"कहावत लोकोक्ति मुहावरे-ज": अवतरणों में अंतर
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|61- जो बोले सो घी को जाए। | |61- जो बोले सो घी को जाए। | ||
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अर्थ - | अर्थ - ज़्यादा बोलना अच्छा नहीं होता। | ||
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|62- जो हाँडी में होगा वह थाली में आएगा। | |62- जो हाँडी में होगा वह थाली में आएगा। |
13:33, 11 मई 2010 का अवतरण
कहावत लोकोक्ति मुहावरे वर्णमाला क्रमानुसार खोजें
कहावत लोकोक्ति मुहावरे | अर्थ |
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1- जो बोये गेहूं पांच पसेरी, मटर के बीघा तीन सेर, |
अर्थ - एक बीघा में पांच सेर गेहूं, मटर तीन सेर, चना तीन पसेरी, ज्वार तीन सेर, अरहर और उड़द दो दो सेर बोना चाहिए। डेढ़ सेर कपास और धान पांच पसेरी बोया जाए तो अनाज की इतनी उपज होगी कि आपके भंडार भर जायेंगे। |
2- जो हल जोतै खेती वाकी, और नहीं तो जाकी ताकी। |
अर्थ - |
3- जब बरखा चित्रा में होय। सगरी खेती जावै खोय।। |
अर्थ - चित्रा नक्षत्र की वर्षा प्राय: सारी खेती नष्ट कर देती है। |
4- जो बरसे पुनर्वसु स्वाती। चरखा चलै न बोलै तांती।। |
अर्थ - पुनर्वसु और स्वाति नक्षत्र की बारिश से किसान सुखी रहते है, उन्हें और तांत(चरखा) चलाकर जीवन निर्वाह करने की जरूरत नहीं पड़ती। |
5- जो कहुं मग्घा बरसै जल। सब नाजों में होगा फल।। |
अर्थ - मघा नक्षत्र में पानी बरसने से सब अनाज अच्छी तरह पैदा होते हैं। |
6- जब बरसेगा उत्तरा। नाज न खावै कुत्तरा।। |
अर्थ - यदि उत्तरा नक्षत्र बरसेगा तो अन्न इतना अधिक होगा कि उसे कुत्ते भी नहीं खाएंगे। |
7- जंगल में मोर नाचा किसने देखा। |
अर्थ - ऐसे स्थान पर गुण प्रदर्शन न करें जहाँ कद्र न हो। |
8- जड़ काटते जाएं, पानी देते जाएं। |
अर्थ - भीतर से शत्रु ऊपर से मित्र। |
9- जने–जने की लकड़ी, एक जने का बोझ। |
अर्थ - सबसे थोड़ा-थोड़ा मिले तो काम पूरा हो जाता है। |
10- जब चने थे दाँत न थे, जब दाँत भये तब चने नहीं। |
अर्थ - कभी वस्तु है तो उसका भोग करने वाला नहीं और कभी भोग करने वाला है तो वस्तु नहीं।। |
11- जब तक जीना तब तक सीना। |
अर्थ - जीते-जी कोई न कोई काम करना पड़ता है। |
12- जब तक साँस तब तक आस। |
अर्थ - अंत समय तक उम्मीद बनी रहती है। |
13- जबरदस्ती का ठेंगा सिर पर। |
अर्थ - जबरदस्ती आदमी दबाव डाल कर काम लेता है । |
14- जबरा मारे रोने न दे। |
अर्थ - जवरदस्त आदमी का अत्याचार चुपचाप सहना पड़ता है। |
15- ज़बान को लगाम चाहिए। |
अर्थ - सोच-समझकर बोलना चाहिए। |
16- ज़बान ही हाथी चढ़ाए, ज़बान ही सिर कटाए। |
अर्थ - मीठी बोली से आदर और कड़वी बोली से निरादर होता है। |
17- ज़र का ज़ोर पूरा है, और सब अधूरा है। |
अर्थ - धन सबसे बलवान है। |
18- ज़र है तो नर, नहीं तो खंडहर। |
अर्थ - पैसे से ही आदमी का सम्मान है। |
19- जल में रहकर मगर से बैर। |
अर्थ - जहाँ रहना हो वहाँ के मुखिया से बैर ठीक नहीं होता । |
20- जस दूल्हा तस बनी बराता। |
अर्थ - जैसे आप वैसे साथी। |
21- जहं जहं चरण पड़े संतन के, तहं तहं बंटाधार। |
अर्थ - अभागा व्यक्ति जहाँ जाता है, बुरा होता है। |
22- जहाँ गुड़ होगा, वहीं मक्खियाँ होंगी। |
अर्थ - आकर्षक जगह पर लोग जमा होते हैं। |
23- जहाँ चार बासन होगें, वहाँ खटकेगें भी। |
अर्थ - जहाँ कुछ व्यक्ति होते है वहाँ कभी-कभी झगड़ा हो ही जाता है। |
24- जहाँ चाह वहाँ राह। |
अर्थ - इच्छा हो तो काम करने का रास्ता निकल ही आता है। |
25- जहाँ देखे तवा परात, वहीं गुजारी सारी रात। |
अर्थ - जहाँ कुछ प्राप्ति होती हो, वहाँ लालची आदमी जम जाता है। |
26- जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि। |
अर्थ - कवि अपनी कल्पना से सब जगह पहुँच जाता है। |
27- जहाँ फूल वहाँ काँटा। |
अर्थ - अच्छाई के साथ बुराई भी लगी होती है। |
28- जहाँ मुर्गा नहीं होता क्या वहाँ सवेरा नहीं होता। |
अर्थ - किसी के बिना काम रुकता नहीं है। |
29- जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई। |
अर्थ - दु:ख को भुक्ता भोगी ही जानता है उसे अन्य कोई नहीं जान सकता है। |
30- जागेगा सो पावेगा,सोवेगा सो खोएगा। |
अर्थ - लाभ इसमें है कि आदमी सतर्क रहे। |
31- जादू वह जो सिर पर चढ़कर बोले। |
अर्थ - असरदार आदमी की बात माननी ही पड़ती है। |
32- जान मारे बनिया पहचान मारे चोर। |
अर्थ - बनिया और चोर जान पहचान वालों को भी ठगते हैं। |
33- जाएं लाख, रहे साख। |
अर्थ - धन भले ही चला जाए, इज्जत बचनी चाहिए। |
34- जितना गुड़ डालो, उतना ही मीठा। |
अर्थ - जितना खर्चा करोगे चीज़ उतनी ही अच्छी मिलेगी। |
35- जितनी चादर देखो, उतने ही पैर पसारो। |
अर्थ - आमदनी के हिसाब से खर्च करो। |
36- जितने मुँह उतनी बातें। |
अर्थ - अनेक प्रकार की अफवाहें। |
37- जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैंठ। |
अर्थ - जितना कठिन परिश्रम उतना ही लाभ होता है। |
38- जिस तन लगे वही तन जाने। |
अर्थ - जिसको कष्ट होता है वही उसका अनुभव कर सकता है। |
39- जिस थाली में खाना, उसी में छेद करना। |
अर्थ - जो उपकार करे, उसका ही अहित करना। |
40- जिसका काम उसी को साजै। |
अर्थ - जो काम जिसका है वही उसे भली प्रकार से कर सकता है। |
41- जिसका खाइए उसका गाइए। |
अर्थ - जिससे लाभ हो उसी का पक्ष लो। |
42- जिसकी जूती उसी के सिर। |
अर्थ - जिसकी करनी उसी को फल मिलता है। |
43- जिसकी लाठी उसी की भैंस। |
अर्थ - शक्ति संपन्न आदमी का रौब चलता है और वह अपना काम बना लेता है। |
44- जिसके हाथ डोई, उसका सब कोई। |
अर्थ - धनी आदमी के सब मित्र हैं। |
45- जिसको पिया चाहे, वहीं सुहागिन। |
अर्थ - जिसको अफ़सर माने,वहीं योग्य है। |
46- जी का बैरी जी। |
अर्थ - मनुष्य ही मनुष्य का शत्रु है। |
47- जीभ भी जली और स्वाद भी न आया। |
अर्थ - कष्ट सहकर भी सुख न मिला। |
48- जूँ के डर से गुदड़ी नहीं फेंकी जाती |
अर्थ - थोड़ी सी कठिनाई के कारण कोई काम छोड़ा नहीं जाता। |
49- जुठा खाए, मीठे के लालच। |
अर्थ - लाभ के लालच में नीच काम करना। |
50- जैसा करोगे वैसा भरोगे, जैसा बोओगे वैसा काटोगे। |
अर्थ - अपनी करनी का फल मिलता है। |
51- जैसा मुँह वैसा थप्पड़। |
अर्थ - जो जिसके योग्य हो उसको वही मिलता है। |
52- जैसा राजा वैसी प्रजा। |
अर्थ - जैसा मालिक होता है वैसे ही कर्मचारी होते हैं। |
53- जैसे तेरी कोमरी, वैसे मेरे गीत। |
अर्थ - जैसा दोगे वैसा पाओगे। |
54- जैसे कंता घर रहे वैसे रहे परदेश। |
अर्थ - निकम्मा आदमी घर में रहे या बाहर कोई अंतर नहीं। |
55- जैसे नागनाथ वैसे साँपनाथ। |
अर्थ - सबका एक जैसा होना। |
56- जैसे मियाँ काइ का वैसे सन की दाढ़ी। |
अर्थ - ठीक मेल है। |
57- जो गरजते हैं वो बरसते नहीं। |
अर्थ - बहुत डींग हाँकने वाले काम के नहीं होते हैं। |
58- जोगी का बेटा खेलेगा तो साँप से। |
अर्थ - बाप का प्रभाव बेटे पर पड़ता है। |
59- जो गुड़ खाए सो कान छिदवाए। |
अर्थ - लाभ पाने वाले को कष्ट सहना ही पड़ता है। |
60- जो तोको काँटा बुवे ताहि बोइ तू फूल। |
अर्थ - बुराई का बदला भी भलाई से दो। |
61- जो बोले सो घी को जाए। |
अर्थ - ज़्यादा बोलना अच्छा नहीं होता। |
62- जो हाँडी में होगा वह थाली में आएगा। |
अर्थ - जो मन में है वह प्रकट होगा ही। |
63- ज्यों-ज्यों भीजे कामरी त्यों -त्यों भारी होय |
अर्थ - जैसे-जैसे समय बीतता है जिम्मेदारियाँ बढ़ती जाती हैं। |
64- ज्यों नकटे को आरसी होत दिखाई क्रोध। |
अर्थ - दोषी को उसका दोष बताया जाए तो क्रुद्ध होता है। |
65- जो सुख चौबारे, न बखल न बुखारे। |
अर्थ - अपना घर दूर से सूझता है। |
66- जंगल में मंगल होना। |
अर्थ - उजाड़ में चहल-पहल होना। |
67- जड़ों में मट्ठा ड़ालना / तेल देना / जड़ खोदना / जड़ काटना। |
अर्थ - समूल नष्ट करना। |
68- ज़बान काट कर देना। |
अर्थ - वादा करना। |
69- ज़बान पर चढ़ना। |
अर्थ - याद आना। |
70- ज़बान पर लगाम न होना। |
अर्थ - बेमतलब बोलते जाना। |
71- ज़मीन आसमान एक करना। |
अर्थ - सब उपाय कर डालना। |
72- ज़मीन आसमान का फर्क। |
अर्थ - बहुत भारी अंतर होना। |
73- ज़मीन पर पैर न रखना। |
अर्थ - अकड़कर चलना, इतराना। |
74- ज़मीन में गड़ना। |
अर्थ - लज्जा से सिर नीचा होना। |
75- जलती आग में घी डालना। |
अर्थ - और भड़काना। |
76- जली-कटी सुनाना। |
अर्थ - बुरा-भला कहना। |
77- ज़हर उगलना। |
अर्थ - कड़वी बातें कहना। |
78- ज़हर की पुडि़या। |
अर्थ - झगड़ालू औरत। |
79- ज़हाज का पंछी। |
अर्थ - जिसका कोई ठिकाना नहीं हो। |
80- जान के लाले पड़ना। |
अर्थ - संकट में पड़ना। |
81- जान पर खेलना। |
अर्थ - जान की बाजी लगाना। |
82- जान में जान आना। |
अर्थ - चैन, सकून मिलना। |
83- जान से हाथ धोना बैठना। |
अर्थ - मारा जाना। |
84- जान हथेली पर रखना। |
अर्थ - जान की परवाह न करना। |
85- जामे से बाहर होना। |
अर्थ - अत्यधिक क्रुद्ध होना। |
86- जी का जंजाल। |
अर्थ - व्यर्थ का झंझट। |
87- जी खट्टा होना। |
अर्थ - विरक्ति होना। |
88- जी चुराना। |
अर्थ - काम करने से कतराना। |
89- जीते जी मक्खी निगलना। |
अर्थ - जी पर बन आना। |
90- जी भर आना। |
अर्थ - दु:खी होना। |
91- जूतियों में दाल बाँटना। |
अर्थ - लड़ाई- झगड़ा होना। |
92- जूते चाटना। |
अर्थ - चापलूसी करना। |
93- जोड़-तोड़ करना। |
अर्थ - उपाय करना। |