"तैत्तिरीयोपनिषद भृगुवल्ली अनुवाक-8": अवतरणों में अंतर
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14:46, 11 सितम्बर 2011 का अवतरण
- तैत्तिरीयोपनिषद के भृगुवल्ली का यह आठवाँ अनुवाक है।
मुख्य लेख : तैत्तिरीयोपनिषद
- अन्न का कभी तिरस्कार न करें। यह व्रत है। जल अन्न है।
- तेजस अन्न का भोग करता है।
- तेजस जल में स्थित है और तेजस में जल की स्थिति है।
- इस प्रकार अन्न में ही अन्न प्रतिष्ठित है।
- जो साधक इस रहस्य को जान लेता है, वह अन्न रूप ब्रह्म में प्रतिष्ठत हो जाता है।
- उसे सभी सुख, वैभव और यश प्राप्त हो जाते हैं और वह महान हो जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली |
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तैत्तिरीयोपनिषद भृगुवल्ली |
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तैत्तिरीयोपनिषद शिक्षावल्ली |
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