"यह कदम्ब का पेड़-2 -सुभद्रा कुमारी चौहान": अवतरणों में अंतर
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यह कदंब का पेड़ अगर | यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता जमना तीरे | ||
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे | मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे धीरे | ||
ले देती यदि मुझे तुम बांसुरी दो पैसे वाली | ले देती यदि मुझे तुम बांसुरी दो पैसे वाली | ||
पंक्ति 44: | पंक्ति 44: | ||
मुझे देखने काम छोड़कर, तुम बाहर तक आतीं | मुझे देखने काम छोड़कर, तुम बाहर तक आतीं | ||
तुमको आती देख, बांसुरी रख मैं चुप हो जाता | तुमको आती देख, बांसुरी रख मैं चुप हो जाता | ||
एक बार | एक बार माँ कह, पत्तों में धीरे से छिप जाता | ||
तुम हो चकित देखती, चारों ओर ना मुझको पातीं | तुम हो चकित देखती, चारों ओर ना मुझको पातीं | ||
व्याकुल सी हो तब, कदंब के नीचे तक आ जातीं | व्याकुल सी हो तब, कदंब के नीचे तक आ जातीं | ||
पंक्ति 58: | पंक्ति 58: | ||
वहीं कहीं पत्तों में छिपकर, फिर बांसुरी बजाता | वहीं कहीं पत्तों में छिपकर, फिर बांसुरी बजाता | ||
बुलाने पर भी जब मैं ना उतरकर आता | बुलाने पर भी जब मैं ना उतरकर आता | ||
मां, तब | मां, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता | ||
पंक्ति 65: | पंक्ति 65: | ||
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं, धीरे धीरे आता | तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं, धीरे धीरे आता | ||
और तुम्हारे आंचल के नीचे छिप जाता | और तुम्हारे आंचल के नीचे छिप जाता | ||
तुम घबराकर आंख खोलतीं, और | तुम घबराकर आंख खोलतीं, और माँ खुश हो जातीं | ||
इसी तरह खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे | इसी तरह खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे | ||
यह कदंब का पेड़ अगर | यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता जमना तीरे ।। | ||
14:07, 2 जून 2017 का अवतरण
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यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता जमना तीरे |