरणों में अंतर

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*'सभी व्रतों में यह सर्वोत्तम व्रत है।  
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*यह एक अति प्राचीन व्रत है।  
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*ई0 पू. दूसरी शती में रानी नायनिका (नागनिका) ने इसे सम्पादित किया था।<ref>ए0 एस0 डब्ल्यू0 आई0, जिल्द 5, पृ0 60)</ref>  
*ई0 पू. दूसरी शती में रानी नायनिका (नागनिका) ने इसे सम्पादित किया था।<ref>ए0 एस0 डब्ल्यू0 आई0, जिल्द 5, पृ0 60</ref>  
*इसका वर्णन [[अग्नि पुराण]]<ref>अग्नि पुराण (204|1-18)</ref>; [[गरुड़ पुराण]]<ref>गरुड़ पुराण (1|122|1-7)</ref>, [[पद्म पुराण]]<ref>पद्म पुराण (6|121|15-54)</ref> में किया गया है।  
*इसका वर्णन [[अग्नि पुराण]]<ref>अग्नि पुराण (204|1-18</ref>; [[गरुड़ पुराण]]<ref>गरुड़ पुराण (1|122|1-7</ref>, [[पद्म पुराण]]<ref>पद्म पुराण (6|121|15-54</ref> में किया गया है।  
*अग्नि पुराण अति संक्षिप्त है, उसी को अति संक्षिप्त रूप में यहाँ पर दिया जा रहा है।  
*अग्नि पुराण अति संक्षिप्त है, उसी को अति संक्षिप्त रूप में यहाँ पर दिया जा रहा है।  
*कर्ता को सभी [[वैष्णव]] व्रत (यथा–द्वादशी) कर लेने चाहिए, गुरु का आदेश ले लेना चाहिए; अपनी शक्ति को देखकर [[आश्विन मास|आश्विन]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] एकादशी से आरम्भ कर उसे 30 दिनों तक ले जाने का संकल्प करना चाहिए।  
*कर्ता को सभी [[वैष्णव]] व्रत (यथा–द्वादशी) कर लेने चाहिए, गुरु का आदेश ले लेना चाहिए; अपनी शक्ति को देखकर [[आश्विन मास|आश्विन]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] एकादशी से आरम्भ कर उसे 30 दिनों तक ले जाने का संकल्प करना चाहिए।  
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*ऐसी मान्यता है कि वह स्थान जहाँ पर कर्ता ठहरता है पवित्र हो जाता है, वह अपने एवं अपने परिवार के लोगों को स्वर्गलोक ले जाता है।  
*ऐसी मान्यता है कि वह स्थान जहाँ पर कर्ता ठहरता है पवित्र हो जाता है, वह अपने एवं अपने परिवार के लोगों को स्वर्गलोक ले जाता है।  
*यदि कर्ता बीच में मूर्छित हो जाय तो उसे दूध, घी, एवं फल का रस देना चाहिए।  
*यदि कर्ता बीच में मूर्छित हो जाय तो उसे दूध, घी, एवं फल का रस देना चाहिए।  
*ब्राह्मणों की सम्मति से ऐसा करने से व्रत खण्डित नहीं होता है।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 776-783, विष्णुरहस्य से उद्धरण)</ref>
*ब्राह्मणों की सम्मति से ऐसा करने से व्रत खण्डित नहीं होता है।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 776-783, विष्णुरहस्य से उद्धरण</ref>
 
 



12:58, 27 जुलाई 2011 का अवतरण

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • 'सभी व्रतों में यह सर्वोत्तम व्रत है।
  • यह एक अति प्राचीन व्रत है।
  • ई0 पू. दूसरी शती में रानी नायनिका (नागनिका) ने इसे सम्पादित किया था।[1]
  • इसका वर्णन अग्नि पुराण[2]; गरुड़ पुराण[3], पद्म पुराण[4] में किया गया है।
  • अग्नि पुराण अति संक्षिप्त है, उसी को अति संक्षिप्त रूप में यहाँ पर दिया जा रहा है।
  • कर्ता को सभी वैष्णव व्रत (यथा–द्वादशी) कर लेने चाहिए, गुरु का आदेश ले लेना चाहिए; अपनी शक्ति को देखकर आश्विन शुक्ल एकादशी से आरम्भ कर उसे 30 दिनों तक ले जाने का संकल्प करना चाहिए।
  • किसी वानप्रस्थ व्यक्ति या यति या विधवा द्वारा यह सम्पादित होना चाहिए।
  • पुष्पों आदि से प्रतिदिन तीन बार विष्णु पूजा होनी चाहिए।
  • विष्णु भगवान की प्रशस्ति के गान गाये जाने चाहिए।
  • विष्णु का ध्यान करना चाहिए।
  • व्यर्थ की बातों का त्याग होना चाहिए।
  • धन की इच्छा का त्याग करना चाहिए।
  • जो नियमों का पालन नहीं करते उन्हें नहीं छूना चाहिए, मन्दिर में 30 दिनों तक रहना चाहिए।
  • 30 दिनों के उपरान्त 12वें दिन ब्रह्मभोज देना चाहिए, दक्षिणा देनी चाहिए तथा 13 ब्राह्मणों को आमंत्रित कर पारण करना चाहिए।
  • वस्त्रों का जोड़ा, आसन, पात्र, छत्र, खड़ाऊँ, दान रूप में दिये जाने चाहिए।
  • एक पलंग पर विष्णु की स्वर्ण-प्रतिमा का पूजन होना चाहिए।
  • अपनी स्वयं की प्रतिमा को वस्त्र आदि देना चाहिए, पलंग गुरु को दे देनी चाहिए।
  • ऐसी मान्यता है कि वह स्थान जहाँ पर कर्ता ठहरता है पवित्र हो जाता है, वह अपने एवं अपने परिवार के लोगों को स्वर्गलोक ले जाता है।
  • यदि कर्ता बीच में मूर्छित हो जाय तो उसे दूध, घी, एवं फल का रस देना चाहिए।
  • ब्राह्मणों की सम्मति से ऐसा करने से व्रत खण्डित नहीं होता है।[5]

 


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ए0 एस0 डब्ल्यू0 आई0, जिल्द 5, पृ0 60
  2. अग्नि पुराण (204|1-18
  3. गरुड़ पुराण (1|122|1-7
  4. पद्म पुराण (6|121|15-54
  5. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 776-783, विष्णुरहस्य से उद्धरण

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