"दीन -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला": अवतरणों में अंतर
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Suryakant Tripathi...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
पंक्ति 30: | पंक्ति 30: | ||
{{Poemopen}} | {{Poemopen}} | ||
<poem>सह जाते हो | <poem> | ||
सह जाते हो | |||
उत्पीड़न की क्रीड़ा सदा निरंकुश नग्न, | उत्पीड़न की क्रीड़ा सदा निरंकुश नग्न, | ||
हृदय तुम्हारा दुबला होता नग्न, | हृदय तुम्हारा दुबला होता नग्न, | ||
पंक्ति 41: | पंक्ति 42: | ||
दुःख हृदय का क्षोभ त्यागकर, | दुःख हृदय का क्षोभ त्यागकर, | ||
सह जाते हो। | सह जाते हो। | ||
कह | कह जाते हो- | ||
" | "यहाँ कभी मत आना, | ||
उत्पीड़न का राज्य दुःख ही दुःख | उत्पीड़न का राज्य दुःख ही दुःख | ||
यहाँ है सदा उठाना, | यहाँ है सदा उठाना, | ||
पंक्ति 50: | पंक्ति 51: | ||
यहाँ परार्थ वही, जो रहे | यहाँ परार्थ वही, जो रहे | ||
स्वार्थ से हो भरपूर, | स्वार्थ से हो भरपूर, | ||
जगत की निद्रा, है जागरण, | |||
और जागरण जगत का - इस संसृति का | और जागरण जगत का - इस संसृति का | ||
अन्त - विराम - मरण | अन्त - विराम - मरण | ||
पंक्ति 63: | पंक्ति 64: | ||
दिवस की कर्म - कुटिल तम - भ्रान्ति | दिवस की कर्म - कुटिल तम - भ्रान्ति | ||
रात्रि का मोह, स्वप्न भी भ्रान्ति, | रात्रि का मोह, स्वप्न भी भ्रान्ति, | ||
सदा अशान्ति!" </poem> | सदा अशान्ति!" | ||
</poem> | |||
{{Poemclose}} | {{Poemclose}} | ||
11:43, 23 अगस्त 2011 का अवतरण
| ||||||||||||||||||
|
सह जाते हो |
संबंधित लेख