"शंखचूड़ (दानव)": अवतरणों में अंतर
(→वध) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
गोलोक में भी शंखचूड़ [[तुलसी माता की आरती|तुलसी]] पर आसक्त था, अत: भूलोक में भी उसने तुलसी को प्राप्त करने के लिए तपस्या की। उसके पास हरि का मंत्र और कवच भी थे। तुलसी से विवाह होने के उपरान्त वह ऐश्वर्यपूर्वक रहने लगा। श्रीकृष्ण की प्रेरणा से [[शिव]] ने उस पर आक्रमण किया। शिव की अपरिमित सेना (जो कि [[देवता|देवताओं]] तथा भगवती से युक्त थी) के होते हुए भी शंखचूड़ परास्त नहीं हो रहा था। सब ने विचारा कि जब तक उसके पास हरि का मंत्र और कवच हैं और उसकी पत्नि पतिव्रता है, तब तक उसे परास्त करना असम्भव है। | गोलोक में भी शंखचूड़ [[तुलसी माता की आरती|तुलसी]] पर आसक्त था, अत: भूलोक में भी उसने तुलसी को प्राप्त करने के लिए तपस्या की। उसके पास हरि का मंत्र और कवच भी थे। तुलसी से विवाह होने के उपरान्त वह ऐश्वर्यपूर्वक रहने लगा। श्रीकृष्ण की प्रेरणा से [[शिव]] ने उस पर आक्रमण किया। शिव की अपरिमित सेना (जो कि [[देवता|देवताओं]] तथा भगवती से युक्त थी) के होते हुए भी शंखचूड़ परास्त नहीं हो रहा था। सब ने विचारा कि जब तक उसके पास हरि का मंत्र और कवच हैं और उसकी पत्नि पतिव्रता है, तब तक उसे परास्त करना असम्भव है। | ||
==वध== | ==वध== | ||
सौ वर्षों तक युद्ध होता रहा। शिव मृत देवताओं को पुनर्जीवन देते जा रहे थे। रणक्षेत्र में दानेश्वर शंखचूड़ से एक वृद्ध [[ब्राह्मण]] भिक्षा मांगने के लिए आया। राजा ने इच्छित दक्षिणा मांगने को कहा, तो ब्राह्मण ने उससे कवच मांग लिया। शुखचूड़ ने उसे कवच दे दिया। ब्राह्मण ने तुरन्त ही शंखचूड़ का सा रूप धारण किया और तुलसी के पास गया। उसने माया पूर्वक तुलसी में वीर्याधान किया। तत्काल शिव ने हरि के दिये शूल से शंखचूड़ को मार गिराया। दानेश्वर तो रथ सहित भस्म हो गया, किन्तु किशोर सुदामा ने गोलोक धाम में राधा-कृष्ण को प्रणाम किया। शूल भी शीघ्रतापूर्वक कृष्ण के पास पहुँच गया। शंखचूड़ की अस्थियों से शंख जाति का उदभव हुआ। [[शंख]] से सभी देवताओं को जल देते हैं, किन्तु शिव को उसका जल नहीं दिया जाता है। | सौ वर्षों तक युद्ध होता रहा। शिव मृत देवताओं को पुनर्जीवन देते जा रहे थे। रणक्षेत्र में दानेश्वर शंखचूड़ से एक वृद्ध [[ब्राह्मण]] भिक्षा मांगने के लिए आया। राजा ने इच्छित दक्षिणा मांगने को कहा, तो ब्राह्मण ने उससे कवच मांग लिया। शुखचूड़ ने उसे कवच दे दिया। ब्राह्मण ने तुरन्त ही शंखचूड़ का सा रूप धारण किया और तुलसी के पास गया। उसने माया पूर्वक तुलसी में वीर्याधान किया। तत्काल शिव ने हरि के दिये शूल से शंखचूड़ को मार गिराया। दानेश्वर तो रथ सहित भस्म हो गया, किन्तु किशोर सुदामा ने गोलोक धाम में राधा-कृष्ण को प्रणाम किया। शूल भी शीघ्रतापूर्वक कृष्ण के पास पहुँच गया। शंखचूड़ की अस्थियों से शंख जाति का उदभव हुआ। [[शंख]] से सभी देवताओं को जल देते हैं, किन्तु शिव को उसका जल नहीं दिया जाता है।<ref>देवी भागवत, 9।19</ref> | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध=}} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध=}} | ||
{{संदर्भ ग्रंथ}} | {{संदर्भ ग्रंथ}} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
{{cite book | last =विद्यावाचस्पति | first =डॉक्टर उषा पुरी | title =भारतीय मिथक कोश| edition = | publisher =नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली| location =भारत डिस्कवरी पुस्तकालय| language =[[हिन्दी]]| pages =301| chapter =}} | {{cite book | last =विद्यावाचस्पति | first =डॉक्टर उषा पुरी | title =भारतीय मिथक कोश| edition = | publisher =नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली| location =भारत डिस्कवरी पुस्तकालय| language =[[हिन्दी]]| pages =301| chapter =}} |
14:10, 17 अक्टूबर 2011 का अवतरण
सुदामा श्रीकृष्ण का पार्षद था। एक बार श्रीकृष्ण विरिजा के साथ विहार कर रहे थे। सुदामा भी उनके साथ ही था। राधा को ज्ञात हुआ तो रुष्ट होकर वहाँ पहुँचीं। उसने कृष्ण को बहुत फटकारा। लज्जावश विरिजा तो नदी बन गई, किन्तु सुदामा ने क्रुद्ध होकर राधा से बात की। राधा ने क्रोधवश उसे सभा से निकाल दिया और दानवी योनि में जन्म लेने का शाप दिया। क्षणिक आवेग जब समाप्त हुआ तो राधा ने दयावश शाप की अवधि गोलोक के आधे क्षण की कर दी, जो कि मृत्यु लोक का एक मन्वंतर होता है। शापवश सुदामा शंखचूड़ नामक दानव हुआ।
देवताओं से युद्ध
गोलोक में भी शंखचूड़ तुलसी पर आसक्त था, अत: भूलोक में भी उसने तुलसी को प्राप्त करने के लिए तपस्या की। उसके पास हरि का मंत्र और कवच भी थे। तुलसी से विवाह होने के उपरान्त वह ऐश्वर्यपूर्वक रहने लगा। श्रीकृष्ण की प्रेरणा से शिव ने उस पर आक्रमण किया। शिव की अपरिमित सेना (जो कि देवताओं तथा भगवती से युक्त थी) के होते हुए भी शंखचूड़ परास्त नहीं हो रहा था। सब ने विचारा कि जब तक उसके पास हरि का मंत्र और कवच हैं और उसकी पत्नि पतिव्रता है, तब तक उसे परास्त करना असम्भव है।
वध
सौ वर्षों तक युद्ध होता रहा। शिव मृत देवताओं को पुनर्जीवन देते जा रहे थे। रणक्षेत्र में दानेश्वर शंखचूड़ से एक वृद्ध ब्राह्मण भिक्षा मांगने के लिए आया। राजा ने इच्छित दक्षिणा मांगने को कहा, तो ब्राह्मण ने उससे कवच मांग लिया। शुखचूड़ ने उसे कवच दे दिया। ब्राह्मण ने तुरन्त ही शंखचूड़ का सा रूप धारण किया और तुलसी के पास गया। उसने माया पूर्वक तुलसी में वीर्याधान किया। तत्काल शिव ने हरि के दिये शूल से शंखचूड़ को मार गिराया। दानेश्वर तो रथ सहित भस्म हो गया, किन्तु किशोर सुदामा ने गोलोक धाम में राधा-कृष्ण को प्रणाम किया। शूल भी शीघ्रतापूर्वक कृष्ण के पास पहुँच गया। शंखचूड़ की अस्थियों से शंख जाति का उदभव हुआ। शंख से सभी देवताओं को जल देते हैं, किन्तु शिव को उसका जल नहीं दिया जाता है।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
विद्यावाचस्पति, डॉक्टर उषा पुरी भारतीय मिथक कोश (हिन्दी)। भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली, 301।
- ↑ देवी भागवत, 9।19
संबंधित लेख