इन्दुलेखा श्रीराधा जी की अष्टसखियों में से एक हैं। राधा की यह सखी अत्यंत सूझबूझ वाली हैं। इनका निवास सुनहरा नामक गाँव है। सखी इन्दुलेखा किसी की भी हस्तरेखा को देखकर बता सकती हैं कि उसका क्या भविष्य है।
- अनुमान है कि भद्रा गोपी वृन्दावन की इन्दुरेखा/इन्दुलेखा गोपी के तुल्य है।
- इन्दुलेखा नाग वशीकरण विद्या की ज्ञाता है और उसे नागों को वश में करने वाले मन्त्रों पर सिद्धि प्राप्त है।
- वह सामुद्रिक, देहलक्षण शास्त्र की और रत्न विज्ञान की ज्ञाता है तथा राधा-कृष्ण को कण्ठ आभूषण प्रस्तुत करती है।
- चंवर डुलाना इन्दुलेखा की मुख्य सेवा है। वह राधा और कृष्ण के बीच प्रेम संदेशों का आदान-प्रदान करती है, जिसे संभवतः कोक विद्या नाम दिया गया है।
इन्दुलेखा अति चतुर सयानी। हित की रासि दुहुंन मनमानी॥
कोक कला घातन सब जानै। काम कहानी सरस बखानै॥
बसी करन निज प्रेम के मंत्रा। मोहन विधि के जानत जंत्रा॥
छिनछिन ते सब पियहि सिखावै। तातें अधिक प्रिया मन भावै॥
देह प्रभा हरताल रंग, बसन दाडिमी फूल।
अधिकारिन सब कोस की, नाहिन कोऊ सम तूल॥
चित्रलेखा अरु मोदिनी, मन्दालसा प्रवीन।
भद्रतुङ्गा अरु रसतुङ्गा, गान कला रस लीन॥
सोभित सखी सुमंगला, चित्रांगी रस दैंन।
ये तौ रहैं सब बात में, सावधान दिन रैंन॥
श्री ध्रुवदास जी के उपरोक्त कथन में कोक कला की व्याख्या कुक-आदाने धातु के आधार पर तथा कोकिल शब्द के आधार पर की जा सकती है।[1]
अन्य सखियाँ
राधाजी की परमश्रेष्ठ सखियाँ आठ मानी गयी हैं, जिनके नाम निम्नलिखित हैं-
- उपरोक्त सखियों में से 'चित्रा', 'सुदेवी', 'तुंगविद्या' और 'इन्दुलेखा' के स्थान पर 'सुमित्रा', 'सुन्दरी', 'तुंगदेवी' और 'इन्दुरेखा' नाम भी मिलते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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