"अजातशत्रु नाटक -प्रसाद": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) छो (श्रेणी:साहित्य (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
[[Category:आधुनिक_साहित्य]] | [[Category:आधुनिक_साहित्य]] | ||
[[Category:गद्य_साहित्य]] | [[Category:गद्य_साहित्य]] | ||
[[Category:साहित्य_कोश]] | [[Category:साहित्य_कोश]] | ||
[[Category:नाटक]] | [[Category:नाटक]] | ||
[[Category:जयशंकर प्रसाद]] | [[Category:जयशंकर प्रसाद]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
12:33, 11 अक्टूबर 2011 का अवतरण
जयशंकर प्रसाद कृत नाटक 'अजातशत्रु' का प्रकाशन 1922 ई. में हुआ था। इसके पूर्व राज्यश्री, विशाख आदि प्रसाद के जो नाटक प्रकाशित हुए थे, उनमें लेखक ने आगे चलकर कुछ परिवर्तन किये थे।
- संस्करणों में अंतर
अजातशत्रु के प्रथम और द्वितीय संस्करण में अंतर है। द्वितीय संस्करण में वे पद्मांश हटा दिये गये हैं जिनका प्रयोग पात्र कथोपकथन के बीच करते थे। 'अजातशत्रु' का कथानक बौद्ध काल से सम्बन्ध रखता है। समस्त कथा मगध, कोशल तथा कौशांबी के तीन प्रसिद्ध स्थानों पर घटित होती है और यह तीन अंकों में विभिक्त है।
कथानक
सम्राट बिम्बसार जीवन के प्रति विरक्त भाव रखते हैं। जनपद बौद्ध धर्म की छाया है। वे परिवार के पारस्परिक विद्वेष के कारण क्षुब्ध हैं और भगवान बुद्ध के आदेश से सम्पूर्ण राज्य अजातशत्रु को सौंपकर विरक्त हो जाते है। मगध में होने वाली इस घटना का प्रभाव कोशल पर पड़ता है। कोशल के राजा प्रसेनजित और युवराज विरुद्धक में अजात के राज्याभिषेक को लेकर विरोध उत्पन्न हो जाता है और विरुद्धक अपनी माता शक्तिमती के साथ पिता के विरुद्ध हो जाता है। कौशांबी की घटना इस दृष्टि से मनोरंजक है कि मागधी का षडयंत्र इतना भीषण होता है कि उदयन और पद्मावती के सम्बन्ध कुछ समय के लिए बिगड़ जाते नाटक में अजातशत्रु और विरुद्धक के एक ओर तथा उदयन और प्रसेनजित उनके विरोध में दिखाई देते हैं। नाटक की परिसमाप्ति में बौद्ध धर्म का स्पष्ट प्रभाव है, क्योंकि सभी व्यक्ति पश्चात्ताप प्रकट करते हैं। शांत रस की स्थापना के साथ यह नाटक समाप्त होता है।
शिल्प और शैली
'अजातशत्रु' के शिल्प में समीक्षक पाश्चात्य नाटको का प्रभाव पाते हैं। नाटक का आरम्भ एक विरोध की स्थिति से होता है इस विरोध की और विषमता के विकास के साथ कथा आगे बढ़ती है। यह विरोध दो रूपों में प्रकट है। सम्राट बिम्बसार के मन में जो पश्चात्ताप और विक्षोभ है वह उनके आंतरिक द्वन्द को प्रकाश में लाता है। राजनीतिक स्तर पर जो संघर्ष है वह बाह्य जगत सम्बन्ध रखता है। दोनों प्रकार के विरोध और संघर्ष बौद्ध धर्म की छाया में शमन पाते हैं।
- नामकरण
नाटक में समस्त चरित्रांकन दो पक्षों में विभक्त है - दैवी और आसुरीं वृत्तियों के पात्र। लेखक ने संघर्ष के लिए इनका उपयोग किया है। अजातशत्रु के नाटक का नामकरण इसी आधार पर है क्योंकि वह समस्त संघर्ष से प्रमुख भूमिका का कार्य करता है।
- नायक
नायक के रूप में अजातशत्रु आदर्श नहीं कहा जा सकता किंतु नाटक का कथाचक्र उसके आस-पास परिक्रमा करता है। भगवान बुद्ध 'अजातशत्रु' में एक विशिष्ट व्यक्तित्व के रूप में आये हैं जो शांत रस की प्रतिष्ठा करते हैं।
|
|
|
|
|