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[[कालिदास]] ने रघु की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में पश्चिमी देशों के निवासियों को अपरांत नाम से अभिहित किया है और इसी प्रकार कोशकार यादव ने भी 'अपरान्तास्तु पाश्चात्यास्ते' कहा है। [[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]]<ref>[[रघुवंश महाकाव्य]] 4,58</ref> में भी अपरांत के राजाओं का उल्लेख है। इस प्रकार अपरांत नाम सामान्य रूप से पश्चिमी देशों का व्यंजक था किंतु | *[[कालिदास]] ने रघु की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में पश्चिमी देशों के निवासियों को '''अपरांत''' नाम से अभिहित किया है और इसी प्रकार कोशकार यादव ने भी 'अपरान्तास्तु पाश्चात्यास्ते' कहा है। | ||
*[[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]]<ref>[[रघुवंश महाकाव्य]] 4,58</ref> में भी 'अपरांत' के राजाओं का उल्लेख है। इस प्रकार 'अपरांत' नाम सामान्य रूप से 'पश्चिमी देशों' का व्यंजक था किंतु विशेष रूप से<ref>जैसे [[महाभारत]] के उपर्युक्त उद्धरण में</ref> इस नाम से उत्तर कोंकण का बोध होता था। | |||
*[[महावंश]]<ref>[[महावंश]] 12,4</ref> के उल्लेख के अनुसार [[अशोक]] के शासनकाल में यवन धर्मरक्षित को अपरांत में [[बौद्ध धर्म]] के प्रचार के लिए भेजा गया था। इस संदर्भ में भी 'अपरांत' से पश्चिम के देशों का ही अर्थ ग्रहण करना चाहिए। | |||
*[[रुद्रदामा]] के [[जूनागढ़]] अभिलेख में 'अपरान्त' (पश्चिम भारत) में [[अशोक]] के गवर्नर के रूप में 'योनराज तुफ़ास्क' का नाम मिलता है। जो स्पष्टतः एक ईरानी नाम है। | |||
*[[जूनागढ़]] अभिलेख से ज्ञात होता है कि यहाँ [[अशोक]] ने सुदर्शन झील को पुननिर्मित कराया था, जैसा रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है। 'प्रांतपति तुहशाष्म' को वहाँ के देखरेख करने का भार सौंपा था। इसी क्षेत्र के लिए 'अपरांत' (पश्चिमी समुद्री तट) शब्द [[अशोक के अभिलेख|अभिलेखों]] में प्रयुक्त है।<ref>{{cite book | last =सहाय | first =डॉ. शिव स्वरुप | title = भारतीय पुरालेखों का अध्ययन | edition = | publisher = | location =भारत डिस्कवरी पुस्तकालय| language =हिंदी| pages =144| chapter =}}</ref> | |||
*[[शान्ति पर्व महाभारत|महाभारत शान्ति पर्व]]<ref>[[शान्ति पर्व महाभारत]] 49,66-67</ref> से सूचित होता है कि शूर्पारक नामक देश को जो 'अपरांत भूमि' में स्थित था, [[परशुराम]] के लिए सागर ने छोड़ दिया था। | |||
<blockquote>'तत: शूर्पारकं देश सागरस्तस्य निर्ममे, सहसा जामदग्नस्य सोपरान्तमहीतलम'।</blockquote> | <blockquote>'तत: शूर्पारकं देश सागरस्तस्य निर्ममे, सहसा जामदग्नस्य सोपरान्तमहीतलम'।</blockquote> | ||
[[सभा पर्व महाभारत|महाभारत सभा पर्व ]]<ref>[[सभा पर्व महाभारत]] 51,28</ref> से सूचित होता है कि अपरांत देश में जो परशुराम की भूमि थी तीक्ष्ण फरसे (परशु) बनाए जाते थे- | *[[सभा पर्व महाभारत|महाभारत सभा पर्व ]]<ref>[[सभा पर्व महाभारत]] 51,28</ref> से सूचित होता है कि अपरांत देश में जो परशुराम की भूमि थी तीक्ष्ण फरसे (परशु) बनाए जाते थे- | ||
<blockquote>'अपरांत समुदभूतांस्तथैव परशूञ्छितान्'</blockquote> | <blockquote>'अपरांत समुदभूतांस्तथैव परशूञ्छितान्'</blockquote> | ||
[[गिरनार]]-स्थित | *[[गिरनार]] - स्थित [[रुद्रदामन]] के प्रसिद्ध अभिलेख में अपरांत का रुद्रदामन द्वारा जीते जाने का उल्लेख है- | ||
<blockquote>'स्ववीर्यार्जितनामनुरक्त सर्वप्रकृतीनां सुराष्ट्रश्वभ्रभरुकच्छसिंधुसौवीरकुकुरापरान्तनिषादादीनां'-</blockquote> | <blockquote>'स्ववीर्यार्जितनामनुरक्त सर्वप्रकृतीनां सुराष्ट्रश्वभ्रभरुकच्छसिंधुसौवीरकुकुरापरान्तनिषादादीनां'-</blockquote> | ||
यहां अपरांत कोंकण का ही पर्याय जान पड़ता है। [[विष्णुपुराण]] में अपरांत का उत्तर के देशों के साथ उल्लेख है। [[वायु पुराण|वायुपुराण]] में अपरांत को अपरित कहा गया है। | *यहां अपरांत [[कोंकण]] का ही पर्याय जान पड़ता है। [[विष्णुपुराण]] में 'अपरांत' का उत्तर के देशों के साथ उल्लेख है। | ||
*[[वायु पुराण|वायुपुराण]] में '''अपरांत को अपरित''' कहा गया है। | |||
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- अपरांत महाराष्ट्र के अंतर्गत उत्तर-कोंकण[1] में स्थित है। अपरांत का प्राचीन साहित्य में अनेक स्थानों पर उल्लेख है-
- 'तत: शूर्पारकं देशं सागरस्तस्य निर्ममे,
सहसा जामदग्न्यस्य सोऽपरान्तमहीतलम्'।[2]
- कालिदास ने रघु की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में पश्चिमी देशों के निवासियों को अपरांत नाम से अभिहित किया है और इसी प्रकार कोशकार यादव ने भी 'अपरान्तास्तु पाश्चात्यास्ते' कहा है।
- रघुवंश[5] में भी 'अपरांत' के राजाओं का उल्लेख है। इस प्रकार 'अपरांत' नाम सामान्य रूप से 'पश्चिमी देशों' का व्यंजक था किंतु विशेष रूप से[6] इस नाम से उत्तर कोंकण का बोध होता था।
- महावंश[7] के उल्लेख के अनुसार अशोक के शासनकाल में यवन धर्मरक्षित को अपरांत में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भेजा गया था। इस संदर्भ में भी 'अपरांत' से पश्चिम के देशों का ही अर्थ ग्रहण करना चाहिए।
- रुद्रदामा के जूनागढ़ अभिलेख में 'अपरान्त' (पश्चिम भारत) में अशोक के गवर्नर के रूप में 'योनराज तुफ़ास्क' का नाम मिलता है। जो स्पष्टतः एक ईरानी नाम है।
- जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है कि यहाँ अशोक ने सुदर्शन झील को पुननिर्मित कराया था, जैसा रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है। 'प्रांतपति तुहशाष्म' को वहाँ के देखरेख करने का भार सौंपा था। इसी क्षेत्र के लिए 'अपरांत' (पश्चिमी समुद्री तट) शब्द अभिलेखों में प्रयुक्त है।[8]
- महाभारत शान्ति पर्व[9] से सूचित होता है कि शूर्पारक नामक देश को जो 'अपरांत भूमि' में स्थित था, परशुराम के लिए सागर ने छोड़ दिया था।
'तत: शूर्पारकं देश सागरस्तस्य निर्ममे, सहसा जामदग्नस्य सोपरान्तमहीतलम'।
- महाभारत सभा पर्व [10] से सूचित होता है कि अपरांत देश में जो परशुराम की भूमि थी तीक्ष्ण फरसे (परशु) बनाए जाते थे-
'अपरांत समुदभूतांस्तथैव परशूञ्छितान्'
'स्ववीर्यार्जितनामनुरक्त सर्वप्रकृतीनां सुराष्ट्रश्वभ्रभरुकच्छसिंधुसौवीरकुकुरापरान्तनिषादादीनां'-
- यहां अपरांत कोंकण का ही पर्याय जान पड़ता है। विष्णुपुराण में 'अपरांत' का उत्तर के देशों के साथ उल्लेख है।
- वायुपुराण में अपरांत को अपरित कहा गया है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गोवा आदि का इलाका
- ↑ शान्ति पर्व महाभारत 49, 66-67
- ↑ विष्णु पुराण 2,3,16
- ↑ रघुवंश महाकाव्य 4,53
- ↑ रघुवंश महाकाव्य 4,58
- ↑ जैसे महाभारत के उपर्युक्त उद्धरण में
- ↑ महावंश 12,4
- ↑ सहाय, डॉ. शिव स्वरुप भारतीय पुरालेखों का अध्ययन (हिंदी), 144।
- ↑ शान्ति पर्व महाभारत 49,66-67
- ↑ सभा पर्व महाभारत 51,28
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख