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अर्थ -  अजगर को किसी की नौकरी नहीं करनी होती और पक्षी को भी कोई काम नहीं करना होता, ईश्वर ही सबका पालनहार है, इसलिए कोई भी काम मत करो ईश्वर स्वयं देगा। आलसी लोगों के लिए श्री मलूकदास जी का ये कथन बहुत ही उचित है !  
अर्थ -  अजगर को किसी की नौकरी नहीं करनी होती और पक्षी को भी कोई काम नहीं करना होता, ईश्वर ही सबका पालनहार है, इसलिए कोई भी काम मत करो ईश्वर स्वयं देगा। आलसी लोगों के लिए श्री मलूकदास जी का ये कथन बहुत ही उचित है !  
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|2-असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है<br />
|53- अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो।
क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे।
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अर्थ -किसान को आषाढ माह में साधारण जुताई करनी चाहिए, सावन भादों में अधिक, परन्तु क्वार में बहुत अधिक जुताई करें कि दिन-रात का ध्यान ना रहे, तभी अच्छी और ज़्यादा उपज होगी।
अर्थ - अपने ज़रा से लाभ के लिए किसी दूसरे की बड़ी हानि करना।
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|3-अधजल गगरी छलकत जाय
|54- अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता।
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अर्थ - जो व्यक्ति बहुत कम जानता, वह विद्वान ही होने का दिखावा ज्यादा करता है।
अर्थ - अपनी चीज़ को कोई बुरा नहीं बताता।
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|4-अति ऊंचे भू-धारन पर भुजगन के स्थान<br />
|55- अपनी टाँग उघारिए, आपहि मरिए लाज।
तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान।
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अर्थ - तुलसीदास जी कहते हैं कि खेती ऐसे ऊंचे स्थानों पर करनी चाहिए जहां पर सांप रहते हों, पहाड़ों के ढाल पर उंख हो, वहीं पर अन्न और पान की अच्छी फसल होती है।  
अर्थ - अपने घर की बात दूसरों से कहने से व्यक्ति की खुद की ही बदनामी होती है।
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|5-असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है<br />
|56- अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।
क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे।
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अर्थ -किसान को आषाढ माह में साधारण जुताई करनी चाहिए, सावन भादों में अधिक, परन्तु क्वार में बहुत अधिक जुताई करें कि दिन-रात का ध्यान ना रहे, तभी अच्छी और ज़्यादा उपज होगी।
अर्थ - पूर्ण रूप से स्वतंत्र होना।
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|6-अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।<br />
57- अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
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अर्थ - यदि द्वितीया का चन्द्रमा, आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहते हैं।
अर्थ - दुष्ट लोग दूसरों का नुकसान करते ही हैं, भले ही उनका अपना भी कितना ही नुकसान हो जाए।
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|7- अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।<br />
|58- अपनी पगड़ी अपने हाथ,
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
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अर्थ - अगर वैशाख में अक्षय तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।
अर्थ - अपनी इज्जत अपने हाथ होना।
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|8-असुनी नलिया अन्त विनासै। गली रेवती जल को नासै।।<br />
|59- अपने किए का क्या इलाज।
भरनी नासै तृनौ सहूतो। कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।
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अर्थ - अगर चैत माह में अश्विनी नक्षत्र में बारिश हो तो वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा पड़ेगा; रेतवी नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाम मात्र की होगी;  भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी।
अर्थ - अपने कर्म का फल खुद भोगना ही पड़ता है।
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|9-असाढ़ मास आठें अंधियारी। जो निकले बादर जल धारी।।<br />
|60- अपने झोपड़े की खैर मनाओ।
चन्दा निकले बादर फोड़। साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।
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अर्थ - अगर आषाढ़ माह की अष्टमी को अन्धकार छाया हुआ हो और चन्द्रमा बादलों से निकले तो बहुत आनन्ददायी वर्षा होगी और पृथ्वी पर आनन्द की बारिश सी होगी।
अर्थ - अपनी कुशल देखो या अपनी भलाई देखो।
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|10- असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र।<br />
|61- अपने पूत को कोई काना नहीं कहता।
तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।
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अर्थ - अगर आषाढ़ माह की पूर्णिमा को चन्द्रमा बादलों से ढ़का रहे तो भड्डरी ज्योतिषी कहते हैं कि उस वर्ष आनन्द ही आनन्द रहेगा।
अर्थ - अपनी खराब चीज़ को भी कोई खराब नहीं कहता है।
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|11- अंधा बाँटे रेवड़ी (शीरनी), फिर-फिर अपनों को दे।
|62- अपने मुँह मिया मिट्ठू बनाना।
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अर्थ - अपने अधिकार का लाभ सिर्फ अपनों को ही पहुँचाना।
अर्थ - अपनी बड़ाई खुद ही करना।
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|63- अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।
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अर्थ - सदा वर्तमान में ही रहना चाहिए और आज की ही चिंता करनी चाहिए।
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|64- अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार।
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अर्थ - सारी उम्र तो व्यक्ति बुरे काम करता रहा और बाद में  संत बनकर बैठ जाए।
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|65-  अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे।
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अर्थ - अभी तो तुम्हारी उम्र कम है और अभी तुम बच्चे हो और नादान और अनजान हो।
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|66- अभी दिल्ली दूर है।
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अर्थ - अभी कसर बाकी है,अभी काम पूरा नहीं हुआ।
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|67- अमरी की जान प्यारी, गरीब को दम भारी।
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अर्थ - गरीब की जान के लाले पड़े हैं।
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|68- अरहर की टट्टी, गुजराती ताला।
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अर्थ -  मामूली वस्तु की रक्षा के लिए इतना बड़ा इन्तज़ाम ।
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|69- अलख पुरूष की माया, कहीं धूप कहीं छाया।
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अर्थ - ईश्वर की लीला देखिए- कोई सुखी है और कोई दु:खी है।
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|70- अशर्फियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर।
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अर्थ - मूल्यवान वस्तु भले ही दे दें पर छोटी-छोटी चीज़ों को बचा-बचा कर रखने की आदत।
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14:23, 9 मई 2010 का अवतरण

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57- अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े।
कहावत लोकोक्ति मुहावरे अर्थ

1-अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम,
दास मलूका कह गए सब के दाता राम ..।

अर्थ - अजगर को किसी की नौकरी नहीं करनी होती और पक्षी को भी कोई काम नहीं करना होता, ईश्वर ही सबका पालनहार है, इसलिए कोई भी काम मत करो ईश्वर स्वयं देगा। आलसी लोगों के लिए श्री मलूकदास जी का ये कथन बहुत ही उचित है !

53- अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो।

अर्थ - अपने ज़रा से लाभ के लिए किसी दूसरे की बड़ी हानि करना।

54- अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता।

अर्थ - अपनी चीज़ को कोई बुरा नहीं बताता।

55- अपनी टाँग उघारिए, आपहि मरिए लाज।

अर्थ - अपने घर की बात दूसरों से कहने से व्यक्ति की खुद की ही बदनामी होती है।

56- अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।

अर्थ - पूर्ण रूप से स्वतंत्र होना।

अर्थ - दुष्ट लोग दूसरों का नुकसान करते ही हैं, भले ही उनका अपना भी कितना ही नुकसान हो जाए।

58- अपनी पगड़ी अपने हाथ,

अर्थ - अपनी इज्जत अपने हाथ होना।

59- अपने किए का क्या इलाज।

अर्थ - अपने कर्म का फल खुद भोगना ही पड़ता है।

60- अपने झोपड़े की खैर मनाओ।

अर्थ - अपनी कुशल देखो या अपनी भलाई देखो।

61- अपने पूत को कोई काना नहीं कहता।

अर्थ - अपनी खराब चीज़ को भी कोई खराब नहीं कहता है।

62- अपने मुँह मिया मिट्ठू बनाना।

अर्थ - अपनी बड़ाई खुद ही करना।

63- अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।

अर्थ - सदा वर्तमान में ही रहना चाहिए और आज की ही चिंता करनी चाहिए।

64- अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार।

अर्थ - सारी उम्र तो व्यक्ति बुरे काम करता रहा और बाद में संत बनकर बैठ जाए।

65- अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे।

अर्थ - अभी तो तुम्हारी उम्र कम है और अभी तुम बच्चे हो और नादान और अनजान हो।

66- अभी दिल्ली दूर है।

अर्थ - अभी कसर बाकी है,अभी काम पूरा नहीं हुआ।

67- अमरी की जान प्यारी, गरीब को दम भारी।

अर्थ - गरीब की जान के लाले पड़े हैं।

68- अरहर की टट्टी, गुजराती ताला।

अर्थ - मामूली वस्तु की रक्षा के लिए इतना बड़ा इन्तज़ाम ।

69- अलख पुरूष की माया, कहीं धूप कहीं छाया।

अर्थ - ईश्वर की लीला देखिए- कोई सुखी है और कोई दु:खी है।

70- अशर्फियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर।

अर्थ - मूल्यवान वस्तु भले ही दे दें पर छोटी-छोटी चीज़ों को बचा-बचा कर रखने की आदत।