"जलियाँवाला बाग में बसंत -सुभद्रा कुमारी चौहान": अवतरणों में अंतर
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परिमल-हीन पराग दाग सा बना पड़ा है, | परिमल-हीन पराग दाग सा बना पड़ा है, | ||
हा! यह प्यारा | हा! यह प्यारा बाग़ खून से सना पड़ा है। | ||
ओ, प्रिय ऋतुराज! किन्तु धीरे से आना, | ओ, प्रिय ऋतुराज! किन्तु धीरे से आना, |
12:44, 16 फ़रवरी 2012 का अवतरण
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यहाँ कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते, |