"अनोखा दान -सुभद्रा कुमारी चौहान": अवतरणों में अंतर
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कात्या सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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अपने बिखरे भावों का मैं | अपने बिखरे भावों का मैं, | ||
गूँथ अटपटा सा यह हार। | गूँथ अटपटा सा यह हार। | ||
चली चढ़ाने उन चरणों पर, | चली चढ़ाने उन चरणों पर, | ||
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डर था कहीं उपस्थिति मेरी, | डर था कहीं उपस्थिति मेरी, | ||
उनकी कुछ घड़ियाँ | उनकी कुछ घड़ियाँ बहुमूल्य। | ||
नष्ट न कर दे, फिर क्या होगा | नष्ट न कर दे, फिर क्या होगा, | ||
मेरे इन भावों का मूल्य? | मेरे इन भावों का मूल्य? | ||
संकोचों में डूबी मैं जब | संकोचों में डूबी मैं जब, | ||
पहुँची उनके आँगन | पहुँची उनके आँगन में। | ||
कहीं उपेक्षा करें न मेरी, | कहीं उपेक्षा करें न मेरी, | ||
अकुलाई सी थी मन में। | अकुलाई सी थी मन में। | ||
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किंतु अरे यह क्या, | किंतु अरे यह क्या, | ||
इतना आदर, इतनी करुणा, सम्मान? | इतना आदर, इतनी करुणा, सम्मान? | ||
प्रथम दृष्टि में ही दे डाला | प्रथम दृष्टि में ही दे डाला, | ||
तुमने मुझे अहो मतिमान! | तुमने मुझे अहो मतिमान! | ||
मैं अपने झीने आँचल में | मैं अपने झीने आँचल में, | ||
इस अपार करुणा का | इस अपार करुणा का भार। | ||
कैसे भला सँभाल सकूँगी | कैसे भला सँभाल सकूँगी, | ||
उनका वह स्नेह अपार। | उनका वह स्नेह अपार। | ||
लख महानता उनकी पल-पल | लख महानता उनकी पल-पल, | ||
देख रही हूँ अपनी | देख रही हूँ अपनी ओर। | ||
मेरे लिए बहुत थी केवल | मेरे लिए बहुत थी केवल, | ||
उनकी तो करुणा की कोर। | उनकी तो करुणा की कोर। | ||
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05:49, 14 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
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अपने बिखरे भावों का मैं, |